इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी “भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत” के अध्याय-9 “वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 9 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Geography Book-1 Chapter-9 Notes In Hindi
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अध्याय- 9 “वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत |
अध्याय नंबर | नौ (9) |
अध्याय का नाम | “वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय- 9 “वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ“
वायुमंडल
- क्षैतिज रूप से गतिमान वायु ही पवन कहलाती है। वायुमंडल के दाब में भिन्नता का कारण है- गरम वायु का फैलना और ठंडी वायु का सिकुड़ना।
- यह परिस्थिति वायु के निम्न वायुदाब के क्षैतिज प्रवाह के लिए कारक है। पृथ्वी के तापमान को स्थिर बनाए रखने के लिए पवनें आर्द्रता और तापमान का पुनर्वितरण करती हैं।
- आर्द्र वायु ऊपर उठकर ठंडी होती है, जिससे बादल बनते हैं और बारिश होती है।
वायुमंडलीय दाब
- समुद्र की गहराई से लेकर वायुमंडल की अंतिम परत तक फैली वायु के दाब को वायुमंडलीय दाब कहा जाता है, इसे मिलीबार इकाई के आधार पर मापा जाता है।
- समुद्र के तल का वायुदाब 1,013.2 मिलीबार है, यह ऊंचाई बढ़ने पर वायु दाब कम होता है।
- वायुदाब मापने के लिए पारद वायुदाबमापी यंत्र का उपयोग किया जाता है।
- विभिन्न क्षेत्रों का वायुदाब भी अलग होता है, जिससे वायु की गति प्रभावित होती है।
वायुदाब में ऊर्ध्वाधर वितरण
- वायुदाब हर 10 मीटर की ऊंचाई पर 1 मिलीबार कम हो जाता है, लेकिन यह हमेशा एक ही दर से नहीं घटता।
- इस दिशा का दाब क्षितिज दाब से ज्यादा होता है, जो गरुत्वाकर्षण बल से संतुलन में आ जाता है। इसलिए क्षितिज पवनें ऊर्ध्वाधर पवनों से अधिक शक्तिशाली होती हैं।
वायुदाब में क्षैतिज वितरण
- वायुदाब के छोटे से अंतर से भी वायु की दिशा में बदलाव आ जाता है।
- समबाद रेखाएं- यह रेखा समुद्र के तल से समान वायुदाब वाले क्षेत्रों को मिलाती हैं।
- क्षितिज वितरण को जानने के लिए समबाद रेखाओं जिनको समान अंतराल पर खींचा गया हो, का अध्ययन किया जाता है।
- वायुदाब को तुलनात्मक बनाने के लिए, इसे समुद्रतल के स्तर पर कम कर दिया जाता है।
समुद्रतल वायुदाब का वैश्विक वितरण
- विषुवतीय निम्न अवदाब क्षेत्र– विषुवत् वृत के पास पाए जाने वाले कम दाब को कहते हैं।
- उपोषण उच्च वायुदाब क्षेत्र– उच्च दाब क्षेत्र 30 डिग्री उत्तरी और 30 डिग्री दक्षिण अक्षांशों के साथ पाए जाने वाले उच्च दाब क्षेत्र को कहा जाता है।
- अधोध्रुवीय निम्नदाब पट्टियाँ- वे निम्नदाब पट्टियाँ जो पुनः ध्रुवों की तरह 60 डिग्री उत्तरी और 60 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों पर हैं।
- ध्रुवीय उच्च वायुदाब पट्टियाँ– ध्रुवों के निकट होने वाले ज्यादा वायुदाब को कहते हैं। इन पट्टियों का विस्थापन सूर्य की रोशनी के आधार पर होता रहता है।
- इन पट्टियों का खिसकाव सर्दियों में उत्तरी गोलार्ध से दक्षिण की ओर हो जाता है और गर्मियों में उत्तर दिशा की ओर हो जाता है।
पवनों की दिशा और वेग को प्रभावित करने वाले बल
- क्षैतिज दिशा में बहने वाली वायु को पवन कहते हैं, वायु में गति होने का कारण है वायुमंडलीय दाब में भिन्नता।
- वायु का प्रवाह उच्च से निम्न दाब की ओर होता है। पृथ्वी का घूर्णन पवनों के वेग को प्रभावित करता है, इसे कोरिऑलिस कहा जाता है और धरातलीय विषमताओं से उतन्न हुआ घर्षण पवनों की गति को।
- दाब प्रवणता बल, कोरिऑलिस बल और घर्षण बल के कारण क्षैतिज पवनें बहती हैं।
- दाब प्रवणता बल- समदाब रेखाओं के पास होने पर दाब प्रवणता ज्यादा होती है और दूर होने पर कम। दूरी के संदर्भ में इस्तेमाल होने वाली दर को दाब प्रवणता कहा जाता है।
- कोरिऑलिस बल- इससे उत्तरी गोलार्ध में बहने वाली पवनें अपने स्थान से दाईं तरफ और दक्षिण गोलार्ध में बाई तरह मुड़ जाती हैं। पवनों का वेग विक्षेपण को प्रभावित करता है।
- घर्षण बल– पवनों की गति इससे प्रभावित होती है, घर्षण बल का प्रभाव धरातल पर अधिक होता है।
वायुदाब और पवनें
- पवनें वायुमंडल में 2-3 किलोमीटर की ऊंचाई पर दाब प्रवणता बल और कोरिऑलिस बल से नियंत्रित हो जाती हैं और घर्षण से मुक्त।
- घर्षण बल के अभाव में तथा समदाब रेखाओं के सीधे होने के चलते कोरिऑलिस बल से दाब प्रवणता बल संतुलन में आ जाता है।
- जब ऐसा होने पर पवनें समदाब रेखाओं के साथ बहने लगती हैं, तो इन्हें भू-विक्षेपी पवनें कहते हैं।
- चक्रवाती परिसंचरण– पवनों का निम्न वायु दाब क्षेत्र में घूमना।
- प्रतिचक्रवाती परिसंचरण– उच्च वायु दाब क्षेत्र के चारों ओर घूमना। ऐसी स्थिति में दोनों गोलार्धों में पवनों की दिशा अलग होती है।
चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात में पवनों की दिशा का प्रारूप
दाब पद्धति | केंद्र में दाब की दिशा | पवन दिशा का प्रारूप उत्तरी गोलार्ध/ दक्षिणी गोलार्ध |
चक्रवात | निम्न | घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत/ घड़ी की सुई की दिशा के अनुरूप |
प्रतिचक्रवात | उच्च | घड़ी की सुई की दिशा के अनुरूप/घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत |
वायुमंडल: सामान्य परिसंचलन
- पवनों का प्रारूप- 1) वायुमंडलीय ताप में अक्षांशीय भिन्नता, 2) वायुदाब पट्टियों की उपस्थिति, 3) वायुदाब पट्टियों का सौर किरणों से विस्थापन, 4) महाद्वीपों और महासागरों का वितरण, 5) पृथ्वी के घूर्णन, पर निर्भर करता है।
- वायुमंडलीय पवनों का प्रवाह प्रारूप पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है, इससे समुद्र जल को भी गति मिलती है।
- सूर्यताप की अधिकता और वायुदाब कम होने के कारण वायु संवहन धाराओं के रूप में अंतर-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ऊपर उठती है।
- कोष्ठ– ऐसा परिसंचरण जो धरती की सतह के ऊपरी हिस्से में अथवा इसके विपरीत हिस्से में होता है।
- हेडले कोष्ठ, फैरल कोष्ठ, ध्रुवीय कोष्ठ इसके तीन भाग हैं।
मौसमी पवनें
- अत्यधिक तापन, पवन और वायुदाब पट्टियों के विस्थापन के लिए पवन के प्रवाह के चलते बदलता मौसम जिम्मेदार है।
- दक्षिण पूर्व एशिया की मानसून पवनों पर इसका प्रभाव अधिक देखा जाता है।
स्थानीय पवनें
- भूमि के तापमान की भिन्नता और विभिन्न अवधियों में चक्रों के विकास के परिणाम से स्थानीय क्षेत्रों की पवनों पर भी प्रभाव होता है।
स्थल और समुद्री समीर
- स्थल भागों का तापमान दिन में समुद्री भागों से अधिक होता है। स्थलों पर निम्न दाब और समुद्रों पर उच्च दाब बनता है।
- इससे पवनें समुद्र की ओर प्रवाहित होती हैं। रात के समय में यह स्थिति बिल्कुल इसके विपरीत हो जाती है।
पर्वत और घाटी पवनें
- पर्वतों की ढाल दिन में गर्म होती है, अब वायु ढाल के साथ ही ऊपर उठने लगती है, स्थान को भरने के लिए घाटी की हवा बहती है, जो घाटी समीर कही जाती है।
- इसके विपरीत परिस्थति में पर्वतीय पवनों का निर्माण होता है।
- घाटी में बहने वाली उच्च पठार और हिम क्षेत्रों से आई पवनों को अवरोही पवनें कहते हैं।
वायुराशियाँ
- किसी विस्तृत मैदान या महासगरीय स्थान पर लंबे समय तक रहने वाली पवनें, जो उस क्षेत्र के गुणों को धारण कर लेती हैं, जिसके स्वयं के गुणों में आर्द्रता और तापमान विद्यमान रहता है, वायुराशियाँ कहलाती हैं।
- इनके उद्गम क्षेत्रों के आधार पर इन्हें वर्गीकृत किया गया है-
- उष्ण और उपोषण कटिबंधीय महासागर
- उपोषणकटिबंधीय उष्ण मरुस्थल
- उच्च अक्षांशीय अपेक्षाकृत ठंडे महासागर
- उच्च अक्षांशीय अति शीत बर्फ आच्छादित महाद्वीपीय क्षेत्र
- स्थायी रूप से बर्फ आच्छादित आन्टार्कटिक महाद्वीप और आन्टार्कटिक महासागर।
- इनके ही आधार पर 5 वायु रशियां पाई जाती हैं-
- उष्णकटिबंधीय महासगरीय वायुराशि
- उष्णकटिबंधीय महाद्वीप
- ध्रुवीय महसागरीय वायुराशि
- ध्रुवीय महाद्वीपीय वायुराशि
- महाद्वीपीय आर्कटिक
वाताग्र
- वाताग्र वे क्षेत्र हैं जहां, दो वायुराशियों की सीमा मिलती है। इसके बनने की प्रक्रिया वाताग्र-जनन कहलाती है। इसके प्रकार इस तरह हैं-
- अचर वाताग्र– जब वायु ऊपर नहीं उठती, अर्थात वाताग्र स्थिर हो जाते हैं, तो इन्हें अचर वाताग्र कहते हैं।
- शीत वाताग्र– जब उष्ण वायुराशियों को शीत/भारी वायु ऊपर धकेलती है, इस स्थिति को शीत वाताग्र कहा जाता है।
- उष्ण वाताग्र– गर्म वायु राशियाँ, ठंडी वायु राशयों पर चढ़ती हैं, तो इसे उष्ण वाताग्र कहा जाता है।
- अधिविष्ट वाताग्र– वायु राशि का धरातल के पूर्ण रूप से ऊपर उठ जाने वाली स्थिति को अधिविष्ट वाताग्र कहा जाता है।
बहिरुषण कटिबंधीय चक्रवात
- इन चक्रवातों का निर्माण उष्णकटिबंध से दूर होता है, इसलिए ये बहिरुषण कटिबंधीय चक्रवात कहलाते हैं। इनका विकास मध्य व उच्च अक्षांशों में होता है।
- ये ध्रुवीय वाताग्र के साथ बनते हैं। शुरू में इनका वाताग्र अचर होता है।
- ये उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की अपेक्षा विस्तृत क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं।
- ये चक्रवात पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर गति करते हैं।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात
- इस चक्रवात की उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में होती है, ये विनाशकारी और आक्रामक तूफान होते हैं।
- इन्हें हिंद महासागर में- चक्रवात, अटलांटिक महासागर में- हरीकेन, पश्चिम-प्रशांत और दक्षिण चीन सागर में टाईफून और पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में इसे विली-विलीज नाम से जाना जाता है।
- इस तरह एक चक्रवात की सभी दिशाओं में सर्पिल वायु का संचरण होता है, जिसे इस चक्रवात की आँख भी कहा जाता है।
- इस आँख से रेनबेंड़ बनते हैं, ये कपासी वर्षा करने वाले बादलों की पक्तियों को बाहर के क्षेत्रों में विस्थापित कर सकता है।
तड़ितझंझा/टोरनेडो
- इस तरह के तूफान कम समय के लिए आते हैं, सीमित क्षेत्र में रहते हैं और तड़ित झंझाओं का निर्माण आर्द्र समय में प्रबल संवहन के परिणाम स्वरूप होता है।
- ये कपासी वर्षाओं के बादल होते हैं, जो गर्जन और बिजली के उत्पन्न होने के कारक हैं।
- अधिक ऊंचा जाने के कारण बादल ओलों के रूप में बरसते हैं।
- तड़ितझंझा आक्रामक होकर हाथी की सूंड के समान आकृति में आ जाते हैं, ये सर्पिल आकार के हो जाते हैं, इसे ही टोरनेडो कहा जाता है।
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