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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi)

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Ekta Ranga

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi)- आध्यात्मिकता का जो असली आनंद है वह भारत के अलावा कोई और जगह देखने को कहीं नहीं मिलेगा। भारत देश की अपनी अलग ही बात है। यहां पर अनेक ऋषि मुनियों ने जन्म लिया और अपना जीवन सफल किया। सभी के अच्छे उपदेशों का हम आज भी अनुसरण करते हैं। आध्यात्मिकता का अर्थ है स्वयं की खोज करना। स्वयं की खोज करने में इंसान का पूरा जीवन बीत जाता है। हमें पता ही नहीं चल पाता है कि हम अपने जीवन में क्या कर रहे हैं। और हमारे इस जीवन में आने का उद्देश्य क्या है। आध्यात्म एकदम अलग ही चीज है।

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

मैंने कई महापुरुषों और राजनेताओं पर अनेक किताबें पढ़ी, पर एक किताब जिसने मुझे खूब प्रभावित किया वह थी स्वामी विवेकानंद जी की आत्मकथा। मैं जब वह किताब पढ़ रही थी तो ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मानो मैं खुद भी उनका जीवन जी रही हूँ। उनकी वह किताब पढ़ने से मुझे इतनी प्रेरणा मिली कि मैंने एक किताब भी लिख डाली। मेरी पुस्तक काशी का राही स्वामी विवेकानंद को समर्पित है। आज का हमारा टॉपिक स्वामी विवेकानंद (swami Vivekananda) पर आधारित है। तो आज हम पढ़ेंगे स्वामी विवेकानंद (swami vivekananda in hindi essay) पर निबंध हिंदी में।

प्रस्तावना

आत्मकथाओं की अपनी अलग ही बात होती है। एक ऐसी ही आत्मकथा से मेरा परिचय हुआ जिसको पढ़ने के बाद मेरा जीवन ही बदल गया। मैं बात कर रही हूं भारत के सबसे महान संत स्वामी विवेकानंद जी की। वह एक ऐसे संत थे जिन्होंने भारत में आध्यात्मिक ज्ञान का खूब प्रचार किया था। आज समस्त दुनिया उनकी आभारी है। तो आइए हम चलते हैं स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के सफर पर।

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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

विश्वनाथ दत्त को एक प्रसिद्ध वकील के तौर पर जाना जाता है। उनकी पत्नी का नाम था भुवनेश्वरी देवी। उनका जीवन हमेशा जैसे ही चल रहा था जब तक उनके घर पर एक सुंदर बालक ने जन्म नहीं लिया। 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में उस बच्चे का जन्म हुआ। बालक का नाम रखा गया नरेन्द्रनाथ दत्त। विश्वनाथ दत्त का बेटा नरेन्द्रनाथ। वह बालक बचपन में आपके और मेरी तरह ही शरारती हुआ करता था।

आगे चलकर उस बच्चे को पूरी दुनिया स्वामी विवेकानंद के नाम से जानने लगी। जी हां, स्वामी विवेकानंद। अब जैसे जैसे स्वामी विवेकानंद बड़े होने लगे, आध्यात्मिकता की जड़ें उनके दिल में मजबूत होती गई। आध्यात्मिकता का वरदान उनको अपनी माता की तरफ से मिला था। उनकी माता भगवान की सच्ची भक्त थी। बचपन से ही वह देवी देवताओं की कहानियों को पूरा मन लगाकर सुनते थे।

स्वामी विवेकानंद की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और कॉलेज से हुई। एक विद्यार्थी के तौर पर वह बहुत कुशाग्र बुद्धि वाले बालक थे। उनकी कई देशी और विदेशी भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी। फिर एक दिन उनके घर में एक भूचाल आया कि सब कुछ बर्बाद हो गया। दरअसल 1884 उनके पिता विश्वनाथ दत्त का आकस्मिक निधन हो गया। चूंकि स्वामी विवेकानंद अपने घर में बड़े थे इसलिए अपनी माँ और सारे भाई बहन की जिम्मेदारी अब उन पर आ गई थी।

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स्वामी विवेकानंद का रामकृष्ण परमहंस से मिलन

अपने पिता की मत्यु के पश्चात विवेकानंद काफी उखड़े उखड़े से रहने लगे। वह नौकरी पाने की लालसा में इधर से उधर भटकते रहे। बहुत दिनों तक उन्होंने अच्छी नौकरी पाने की लालसा में दिन रात भागदौड़ की। फिर जब उनको सफलता की जगह निराशा हाथ लगी तो वह बिखर गए। सोचने लगे कि उनके घर का खर्चा अब कैसे चलेगा। वह भगवान के अस्तित्व पर ही प्रश्न करने लगे।

जो इंसान भगवान के प्रति इतनी गहरी आस्था रखता था अब वह नास्तिक कैसे होने लगा। स्वामी विवेकानंद के एक रिश्तेदार रामचंद्र दत्त को विवेकानंद का रवैया अजीब लगा। वह विवेकानंद को गलत रास्ते पर नहीं ले जाना चाहते थे। इसलिए रामचंद्र दत्त विवेकानंद को एक सही मार्ग पर ले गए। वह विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस के पास ले गए। जैसे ही विवेकानंद दक्षिणेश्वर पहुंचे उनकी दुनिया ही बदल गई। रामकृष्ण परमहंस से मिलने के बाद स्वामी विवेकानंद के जीवन की दिशा ही बदल गई।

स्वामी विवेकानंद के जीवन से हम क्या सीख सकते हैं?

1) जीवन में विनम्रता रखें- स्वामी विवेकानंद जी का जीवन हमें यही सीख देता है कि हम अपने जीवन में सदा विनम्रता को उच्च स्थान दे। विनम्रता से हम मुश्किल से मुश्किल घड़ी को भी पार करके हम जीत हासिल कर सकते हैं।

2) जीवन में हमेशा जिज्ञासा बनाए रखो- विवेकानंद जी के जीवन से हमें एक प्रसिद्ध कहानी मिलती है। उस कहानी के अनुसार विवेकानंद को हमेशा मन में एक प्रश्न उठता था कि क्या भगवान सच में होते हैं? अगर होते हैं तो हमें दिखते क्यों नहीं। इसी प्रश्न की जिज्ञासा ने उन्हें रामकृष्ण परमहंस के चरणों में पहुंचाया। और वहां जाते ही उन्हें उनके सारे प्रश्नों का उत्तर मिल गया। हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में जिज्ञासा बनाई रखनी जरूरी है। इससे हमें कई नई चीजों को जानने का मौका मिलेगा।

3) दयालुता बनाए रखना बहुत जरूरी है- हमें अपने जीवन में दया भाव रखना बहुत जरूरी है। इस गुण के बगैर हम किसी भी चीज को हासिल नहीं कर सकते हैं। दया के बगैर हमारा जीवन सफल नहीं माना जाता है।

4) ईश्वर पर विश्वास रखना बेहद महत्वपूर्ण है- हम मानव सोचते हैं कि हम मानव इस दुनिया में सब कुछ हासिल कर सकते हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस दुनिया में सब कुछ ईश्वर की बदौलत से ही हो रहा है। भले ही आप नियमित रूप से मंदिर ना जाओ पर आपको भगवान के प्रति आस्था रखना बेहद जरूरी है।

5) अपने संस्कारों को कभी ना भूले- आज हम सभी भारतीय अपनी संस्कृति की वजह से ही उन्नति कर रहे हैं। अगर हम अपने संस्कारों को ही भूल जाए तो यह हमारे पतन का कारण बन सकता है। यह हमारा दायित्व बनता है कि हम अपनी संस्कृति को सहेजकर रखें।

स्वामी विवेकानंद का राष्ट्र के प्रति योगदान

स्वामी विवेकानंद भारत के एक प्रसिद्ध विचारक और आध्यात्मिक गुरु थे। वह भारत को लेकर बेहद जागरूक थे। वह अपने देश से खूब प्रेम करते थे। वह अपने देश के नौजवानों को ऊंचा उठता देखना चाहते थे। वह चाहते थे कि उनका देश हर तरह से तरक्की करे। उनके राष्ट्र के प्रति प्रेम ने उन्हें यह शक्ति दी कि वह हर दिन अपना जीवन देश के प्रति ही समर्पित कर दे। उनके इसी राष्ट्र प्रेम ने उन्हें समाज के लिए कुछ बड़ा करने को प्रेरित किया। रामकृष्ण मिशन इसी प्रेम और प्रेरणा की ही उपज है।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

रामकृष्ण मिशन को विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस को समर्पित करते हुए बनाया था। रामकृष्ण परमहंस एक सच्चे गुरु थे। विवेकानंद ने इसी आश्रम के साथ साथ अनाथ बच्चों के लिए हॉस्पिटल और स्कूल आदि का निर्माण किया। वह सभी के लिए कुछ ना कुछ खास किया करते थे। उन्होंने ही हिंदू धर्म का ज्ञान पूरी दुनिया भर में फैलाया था। विवेकानंद भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना चाहते थे और उन्होंने ऐसा ही किया। उन्होंने भारत के धर्म का ज्ञान पूरे देश-विदेश में फैलाया। वह समाज में कोई भी तरह का भेदभाव नहीं देखना चाहते थे। वह समाज से कुरीतियों को पूर्ण रूप से उखाड़ना चाहते थे।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार

1) मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है।

2) खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।

3) मौन, क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है।

4) चिंतन करो, चिंता नहीं; नए विचारों को जन्म दो।

5) ज्ञान का प्रकाश सभी अंधेरों को खत्म कर देता है।

6) भय और अपूर्ण वासना ही समस्त दुःखों का मूल है।

7) समस्त प्रकृति आत्मा के लिए है, आत्मा प्रकृति के लिए नहीं।

8) सत्य को स्वीकार करना जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है।

9) आकांक्षा, अज्ञानता और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं।

10) हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।

11) हिन्दू संस्कृति आध्यात्मिकता की अमर आधारशिला पर स्थित है।

12) अगर स्वाद की इंद्रिय को ढील दी, तो सभी इन्द्रियां बेलगाम दौड़ेगी।

13) मध्य युग में चोर डाकू अधिक थे अब छल कपट करने वाले अधिक है।

14) अनुभव ही आपका सर्वोत्तम शिक्षक है। जब तक जीवन है सीखते रहो।

15) जब तक जीना, तब तक सीखना, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।

16) उठो, जागो और जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये तब तक मत रुको।

17) जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है।

18) संभव की सीमा जानने का एक ही तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना।

19) अगर धन दुसरो की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा ये सिर्फ बुरे का एक ढेर है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।

20) जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है, शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक। उसे जहर की तरह त्याग दो।

स्वामी विवेकानंद की कृतियां

1) संगीत कल्पतरु

2) कर्म योग

3) राज योग

4) वर्तमान भारत

5) ज्ञान योग

6) भक्ति योग

7) वेदांत : वॉयस ऑफ फ्रीडम

8) कोलंबो से अल्मोड़ा तक व्याख्यान

9) भगवद गीता पर व्याख्यान

10) स्वामी विवेकानंद के पत्र

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद को पूरी दुनिया में अपने शानदार भाषण के लिए जाना जाता था। वह बहुत ही प्रभावशाली विचारों को व्यक्त करते थे। अपने पूरे जीवनकाल में उन्होंने अनेकों भाषण दिए। पर एक भाषण उन्होंने ऐसा भी दिया जिसके लिए वह दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गए। दरअसल विवेकानंद ने शिकागो में बहुत ही प्यारा सा भाषण दिया था। 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण दिया था। इस भाषण को शुरु करने से पहले उन्होंने ‘मेरे प्रिय भाइयों और बहनों’ कहा था। अपने इस भाषण के जरिए उन्होंने भारत के सकारात्मक पक्ष के बारे में बात की। उन्होंने यह भी बताया कि भारत कैसे इतना प्राचीन देश है और कैसे इस देश ने आज तक अपनी संस्कृति को सहेजकर रखा है।

स्वामी विवेकानंद के जीवन की सच्ची कहानी

एक बार की बात है। विवेकानन्द किसी समारोह के उद्देश्य से विदेश गए हुए थे। वहां बहुत से विदेशी लोग आये हुए थे। उसी विदेशी ग्रुप में एक विदेशी महिला भी थी जो विवेकानंद से बहुत ही प्रभावित थी।

उसने विवेकानन्द के पास आकर कहा- स्वामी विवेकानन्द, मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ। विवाह के पश्चात मैं चाहती हूं कि मुझे आपके जैसा गौरवशाली पुत्र प्राप्त हो।

इसपर स्वामी विवेकानन्द बोले कि क्या आप नहीं जानती कि “मै एक सन्यासी हूँ ?” और यही कारण है कि मैं आपसे विवाह नहीं कर सकता हूँ। यदि आप चाहो तो आप मुझे अपना पुत्र जरूर बना सकती हो। ऐसा होने पर मैं संन्यासी ही रहूँगा। और आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा। यह बात सुनते ही वह विदेशी महिला स्वामी विवेकानन्द के चरणों में गिर पड़ी और बोली कि आप धन्य है। आप सचमुच ईश्वर के समान है! आपके कथन से यह पता चल गया कि किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं हो सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद की कविता

काली माता

छिप गए तारे गगन के,
बादलों पर चढ़े बादल,
काँपकर घहरा अँधेरा,
गरजते तूफ़ान में,
शतलक्ष पागल प्राण छूटे
जल्‍द कारागार से – द्रुम
जड़ समेत उखाड़कर, हर
बला पथ की साफ़ करके।

शोर से आ मिला सागर,
शिखर लहरों के पलटते
उठ रहे हैं कृष्‍ण नभ का
स्‍पर्श करने के लिए द्रुत,
किरण जैसे अमंगल की
हर तरफ से खोलती है
मृत्‍यु-छायाएँ सहस्‍त्रों,
देहवाली धनी काली।

आधि-व्‍याधि बिखेरती, ऐ
नाचती पागल हुलसकर
आ, जननि, आ जननि आ, आ!
नाम है आतंक तेरा
मृत्‍यु तेरे श्‍वास में है,
चरण उठकर सर्वदा को
विश्‍व एक मिटा रहा है,
समय तू है सर्वनाशिनि,
आ, जननि, आ, जननि, आ, आ!
साहसी, जो चाहता है
दु:ख, मिल जाना मरण से,
नाश की गति नाचता है,
माँ उसी के पास आई।

निष्कर्ष

तो आज हमने स्वामी विवेकानंद के जीवन पर निबंध पढ़ा। हम यह उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह निबंध जरूर पसंद आया होगा।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 150 शब्दों में

भारत सच में महान पुरुषों की धरती रही है। ऐसे ही एक महापुरुष ने इस धरती पर जन्म लिया था। उसका नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। इस बालक का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। वह हमारे जैसा ही एक साधारण सा बालक था। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था। हम यहां बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद की। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम श्री विश्वनाथ और मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

विवेकानंद भारत के महान संत माने जाते हैं। उनके भाषण भी जबरदस्त हुआ करते थे। उनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। रामकृष्ण परमहंस भी एक महान संत के रूप में जाने जाते हैं। स्वामी विवेकानंद को महान विचारक भी माना जाता है। उनको जीवन का असली ज्ञान अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिला। उन्होंने ज्ञान के प्रचार प्रसार हेतु पूरे विश्व का भ्रमण किया।

स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन

1 ) स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था।

2 ) स्वामी विवेकानंद एक महान विचारक और संत थे।

3 ) स्वामी विवेकानंद बचपन से ही भगवान और आध्यात्म के प्रति रुचि रखने लगे थे।

4 ) स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

5 ) स्वामी विवेकानंद के पिता अंग्रेजी सरकार में एक अच्छे वकील थे।

6 ) विवेकानंद शिक्षा को लेकर बहुत ज्यादा जागरूक थे।

7 ) विवेकानंद जी की शिक्षा के चलते दुनियाभर के लोगों का नजरिया ही बदल गया।

8 ) सहिष्णुता और सार्वभौमिकता पर विवेकानंद खुलकर बोलते थे।

9 ) स्वामी विवेकानंद को जीवन का असली ज्ञान देने वाले उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे।

10 ) रामकृष्ण परमहंस से मिलने के बाद उनके जीवन का रास्ता ही बदल गया था।

स्वामी विवेकानंद पर FAQs

Q1. स्वामी विवेकानंद पर निबंध कैसे लिखे?

A1. भारत की धरती पर एक महापुरुष ने जन्म लिया था। उसका नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। इस बालक का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। वह हमारे जैसा ही एक साधारण सा बालक था। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था। हम यहां बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद की। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम श्री विश्वनाथ और मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

Q2. स्वामी विवेकानंद ने कौन सा नारा दिया था?

A2. ऐसे तो स्वामी विवेकानंद ने कई नारे दिए थे। पर एक नारा बहुत प्रसिद्ध हो गया था- उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते।

Q3. स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे?

A3. स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे। रामकृष्ण परमहंस महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के जीवन को एक नई दिशा दी थी।

Q4. स्वामी विवेकानंद का सबसे बड़ा मंत्र क्या है?

A4. एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। यह मंत्र स्वामी विवेकानंद का सबसे बड़ा मंत्र था।

Q5. स्वामी विवेकानंद के प्रमुख कार्य कौन से थे?

A5. स्वामी विवेकानंद के प्रमुख कार्य थे- गरीबों की हर प्रकार से सहायता, दूसरी वेदान्त और स्वामी रामकृष्ण की शिक्षाओं का प्रभावशाली ढंग से प्रचार तथा अन्तिम जनकल्याण के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना।

Q6. क्या विवेकानंद भगवान को मानते थे?

A6. जी हां, विवेकानंद भगवान को सच्चे मन से मानते थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति के थे। भगवान को लेकर उनकी पूरी आस्था थी।

Q7. स्वामी विवेकानंद का देहांत कब हुआ?

A7. स्वामी विवेकानंद का देहांत चार जुलाई 1902 को हार्ट अटैक के चलते हो गया था। उस समय उनकी आयु मात्र 39 साल ही थी।

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