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Class 11 Political Science Book-1 Ch-5 “अधिकार” Notes In Hindi

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Navya Aggarwal
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक-1 यानी “राजनीतिक सिद्धांत” के अध्याय-5 “अधिकार” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 5 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 11 Political Science Book-1 Chapter-5 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 5 “अधिकार”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाग्यारहवीं (11वीं)
विषयराजनीति विज्ञान
पाठ्यपुस्तकराजनीतिक सिद्धांत
अध्याय नंबरपाँच (5)
अध्याय का नामअधिकार
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 11वीं
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- राजनीतिक सिद्धांत
अध्याय-5 “अधिकार”

नागरिकों के जीवन में अधिकारों का बेहद महत्व है, नागरिकों के बुनियादी अधिकारों के साथ उन्हें राजनीतिक अधिकार, सूचना का अधिकार आदि दिए जाते हैं। ये अधिकार राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन तक ही सीमित न होकर, वैयक्तिक और सामाजिक स्तर पर भी होते हैं।

अधिकारों का अर्थ

  • नागरिकों को मनुष्य होने के नाते एक प्रकार का हक दिया जाता है, जिसे समाज में वैध और स्वीकार्य माना जाता है।
  • इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि मनुष्य जो भी चाहे वह उसका हक बन जाए, मनुष्य के चाहने और मनुष्य को मिलने वाले अधिकारों में अंतर होता है।
  • अधिकारों के माध्यम से मनुष्य सम्मान का जीवन जी सकता है, जैसे आजीविका का अधिकार, जिससे वह आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सके। आजीविका और अभिव्यक्ति का अधिकार समाज के हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है।
  • ये अधिकार मनुष्य की बेहतरी के लिए भी जरूरी होता है, जो लोगों की दक्षता को सुदृढ़ करते हैं, जैसे शिक्षा का अधिकार।
  • वे अधिकार जो मानव समाज के लिए हानिकारक हैं, मनुष्य को नहीं दिए जाते, जैसे नशीली दवाओं का सेवन। इस प्रकार की क्रिया प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सभी नागरिकों को प्रभावित करती है, इसलिए ये अधिकार रूप में नहीं है।

अधिकारों का उद्गम

  • प्राचीन राजनीतिक सिद्धांतकार अधिकारों के अनुसार मनुष्य के अधिकार ईश्वर प्रदत्त हैं, जिन्हें कोई व्यक्ति हमसे छिन नहीं सकता। ये प्राकृतिक अधिकार हैं- जीवन, संपत्ति और स्वतंत्रता का अधिकार।
  • ये अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं। मानवाधिकार शब्द का प्रयोग आज के समय में अधिक किया जाता है।
  • मनुष्य अच्छा जीवन जीने के लिए इन अधिकारों को गारंटी के रूप में देखता है। मनुष्य होने के नाते ये अधिकार मानव को बिना किसी रोक टोक के प्रदान किए जाते हैं।
  • मनुष्य का जन्म उनके आंतरिक मूल्यों के साथ होता है, और वे अपने जीवन में सभी संभावनाओं को साकार करने का पूर्ण हक रखते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों का सार्वभौमिक घोषणा पत्र भी इन अधिकारों को ध्यान में रखकर ही बनाया गया है।
  • विश्व में मौजूद सभी अधिकारों से वंचित पीड़ितों ने सार्वभौमिक मानवाधिकार का इस्तेमाल ऐसे कानूनों के खिलाफ किया, जो उनके अधिकारों का हनन कर रहे हैं।
  • दास प्रथा का उन्मूल, इन्हीं प्रयासों के कारण हुआ, अन्य प्रयास अभी सफलता प्राप्त नहीं कर सके हैं।
  • खतरे और चुनौतियों के उभरने पर मानवाधिकारों की सूची में इजाफा होता है, जैसे युद्ध जैसी परिस्थिति में महिलाओं और बच्चों या कमजोर वर्ग के लोगों ने जिन बदलावों का सामना किया, उसके बाद नए अधिकारों की मांग उठने लगी।
  • इनके तहत नैतिक आक्रोश के स्वर तेज हुए हैं, जिससे अधिकारों की मांग के लिए मानव समुदाय एक जुट हुआ है, जो इन मांगों को विस्तार प्रदान करता है, ये विस्तार मानव भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।

कानूनी अधिकार तथा राज्यसत्ता

  • सभी मानवाधिकार इस कारक पर निर्भर करते हैं- सरकार और कानून का समर्थन– इसके कारण ही अधिकार कानूनी मान्यता प्राप्त हैं।
  • कुछ देशों में अधिकारों को संविधान के अंतर्गत रखा जाता है, जो सर्वोच्च कानून का द्योतक है, जो इन्हें बुनियादी महत्व देते हैं, जैसे भारत के संविधान में मौलिक अधिकार।
  • संविधान में बुनयादी महत्व के अधिकार और कुछ अधिकार विशिष्ट इतिहास के कारण जुड़ जाते हैं, जैसे भारत में छुआ-छूत पर प्रतिबंध लगाया गया है।
  • कानूनी मान्यता प्राप्त हो जाने से समाज में अधिकारों का दर्जा बढ़ जाता है, लेकिन सिर्फ कानूनी मान्यता किसी अधिकार का दावा नहीं करती।
  • अधिकारों से आशय राज्यसत्ता से की जाने वाली मांग है, जैसे, शिक्षा के अधिकार पर जोर देते हुए, बुनियादी शिक्षा की मांग की जाती है। समाज का प्रत्येक वर्ग इसमें योगदान देता है, लेकिन यह राज्य की जिम्मेदारी है।
  • अधिकार राज्य को कार्यों में नयापन लाने के दायित्व प्रदान करते हैं। इसमें जीवन जीने के अधिकार के साथ-साथ, यदि नागरिक अच्छे जीवन स्तर की मांग करते हैं, तो यह राज्य का दायित्व बनता है, कि वह नागरिकों को अपनी नीतियों के आधार पर अच्छा जीवन प्रदान कर सके।
  • नागरिकों के अधिकारों के साथ राज्य पर कुछ अंकुश भी लगाए जाते हैं, जैसे- व्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार राज्य को यह हक नहीं देता कि वह किसी को बिना कारण गिरफ्तार कर ले।
  • राज्य किसी व्यक्ति के वैयक्तिक जीवन को प्रभावित नहीं कर सकता। राज्य का कार्य कानून लागू करना है, लेकिन उसमें नागरिकों का हित होना आवश्यक है

विभिन्न प्रकार के अधिकार

  • राजनीतिक अधिकार
    • राजनीतिक अधिकार के कारण नागरिक कानून के समक्ष समानता का अधिकार और लोकतंत्र में सीधी भागीदारी प्राप्त कर पाते हैं, यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था के साथ ही संभव है।
    • इन सभी अधिकारों को प्राप्त कर नागरिक देश में अपने सभी राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति कर सकता है।
    • सरकार जब जनता द्वारा चुनी जाती है, तब वह नागरिकों के प्रति जवाबदेह होती है, जिससे राज्य के नागरिकों का कल्याण किया जा सके, सामाजिक अधिकारों का सहयोग इसमें लिया जाता है।
  • आर्थिक अधिकार
    • जिन राज्यों में नागरिकों की बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं किया जा रहा है, वहां राजनीतिक अधिकारों का कोई महत्व नहीं रह जाता।
    • बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार की ओर से भत्तों आदि का प्रावधान किया जाता है, जैसे भारत में ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना चलाई जा रही है।
  • सांस्कृतिक अधिकार
    • इसके अंतर्गत, मात्तृ भाषा में शिक्षा का अधिकार, और संस्थाएं बनाने का अधिकार आदि शामिल है।
    • ये कुछ अन्य अधिकारों की सूची में शामिल किए जा सकते हैं, लेकिन स्वतंत्रता, जीवन जीने, समान व्यवहार, और राजनीतिक अधिकार मानव के बेहद जरूरी अधिकार माने जाते हैं।

अधिकारों और जिम्मेदारियों में अंतर

  • अधिकारों के साथ-साथ मानव को कुछ जिम्मेदारियाँ भी सौंपी जाती हैं, यह राज्य पर भी लागू है। अधिकार हमारे हितों की पूर्ति करते हैं और जिम्मेदारियाँ उन हितों की पूर्ति के लिए किसी अन्य के नुकसान न होने पर बल देती हैं।
  • इसके अंतर्गत हर प्रकार से पर्यावरण की सुरक्षा आदि सम्मिलित है, जिसका भावी पीढ़ी पर कोई नकारात्मक प्रभाव न हो।
  • अपने अधिकारों के साथ अन्य लोगों के अधिकार भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। अपने अधिकारों की पूर्ति हेतु दूसरे के अधिकारों का हनन अनुचित है।
  • उदाहरण, यदि कोई व्यक्ति अपने अधिकार के चलते किसी अन्य व्यक्ति की अनुचित तस्वीर उसकी इजाजत के बिना लेकर उसका गलत इस्तेमाल करता है, इस स्थिति में दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का हनन माना जाएगा, जो कानून के खिलाफ है और उसकी गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
  • नागरिकों के अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रण के प्रति भी जागरूक होने की जरूरत है, कि सरकार किन कारणों से नागरिकों के कुछ अधिकारों को बाधित कर रही है।
  • इन बढ़ते प्रतिबंधों के प्रति नागरिकों का जागरूक होना आवश्यक है।
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