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Class 12 Political Science Book-2 Ch-5 “काँग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना” Notes In Hindi

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Navya Aggarwal
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इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक-2 यानी “स्वतंत्र भारत में राजनीति” के अध्याय- 5 काँग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 5 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 12 Political Science Book-2 Chapter-5 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 5 “काँग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाबारहवीं (12वीं)
विषयराजनीति विज्ञान
पाठ्यपुस्तकस्वतंत्र भारत में राजनीति
अध्याय नंबरपाँच (5)
अध्याय का नामकाँग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 12वीं
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- स्वतंत्र भारत में राजनीति
अध्याय-5 (काँग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना)

राजनीतिक उत्तराधिकार की चुनौती

  • 1964 में पूरे एक साल बीमार रहने के बाद नेहरू की मृत्यु हो गई, इसके बाद काँग्रेस के उत्तराधिकारी को लेकर प्रश्न उठने लगे, स्वतंत्रता के बाद समस्याएं जैसे असमानता, गरीबी, सांप्रदायिकता जैसे मुद्दे अभी भी गंभीर बने हुए थे। यह भय भी बना हुआ था कि सेना राजनीतिकरण में न उतार आए। इसके कारण ही 60 के दशक को खतरनाक दशक भी कहा जाता है।
  • इन सभी समस्याओं के कारण देश में लोकतंत्र की परियोजना के सफल होने का खतरा मंडराने लगा, लगा कि ऐसी स्थिति में देश बिखर जाएगा।
  • नेहरू के बाद शास्त्री– लालबहादुर शास्त्री जी को नेहरू के उत्तराधिकारी के रूप में चुना गया। शास्त्री जी निर्विरोध काँग्रेस संसदीय दल के नेता चुन लिए गए और देश के प्रधानमंत्री बने। शास्त्री सादगी पसंद नेता थे, रेल मंत्री के पद पर रहते हुए एक बार रेल के दुर्घटना ग्रस्त होने के फलस्वरूप उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
  • शास्त्री जी 1964 से 66 तक देश के प्रधानमंत्री रहे, इस कम अवधि में भी उन्होंने देश को संभाला, 1962 के युद्ध के बाद देश गरीबी की मार झेल रहा था। इसके बाद 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध का भी सामना करना पड़ा। शास्त्री जी ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया, जो उनके चुनौतियों से लड़ने के दृढ़ संकल्प को दिखाता है।
  • 10 जनवरी 1966 को ताशकंद में उनका अचानक देहांत हो गया। उस समय वे 1965 के युद्ध की समाप्ति के संबंध में पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान से बातचीत और समझोते पर हस्ताक्षर के लिए ताशकंद गए थे।
  • शास्त्री के बाद इंदिरा गांधी– शास्त्री जी के बाद अब काँग्रेस के सामने फिर से उत्तराधिकारी का सवाल उठ खड़ा हुआ। जवाहरलाल नेहरू की बेटी पहले काँग्रेस अध्यक्ष के पद को संभाल चुकी थीं और शास्त्री जी के समय में उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्री का पद संभाला था।
  • प्रधानमंत्री बनने के लिए इंदिरा गांधी को मोरारजी देसाई का सामना करना पड़ा, काँग्रेस के सांसदों ने गुप्त मतदान कर इंदिरा गांधी को देश का नया प्रधानमंत्री बनाया। काँग्रेस के बड़े नेताओं ने यह सोच कर सब्र कर लिया कि इंदिरा गांधी अनुभव की कमी होने के कारण उनपर निर्भर रहेंगी।
  • इंदिरा गांधी ने कठिनाइयों का सामना कर पार्टी पर अपना नेतृत्व बढ़ाया और कुशल नेतृत्व किया। इंदिरा गांधी 1966 से 1977 और फिर 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं।
  • 1967, 1971, 1980 में अपने कुशल नेतृत्व में काँग्रेस को विजयी बनाया, “गरीबी हटाओ” का नारा दिया, 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध में जीत और प्रिवी पर्स की समाप्ति जैसे अनेकों बड़े कार्य किए। 31 अक्टूबर 1984 में इनकी हत्या कर दी गई।

चौथा आम चुनाव, 1967

  • चुनावों का संदर्भ– काँग्रेस ने जल्दी-जल्दी ही अपने दो प्रधानमंत्रियों को खोया और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद संभाले अभी एक वर्ष भी पूर्ण नहीं हुआ था, साथ ही कोई पूर्व राजनीतिक तजुर्बा भी नहीं था।
  • इसी समय में देश में मानसून की असफलता, सूखा, खाद्य संकट, विदेशी मुद्रा के भंडार में कमी का दौर चल रहा था, आर्थिक विकास के संसाधनों को सैन्य-मद में लगाना पड़ता था, निर्यात में कमी होने के बाद से सैन्य खर्चों में भी बढ़ोत्तरी होने लगी, जिसने स्थिति को और भी खराब बना दिया।
  • इस समय अमेरिका के दबाव में रुपए का अवमूल्यन किया गया, जहां पहले रुपया 5 डॉलर के बराबर था आज 7 डॉलर का हो गया था। वस्तुओं की कीमतों में तेज इजाफा हुआ, वस्तुओं की पूर्ति में कमी, बढ़ती बेरोजगारी और दयनीय आर्थिक स्थिति के चलते लोगों में विरोध का स्वर उमड़ पड़ा।
  • सरकार ने जनता की बदहाली को कानून व्यवस्था की कमी माना, इससे जनता का गुस्सा फूट पड़ा समाजवादी और साम्यवादी पार्टी ने समानता के लिय विद्रोह छेड़ दिया।

चुनाव का जनादेश

  • लोकसभा और राज्य विधानसभा के 1967 के आम चुनाव में काँग्रेस पहली बार नेहरू के बिना चुनाव में उतरने जा रही थी, चुनाव के परिणाम से काँग्रेस को बड़ा झटका लगा, इसको राजनीतिक विशेषज्ञों ने ‘राजनीतिक भूकंप’ की संज्ञा दी। इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल के कई बड़े मंत्री चुनाव हार गए।
  • बड़े दिग्गजों जैसे- तमिलनाडु के कामराज, पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष, बिहार के के.बी.सहाय आदि को चुनाव में शिकस्त मिली।
  • काँग्रेस हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल, मद्रास और केरल इन 9 राज्यों में चुनाव हार गई। तमिलनाडु की क्षेत्रीय पार्टी द्रविड मुनेत्र काशग़म पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई।
  • ऐसा पहली बार था जब गैर-काँग्रेसी सरकार को किसी राज्य में बहुमत मिला। अन्य बचे 8 राज्यों में गैर-काँग्रेसी दल की गठबंधन की सरकार बनी।

गैर-काँग्रेसवाद

  • विपक्षी खेमा जनता के साथ मिलकर सरकार का विरोध कर रहा था, दलों ने महसूस किया कि उनके वोट बंटने के कारण ही काँग्रेस सत्तासीन है। अब काँग्रेस का विरोध करने के लिए पार्टियां एक हो रही थीं।
  • उन्हें लग रहा था कि इंदिरा गांधी में अनुभव की कमी है, जिसका वे लाभ उठाना चाहते थे, समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने विपक्ष की इस रणनीति को ‘गैर-काँग्रेसवाद’ का नाम दिया, इसका समर्थन करते हुए ये बात रखी गई की काँग्रेस आलोकतांत्रिक शासन के पक्ष में है, जो गरीब जनता के विरुद्ध है।
  • जिसके लिए गैर-काँग्रेसी पार्टियों का एक साथ आना बेहद जरूरी है। जिससे गरीबों के हक में लोकतंत्र को वापस प्राप्त किया जा सके।

गठबंधन

  • 1967 के चुनावों के बाद गठबंधन ने राजनीति में कदम रखा, इन चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था।
  • इसलिए, इन दलों को गठबंधन की सरकार का निर्माण करना पड़ा, जैसे बिहार में बनी संयुक्त विधायक दल की सरकार में 2 समाजवादी पार्टियां- एसएसपी और पीएसपी थीं।
  • पंजाब में बनीं संयुक्त विधायक दल की सरकार को पॉपुलर यूनाइटेड फ्रन्ट की सरकार कहा गया। इसमें दो प्रतिस्पर्धी अकाली दल, जिनमें- संत ग्रुप और मास्टर ग्रुप, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ, रिपब्लिकन पार्टी और संयुक्त समाजवादी पार्टी शामिल थी।
  • दल बदल-1967 के आम चुनावों के बाद से ही दल-बदल की प्रवृति शुरू हुई। जब कोई प्रतिनिधि किसी एक पार्टी से चुनाव लड़ने और जीतने के बाद उसे छोड़ दे तो उसे दल-बदल कहते हैं।
  • 1967 में काँग्रेस को छोड़कर गए तीन विधायकों ने दूसरे राज्यों में जाकर गैर-काँग्रेसी सरकारों को बहाल किया। इसके बाद से राजनीति में दल-बदल के लिए आया राम गया राम का जुमला प्रसिद्ध हो गया।

काँग्रेस मे विभाजन

  • 1967 के आम चुनावों के बाद काँग्रेस केंद्र में तो बनी रही लेकिन इससे यह साफ हो गया था कि काँग्रेस को भी चुनावों में हराया जा सकता है।
  • इसके बाद भी राज्यों में बनीं गैर-काँग्रेसी गठबंधन की सरकारें भी ज्यादा समय तक नहीं टिक सकीं, इन सरकारों ने अपना बहुमत खो दिया, फिर या तो दुबारा गठबंधन बनाना पड़ा या इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।

इंदिरा बनाम सिंडीकेट

  • सिंडीकेट काँग्रेस के अंदर ही मौजूद नेताओं का संगठन था, इंदिरा गांधी को असली चुनौती विपक्ष से नहीं सिंडीकेट से ही थी। सिंडीकेट को इंदिरा गांधी से यह उम्मीद थी कि वह प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी सलाह पर काम करेगी लेकिन इंदिरा गांधी ने पार्टी में अपना मुकाम बना लिया।
  • धीरे-धीर सिंडीकेट के नेताओं को पार्टी के हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया। 1967 के चुनावों के बाद इंदिरा गांधी ने एक साहसिक रणनीति पर काम शुरू किया।
  • काँग्रेस कार्य समिति ने दस-सूत्री कार्यक्रम अपनाया जिसमें खाद्यान का सरकारी वितरण, बैंकों का सामाजिक नियंत्रण, आम बीमा राष्ट्रीयकरण, शहरी संपदा और आय के परिसीमन, भूमि सुधार और ग्रामीण गरीबों को आवसीय भूखंड देना आदि शामिल था।
  • सिंडीकेट नेताओं ने इन कार्यक्रमों को स्वीकृति तो दे दी लेकिन, इसके बाद भी उनके मन में कुछ चीजों के लिए संदेह थे।

राष्ट्रपति पद का चुनाव, 1969

  • 1969 में तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद राष्ट्रपति पद रिक्त था और नए राष्ट्रपति को चुना जाना आवश्यक था, इस समय इंदिरा गांधी और सिंडीकेट के बीच गुटबाजी देखी जा सकती थी।
  • सिंडिकेट के नेताओं ने एन. संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया और इंदिरा गांधी ने तत्कालीन उप राष्ट्रपति वी.वी. गिरी को।
  • इस समय में इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों का राष्ट्रीकरण कर दिया और प्रिवी पर्स की समाप्ति जैसे जनप्रिय मुद्दों पर काम किया, मोरारजी देसाई जो इस समय उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री थे इंदिरा गांधी के इन निर्णयों से खुश नहीं थे। उन्होंने काँग्रेस से किनारा कर लिया ।
  • राष्ट्रपति चुनाव के लिए तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने सिंडीकेट की तरफ से खड़े हुए उम्मीदवार संजीव रेड्डी को वोट करने के लिए पार्टी सांसदों को व्हिप जारी किया। वहीं इंदिरा गांधी ने यह फैसला विधायकों पर ही छोड़ दिया।
  • अंत में एन. संजीव रेड्डी की हार हुई और वी.वी. गिरी को राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया गया। काँग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार की हार के बाद इस पार्टी का टूटना तय था।
  • इसके बाद काँग्रेस के अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को निष्कासित कर दिया। 1969 नवंबर में पार्टी दो भागों में टूट गई- पुरानी काँग्रेस और नई कॉंग्रेस। इंदिरा गांधी ने इसे विचारधाराओं की लड़ाई के रूप में पेश किया, उन्होंने इसे ‘समाजवादी’ और ‘पुरातनपंथी’ के बीच की लड़ाई करार दिया।

1971 चुनाव और काँग्रेस का पुनर्स्थापन

  • काँग्रेस के विभाजन से इंदिरा गांधी को अल्पमत का सामना करना पड़ा, डीएमके और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा अन्य दलों के समर्थन से वह सत्ता में बनी रही।
  • दिसंबर, 1970 में इंदिरा ने सरकार द्वारा चलाई जा रही जन-कल्याणकारी कार्यक्रमों के बूते जनादेश पाने के लिए लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर दी, 1971 में चुनाव होने वाले थे और यह फैसला बड़ा जोखिम भरा था, हालाँकि इसके पीछे भी इंदिरा की ये रणनीतियाँ थीं।
  • संसद में अपनी स्थिति मजबूत करना, सरकार की छवि को प्रस्तुत करना, दूसरे दलों पर निर्भरता को खत्म करना।
  • नई काँग्रेस के लिए चुनाव मुश्किल हो गया, नई काँग्रेस की पार्टी कमजोर थी। वहीं एक ओर सभी गैर-साम्यवाद और गैर-काँग्रेसी विपक्षी दलों ने अपना एक संगठन बनाया जिसे ‘ग्रांड अलायंस’ कहा गया।
  • इन सब के बाद भी नई काँग्रेस की बात और सभी से अलग थी। इंदिरा ने देश भर में यह संदेश पहुंचाया कि विपक्ष के पास इंदिरा हटाओ के अलावा कोई कार्यक्रम नहीं है, वहीं लोगों के सामने सकारात्मक कार्यक्रम रखा- जिसे ‘गरीबी हटाओ‘ का नाम दिया गया।
  • इसके सहारे इंदिरा गांधी को देश व्यापी समर्थन मिला जिसमें विशेषकर दलित, आदिवासी, भूमिहीन किसान, अल्पसंख्यक, बेरोजगार युवा, महिलाओं आदि ने नई काँग्रेस का समर्थन किया।

आम चुनाव और उसके बाद

  • नई काँग्रेस और सीपीआई के गठबंधन को पिछले चार आम चुनावों में भी इतनी सीटें और वोट नहीं मिले थे। लोकसभा की 375 सीटें और 48.4 % वोट इस गठबंधन ने हासिल करे। केवल इंदिरा गांधी की काँग्रेस को ही 352 सीटें और 44% वोट हासिल थे।
  • इसके विपरीत अनुभवी नेताओं वाली पुरानी काँग्रेस को 16 सीटें ही मिलीं। ग्रांड अलायंस को 40 से भी कम सीटें मिलींं।
  • इस तरह इंदिरा गांधी ने काँग्रेस का पुनर्स्थापन नए तरीके से किया, जिसमें उन्होंने पुरानी काँग्रेस के ही कुछ तत्वों को रखा।
  • 1971 के दौरान ही चुनावों के बाद ही भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ गया, युद्ध भारत ने जीत लिया और उसके बाद इंदिरा गांधी की छवि और भी बेहतर होने लगी। विपक्ष के नेताओं ने खुद उनकी प्रशंसा की, उन्हें अब गरीब, वंचितों का नेता और राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखा जाने लगा।
  • हालाँकि विकास और आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण इन्हें जनता और विपक्षी नेताओं के विरोध का सामना भी करना पड़ा।
  • काँग्रेस प्रणाली का पुनर्स्थापन– काँग्रेस का शुरुआती रूप वापस लौट आया, इसे अब वही लोकप्रियता मिलने लगी जो स्वतंत्रता के बाद से मिल रही थी। इस समय काँग्रेस का सांगठानिक ढांचा कमजोर था, जो कि इसके एकमत से लिए गए फैसलों के कारण हुआ।
  • पहले काँग्रेस पार्टी में सभी तरह के तनाव और संघर्षों को सहन करने की क्षमता थी, लेकिन नई काँग्रेस में ये दक्षता नहीं थी। इंदिरा गांधी की राजनीतिक स्थिति तो अच्छी हुई लेकिन देश की जनता की अपेक्षाओं पर यह खरी नहीं उतार पा रही थी।

समय-सूची

वर्ष घटना 
27 मई, 1964 पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु 
1964 से 1966 शास्त्री जी के प्रधानमंत्री पद का कार्यकाल 
1965 जय जवान जय किसान का नारा दिया गया 
1966 शास्त्री जी की मृत्यु 
1966 भारत-पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझोता 
1966 इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री पद पर चुनाव 
1967 चौथा आम चुनाव 
1967, 1971, 1980 आम चुनावों में काँग्रेस की विजय 
1967 राजनीति में दल-बदल का उद्भव 
1969 तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु 
1971 प्रिवी पर्स की समाप्ति 
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कक्षा 12 राजनीति विज्ञान के अन्य अध्याय के नोट्सयहाँ से प्राप्त करें

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