इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 8वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक यानी “सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III” के अध्याय- 6 “हाशियाकरण से निपटना” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 6 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 8 Political Science Chapter-6 Notes In Hindi
आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।
अध्याय-6 “हाशियाकरण से निपटना“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | आठवीं (8वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान) |
अध्याय नंबर | छः (6) |
अध्याय का नाम | “हाशियाकरण से निपटना” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 8वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान)
अध्याय- 6 “हाशियाकरण से निपटना”
लोकतांत्रिक देश में मौलिक अधिकारों का उपयोग
- मौलिक अधिकार सभी भारतीयों के लिए समान रूप से उपलब्ध किए गए हैं।
- हाशियाई समूहों ने मौलिक अधिकारों को निम्न दो तरह से इस्तेमाल किया है-
- इन अधिकारों की तरफ ध्यान दिलाते हुए सरकार को अपने साथ होने वाले अन्याय की तरफ ध्यान देने के लिए विवश किया है।
- समुदायों द्वारा दबाव डाला गया है कि सरकार इन कानूनों को लागू करें।
- दलित शब्द का अर्थ दबा-कुचला वर्ग है।
- संविधान के अनुच्छेद-17 के तहत कोई भी शक्ति या व्यक्ति दलितों को शिक्षा लेने, मंदिरों में जाने तथा सार्वजनिक सुविधाओं का उपयोग करने से नहीं रोक सकता है।
- संविधान का अनुच्छेद-15 भी अस्पृश्यता व भेदभाव का विरोध करता है। जब दलितों के अधिकारों का हनन होता है तब वे अपने अधिकारों के आधार पर इस कानून का सहारा ले सकते हैं।
- मुस्लिम और पारसी धर्म जैसे अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति की सुरक्षा का अधिकार मिला हुआ है। इस तरह संविधान ने ऐसे समुदायों को सांस्कृतिक न्याय देने की कोशिश की है।
हाशियाई समूह के लिए कानून और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना
- भारत सरकार देश के नागरिकों की रक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाती है।
- भारत में हाशियाई समूहों के लिए विशेष कानून और नीतियाँ बनाई गई हैं ताकि इन समूहों को सरकार सही अवसर उपलब्ध करा सके।
- अनेक स्थानों पर दलितों एवं आदिवासियों के लिए सरकार की ओर से शिक्षा संबंधित बहुत सी सुविधाएँ मुफ्त या रियायती दरों पर उपलब्ध कराई गई हैं।
- आरक्षण की व्यवस्था सरकार के प्रयासों का परिणाम के रूप में एक महत्वपूर्ण कानून है लेकिन यह कानून आज भी विवादित बना हुआ है।
- दलितों को आरक्षण का लाभ उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरी प्राप्त करने में होता है।
- मेडिकल कॉलेज जैसे पेशेवर संस्थानों में दाखिले के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम अंक सीमा (कट-ऑफ) तय की गई है। इसके अनुसार उन्हीं दलित या आदिवासी उम्मीदवारों को दाखिला मिलेगा, जिन्होंने परीक्षा में बेहद अच्छा प्रदर्शन करके न्यूनतम अंक सीमा से अधिक अंक प्राप्त किये होंगे।
हाशियाई समूहों के अधिकारों की रक्षा
- निम्न वर्ग या आदिवासी लोगों को भेदभाव या शोषण से बचाने के लिए नीतियों के साथ-साथ राष्ट्र में कई कानून भी बनाए गए हैं।
- दलित लोग अपने समुदाय की रक्षा करने के लिए इन नीतियों और कानूनों का इस्तेमाल करते हैं।
- दलित लोग कई बार उच्च जाति के साथ हुए विवाद को कानून के आधार पर सुलझाते है।
अत्याचार निवारण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम (1989)
- यह कानून वर्ष 1989 में दलितों और अन्य समुदायों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को रोकने की माँग के बाद बना था।
- इस दौरान बहुत से आग्रही दलित संगठन सामने आए थे जो जातीय दायित्वों का पालन करने को तैयार नहीं थे और समान अधिकार की माँग कर रहे थे।
- दलित संगठनों की माँग थी कि उनके लोगों के साथ होने वाली विभिन्न प्रकार की हिंसा की सूची तैयार की जाए और उन अपराधों को बढ़ावा देने वाले अपराधियों को कड़ी सजा दी जाए।
- वर्ष 1970 और 1980 के दशक में दलितों की तरह ही आदिवासियों ने भी स्वयं को बड़े पैमाने पर संगठित किया था।
- परिणामस्वरूप आदिवासी लोगों को भी ताकतवर समुदायों के क्रोध को झेलना पड़ा और हिंसा का शिकार होना पड़ा था।
- इस कानून में कई ऐसे अपराधों का जिक्र किया गया है जिसके बारे में सोचकर आम इंसान भयभीत हो सकता है और यह भी जान सकता है कि मानव किस हद तक का जुर्म कर सकता है।
इस कानून का उद्देश्य निम्न प्रकार के लोगों को सजा दिलाना है-
- अगर कोई निम्न वर्ग के किसी व्यक्ति को अखाद्य या गंदा पदार्थ पीने के लिए मजबूर करता है।
- जो व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी भी व्यक्ति के साथ अमानवीय व्यवहार करता है या उसे निर्वस्त्र करता है।
- जब किसी के द्वारा दलितों या आदिवासियों को साधारण संसाधनों से वंचित किया जाए।
- अगर कोई निम्न वर्ग के लोगों की संपत्ति या जमीन पर कब्जा करता है या उनके जमीन पर खेती करता है।
- जो लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं पर हमला करवाते हैं, किसी भी तरह से उन्हें अपमानित करते हैं या उनके साथ जोर-जबरदस्ती करते हैं इत्यादि।
आदिवासी लोगों की माँग तथा अधिनियम 1989 का महत्व
- आदिवासी लोग अपनी परंपरागत जमीन पर अधिकार पाने के लिए अधिनियम 1989 का सहारा लेते हैं।
- आदिवासियों के अनुसार जो लोग उन्हें उनकी जमीनों से विस्थापित करते हैं वे सजा पाने वाले होते हैं।
- कानूनी रूप से आदिवासी लोगों की जमीन को गैर-आदिवासी लोगों को नहीं बेच सकते हैं और संविधान के गौरव को बनाए रखने के लिए जहाँ भी ऐसी जमीनों को बेचा गया है वहाँ की जमीनों को आदिवासियों को वापस कर देनी चाहिए।
- कुछ लोग आदिवासियों के बेदखली के लिए मुआवजे की भी माँग करते हैं। इसके अंतर्गत सरकार कुछ योजनाएँ बना सकती है, जिसके आधार पर विस्थापित आदिवासियों को नए घर और रोजगार की व्यवस्था की जा सके।
- सरकार विस्थापित आदिवासियों को पुनर्वास देने के लिए प्रयास कर सकती है।
PDF Download Link |
कक्षा 8 राजनीति विज्ञान के अन्य अध्याय के नोट्स | यहाँ से प्राप्त करें |