इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक-1 यानी “राजनीतिक सिद्धांत” के अध्याय- 2 “स्वतंत्रता” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 2 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Political Science Book-1 Chapter-2 Notes In Hindi
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अध्याय- 2 “स्वतंत्रता”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | राजनीति विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | राजनीतिक सिद्धांत |
अध्याय नंबर | दो (2) |
अध्याय का नाम | स्वतंत्रता |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- राजनीतिक सिद्धांत
अध्याय-2 “स्वतंत्रता”
स्वतंत्रता से अभिप्राय
- लोगों के जीवन में स्वतंत्रता के मायने इसलिए हैं, ताकि वे अपने जीवन का निर्वाह स्वयं के नियंत्रण में रहकर कर सकें, और अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं का निर्वहन आजाद रहकर कर पाएं।
- स्वतंत्रता केवल एक व्यक्ति के लिए न होकर समाज के लिए होनी चाहिए, सामाजिक जीवन को नियमों और कानूनों के तहत नियंत्रित किया जाता है।
- स्वतंत्रता के लिए कुछ सीमाएं होना भी आवश्यक है, जिससे यह स्वतंत्रता किसी अन्य के लिए असुरक्षा न बन जाए।
- इसके साथ ही यह जानना भी आवश्यक है कि जरूरी सीमाओं और प्रतिबंधों में क्या अंतर है, जिसे राजनीतिक सिद्धांत के माध्यम से समझा जा सकता है।
स्वतंत्रता से आशय
- नेल्सन मंडेला जिन्हें 20 सदी का महानतम नेता कहा जाता है, ने अपनी पुस्तक ‘लॉन्ग वॉक टू फ्रीडम’ में दक्षिण अफ्रीका में चलाई जा रही रंगभेद की नीति जिसमें काले रंग के लोगों पर हुए अत्याचारों के खिलाफ बताया गया है।
- इसके चलते देश के अश्वेत नागरिकों पर अनियमित प्रतिबंध एवं अत्याचार किए गए, जिसे वहां की सरकार ने नागरिकों पर जबरदस्ती थोपा।
- अश्वेत नागरिकों पर हो रहे इन अत्याचारों का विरोध करने पर नेल्सन मंडेला को 28 वर्ष की जेल की सजा हुई, इसके अलावा स्वतंत्रता की ही लड़ाई में म्यांमार की आंग सान सू की को उनके ही घर में निवारक नजरबंद कर दिया गया।
- इन्होंने अपनी आजादी को देश की आजादी से जोड़ा, अपनी पुस्तक ‘फ्रीडम फ्रॉम फियर’ में उन्होंने अपने यह विचार रखे।
स्वतंत्रता क्या है?
- किसी भी प्रकार के बाहरी प्रतिबंधों का न होना ही स्वतंत्रता है, इस तरह के बाहरी प्रतिबंध के अभाव में व्यक्ति स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने के लिए सक्षम हो जाता है।
- स्वतंत्रता का अभिप्राय व्यक्ति की आत्म अभिव्यक्ति की योग्यता का विस्तार भी है, जिससे नागरिक अपनी रचनात्मक क्षमता का विकास कर सकें।
- स्वतंत्रता के दो पहलू हैं, जिसमें प्रतिभा का विकास करने की स्थिति और बाहरी प्रतिबंधों का अभाव शामिल है।
- समाज में रहते हुए व्यक्ति यह उम्मीद नहीं कर सकता कि उसपर किसी भी प्रकार की सीमा या प्रतिबंध न हो।
- इस तरह के समाजिक प्रतिबंधों को लगाने से पहले इनको न्यायोचित होना भी जरूरी है।
- व्यक्ति की स्वतंत्रता से चयन की क्षमता को रोकने या सीमित करने वाले प्रतिबंधों को कम करना ही सही मायने में स्वतंत्रता है, जिसमें देश का नागरिक अपने भाग्य का निर्धारण कर सके।
- इसके कारण ही व्यक्ति अपने विवेक का पूर्ण इस्तेमाल कर पाता है।
स्वतंत्रता पर प्रतिबंध
- प्रतिबंधों से नागरिकों की स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता है, यह प्रतिबंध सरकार किसी कानून द्वारा या फिर बल पूर्वक नागरिकों पर थोप सकती है।
- उपनिवेशवाद के चलते लगाए जाने वाले प्रतिबंध अलग होते हैं, जिनमें सरकार अपनी मनमानी करती है, लेकिन लोकतान्त्रिक सरकार ये प्रतिबंध जनता की सुरक्षा को ध्यान में रखकर लगाती है, क्योंकि इस स्थिति में जनता का भी कुछ नियंत्रण सरकार पर होता है।
स्वतंत्रता में प्रतिबंधों की आवश्यकता
- समाज को अव्यवस्था के चंगुल से बचाने के लिए स्वतंत्रता के साथ प्रतिबंधों का होना आवश्यक है।
- समाज में किन्हीं कारणों से मतभेद उत्पन्न होते हैं, जो खुले स्वर में दिखाई पड़ते हैं, जिससे जनहानि हो सकती है। अपने स्वभाव पर नियंत्रण से दूसरों और अपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा जा सकता है, लेकिन इसके बाद भी प्रतिबंधों की आवश्यकता होती है।
- भिन्न विचारों एवं मतों की स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि नागरिकों पर किसी दूसरे समुदाय के विचारों को जबरदस्ती न थोपा जाए, यदि ऐसा होता है, तो हमें अपनी स्वतंत्रता को बचाने की आवश्यकता होती है।
स्वतंत्रता में हानि सिद्धांत
- जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक ‘ऑन लिबर्टी’ में हानि सिद्धांत की बात कही है, उनके अनुसार सिद्धांत यह है कि ”किसी के कार्य करने की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का इकलौता लक्ष्य आत्म-रक्षा है। सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य को हानि से बचाना हो सकता है।”
- इससे दो कार्यों का पता चलता है, पहला वे कार्य जिनको करने से व्यक्ति स्वयं प्रभावित हो (स्वयंसंबद्ध), दूसरा जिनको करने से कोई दूसरा व्यक्ति भी प्रभावित होता है (परसंबद्ध)।
- स्वयंसंबद्ध कार्यों पर बाहरी प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता, लेकिन परसंबद्ध कार्यों पर बाहरी प्रतिबंध अनिवार्य हो जाता है। राज्य इन मामलों में व्यक्ति पर प्रतिबंध लगा सकता है।
- स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के लिए किसी खास वजह का होना बेहद जरूरी है। यह हानि की गंभीरता पर निर्भर करता है।
सकारात्मक, नकारात्मक स्वतंत्रता
- सकारात्मक स्वतंत्रता– इसमें व्यक्ति कुछ करने की स्वतंत्रता की बात करता है, स्वतंत्रता की परंपरा में गांधी, कार्ल, हेगेल, रूसो आदि शामिल हैं, यह परंपरा व्यक्ति के विकास के मार्ग में आने वाले अवरोधों के खिलाफ है।
- व्यक्ति अपने लाभ और विकास के लिए कई प्रकार के समर्थकारी सकारात्मक अवसरों की तलाश करता है।
- इस तरह की स्वतंत्रता को मानने वाले कहते हैं कि व्यक्ति अपने समाज में ही स्वतंत्रता हासिल कर सकता है, इसलिए समाज का निर्माण, व्यक्ति के विकास को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
- नकारात्मक स्वतंत्रता– इस तरह की स्वतंत्रता में व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का नकारात्मक इस्तेमाल करता है, जिसमें किसी का हस्तक्षेप नहीं हो सकता। इसमें व्यक्ति कुछ करने से मुक्त होता है।
- अहस्तक्षेप का दायरा जितना बड़ा होगा, स्वतंत्रता उतनी ही अधिक होगी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- जे.एस.मिल के अनुसार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए। वाल्तेयर ने कहा है कि- ”तुम जो कहते हो, मैं उसका समर्थं नहीं करता, लेकिन मैं मरते दम तक तुम्हारे कहने के अधिकार का बचाव करूंगा।”
- साहित्य जगत की तमाम पुस्तकें, फिल्में और पत्रिका आदि को अभिव्यक्ति की आजादी का स्त्रोत ही माना जाता है।
- पहले के वर्षों में कई फिल्मों को केवल इसलिए नहीं बनने दिया गया, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि यदि ये फिल्में बनीं, तो इनसे देश की छवि धूमिल होगी।
- फिल्मों पर लगने वाले ये प्रतिबंध केवल अल्पकालीन समाधान हैं, दूरगामी नहीं, इनकी बार-बार पूर्ति से प्रतिबंधों की आदत विकसित होने लगती है।
- अक्सर विवाद का विषय प्रतिबंध लगाए जाने की स्थिति से संबंधित है, कि किस स्थिति में प्रतिबंध लगाना उचित है।
- जब प्रतिबंध किसी संगठन द्वारा लगाया जाता है, तब स्वतंत्रता कटौती इस प्रकार होती है, कि हम उसके खिलाफ कुछ कह नहीं सकते, लेकिन जब प्रतिबंधों का स्वीकार स्वेच्छा से किया जाए तब यह स्वतंत्रता को सीमित नहीं करता।
- जब किसी स्थिति को स्वीकारने के लिए व्यक्ति को बाधित नहीं किया जाता, तो वह उसकी स्वतंत्रता की कटौती नहीं होगी।
- स्वतंत्रता का सीधे शब्दों में अर्थ है, व्यक्ति का निर्णय लेने के लिए दक्ष स्थिति में होना, ताकि लिए गए निर्णयों के लिए व्यक्ति स्वयं जिम्मेवार हो सके।
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