रमज़ान की आखिरी शाम जब खूबसूरत चाँद का दीदार आसमान में होता है, तो ये मान लिया जाता है कि अगले दिन ईद (Eid) है। ईद खुशियों का त्योहार है और खुशियाँ बांटने से ही बढ़ती हैं। ईद का अर्थ खुशियों के त्योहार से है। ईद के त्योहार ने हिंदुस्तान की मिट्टी में प्यार को घोले रखा है, यहाँ के लोगों में बेपनाह खुशियाँ बांटी हैं और आपसी मोहब्बत को कायम रखा है।
ईद के ज़रिए हमारी ज़िंदगी में खुशियाँ बार-बार आती रहती हैं और इन्हीं छोटी-छोटी खुशियों से ही हम अपने आपको और दूसरों को खुश करने की कोशिश करते हैं। हम सभी ने मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ तो ज़रूर पढ़ी होगी, जिसमें हामिद ईद के दिन अपनी बूढ़ी दादी अमीना को चिमटा लाकर देता है और वह खुशी से रोने लगती है।
प्रस्तावना
ईद का त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है। ईद वैसे तो मुख्य रूप से मुस्लिम धर्म के लोगों का सबसे प्रमुख पर्व है, लेकिन हिंदू व अन्य धर्म के लोग भी भाईचारे के साथ ईद के त्योहार की खुशी मनाते हैं और अपने मुस्लिम संबंधियों को ईद की मुबारकबाद देते हैं। पहली ईद रमज़ान के तीस रोज़ों के खत्म होने के अगले दिन यानी कि ‘ईद-उल-फ़ित्र’ (Eid-Ul-Fitar) और दूसरी ईद हज़रत इब्राहिम और हज़रत इस्माइल द्वारा दिए गए महान बलिदानों की याद में यानी कि ‘ईद-उल-अज़हा’ (Eid-Ul-Adha) के रूप में मनाई जाती है। ईद-उल-फ़ित्र को मीठी ईद और ईद-उल-अज़हा या ईद-उल-जुहा को बकरीद भी कहते हैं।
ईद का क्या अर्थ है?
ईद का अर्थ खुशी का त्योहार या खुशी के दिन से है। ईद शब्द अरबी भाषा से आया है जिसका अर्थ वापिस आने से भी है यानी कि ईद का दिन हमारे जीवन में खुशियाँ लेकर बार-बार लौटकर आता रहे। ईद सही मायने में हमें एक साथ खुशियां मनाने का मौक़ा देती है और इंसानों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ाते हुए इंसानियत को ज़िंदा रखने की कोशिश करती है। इस्लाम में ईद को सबसे खुशी का दिन माना गया है। ईद मुसलमानों द्वारा मनाए जाने वाला सबसे प्रसिद्ध त्योहार है।
ईद क्यों मनाई जाती है?
रमज़ान के पाक महीने में रोज़े रखने के बाद ईद-उल-फ़ित्र यानी कि मीठी ईद का त्योहार मनाया जाता है। कुरान के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि अल्लाह ईद के दिन अपने सभी बंदों को कुछ-न-कुछ बख्शीश और इनाम ज़रूर देते हैं। इसीलिए इस दिन को ईद कहा जाता है और ईद मनाई जाती है। ईद के दिन सभी बच्चों को उनके अब्बू और अम्मी से ईदी यानी कि पैसे, तोहफे, कपड़े, मिठाइयाँ आदि चीज़ें भी मिलती हैं।
बख्शीश और इनाम के इस दिन को ही ईद कहते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन पैगम्बर हज़रत मुहम्मद की बद्र की लड़ाई में जीत हुई थी और इसी जीत की खुशी में उन्होंने सभी लोगों में मिठाई बांटकर उनका मुंह मीठा करवाया गया था। बस तभी से इस दिन को मीठी ईद के रूप में मनाया जाने लगा। ईद-उल-फ़ित्र के ठीक ढाई महीने बाद ही ईद-उल-अज़हा आती है। ईद-उल-अज़हा को बकरीद और ईद-ए-कुर्बानी भी कहते हैं।
ईद कब मनाई जाती है?
हिजरी कैलेंडर के मुताबिक दसवें महीने यानी कि शव्वाल के पहले दिन ईद का त्योहार पूरी दुनिया में खुशी के साथ मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर में इस महीने की शुरुआत चाँद देखने के साथ होती है, जिससे पहले पूरे तीस दिनों तक रमज़ान का महीना होता। जब चाँद दिखाई दे जाता है, तो रमज़ान का पाक महीना खत्म हो जाता है और रमज़ान के आखिरी दिन ईद मनाई जाती है।
ईद कैसे मनाई जाती है?
रमज़ाम का पाक महीना खत्म होने के साथ ही ईद का त्योहार मनाया जाता है। मुस्लिम धर्म के लोग ईद से पहले पूरे तीस दिनों तक रोज़े रखते हैं। एक महीना रमज़ान के रोज़े रखने के बाद मुसलमान अपने खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं। जो मुसलमान रोज़ेे रखते हैं, वह सहरी और इफ्तार की दुआ पढ़ने के बाद ही पानी पीते हैं और खाना खाता हैं। रमज़ान की आखिरी शाम जब चाँद निकल आता है, तो अगले दिन ईद होती है। ईद के दिन की शुरुआत मुसलमान सुबह की पहली नमाज़ अदा करके करते हैं। इसे इस्लाम में सलात अल-फज्र कहा जाता है।
नमाज़ पढ़ने के लिए वह मस्जिद या ईदगाह जाते हैं और नमाज़ पूरी होने के बाद वह एक-दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। फिर अपने घर लौटने के बाद पूरे परिवार में ईद मुबारक करते हैं और छोटे बच्चे अपने बड़ों की दुआएं लेते हैं। मीठी ईद के दिन सभी मुस्लिम घर में कुछ मीठा जरूरी बनता है, जिसे वह खुद भी खाते हैं और गरीबों में भी बाँटते हैं।
ईद पर नए कपड़ें पहनकर वह अपने रिश्तेदारों के यहाँ ईद की मुबारकबाद देने के लिए जाते हैं। ईद के दिन मुसलमान दान या जकात भी ज़रूर देते हैं। इस तरह से रमज़ान के पाक महीने को विदा किया जाता है और खुदा का शुक्रिया अदा करके और ज़रूरत मंद लोगों की मदद कर उनमें खुशियाँ बाँटकर ईद मनाई जाती है।
ईद की शुरुआत कैसे हुई?
ऐसा कहा जाता है कि ईद की शुरुआत पैगंबर मुहम्मद ने सन् 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद की थी। इस दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद ने बद्र की लड़ाई में विजय हासिल की थी। इसीलिए उनकी जीत की खुशी में ईद के त्योहार की शुरुआत हुई।
निष्कर्ष
ईद केवल एक त्योहार ही नहीं है बल्कि एक ऐसा मौक़ा भी है जिसमें हम अपने परिवार, समाज, देश और पूरी दुनिया में खुशियाँ बाँट सकते हैं। ईद का असली मतलब भी यही है कि हम ईद की खुशी अकेले ना मनाएं बल्कि ऐसे लोगों को अपनी खुशी में शरीक करें जो दुख और तकलीफ से गुज़र रहे हैं। असली ईद वही है जो आपस में प्यार और खुशी को बढ़ाए यानी खुशियों वाली ईद।
ईद-उल-फ़ित्र पर निबंध
रमज़ान के पूरे तीस रोज़े रखने के बाद ईद का त्योहार आता है। ईद-उल-फ़ित्र का त्योहार मुसलमान बड़ी ही खुशी से मनाते हैं। मुसलमानों का यह सबसे बड़ा त्योहार होता है। ईद-उल-फ़ित्र को मीठी ईद भी कहा जाता है। इस्लाम में ‘ईद’ का मतलब है खुशी और ‘फ़ित्र’ का मतलब है खाना-पीना। ईद के दिन मुसलमान अल्लाह को धन्यवाद देते हैं।
मुसलमान ईद-उल-फ़ित्र की नमाज़ से पहले जमात-उल-विदा की नमाज़ पढ़ते हैं, जिसे रमज़ान के आखिरी जुमे की नमाज़ कहा जाता है। वह खुदा से ये दुआ करते हैं कि अगले साल भी उन्हें यह मुबारक महीना देखने को मिले।
ईद की शुरुआत मस्जिद या ईदगाह में नमाज़ पढ़कर की जाती है। ईद के दिन सभी मुसलमान लोग एक ही जगह जमा होते हैं और एक साथ नमाज़ पढ़ते हैं। ईद के दिन मुसलमान अपने सुख-दुख बांटते हैं और एक-दूसरे की परेशानी को दूर करने की भी कोशिश करते हैं ताकि किसी की भी ईद की खुशियाँ फीकी न रह जाएँ। ईद की नमाज़ पढ़ने के बाद लोग आपसे में गले मिलते हैं और एक-दूसरे को ईद मुबारक बोलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं।
वह गले इसलिए मिलते हैं ताकि गले मिलने के साथ-साथ रूठे हुए लोगों के दिल भी फिर से आपस में मिल जाएँ। ईद के दिन इस्लाम में गरीबों की मदद करने को कहा गया है, फिर चाहे वे किसी भी धर्म या जाति से जुड़ा हुआ हो। इसी वजह से मुसलमान ईद के समय दिल खोलकर दान करते हैं। ईद पर हर मुसलमान से यह उम्मीद की जाती है कि वह गरीब और परेशान लोगों की मदद करें ताकि ईद की खुशी में वह भी शरीक हो सकें।
ईद का चाँद निकलने से पहले ही लोग ईद की तैयारियाँ शुरू कर देते हैं। चाँद रात को सभी लोग ईद की खरीदारी करने बाजार जाते हैं। कई दिनों पहले से ही बाजार दुल्हन की तरह सज जाते हैं। जैसे-जैसे ईद का त्योहार करीब आता है, बाजारों में भीड़ बढ़ने लगती है। ईद के मौके पर मस्जिदों और ईदगाहों को भी बेहद खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है। ईद के दिन सभी नए कपड़े पहनते हैं।
आदमी विशेष रूप से सफेद रंग के कुर्ते-पजामे पहनते हैं। ईद के दिन हर मुस्लिम घर में खीर और मीठी सेवई ज़रूर बनती हैं, जिसे वह ज़रूरत मंदों में बांटकर उन्हें भी ईद की खुशी में शामिल करते हैं। पवित्र इस्लामिक ग्रंथ कुरान में लिखा है कि हर मुसलमान को ईद के दिन गरीबों की मदद करनी चाहिए और अपनी हैसियत के अनुसार गरीबों को कपड़े, भोजन, पैसे आदि देने चाहिए, जिससे उन्हें भी ईद की खुशी मिल सके। इस तरह से मीठी ईद का त्यौहार मोहब्बत बाँटने और अपनी खुशी में दूसरों को शामिल करने का संदेश देता है।
ईद-उल-अज़हा पर निबंध (Essay On Eid-Ul-Adha In Hindi)
ईद-उल-अज़हा को बकरीद (Bakrid) भी कहते हैं। बकरीद हज़रत इब्राहिम और हजरत इस्माइल के दिए गए महान बलिदान की याद में मनाई जाती है। ईद-उल-अज़हा एक अरबी भाषा का शब्द है जिसका मतलब “कुर्बानी” है। इसे ईद-ए-कुर्बानी यानी कि कुर्बानी की ईद भी कहा जाता है। इस त्योहार को रमज़ान के पाक महीने के ढाई महीने के बाद मनाया जाता है।
अरब के देशों में इसे ईद उल अज़हा कहते हैं और भारत में इसे बकरीद कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है, इसीलिए इसे बकरीद कहा जाता है। इस्लाम में बकरे की कुर्बानी देना बलिदान का प्रतीक माना गया है। बकरीद के पीछे हज़रत इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल की बलिदान की कहानी भी है।
‘एक समय की बात है एक रात हज़रत इब्राहिम को सपना आया। सपने में अल्लाह ने उन्हें हुक्म दिया कि वे अपने बेटे हज़रत इस्माइल की कुर्बानी दे दें। अल्लाह का ये हुक्म इब्राहिम के लिए किसी इम्तिहान से कम नहीं था। वे अल्लाह के हुक्म को भी टाल नहीं सकते थे और अपने बेटे को भी कुर्बान नहीं कर सकते थे। एक तरफ उनका बेटा था और दूसरी तरफ अल्लाह का हुक्म। उनके लिए अल्लाह का हुक्म अपने बेटे इब्राहिम से भी ऊपर था, तो वह अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए।
अल्लाह ने इब्राहिम के दिल को समझ लिया था कि वह अपने बेटे से इतना प्यार करते हुए भी मेरे लिए उसे कुर्बान करने को तैयार है। जब इब्राहिम ने अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए छुरी उठायी, तो उसी वक्त अल्लाह के फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन ने इस्माइल को उस छुरी के नीचे से तुरंत हटा लिया और उसके नीचे एक मेमना रख दिया। इब्राहिम की छुरी उनके बेटे पर नहीं बल्कि उस मेमने पर चल गई और इस तरह से मेमने की कुर्बानी हुई।
अल्लाह ने उनके बेटे की जान को बचा लिया। ये खुशबरी जिब्रील अमीन ने इब्राहिम को दी कि आपका बेटा बच गया है और अल्लाह ने आपकी कुर्बानी को भी कबूल कर लिया है।’ बस उसी दिन से मुस्लिम धर्म के लोग बकरीद का त्योहार मनाने लगे और बकरों की कुर्बानी देना शुरू कर दिया।
ईद पर 10 लाइनें (10 Lines On Eid In Hindi)
- ईद मुस्लिम धर्म के लोगों का सबसे प्रमुख त्योहार है।
- ईद का त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है।
- पहली ईद ‘ईद-उल-फ़ित्र’ और दूसरी ईद ‘ईद-उल-अज़हा’ के रूप में मनाई जाती है।
- ईद-उल-फ़ित्र को मीठी ईद और ईद-उल-अज़हा या ईद-उल-जुहा को बकरीद भी कहते हैं।
- इस्लाम में ईद को सबसे खुशी का दिन माना गया है।
- रमज़ान के पाक महीने में रोज़े रखने के बाद ईद-उल-फ़ित्र यानी कि मीठी ईद का त्योहार मनाया जाता है।
- मुस्लिम धर्म के लोग ईद से पहले पूरे तीस दिनों तक रोज़े रखते हैं।
- ईद की शुरुआत मस्जिद या ईदगाह में नमाज़ पढ़कर की जाती है।
- मुसलमान ईद के समय दिल खोलकर दान करते हैं।
- ईद का त्यौहार मोहब्बत बाँटने और अपनी खुशी में दूसरों को शामिल करने का संदेश देता है।
ईद पर आधारित FAQs
उत्तरः बकरीद हज़रत इब्राहिम और हज़रत इस्माइल के दिए गए महान बलिदान की याद में मनाई जाती है।
उत्तरः इस्लाम में ऐसा माना जाता है पैगम्बर हज़रत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी। इस जीत की खुशी में ईद उल फितर मनाई जाती है।
उत्तरः ईद का त्यौहार भाईचारे के साथ आपस में खुशियाँ बाँटकर और गरीबों की सहायता करके मनाया जाता है।
उत्तरः इस्लामिक मान्यता के अनुसार इस दिन हज़रत इब्राहिम अपने बेटे हज़रत इस्माइल की कुर्बान देने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उनके बेटे को जीवनदान दे दिया था। तभी से बकरीद मनाई जाती है।
उत्तरः ईद दो प्रकार की होती है- 1. मीठी ईद और 2. बकरीद।
उत्तरः ईद शब्द का अर्थ खुशी का त्योहार से है यानी कि ईद खुशियों वाली।