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Class 11 Political Science Book-2 Ch-1 “संविधान- क्यों और कैसे?” Notes In Hindi

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Navya Aggarwal
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक-2 यानी “भारत का संविधान-सिद्धांत और व्यवहार” के अध्याय-1 “संविधान- क्यों और कैसे?” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 1 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 11 Political Science Book-2 Chapter-1 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 1 “संविधान- क्यों और कैसे?”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाग्यारहवीं (11वीं)
विषयराजनीति विज्ञान
पाठ्यपुस्तकभारत का संविधान- सिद्धांत और व्यवहार
अध्याय नंबरएक (1)
अध्याय का नामसंविधान- क्यों और कैसे?
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 11वीं
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- भारत का संविधान- सिद्धांत और व्यवहार
अध्याय-1 “संविधान- क्यों और कैसे?”

देश के नागरिकों के बीच नियमों का निर्वहन करवाने वाले दस्तावेज को संविधान कहा जाता है, इससे देश के नागरिकों के मध्य समन्यव और विश्वास का माहौल बना रहता है।

संविधान की आवश्यकता

  • किसी देश में भिन्न मान्यताओं को मानने वालों के बीच अनेकों प्रकार की भिन्न मानसिकता काम करती है।
  • जिसके कारण इन नागरिकों में मतभेद होने के कारण द्वेष होने का खतरा बना रहता है। ये भिन्नताएं होने के बाद भी देश के नागरिकों को एक ही देश की सीमा में रहना होता है।
  • इनके शांतिपूर्ण गुजर-बसर के लिए कुछ नियमों पर अपनी हामी भरनी होती है, जिससे देश में अशान्ति का माहौल न बने।
  • इन नियमों का निर्वाह देश का प्रत्येक नागरिक करता है, ऐसा न होने की स्थिति में देश में अव्यवस्था के वातावरण का निर्माण होता है।
  • संविधान के द्वारा बुनियादी नियमों के एक समूह का प्रदान किया जाता है, जिससे देश के विभिन्न समुदायों में एक दूसरे के प्रति विश्वास बना रहे।

संविधान के कार्य

  • निर्णय करने की शक्ति
    • संविधान का निर्माण कानून बनाने से लेकर सरकार की शक्तियों को नियंत्रित करने तक का होता है।
    • जैसे राजतन्त्र में राजा कानून बनाता है, वैसे ही लोकतान्त्रिक संविधान में निर्णय लेने का कार्य मुख्य रूप से जनता ही करती है।
    • भारतीय संविधान के संदर्भ में संसद द्वारा कानून बनाया जाता है, लेकिन इससे पहले संसद के सदस्यों का चुनाव से पहले उनकी पहचान की जाती है, संसद को कानून बनाने का अधिकार संविधान में प्रदत्त है।
    • संविधान ही यह निर्णय लेता है, कि समाज के मुद्दों पर निर्णय लेने का अधिकार किसके पास है, और सरकार का निर्माण कैसे होगा।
  • सरकार की शक्ति सीमा
    • सरकार का निर्माण होने के बाद सरकार द्वारा बनाए जाने वाले नियमों का नियंत्रण जनता के पास होना आवश्यक है, जिससे सरकार अपनी मनमानी न कर सके।
    • संविधान सरकार के मनमाने नियमों पर नियंत्रण का कार्य भी करता है जिसका उल्लंघन सरकार नहीं कर सकती।
    • इस पर नियंत्रण करने के लिए नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्पष्टता से नागरिकों को बता दिया जाए।
    • ये अधिकार विभिन्न देशों में संविधान के साथ-साथ बदलते रहते हैं, सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों को केवल आपातकाल की स्थिति में ही नियंत्रित कर सकती है, जिसका स्पष्ट उल्लेख भारतीय संविधान में किया जाता है।
  • समाज के लक्ष्यों की पूर्ति
    • बीसवीं सदी में बने संविधान जिसमें, भारतीय संविधान भी शामिल है, समाज के लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए ऐसे क्षेत्रों जहां गहरी असमानताएं विद्यमान हैं, सरकार की शक्तियों पर नियंत्रण के साथ ही सरकार के शक्तिशाली होने पर भी जोर दिया जाता है।
    • संविधान समाज की आकांक्षाओं को पूर्ण करने का कार्य करता है, जैसे समाज में व्याप्त असमानता को खत्म कर, न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करना।
  • राष्ट्र की पहचान का माध्यम
    • एक सामूहिक इकाई के रूप में समाज की पहचान संविधान द्वारा होती है। संविधान के निर्माण के परिणाम स्वरूप नागरिकों को राजनीतिक पहचान मिलती है।
    • आधिकारिक नियमों के आधार पर संविधान नागरिकों को नैतिक पहचान दिलाता है।
    • भिन्न राष्ट्रों में संविधान के भिन्न स्वरूप देखे जाते हैं, लेकिन सभी संविधानों में सरकारें मूलभूत अधिकारों को सर्वप्रथम स्थान देती हैं। विभिन्न संविधानों में राष्ट्रीय पहचान की अलग धारणा हो सकती है।

संविधान और सत्ता

  • संविधान का मुख्य रूप से लिखित रूप ही देखा जाता है, जिसमें राज्य से संबंधित कई प्रावधानों का जिक्र किया जाता है।
  • कुछ राज्यों जैसे इंग्लैंड में लिखित संविधान नहीं है, लेकिन संविधान का लिखित रूप होना या न होना आवश्यक नहीं है, आवश्यक है, संविधान का प्रभावी रूप से कार्य करना।
  • संविधान को अस्तित्व में लाने का तरीका-
    • दुनिया में सबसे सफल संविधान है- भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका का। इन संविधानों को सफल राष्ट्रीय आंदोलनों के बाद बनाया गया।
    • भारत के संविधान का निर्माण दिसंबर 1946 से लेकर नवंबर 1949 के बीच के अंतराल में हुआ। भारतीय संविधान के निर्माण कर्ताओं पर समाज को गहरा विश्वास था।
    • इसी कारण भारतीय संविधान को समाज द्वारा वैध करार दिया गया। जहां अन्य देशों में अपने संविधान को लागू करने से पूर्व जनमत संग्रह कराया गया, वहीं भारत में इसकी आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
    • संविधान निर्माताओं का देश पर प्रभाव इसकी सफलता का मुख्य कारक रहा।

संविधान: मौलिक प्रावधान

  • कोई भी संविधान अपने देश के अल्पसंख्यकों को देश में रहते हुए राजनीतिक पहचान और सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है, जिससे अल्पसंख्यकों के पास संविधान के प्रति सम्मान की भावना प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हो जाती है।
  • यदि ऐसा न हो, तो जनता की संविधान के प्रति विश्वास की भावना खत्म हो जाएगी।

संतुलित रूपरेखा में संस्थाएं

  • संविधान के निर्माण से शक्तियों का बंटवारा कर दिया जाता है, जिससे कोई एक संस्था अपनी शक्तियों का प्रयोग कर संविधान को न नष्ट कर दे।
  • भारत का संविधान शक्तियों का बंटवारा- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका इन तीनों के मध्य और निर्वाचन आयोग के रूप में बांटा जाता है।
  • इन मूल्यों के साथ-साथ ये संस्थाएं लचीलापन लिए होती हैं। किसी भी राष्ट्र के संविधान का निर्माण न तो अधिक कठोर और न ही अधिक लचीला होना चाहिए, किसी भी देश को एक संतुलित संविधान की आवश्यकता होती है।
  • भारतीय संविधान को एक जीवंत दस्तावेज माना गया है। इसमें आसान परिवर्तन और ठोस संतुलन इसकी दीर्घ आयु सुनिश्चित करता है।

भारतीय संविधान का निर्माण तथा स्वरूप

  • संविधान का निर्माण संविधान सभा द्वारा किया गया, जिसकी पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 और दूसरी बैठक 14 अगस्त 1947 में हुई, भारतीय संविधान सभा के सदस्यों का चयन 1935 के विधान सभा के सदस्यों ने किया।
  • संविधान का निर्माण ‘केबिनेट मिशन’ की योजना के अनुसार किया गया-
    • सभी प्रांतों और राज्यों की सीटों का निर्धारण जनसंख्या के आधार पर हुआ।
    • हर प्रदेश की सीटों का बंटवारा तीन प्रमुखों के रूप में हुआ- मुस्लिम, सिख और सामान्य समुदाय।
    • प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुना गया।
    • देशी रियासतों के प्रतिनिधियों का चुनाव उनपर ही सौंप दिया गया।
  • पाकिस्तान से चुनकर आए सदस्यों को 3 जून, 1947 की योजना के अनुसार संविधान सभा के सदस्य पद से हटा दिया गया। यह संख्या 26 नवंबर 1949 तक 284 रह गई थी।
  • विभाजन के दौर में ही संविधान का निर्माण हुआ, इससे भारत के अल्पसंख्यक नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित रखने का प्रयास संविधान में देखने को मिला।
  • संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा नहीं किया गया था, इसके बाद भी सदस्यों को समान वर्गों के अनुसार प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया।
  • संविधान सभा में राजनीतिक दलों के रूप में कांग्रेस का शासन था, जिसे 82% सीटें मिली थीं, जिसने सभी विचारधाराओं को खुद में समा रखा था।

सभा की कामकाजी शैली एवं कार्यविधि

  • इसकी प्रक्रिया की मुख्य जड़ में संविधान सभा का निर्माण करना था जो सर्वसम्मति से गठित हो।
  • जिससे देश के सभी वर्गों के हितों को बराबर का दर्जा मिल सके। भेदभाव के बिना ही सार्वभौमिक मताधिकार के प्रस्ताव को मान लिया गया।
  • संविधान सभा की कार्यविधि में सार्वजनिक विवेक को महत्व दिया गया, अलग-अलग मुद्दों के लिए 8 अलग कमेटियां बनाई गईं, जिसकी अध्यक्षता भिन्न नेताओं ने की।
  • इस तरह के प्रयास किए जाते थे कि, निर्णय आम राय के आधार पर लिए जाएं और यह किसी विशेष पक्ष में न जाए।
  • संविधान का निर्माण 2 साल, 11 महीने के अंदर कर लिया गया, जिसमें 166 दिन संविधान सभा की बैठकें हुईं।

विरासत के रूप में राष्ट्रीय आंदोलन और संस्थागत व्यवस्थाएं

  • स्वतंत्रता आंदोलनों के बाद उभरी मान्यताओं और विरासतों के द्वारा ही संविधान सभा का गठन किया गया।
  • राष्ट्रीय आंदोलन के समय से ही उन सभी प्रश्नों पर विचार कर लिया गया था, जो संविधान के निर्माण में आवश्यक थे।
  • 1946 में नेहरू द्वारा पेश किया गया ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ संविधान सभा के उद्देश्यों को प्रस्तुत करता है।
  • इस प्रस्ताव के माध्यम से ही संविधान में स्वतंत्रता और लोकतंत्र जैसी जरूरी प्रतिबद्धताओं को संस्थागत रूप दिया गया।
  • सरकार के अंतर्गत आने वाली सभी संस्थाओं के संतुलन से संविधान को प्रभावी बनाया जा सकता है।
  • यही कारण है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पूर्ण मंथन कर बनाया गया है। संघात्मक व्यवस्था को अपनाया गया जो केंद्र और राज्य सरकार के बीच शक्तियों का बंटवारा करती है।
  • भारतीय संविधान का निर्माण करने के लिए संविधान निर्माताओं ने विदेशों के संविधानों और संवैधानिक परंपरा से कुछ बिंदुओं को ग्रहण किया।
देशप्रावधान
ब्रिटिश संविधानसर्वाधिक मत से चुनावी जीत का फैसला
सरकार का संसदीय स्वरूप
कानून के शासन का विचार
विधायिका अध्यक्ष का पद और भूमिका
कानून निर्माण की विधि
अमेरिकी संविधानमौलिक अधिकारों की सूची
न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति और न्यायपालिका की स्वतंत्रता
कनाडा का संविधानएक अर्धसंघात्मक सरकार का स्वरूप
अवशिष्ट शक्तियों का सिद्धांत
फ्रांस का संविधानस्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का सिद्धांत
आयरलैंड का संविधानराज्य के नीति निर्देशक तत्व
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