Class 8 Political Science Ch-5 “हाशियाकरण की समझ” Notes In Hindi
Mamta Kumari
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इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 8वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक यानी “सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III” के अध्याय- 5 “हाशियाकरण की समझ” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 5 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 8 Political Science Chapter-5 Notes In Hindi
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कक्षा- 8वीं विषय- सामाजिक विज्ञान पुस्तक- सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान) अध्याय- 5 “हाशियाकरण की समझ”
आदिवासी किन लोगों को कहते हैं?
मूल निवासियों को आदिवासी कहते हैं। ये लोग समूह बनाकर जंगल में रहते हैं और वर्तमान में ये लोग इसी तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
देश में लगभग 8% लोग आदिवासी हैं और कई महत्वपूर्ण खनन तथा औद्योगिक क्षेत्र इनके ही इलाकों में स्थित हैं। जमशेदपुर, राउरकेला, बोकारो तथा भिलाई ऐसे ही कुछ मुख्य क्षेत्र हैं।
भारत में 500 से भी अधिक तरह के आदिवासियों का समूह पाया जाता है।
भारत के कुछ राज्यों में आदिवासियों की संख्या सबसे अधिक है।
ओडिशा में 60 से भी अधिक जनजातीय समूह वास करते हैं।
आदिवासी समुदायों के बीच ऊँच-नीच का फर्क बहुत कम होता है इसलिए ये समुदाय वर्ण व्यवस्था पर आधारित समुदायों से काफी अलग होते हैं।
इन जनजातियों के धर्म हिंदू, मुस्लिम, ईसाई आदि धर्मों से बिल्कुल अलग होते हैं।
ये लोग अपने पूर्वजों, गाँव एवं प्रकृति की उपासना करते हैं।
आदिवासी लोगों के धर्मों का असर आस-पास के साम्राज्यों व लोगों पर भी पड़ता है। ओडिशा का जगन्नाथ पंथ तथा बंगाल, असम की तांत्रिक परंपराएँ इसी का परिणाम हैं।
19वीं सदी में बहुत से आदिवासियों ने ईसाई धर्म को अपनाया था।
आदिवासियों की अपनी भाषाओं ने बांग्ला जैसी ‘मुख्यधारा’ की भारतीय भाषाओं को बहुत अधिक प्रभावित किया है। इसमें मुख्य रूप संथाली भाषी लोग अधिक मात्रा में शामिल हैं।
वर्तमान में संथाली लोग अपनी पत्र-पत्रिकाएँ निकालते हैं और ये पत्रिकाएँ नेट पर भी मौजूद हैं।
आदिवासी तथा उनकी वर्तमान छवियाँ
भारत में स्कूलों के उत्सवों, सरकारी कार्यक्रमों, पुस्तकों और फिल्मों में आदिवासियों को एक ही रूप में दिखाया जाता है।
देश में आदिवासियों को एक खास तरह के पहनावे के साथ नाचते-गाते दिखाया जाता है।
इन लोगों के जीवन का सच बहुत कम लोग जानते हैं इसलिए अधिकतर लोगों को लगता है कि उनका जीवन सबसे ज्यादा आकर्षक, पुराने किस्म का व पिछड़ा होता है।
माना जाता है कि आदिवासी विकास को स्वीकार नहीं करते हैं। लोगों ने मान लिया है कि उन्हें कोई भी बदलाव अच्छा नहीं लगता है।
लोगों ने इन समुदायों के लिए अपनी नज़र में अलग ही छवि बना रखी है, जिसके कारण आदिवासी समुदाय कई प्रकार से भेदभाव का शिकार बनता है।
19वीं सदी से अभी तक आदिवासी एवं विकास
भारतीय इतिहास में साम्राज्य एवं सभ्यता के विकास में जंगलों का महत्व बहुत अधिक रहा है।
पहले अधिकतर कीमती चीज़ें जैसे कि सोना, चाँदी व अयस्क और सेना के लिए जानवर जंगलों से ही प्राप्त किए जाते थे।
लगभग सभी नदियों को जल की प्राप्ति भी जंगलों से होती थी।
जंगल हवा, पानी की उपलब्धता और उसके गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं।
19वीं सदी तक भारत का एक बड़ा क्षेत्र जंगलों से ढका हुआ था और इन क्षेत्रों पर आदिवासी समुदायों का पूर्ण नियंत्रण था जिसके कारण अनेक राज्य प्राकृतिक संसाधनों के लिए इन समुदायों के लोगों पर निर्भर थे।
उपरोक्त समुदायों को वर्तमान में हाशियाई एवं शक्तिहीन समुदाय के नाम से जाना जाता है।
आदिवासी लोग शिकार करके, जंगली फलों को एकत्रित करके, स्थानांतरित खेती करके अपनी आजीविका चलाते थे।
देश में 200 वर्षों में हुए बदलावों ने आज इन आदिवासियों को बागानों, निर्माण स्थलों और अमीर घरों में नौकरी के लिए विवश कर दिया है।
वर्तमान में वनों तक आदिवासियों की पहुँच न के बराबर है और न ही अब जंगलों पर इनका नियंत्रण है।
आदिवासियों का विस्थापन
आदिवासी क्षेत्रों में खनिज पदार्थों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता अधिक है इसलिए इन क्षेत्रों पर खनन व औद्योगिक परियोजनाओं के लिए अनेक बार कब्जा किया गया है।
इन कीमती क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए ताकतवर समूह के लोग मिलकर कार्य करते हैं।
भारतीय आँकड़ों के अनुसार खनन व औद्योगिक परियोजनाओं की वजह से 50% से भी अधिक सिर्फ आदिवासी लोग विस्थापित हुए हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड में जो लोग विस्थापित हुए उनमें से लगभग 79% लोग आदिवासी ही थे।
भारत में लगभग 101 राष्ट्रीय पार्क एवं लगभग 543 वन्य जीव अभ्यारण्य हैं।
आज अगर कोई आदिवासी जंगल में रहने की कोशिश करता है, तो उसे घुसपैठियों की श्रेणी में शामिल किया जाता है।
जंगलों से बिछड़ने के बाद आदिवासी लोग अपनी आजीविका व भोजन के विभिन्न स्त्रोतों को भूलने लगते हैं।
अपनी परंपरा को भूलने के बाद आदिवासी लोग रोजगार की तलाश में आम लोगों की तरह छोटे-छोटे उद्योगों, कारखानों इत्यादि में कार्य करके अपनी जीविका चलाते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में 45% और शहरी क्षेत्रों में 35% आदिवासी गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करते हैं और इनके बहुत से बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं।
आदिवासी विस्थापन के दौरान अपनी जमीनों के साथ-साथ अपनी परंपराएँ और रीति-रिवाज भी गवा देते हैं।
इनके जीवन में आर्थिक व सामाजिक पक्ष एक-दूसरे से गहराई तक जुड़े होते हैं इसलिए दोनों पक्षों पर विनाश का लगभग बराबर असर पड़ता।
विस्थापन की प्रक्रिया आदिवासियों के लिए हमेशा से हिंसक और दर्दनाक रही है।
अल्पसंख्यक तथा हाशियाकरण की समझ
अल्पसंख्यक शब्द का उपयोग उन समुदायों के लिए किया जाता है जो संख्या की दृष्टि से बाकी जन समुदायों की तुलना में बहुत कम हैं। इसमें सामाजिक और सांस्कृतिक आयाम भी जुड़े होते हैं।
बहुसंख्यक लोगों की संस्कृति समाज व सरकार की अभिव्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। ऐसी स्थति में छोटे समुदाय के लोग हाशिये की तरफ बढ़ने लगते हैं।
उपरोक्त स्थिति में सरकार अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों के सांस्कृतिक वर्चस्व से बचाने के लिए सुरक्षा प्रदान करती है।
सुरक्षा की व्यवस्था अल्पसंख्यकों को भेदभाव और कई तरह के नुकसान से बचाती है।
संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा की व्यवस्था इसलिए की गई है क्योंकि भारत सभी संस्कृतियों की विविधता में एकता स्थापित करने वाला देश है।
मुसलमान के संदर्भ में हाशियाकरण की समझ
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में से मुस्लिमों की संख्या 14.2% थी, जिसके कारण उन्हें हाशियाई समुदाय माना जाता है।
हाशियाई समुदाय को अन्य समुदायों की तुलना में सामाजिक-आर्थिक विकास के समान लाभ नहीं मिलते हैं इसलिए सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता पड़ती है।
वर्ष 2011 के आधार पर विभिन्न धर्मों में साक्षरता दर को निम्न तालिका से समझ सकते हैं-
क्रम संख्या
विभिन्न धर्मों के नाम
साक्षरता दर (%)
1
हिंदू
63 %
2
मुस्लिम
57 %
3
ईसाई
74 %
4
सिख
67 %
5
बौद्ध
71 %
6
जैन
86 %
वर्ष 2005 में यह तय किया गया कि मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों जैसे हाशियाई समुदायों से मेल खाती है और 7 से 16 वर्ष की कम उम्र के बच्चे संपन्न समुदायों की तुलना में बहुत कम साल तक ही शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं।
कई बार कुछ मुसलमानों के पहनावे के कारण पूरे मुस्लिम समुदाय को अलग नजर देखा जाता है जबकि उनमें से कुछ का मानना है कि वे बाकी लोगों जैसे नहीं हैं।
सामाजिक हाशियाकरण की वजह से मुस्लिम लोग अपने पहले के स्थानों को छोड़ने लगे हैं जिसकी वजह से उनका घेटोआइजेशन होने लगा है अर्थात् समूह के रूप में किसी विशेष क्षेत्र में रहने लगे हैं।
इस तरह से मुसलमानों के आर्थिक व सामाजिक हाशियाकरण के बीच गहरी घनिष्ठता है।