इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-2 यानी “भारत भौतिक पर्यावरण” के अध्याय- 3 “अपवाह तंत्र” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 3 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Geography Book-2 Chapter-3 Notes In Hindi
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अध्याय- 3 “अपवाह तंत्र”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भारत भौतिक पर्यावरण |
अध्याय नंबर | तीन (3) |
अध्याय का नाम | अपवाह तंत्र |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भारत भौतिक पर्यावरण
अध्याय-3 “अपवाह तंत्र”
- एक विशिष्ट क्षेत्र से नदी जब जल बहाकर लाती है, उस क्षेत्र को जलग्रहण क्षेत्र कहा जाता है।
- वे क्षेत्र जो नदियों और सहायक नदियों द्वारा अपवाहित किए जाते हैं, अपवाहक द्रोणी कहलाते हैं।
- जब दो अपवाहक द्रोणी किसी सीमा पर अलग होती हैं, उसे ‘जल विभाजक’ कहा जाता है।
- बड़ी नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी और छोटी नदियों के अपवाहित क्षेत्र को ‘जल संभार’ कहा जाता है।
- इनके किसी भी एक भाग में परिवर्तन के कारण अन्य भागों के क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है।
भारतीय अपवाह तंत्र का वर्गीकरण
- इसका विभाजन समुद्र में जल विसर्जन के आधार पर दो भागों में हुआ है-
- अरब सागर का अपवाह तंत्र- इस अपवाह तंत्र का लगभग 23% भाग कुल अपवाहित क्षेत्र का हिस्सा है, जो सिंधु, नर्मदा, और पेरियार आदि के रूप में अरब सागर में विसर्जित हो जाती हैं।
- बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र- इस अपवाह तंत्र का लगभग 77% भाग कुल अपवाहित क्षेत्र का हिस्सा है, जो ब्रह्यमपुत्र, गंगा, महानदी, कृष्णा आदि के रूप में बंगाल की खाड़ी में विसर्जित हो जाती हैं।
- जलसंभर क्षेत्र के आकार के आधार पर तीन भागों में विभाजन-
- प्रमुख नदी द्रोणी– इसमें 14 नदी द्रोणियाँ सम्मिलित हैं, और अपवाह क्षेत्र 20,000 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है।
- मध्य नदी द्रोणी– इसमें 44 नदी द्रोणियाँ सम्मिलित हैं, और अपवाह क्षेत्र 2,000 से 20,000 वर्ग किलोमीटर तक है।
- लघु नदी द्रोणी– इसमें न्यून वर्षा क्षेत्रों में बहने वाली कई नदियां आती हैं, इनका प्रवाह 2,000 वर्ग किलोमीटर से भी कम है।
भारत के हिमालयी और प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र
- भारत में विद्यमान छोटी बड़ी नदियों के जाल का उद्भव बड़ी भू-आकृति पर वर्षण के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं।
- हिमालयी अपवाह तंत्र– इसके अंतर्गत गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदी द्रोणियाँ आती हैं। हिमालयी अपवाह का विकास लंबे भू-गर्भिक इतिहास के बाद हुआ।
- ये नदियां बारहमासा बहती हैं, मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश के बाद ये नदियां निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियों का निर्माण करती हैं। मैदानी क्षेत्रों में ये नदियां सर्पाकार मार्ग में बहती हैं। इन नदियों का निश्चित मार्ग नहीं होता जैसे- बिहार की कोसी नदी।
- हिमालयी अपवाह तंत्र का विकास– भू-वैज्ञानिकों के अनुसार, शिवालिक नदी हिमालय के समानांतर असम से पंजाब तक बहती थी और पंजाब के निचले हिस्से में सिंध की खाड़ी में विसर्जित हो जाती थी।
- इसका विभाजन तीन भागों में हुआ- एक, पश्चिम में सिंध और पाँच सहायक नदियां, दो, मध्य में गंगा और इसकी सहायक नदियां, तीन, पूर्व में ब्रह्मपुत्र और इसकी सहायक नदियां।
हिमालयी अपवाह तंत्र की नदियां
- सिंधु नदी तंत्र- यह दुनिया की सबसे बड़ी नदी द्रोणियों में से एक है, इसका क्षेत्रफल है- 11 लाख 65 हजार वर्ग किलोमीटर, भारत में इसका क्षेत्रफल है- 3,21,289 वर्ग किलोमीटर। यह तिब्बत के कैलाश पर्वत श्रेणी के बोखर चू हिमनद से निकलती है।
- इसकी कई सहायक नदियां हैं- नुबरा, शयोक, गिलगित, शिगार और द्रास आदि। झेलम नदी, चेनाब, सतलुज, रावी, व्यास आदि इसकी महत्वपूर्ण सहायक नदियां हैं।
- गंगा नदी तंत्र– यह भारत की सबसे महत्वपूर्ण और पूजनीय नदी है। यह गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है, यहाँ इसे भागीरथी नाम से जाना जाता है, देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा का मिलन होने के बाद ये गंगा बनती है।
- गंगा नदी की लंबाई 2,252 किलोमीटर है। यह भारत के 8.6 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इस नदी का विसर्जन बंगाल की खाड़ी में होता है।
- यमुना, गंडक, कोसी, घाघरा, चम्बल, रामगंगा आदि गंगा नदी की महत्वपूर्ण सहायक नदियां हैं।
- ब्रह्यमपुत्र नदी तंत्र– यह कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के पास चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से निकलती है। दक्षिण तिब्बत के मैदानों में इसे सांग्पो के नाम से जाना जाता है।
- दिबांग और लोहित इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं। इनके मिलने के बाद से ब्रह्मपुत्र नाम से जानी जाती है।
- असम घाटी में इस नदी के साथ कई नदियां जुड़ती हैं। बांग्लादेश में प्रवेश पाने के बाद यह नदी जमुना कहलाती है।
- इस नदी का विसर्जन पद्मा (गंगा) के साथ बंगाल की खाड़ी में होता है।
- प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र- यह हिमालयी अपवाह तंत्र से पुराना तंत्र है, यदि नर्मदा और तापी नदी की छोड़ दें, तो कई प्रायद्वीपीय नदियां पूर्व की ओर बहती हैं।
- ये नदियां विसर्प न बनाकर एक निश्चित मार्ग पर चलती हैं, ये बारहमासी नदियां नहीं हैं।
- प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र का विकास- शुरुआती टर्शियरी काल में प्रायद्वीप के पश्चिमी हिस्से का धसाव हुआ जिससे यह समुद्रतल से नीचे चला गया।
- हिमालय के प्रोत्थान के फलस्वरूप इसके उत्तरी भागों का खिसकाव हुआ, जिसने भ्रंश द्रोणियों का निर्माण किया।
- इस समय में प्रायद्वीपीय खंड का झुकाव उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर हुआ, जिसके कारण अपवाह बंगाल की खाड़ी की ओर हो गया।
प्रायद्वीपीय नदी तंत्र
- महानदी– यह छत्तीसगढ़ के रायपुर में बहती हुई असम की ओर से बंगाल की खाड़ी में जल का विसर्जन करती है।
- कृष्णा नदी– यह सह्याद्री में महबलेश्वर के पास निकलती है, इसकी लंबाई 1,401 किलोमीटर है। कोयना और तुंगभद्रा इसकी सहायक नदियां हैं।
- कावेरी नदी– ये कर्नाटक के ब्रह्मगिरी पहाड़ियों से निकलती है। ये 800 किलोमीटर तक लंबी होती हैं।
- नर्मदा नदी– इसका उद्गम अमरकंटक पठार के पश्चिमी पार्श्व से होता है, इसी नदी पर सरदार सरोवर परियोजना बनाई गई है।
- तापी नदी– यह नदी पश्चिम दिशा में बहती है, जिसका उद्गम मध्यप्रदेश में होता है, इसकी लंबाई 724 किलोमीटर लंबी है।
- लूनी नदी– राजस्थान में इस नदी का सबसे बड़ा तंत्र है, जो सरस्वती और सागरमती के मिलने पर बनती है।
नदी प्रवाह प्रवृत्ति
- हिमालय से निकलने वाली नदियां बारहमासी होती हैं, इनमें जल बर्फ के पिघलने और वर्षण से आता है।
- दक्षिण भारत की नदियों के प्रवाह में उतार चढ़ाव आता है, क्योंकि ये ग्लेशियर पिघलने से नहीं बनती हैं, ये वर्षा जल द्वारा नियंत्रित होती हैं।
- जनवरी से जून के बीच गंगा नदी का जल प्रवाह न्यूनतम होता है, जो अगस्त या सितंबर में बढ़ता है।
- फर्राक्का में गंगा के जल का अधिकतम प्रवाह 55,000 क्यूसेक्स है, न्यूनतम 1300 क्यूसेक्स।
- हिमालय और प्रायद्वीप की नदियों की प्रवाह प्रवृत्ति भिन्न है, नर्मदा का जल विसर्जन स्तर जनवरी में कम रहता है, और अगस्त तक यह बढ़ जाता है।
नदी जल उपयोग में सीमा
- भारत की नदियों का जल हर स्थान पर समान नहीं रहता, बारहमासी नदियों में पूरे साल जल होता है, लेकिन कुछ नदियों में ऋतु के अनुसार ही जल की मात्रा उपलब्ध हो पाती है।
- इस कारण समय और स्थान के अनुसार जलापूर्ति में अंतर उत्पन्न होता है।
- जल की आपूर्ति समान करने और उपयोगिता को सुनिश्चित करने के लिए सरकार दो नदियों या नदी द्रोणियों को जोड़ने का काम करती है।
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