मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय (Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi) – विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी। मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी। हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे¸ वृथा जिये। नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए। यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे। वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे। आज यह कविता पढ़ी तो मन एकदम खुश हो गया। इस कविता को लिखा था महान कवि और लेखक मैथिली शरण गुप्त ने। हम सब इस नाम से भली भांति परिचित है। वह बहुत अच्छे लेखक थे। वह लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय थे।
मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय (Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi)
लेखक चाहे कोई भी हो, जब तक उसे लिखने की कला नहीं आती वह महान कृतियां नहीं रच सकता। कोई भी लिखना चाहे तो लिख सकता है। पर हर कोई गहराई के साथ लिखने में माहिर नहीं होता। ऐसे कवि और लेखक ही महान लेखक की श्रेणी में आ सकते हैं। तो आज का हमारा विषय भी ऐसे ही एक महान कवि पर आधारित है। इस कवि का नाम मैथिलीशरण गुप्त है। इस नाम को हम सभी अच्छे से जानते हैं। हम सभी इनकी कविताएं पढ़ते आए हैं। तो आज हम मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय जानेंगे। इस जीवन परिचय के माध्यम से आप उनके बारे में बहुत कुछ जानेंगे। यह पोस्ट उन सभी बच्चों के लिए उपयोगी है जो कि स्कूल के विद्यार्थी है और जिन्हें एक अच्छा सा निबंध तैयार करना है। तो आइए आज हम जानेंगे मैथिली शरण गुप्त का जीवन परिचय (maithili sharan gupt ka jeevan parichay) हिंदी में।
मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय
एक धनी सेठ था जिसका नाम सेठ रामचरण गुप्त था। वह धनी वैश्य परिवार से संबंध रखते थे। वह और उनका परिवार झाँसी जिले के चिरगांव गाँव में रहते थे। उनकी पत्नी का नाम काशीबाई था। वह बेहद समझदार महिला थी। यह दोनों पति-पत्नी वैष्णव धर्म को मानने वाले थे। इन दोनों को 3 अगस्त 1886 को एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। इस बच्चे का नाम मैथिलीशरण रखा गया।
वह बचपन से ही तेज दिमाग वाला बालक था। उसने बचपन से ही कविताएं लिखना शुरू कर दी थी। यह विरासत उसको अपने पिता से मिली थी। मैथिलीशरण के पिता को भी हिंदी साहित्य से बड़ा गहरा लगाव था। बचपन के दिनों में मैथिलीशरण एक आम बच्चे की ही तरह बहुत शरारती था। लेकिन धीरे-धीरे बड़े होने पर वह बहुत समझदार हो गया। मैथिलीशरण के माता-पिता को यह पता नहीं था कि उनका बेटा बड़ा होकर एक महान लेखक बनेगा।
नाम | मैथिलीशरण गुप्त |
जन्म तिथि | 3 अगस्त 1886 |
जन्म स्थान | चिरगाँव, झाँसी (उत्तर प्रदेश) |
मृत्यु तिथि | 12 दिसम्बर 1964 |
मृत्यु स्थान | झाँसी, उत्तर प्रदेश (भारत) |
आयु (मृत्यु के समय) | 78 वर्ष |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
व्यवसाय | नाटककार, कवि, राजनेता, अनुवादक |
भाषा | खड़ीबोली, ब्रजभाषा |
शिक्षा | प्राथमिक चिरगाँव, मैकडोनाल्ड हाई स्कूल झांसी |
पिता का नाम | सेठ रामचरण गुप्त |
माता का नाम | काशीबाई गुप्त |
भाई का नाम | सियारामशरण गुप्त |
पत्नी का नाम | श्रीमती सरजू देवी |
गुरु का नाम | महावीरप्रसाद द्विवेदी। द्विवेदी युग के कवि |
पुरस्कार | 1954 में पद्म भूषण, डी.लिट्. की उपाधि, साहित्य वाचस्पति, हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार। |
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मैथिलीशरण गुप्त की शिक्षा
मैथिलीशरण गुप्त एक विद्यार्थी के रूप में साधारण ही रहे। उनका पढ़ाई के प्रति कोई गहरा लगाव नहीं था। उन्होंने पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई अपने चिरगांव गाँव में ही रहकर की। जब आगे की पढ़ाई की बात आई तो उनके पिताजी ने उन्हें झाँसी के मेक्डोनल हाई स्कूल में दाखिला दिलवाया।
जब वह कक्षा में होते थे तो पढ़ाई की जगह कहानी और कविताएं लिखने में उनका मन लगता था। उनके शिक्षक उनकी इसी बात से बड़े ही परेशान रहते थे। कविताएं लिखने के अलावा इनको इधर-उधर घूमना बहुत ही पसंद था। वह अपने दोस्तों को भी कविताएं लिखने के लिए प्रेरित किया करते थे।
हालांकि 10 -11 साल तक आते आते उन्होंने पढ़ाई ही छोड़ दी। हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य पर इनकी अच्छी पकड़ हो गई थी। वह घर पर ही सारे विषयों को पढ़ा करते थे। जब वह 12 साल के हुए तो ब्रजभाषा में कविता भी लिखने लग गए थे। वह अपनी कविताएं सरस्वती मैग्जीन में छपवाने के लिए देते थे।
मैथिलीशरण गुप्त की उपलब्धियां
मैथिलीशरण गुप्त अपने दौर के महान कवि थे। उनकी कलम से शानदार शब्द निकलते थे जो कि भारत के नागरिकों में राष्ट्र प्रेम जगा देते थे। सिर्फ यही नहीं उन्होंने समाज-सुधार, धर्म, राजनीति, भक्ति जैसे विषयों पर भी बहुत अच्छी कविताएं लिखी। 1948 ई॰ में आगरा विश्वविद्यालय और 1958 ई॰ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने मैथिलीशरण गुप्त को डी॰ लिट् की मानद उपाधि प्रदान की थी। इन्होंने राज्यसभा के सदस्य के रूप में पदभार ग्रहण किया। यही नहीं सन् 1954 में उन्हें पद्मभूषण से भी नवाजा गया।
मैथिलीशरण गुप्त का विवाह
मैथिलीशरण गुप्त का वैवाहिक जीवन बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा था। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा पड़ा था। उनका पहला विवाह किसके साथ हुआ यह ज्ञात नहीं। उनकी दूसरी पत्नी का नाम भी कोई नहीं जानता। उनकी दोनों शादियों से उन्हें कोई संतानें नहीं हुई। वह दोनों पत्नियां भी इस दुनिया से जल्दी ही चल बसी। इनका तीसरा विवाह 1917 में सरजू देवी के साथ संपन्न हुआ था। सरजू देवी से उन्हें संतान प्राप्ति तो हुई पर वह ज्यादा दिन तक जिंदा नहीं रह सकी। उनका शादीशुदा जीवन बहुत उतार चढ़ाव के साथ गुजरा।
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएं
रंग में भंग | 1909 ई. |
जयद्रथवध | 1910 ई. |
भारत भारती | 1912 ई. |
किसान | 1917 ई. |
शकुन्तला | 1923 ई. |
पंचवटी | 1925 ई. |
अनघ | 1925 ई |
हिन्दू | 1927 ई |
त्रिपथगा | 1928 ई. |
शक्ति | 1928 ई. |
गुरुकुल | 1929 ई. |
विकट भट | 1929 ई. |
साकेत | 1931 ई. |
यशोधरा | 1933 ई. |
द्वापर | 1936 ई. |
सिद्धराज | 1936 ई. |
नहुष | 1940 ई |
कुणालगीत | 1942 ई. |
काबा और कर्बला | 1942 ई. |
पृथ्वीपुत्र | 1950 ई. |
प्रदक्षिणा | 1950 ई |
जयभारत | 1952 ई |
विष्णुप्रिया | 1957 ई |
अर्जन और विसर्जन | 1942 ई. |
झंकार | 1929 ई |
मैथिलीशरण गुप्त के गुरु
मैथिलीशरण गुप्त के गुरु आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी थे। वह एक महान कवि और लेखक थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में खूब कविताएं लिखी। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ही मैथिलीशरण गुप्त को लिखने की प्रेरणा दी थी। मैथिलीशरण गुप्त ने हालांकि बचपन से ही लिखना शुरू कर दिया था पर उनको लिखने की असली प्रेरणा आचार्य महावीर प्रसाद से ही मिली। मैथिलीशरण ने उनको अपना गुरु मान लिया था।
मैथिलीशरण ने उनको अपना आदर्श मान लिया था। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने मैथिलीशरण गुप्त पर बहुत मेहनत की। उन्होंने मैथिलीशरण की कविता लिखने की शैली को और भी ज्यादा निखारा। वह मैथिलीशरण के प्रेरणा स्तोत्र रहे थे। उनके मार्गदर्शन के चलते ही मैथिलीशरण की कविताएं छोटी सी उम्र में ही सरस्वती पत्रिका में छपने लगी थी।
मैथिली शरण गुप्त के काव्य से चुनिंदा पंक्तियां
चारुचंद्र की चंचल किरणें
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में। स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में। पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से। मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से।
दोनों ओर प्रेम पलता है
दोनों ओर प्रेम पलता है।सखि, पतंग भी जलता है हां! दीपक भी जलता है! सीस हिलाकर दीपक कहता–’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’पर पतंग पड़ कर ही रहता कितनी विह्वलता है!दोनों ओर प्रेम पलता है।
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी। मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी। हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे¸ वृथा जियेनहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए। यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे। वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।
मैथिलीशरण गुप्त की भाषा शैली
मैथिलीशरण गुप्त एक राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत कवि और लेखक थे। उनकी भाषा बड़ी ही सुंदर और निर्मल थी। वह अपने पूरे मन से लिखते थे। उनका कविता लिखने का सरल और सीधा स्वभाव लोगों को बहुत ज्यादा पसंद आता था। उनके विचार सीधे दिल से निकलते थे। वह अपनी कविताओं में लोकोक्तियां एवं मुहावरे का बहुत अच्छे से इस्तेमाल करते थे। वह अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों में देश प्रेम के बीज़ बो देते थे। वह अपनी रचनाओं में संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू जैसी भाषाओं का अच्छे से इस्तेमाल करते थे।
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं के पात्र
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं के जितने भी पात्र रहे हैं वह सब सच्चे होते थे। वह अपनी रचनाओं में काल्पनिक पात्रों को कम महत्त्व देते थे। उनके दिल में देश प्रेम कूट कूट के भरा हुआ था। वह देश भक्ति पर भी खूब लिखते थे। उन्होंने भारत भारती जैसी रचना में प्राचीन भारत की संस्कृति को बहुत खूबसूरती से पेश किया है। उनकी रचनाओं में महिलाओं को भी उच्च स्थान दिया गया है। उन्होंने भारत की महिलाओं की स्थिति को अपनी कविताओं के माध्यम से अच्छे से समझाया है। उनकी कविताओं में महिलाओं की पीड़ा और व्यथा को अच्छे से समझा जा सकता है।
मैथिलीशरण गुप्त का राष्ट्र प्रेम
मैथिलीशरण गुप्त को हम केवल कवि कहकर ही नहीं बुला सकते हैं।वह तो कवि होने के साथ-साथ एक सच्चे देशभक्त भी थे। उनकी देशभक्ति को हम एक सच्ची घटना के माध्यम से भी समझ सकते हैं। क्योंकि मैथिलीशरण गुप्त गाँधी जी को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रियता से भाग लिया। सच्चे देश प्रेम के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। परंतु उनको इस बात से कोई शिकायत भी नहीं हुई। वह अपने पूरे जीवनकाल में देश के प्रति बहुत वफादार रहे। उन्होंने देश के खिलाफ कोई भी काम नहीं किया।
मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु
मैथिलीशरण गुप्त एक महान लेखक और कवि थे। उनकी कविताएं पढ़कर लोग प्रेरित हो जाते थे। वह देश के हित में सोचकर ही अपनी कृतियां लिखते थे। वह अपनी कविताओं में देश प्रेम को दर्शाते थे। उन्होंने नारी उत्थान के हेतु भी काम किया। वह नारी की दशा का अच्छे से वर्णन करते थे। फिर एक दिन ऐसा भी आया जब उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। 12 दिसंबर सन 1964 को मैथिलीशरण गुप्त का निधन हो गया।
FAQs
A1. मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 1886 ई में चिरगांव, झांसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
A2. 1 ) इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इन्हें डी. लिट की उपाधि प्राप्त हुई थी।
2 ) 1954 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।
A3. मैथिलीशरण गुप्त की भाषा शैली बड़ी ही सुंदर और निर्मल थी। वह अपने पूरे मन से लिखते थे। उनका कविता लिखने का सरल और सीधा स्वभाव लोगों को बहुत ज्यादा पसंद आता था। उनके विचार सीधे दिल से निकलते थे। वह अपनी कविताओं में लोकोक्तियां एवं मुहावरे का बहुत अच्छे से इस्तेमाल करते थे। वह अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों में देश प्रेम के बीज़ बो देते थे।
A4. मैथिलीशरण गुप्त के माता का नाम सेठ रामचरण गुप्त था। इनकी माता का नाम काशीबाई था।
A5. काव्य ग्रंथों में भारत भारती (1912), रंग में भंग (1909), जयद्रथ वध, पंचवटी, झंकार, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जय भारत, विष्णु प्रिया आदि इनकी रचनाएं हैं।
A6. मैथिलीशरण गुप्त की जयंती हर साल 3 अगस्त को मनाई जाती है। मैथिलीशरण गुप्त की जयंती को कवि दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिवस के जरिए देश के सभी कवियों और लेखकों को प्रोत्साहित किया जाता है।
A7. मैथिलीशरण गुप्त के गुरु का नाम आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी था। वह एक महान कवि और लेखक थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में खूब कविताएं लिखी। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ही मैथिलीशरण गुप्त को लिखने की प्रेरणा दी थी। मैथिलीशरण गुप्त ने हालांकि बचपन से ही लिखना शुरू कर दिया था पर उनको लिखने की असली प्रेरणा आचार्य महावीर प्रसाद से ही मिली।
A8. मैथिलीशरण गुप्त की पहली पुस्तक का नाम रंग में भंग था।
A9. मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि का दर्जा महात्मा गाँधी ने दिया था।
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