इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत” के अध्याय-8 ”सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 8 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Geography Book-1 Chapter-8 Notes In Hindi
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अध्याय- 8 “सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत |
अध्याय नंबर | आठ (8) |
अध्याय का नाम | ”सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय-8 “सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान”
पृथ्वी और वायुमंडल
- पृथ्वी पर मौजूद जीवन यहाँ पर विद्यमान वायुमंडल के कारण ही संभव है। इस वायुमंडल का निर्माण कई गैसों से मिलकर हुआ है।
- अपनी ऊर्जा के लिए पृथ्वी सूर्य पर निर्भर है और इस ऊर्जा को वापस अंतरिक्ष में ही छोड़कर पृथ्वी अपने तापमान का संतुलन बनाती है।
- भिन्न भागों में ताप भी भिन्न होता है, जो दाब की भिन्नता का कारक है इसलिए वायु ताप का बंटवारा एक जगह से दूसरी जगह पर करती है।
सौर विकिरण
- जो ऊर्जा पृथ्वी को प्राप्त होती है, वह सूर्यताप या आगामी सौर विकिरण कहलाता है। भू-आभ आकार में पृथ्वी पर सूर्य की टेढ़ी किरनें पड़ती हैं, जो इसे सौर ऊर्जा की पूर्ण प्राप्ति नहीं करने देती।
- यह हर मिनट 1.94 प्रतिवर्ग सेंटीमीटर ऊर्जा प्राप्त करती है, जो सूर्य की दूरी के कारण हर वर्ष अलग होती है।
- यह दूरी- 4 जुलाई को 15 करोड़ 20 लाख किलोमीटर, जिसे अपसौर और 3 जनवरी को सबसे समीप यानि 14 करोड़ 70 लाख किलोमीटर, जिसे उपसौर कहते हैं।
- पृथ्वी की सतह पर सूर्यताप में भिन्नता– सूर्यताप की तीव्रता हर मौसम, दिन और वर्ष बदलती है, इसके कारण हैं-
- पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना
- सूर्य की किरणों का नति कोण
- दिन की अवधि
- वायुमंडल की पारदर्शिता
- स्थलीय विन्यास अथवा बनावट
- पृथ्वी का अक्ष परिक्रमा के दौरान सूर्य के चहुं ओर समतल कक्ष से 66 1/2 डिग्री का कोण बनाता है। यह सूर्यताप की मात्रा जो विभिन्न अक्षांशों पर प्राप्त होती है, को प्रभावित करता है।
- ऊंचे अक्षांशों पर सूर्य का नति कोण कम बनता है। किरणें इससे तिरछी पड़ती हैं।
- सीधी किरणें तिरछी के मुकाबले कम स्थान को घेरती हैं। ऊर्जा का वितरण बड़े क्षेत्रों पर तब होता है, जब यह अधिक क्षेत्रों पर पड़ती है। प्रति इकाई क्षेत्रों को ऐसे में कम ऊर्जा ही मिल पाती है।
- तिरछी किरणों का अवशोषण वायु मण्डल में हो जाता है, जिससे ऊर्जा का क्षय हो जाता है।
सौर विकिरण का वायुमंडल से होकर गुजरना
- सूर्य की किरणों को वायुमंडल की परतों से होकर आना होता है, सूर्य द्वारा भेजी गई अवरक्त विकिरण को क्षोभमंडल में ओज़ोन, जलवाष्प और अन्य गैसें सोख लेती हैं।
- आकाश का रंग दिखाई देने का कारण है, क्षोभमंडल में मौजूद कण द्वारा दिखने वाले स्पैक्ट्रम को पृथ्वी की सतह पर फैला देना है, जिससे सूर्यस्त और उदय के समय लाल रंग का दिखता है।
पृथ्वी की सतह पर सूर्यताप का स्थानिक वितरण
- सूर्यताप की मात्रा उष्णकटिबंध में जहां 320 वाट प्रतिवर्ग मीटर होती है, वहीं ध्रुव पर 70 वाट प्रतिवर्ग मीटर।
- उष्णकटिबंधीय क्षेत्र कम मेघाच्छादित होते हैं। एक ही अक्षांश के महाद्वीप क्षेत्रों में ज्यादा और महसागरीय क्षेत्रों में कम सूर्यताप मिलता है।
वायु मण्डल का तापन और शीतलन
- वायुमंडल का ठंडा या गर्म होना इन कारकों पर निर्भर करता है-
- चालन प्रक्रिया में जब पृथ्वी सौर प्रवेश करने और विकीरण से गर्म होती है, तब धरती के समीप स्थित परतों में ताप का संचरण होने लगता है, इससे वायु और अन्य परतें भी गरम होने लगती हैं।
- असमान ताप वाले पिंडों के संपर्क में आने से चालन होता है। इन पिंडों के बीच ऊर्जा का लेन-देन इनका तापमान एक होने पर समाप्त होता है। चालन वायुमंडल की निचली परतों को गर्म करने का काम करता है।
- संवहन में वायु पृथ्वी के संपर्क में आती है और लम्बवत उठकर वायुमंडल की परतों में ताप का फैलाव करती है, लेकिन यह क्षोभमंडल तक ही सीमित रहता है।
- अभिवहन प्रक्रिया में ताप का स्थानांतरण वायु के क्षैतिज संचलन से होता है। यह लम्बवत संचलन से भी महत्वपूर्ण है। इसके कारण ही उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लू चलती है।
- पार्थिव विकिरण में सूर्यताप से पृथ्वी की सतह गर्म हो जाती है, इसके बाद पृथ्वी वायुमंडल में ऊर्जा को फैलाने लगती है, जिससे वायुमंडल नीचे से गर्म होने लगता है।
पृथ्वी का ऊष्मा बजट
- पृथ्वी अपने तापमान को स्थिर रखने का काम करती है, यह न तो सूर्यताप का संचय करती है न ही क्षय।
- जब सूर्यताप के रूप में प्राप्त ऊर्जा और पार्थिव विकिरण का ताप अंतरिक्ष में समान हो, तभी यह संभव हो सकता है।
- जब सौर विकिरण के लिए ऊर्जा का कुछ हिस्सा परावर्तित हो जाता है, तो इस मात्रा को पृथ्वी का एल्बिडो कहा जाता है।
- सूर्य ऊर्जा के संतुलित स्थानांतरण के कारण ही पृथ्वी न ज्यादा गर्म होती है और न ही ठंडी।
पृथ्वी की सतह पर कुल ऊष्मा बजट की भिन्नता
- विकिरण की मात्रा में पृथ्वी की विभिन्न सतहों पर भिन्नता पाई जाती है, यह कुछ जगहों पर कम ज्यादा हो सकता है।
- जैसे ताप ऊर्जा का पुनर्वितरण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ध्रुवों की तरफ होता है, परिणामस्वरूप उष्णकटिबंध ताप का संचयन होने से गर्म नहीं होते और ताप की कमी होने से जम भी नहीं पाते।
तापमान
- सूर्य की अन्योन्यक्रिया द्वारा जनित ऊष्मा को ताप कहते हैं, यह किसी स्थान के तापमान को डिग्री के रूप में दर्शाता है। इसे नियंत्रित करने वाले कारक इस प्रकार हैं-
- उस स्थान की अक्षांश रेखा
- स्थान की समुद्र तल से उत्तुंगता
- स्थान की समुद्र से दूरी
- वायु संहित का परिसंचरण
- कोष्ण और ठंडी महासागरीय धाराओं की उपस्थिति
- स्थानीय कारक
तापमान का वितरण (जनवरी और जुलाई)
- जनवरी और जुलाई में तापमान के वितरण से विश्व के तापमान को समझा जाता है। मानचित्रों में इसे समपात रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है।
- जुलाई के समय समताप की रेखाएं अक्षांश के समान ही दिखाई पड़ती हैं। उत्तरी गोलार्ध का विचलन जनवरी में स्पष्ट देखा जाता है।
- जनवरी के समय समताप रेखाओं की दिशा महासागर के उत्तर और महाद्वीपों के दक्षिण में मुड़ जाती हैं, जो उत्तरी अटलांटिक महासागर पर देखी जा सकती हैं।
- गल्फ स्ट्रीम के चलते समताप रेखाओं का मोड उत्तर की तरफ हो जाता है।
- सतह के ऊपर का तापमान कम होते ही ये रेखाएं यूरोप के दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं।
- जनवरी का तापमान- 60 डिग्री पूर्वी देशान्तर और 80 और 50 डिग्री उत्तर में यह 20 डिग्री सेल्सियस होता है।
- इस प्रकार जनवरी का तापमान
- विषुवतरेखीय महासागरों का -27 डिग्री से ज्यादा
- उष्णकटिबंधों में 24 डिग्री से ज्यादा
- मध्य अक्षांशों पर 20 से 0 डिग्री सेल्सियस
- और यूरेशिया में -18 से -48 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है।
- महासागरों का प्रभाव दक्षिण गोलार्ध के तापमान पर होता है।
- समताप रेखाओं का विचरण जुलाई में अक्षांशों के समान ही चलता है। 40 डिग्री उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों पर तापमान 10 डिग्री सेल्सियस होता है।
- तापांतर– जनवरी और जुलाई के बीच का सबसे ज्यादा तापांतर यूरेशीय महाद्वीप के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में पाया जाता है। और सबसे कम 20 डिग्री दक्षिण और 15 डिग्री उत्तरी अक्षांशों के बीच।
तापमान का व्युत्क्रमण
- जब ऊंचाई बढ़ने पर तापमान कम होता है, तो इसे सामान्य ह्रास दर कहा जाता है। यह स्थति उलट जाने पर तापमान का व्युत्क्रमण होना कहलाती है।
- यह सामान्य प्रक्रिया है, जैसे सर्दियों की लंबी और ठंडी रात। ध्रुवीय क्षेत्रों में यह स्थिति पूरे वर्ष देखी जाती है।
- इससे वायुमंडल के निचले स्तर की स्थिरता बढ़ती है। व्युत्क्रमण के चलते वायुमण्डल का निम्न स्तर धुएं और धूलकणों से भर जाता है, जो सर्दियों में कोहरा बनने में मदद करता है।
- इसका प्रभाव सूर्योदय के साथ कम हो जाता है।
- वायु का प्रवाह पहाड़ी क्षेत्रों में व्युत्क्रमण की स्थिति को बढ़ा देता है। यहाँ की ठंडी हवा गरुत्वाकर्षण बल के कारण भारी हो जाती है, यह जल की तरह ही ढालों से नीचे आती है। और गरम हवा के नीचे जमा हो जाती है, इसे वायु अपवाह की संज्ञा दी जाती है।
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