स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Biography In Hindi)- अगर आप आध्यामिकता की खोज में निकल पड़े हैं और इसे प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह केवल आपको भारत देश में ही प्राप्त होगी। ऐसा केवल मैं नहीं कह रही बल्कि पूरी दुनिया इस बात को मानती है। भारत देश और आध्यात्मिकता का हमेशा से ही एक अनोखा संबंध रहा है। यह वही देश है जिसकी धरती पर अनेकों महात्मा और गुरुओं ने जन्म लिया। चाहे आदि शंकराचार्य की बात करें या फिर गुरु नानक की। सभी ने भारत देश को एक अलग मुकाम पर पहुंचाया। इन्हीं संतों के चलते ही हमारे देश में भक्ति-भाव और प्रेम का प्रसार हुआ। आज का हमारा विषय ऐसे ही एक महान व्यक्ति के जीवन पर आधारित है। तो आइए हम स्वामी विवेकानंद की जीवनी को पढ़ना शुरू करते हैं।
स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Biography Of Swami Vivekanand In Hindi)
“उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” यह कथन हर किसी के लिए लागू होता है। इंसान को अपने जीवन का असली लक्ष्य कभी भी नहीं भूलना चाहिए। एक मनुष्य का असली लक्ष्य है कर्मयोगी की तरह कर्मयोग में लगे रहना। यही कहना था भारत के महान संत स्वामी विवेकानंद का। स्वामी विवेकानंद ने ही राह से भटके नौजवानों को सही राह दिखाई। रामकृष्ण परमहंस ने ही विवेकानंद को अध्यात्म की उचित शिक्षा दी थी। रामकृष्ण परमहंस की इसी शिक्षा ने ही स्वामी विवेकानंद को वेदान्त का महान गुरु बना दिया। भौतिकवाद की इस दुनिया में ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है जब कोई युवा सांसारिकता को छोड़कर अध्यात्म की ओर अग्रसर हो जाता है। तो आज हम स्वामी विवेकानंद की जीवनी के बारे में (Swami Vivekanand Ka Jeevan Parichay) हिंदी में जानेंगे।
Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay
कलकत्ता में विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी का जीवन बड़े ही आराम से कट रहा था। विश्वनाथ दत्त ने एक प्रसिद्ध वकील के तौर पर समाज में अपना रुतबा कायम कर रखा था। भुवनेश्वरी देवी भी बड़ी ही सुशील और संस्कारी गृहिणी थी। भुवनेश्वरी देवी की खुशी दोगुनी हो गई थी जब उसे पता चला कि वह मां बनने वाली थी। पूरे घर में खुशियां छाई हुई थीं। नौ महीने कब बीत गए यह पता ही ना चला। 12 जनवरी 1863 को भुवनेश्वरी देवी ने एक बहुत ही सुंदर बालक को जन्म दिया। विश्वनाथ दत्त को अपने बेटे को गोद में लेकर गर्व का अनुभव हो रहा था। उस सुंदर बालक का नाम वीरेश्वर रखा गया। यहां बात हो रही है स्वामी विवेकानंद की।
जन्म | 12 जनवरी 1863 |
जन्म स्थान | कलकत्ता, भारत |
बचपन का नाम | नरेंद्र नाथ दत्त |
पिता | विश्वनाथ दत्त |
माता | भुवनेश्वरी देवी |
शिक्षा | कलकत्ता मेट्रोपॉलिटन स्कूल; प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता |
साहित्यिक कृतियाँ | लेक्चर्स फ्रॉम कोलंबो टू अल्मोडा (1897), कर्म योग (1896), भक्ति योग (1896), राज योग आदि। |
गुरु | रामकृष्ण परमहंस |
संस्थापक | रामकृष्ण मिशन (1897), रामकृष्ण मठ |
धर्म | हिंदू |
दर्शन | अद्वैत वेदांत |
प्रसिद्ध उद्धरण | उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए। |
मृत्यु | 4 जुलाई, 1902 |
स्मारक | बेलूर मठ |
स्वामी विवेकानंद का बचपन
स्वामी विवेकानंद का बचपन उतार-चढ़ाव के साथ गुजरा। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनका परिवार कायस्थ जाति से संबंध रखता था। उनका परिवार भी भरा-पूरा था। अर्थात स्वामी विवेकानंद को मिलाकर कुल आठ भाई-बहन और थे। क्योंकि विवेकानंद के पिता एक प्रतिष्ठित वकील थे, इसलिए घर में किसी भी प्रकार का अभाव नहीं था। स्वामी विवेकानंद के माता-पिता ने बचपन में उनका नाम वीरेश्वर रखा था। लेकिन थोड़े ही समय बाद में स्वामी विवेकानंद नरेंद्र दत्त के नाम से पुकारे जाने लगे।
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नरेंद्र दत्त के जो दादाजी थे वह तो भगवान भक्ति में इतने लीन हुए कि एक दिन उन्होंने यह तय कर लिया कि वह वैराग्य ले लेंगे। नरेंद्र दत्त को अपने घर में भक्ति भाव और अध्यात्म देखने को मिला। नरेंद्र दत्त की माता को भी ईश्वर की भक्ति में लीन रहना ही अच्छा लगता था। इस प्रकार से नरेंद्र दत्त के मन पर भक्ति भाव और अध्यात्म ने अमिट छाप छोड़ी। ऐसा नहीं है कि बालक नरेंद्र सिर्फ भक्ति भाव में लगता था। दूसरे बच्चों की ही तरह नरेंद्र भी खूब उछलकूद करता था। नरेंद्र को तर्क वितर्क करना भी बहुत अच्छा लगता था। नरेंद्र ऐसे-ऐसे सवाल पूछता कि बहुत बार उसके पिता यहां तक कि उसके दोस्त भी हैरानी में पड़ जाते थे।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा
पढ़ाई के लिहाज से स्वामी विवेकानंद एक अच्छे और आदर्श विद्यार्थी थे। स्वामी विवेकानंद के मन में हमेशा हर चीज को लेकर कौतुहल भरा रहता था। जब स्वामी विवेकानंद आठ साल के हुए तो उनके पिताजी ने उनका दाखिला ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में करवा दिया। वर्ष 1879 में उनको प्रेसीडेंसी कॉलेज में जगह मिली। फिर वर्ष 1884 आते-आते वह कला में ग्रेजुएट भी हो गए। पश्चिम दार्शनिकों के अध्ययन में भी स्वामी विवेकानंद को बहुत ज्यादा रूचि थी। स्वामी विवेकानंद ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा को भी हासिल किया था। स्वामी विवेकानंद को अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में कुशाग्र बुद्धि के लिए जाना जाता था। स्वामी विवेकानंद के शिक्षक उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के कायल थे। आध्यात्मिकता और पश्चिम दार्शनिकों के विचारों को एक साथ लेकर चलना आसान नहीं है। लेकिन विवेकानंद ने इसे सच साबित कर दिया।
स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस का संबंध
हर किसी के जीवन में गुरु का बहुत बड़ा योगदान रहता है। आज जितने भी बड़े से बड़े दिग्गज हैं उन सभी ने अपने गुरुजन से शिक्षा हासिल करके यह मुकाम हासिल किया। क्या कौरव और पाडंव गुरु द्रोणाचार्य की शिक्षा के बिना महान बन पाते। बिल्कुल भी नहीं। स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस का संबंध भी कुछ ऐसा ही था। रामकृष्ण परमहंस एक महान संत थे। अब हम जानते हैं कि आखिर स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य कैसे बने। अगर दोनों की पहली मुलाकात की बात करें तो उन दोनों कि भेंट सबसे पहले दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में हुई थी। उन दिनों स्वामी विवेकानंद बहुत परेशानियों से गुजर रहे थे। उनके पिताजी की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी। और विवेकानंद को नौकरी भी नहीं मिल रही थी। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के नाम से थोड़ा बहुत परिचित थे। लेकिन जैसे ही वह रामकृष्ण परमहंस से मिले मानो जैसे उनकी सारी परेशानियां जड़ से ही खत्म हो गईं। रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद के जीवन को एक नई दिशा दे दी।
स्वामी विवेकानंद की भारत यात्रा
स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन में कई बार विश्व भ्रमण किया था। लेकिन उनके लिए भारत भ्रमण कुछ अलग ही था। अपने भारत भ्रमण के दौरान विवेकानंद ने कई राज्यों के शहरों को एकदम करीब से महसूस किया। चाहे बनारस की गलियां हो, अयोध्या हो या फिर कन्याकुमारी। इन सभी शहरों में उनको अलग-अलग किस्से और कहानियां जानने को मिलीं। उन्होंने देखा कि कहीं लोग हद से ज्यादा अमीर हैं तो कहीं पर लोग बहुत ज्यादा गरीब। उन्होंने समाज में फैले भेदभाव को एकदम करीब से देखा। वह गरीब और असहाय लोगों की हालत देखकर अंदर से बिल्कुल टूट चुके थे। उन्होंने यह तय किया कि वह समाज में फैली कुरीतियों को मिटाकर रहेंगे। यही एक बड़ा कारण था कि उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
स्वामी विवेकानंद के अंतिम दिन और मृत्यु
स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवनकाल में बहुत कुछ हासिल किया। वह पूरे विश्व को अपना ही मानते थे। वह किसी से भी भेदभाव नहीं करते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों के कल्याण में ही खर्च कर दिया। विश्व के कल्याण के बीच वह अपने आप को कहीं भूल बैठे थे। लोकजन की चिंता ने उन्हें बीमार कर दिया था। उन्हें अनेक बीमारियों ने जकड़ लिया था। आखिरकार 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद ने आखिरी सांस ली थी।
स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार
(1) एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचें, सपना देखें और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े-बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।
(2) शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
(3) हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है, करना ये है कि हम इसकी दिव्यता को पहचाने अपने आप को अंदर या बाहर से सुधारकर। कर्म, पूजा, अंतर मन या जीवन दर्शन इनमें से किसी एक या सब से ऐसा किया जा सकता है और फिर अपने आपको खोल दें। यही सभी धर्मो का सारांश है। मंदिर, परंपराएं, किताबें या पढ़ाई ये सब इससे कम महत्वपूर्ण है।
(4) उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
(5) एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
(6) बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
(7) पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
(8) विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
(9) हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
(10) खुद को कमजोर समझा सबसे बड़ा पाप है।
FAQs
उत्तर- स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता शहर में हुआ था।
उत्तर- स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।
उत्तर- स्वामी विवेकानंद के गुरू का नाम रामकृष्ण परमहंस था।
उत्तर- स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1983 में शिकागो में भाषण दिया था।
उत्तर- स्वामी विवेकानंद की याद में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।
उत्तर- राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, माई मास्टर।
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