रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध (Rabindranath Tagore Essay In Hindi)- कविताओं और कहानियों में कुछ तो ऐसा होता है जो वह पाठकों को अपनी ओर खींचे रखती हैं। कभी-कभी कहानी और कविताओं को पढ़ते वक्त ऐसा मालूम होता है जैसे कि हम अपनी ही कोई आत्मकथा पढ़ रहे हों। पढ़ते वक़्त हम कविताओं में कहीं खो से जाते हैं। बचपन से मुझे भी कविताएँ पढ़ने का बहुत शौक है। विदेशी कवियों से ज्यादा मुझे भारतीय कवि और लेखकों से ज्यादा लगाव रहा है। आप अगर सभी पुराने कवियों की कविताओं को पढ़ेंगे तो आप भी इनके मुरीद हो जाएंगे।
रवींद्रनाथ टैगोर (Essay On Rabindranath Tagore In Hindi)
आज के दौर में हर तरफ इंटरनेट का बोलबाला है। इंटरनेट के माध्यम से आज हमें दुनिया की सारी खबर मिल जाती है। इंटरनेट के चलते किताबों का प्रेम भी कहीं खो सा गया है। लेकिन यह पहले नहीं था। एक समय ऐसा भी था जब पूरे देश में कवियों ने देशभक्ति के जज़्बात को जगा दिया था। यहां बात हो रही है स्वतंत्रता संग्राम के समय की। उस समय पूरे देश के कवियों और लेखकों ने देशभक्ति की ऐसी लहर जगाई कि अंग्रेज़ी सरकार भी हिल उठी थी। श्रीधर पाठक, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त, रवींद्रनाथ टैगोर आदि उस समय के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। रवींद्रनाथ टैगोर अपने समय के महान कवि और लेखक थे। टैगोर ने अपने जीवनकाल में अनेकों रचनाएँ कीं। उनको नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया था। तो हमारा आज का विषय रवींद्रनाथ टैगोर पर आधारित है।
रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध
इस पोस्ट में हमने रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध एकदम सरल, सहज और स्पष्ट भाषा में लिखने का प्रयास किया है। रवींद्रनाथ टैगोर पर निबंध के माध्यम से आप जान पाएंगे कि रवींद्रनाथ टैगोर कौन थे, रवींद्रनाथ टैगोर ने देश की स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में अपना योगदान किस प्रकार दिया, उनकी रचनाएं कौन-कौन सी हैं, उन्हें कितने पुरस्कार मिले हैं आदि। तो आइए हम टैगोर के जीवन पर आधारित निबंध पढ़ते हैं।
प्रस्तावना
जन मन गण हमारे देश का राष्ट्रगान है। जब यह राष्ट्रगान कहीं पर भी बजता है तो हमारे मन के अंदर एक अलग सी तरंग दौड़ उठती है। यह तरंग होती है देशभक्ति की। राष्ट्रगान हर एक नागरिक के लिए खास होता है। इससे हमारी पहचान जुड़ी होती है। क्या आप सभी को पता है कि हमारा यह राष्टगान किसने लिखा है। इसे लिखने का श्रेय रवींद्रनाथ टैगोर को जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर एक महान कवि और लेखक थे। उनको हम एक सच्चा देश प्रेमी कह सकते हैं।
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इनकी कविताओं और कहानियों को हम आज भी पढ़ते हैं। रवींद्रनाथ टैगोर को भारत का एक सच्चा देशभक्त भी कहा जा सकता है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने भारत को एक नई पहचान दी। वह देश को हर क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे। वह चाहते थे कि भारत भी विकसित देशों की तरह प्रगति करे। रवींद्रनाथ टैगोर का असली नाम रवींद्रनाथ ठाकुर था। अंग्रेज उनको ठाकुर से टैगोर कहकर बुलाने लगे। आज भी पूरी दुनिया इस महान रत्न को याद करती है।
नाम | रवींद्रनाथ टैगोर |
वास्तविक नाम | रवींद्रनाथ ठाकुर |
जन्म | 7 मई 1861, कोलकाता, पश्चिम बंगाल (ब्रिटिश भारत) |
पिता | देबेंद्रनाथ ठाकुर |
माता | शारदा देवी |
शिक्षा | वकालत की पढ़ाई |
स्कूल का नाम | स्कूल सेंट जेवियर |
विश्वविद्यालय का नाम | यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन |
विवाह का वर्ष | 9 दिसंबर,1883 |
पत्नी का नाम | मृणालिनी देवी |
भाषा का ज्ञान | बंगाली, अंग्रेजी |
अंग्रेजों द्वारा दिया गया सर्वोच्च सम्मान | नाइटहुड |
किसके लिए नोबेल पुरस्कार मिला | गीतांजलि |
पेशा | कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार |
नागरिकता | भारतीय |
घर का नाम | जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी |
बचपन का नाम | रबी |
मृत्यु | 7 अगस्त 1941, कलकत्ता (भारत) |
रवींद्रनाथ टैगोर का बचपन
कोलकाता अपनी खूबसूरत संस्कृति के लिए जाना जाता है। कोलकाता को लोग अनेक कारणों से जानते हैं। इसी खूबसूरत से शहर में जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी भी हुआ करती थी। यह ठाकुरबाड़ी ठाकुरों की प्यारी सी हवेली थी। इस हवेली के मालिक का नाम देवेंद्रनाथ ठाकुर था। इनकी पत्नी शारदा देवी थी। देवेंद्रनाथ के पास खूब पैसा था। ठाकुरबाड़ी में बच्चों की रौनक थी। शारदा देवी अपने अंतिम बच्चे को जन्म देने वाली थी। इंतज़ार की घड़ियां खत्म हुईं और 7 मई 1861 का वह दिन था जब देवेंद्रनाथ के घर एक बालक ने जन्म लिया।
बच्चे को प्यार में रबी नाम दे दिया गया। जब वह बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तो उसका नाम रखा गया रवींद्रनाथ। वह कुशाग्र बुद्धि का बालक था। रवींद्रनाथ के परिजनों ने उसे स्कूल भेजने की बजाय घर पर ही शिक्षा दिलवाना उचित समझा। रवींद्रनाथ को पढ़ाने के लिए शिक्षक आते थे। रवींद्रनाथ को बचपन से ही किताबों से मानो गहरा लगाव सा हो गया था। आठ साल की उम्र में कोई भी गहनता के साथ कविता नहीं लिख सकता। लेकिन रवींद्रनाथ ने यह कारनामा कर दिखाया। जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तब जाकर उसे स्कूल भेजा गया। उसे बचपन से ही साहित्य से लगाव हो गया था। रवींद्र के लिए दुख की घड़ी तब आई जब उसने 14 वर्ष की उम्र में अपनी माता को खो दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर की शिक्षा
रवींद्रनाथ टैगोर की बचपन में शिक्षा घर पर ही प्रबंध की गई थी। फिर जब रवींद्र थोड़ा बड़ा हुआ तो उसका दाखिला सेंट ज़ेवियर नाम के स्कूल में करवाया गया। फिर बाद में जब रवींद्र की स्कूली शिक्षा पूरी हुई तो उसके पिता ने सोचा कि क्यों ना अब उसका दाखिला कॉलेज में करवा दिया जाए। उसके पिता ने सबसे पूछा कि रवींद्र को आगे क्या पढ़ाया जाए। तो सभी ने रवींद्र के पिता को यह सुझाव दिया कि उसे भी बैरिस्टर बनाया जाए।
रवींद्र के पिता ने उसे बड़ा वकील बनाने की चाह में इंग्लैंड के विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए भेज दिया। रवींद्र ने बैरिस्टर की पढ़ाई को अधूरी ही छोड़कर दुबारा भारत वापसी कर ली। उसका इंग्लैंड में मन ही नहीं लगा। देशप्रेम उसे वापिस भारत ले आया। रवींद्र को बैरिस्टर के रूप में नहीं बल्कि एक लेखक के रूप में अपना पेशा अपनाना था। सन् 1880 में भारत लौटने के बाद रवींद्र ने कभी भी विदेश जाने का नहीं सोचा। उसने कई भाषाओं पर अपनी अच्छी पकड़ बना ली थी।
रवींद्रनाथ टैगोर का विवाह
रवींद्रनाथ टैगोर इंग्लैंड से अपनी बैरिस्टर की पढ़ाई अधूरी छोड़कर भारत आए तो उधर से उनके लिए रिश्ते आने लगे। लोगों को यही लग रहा था कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करके लौटे हैं। वह अब सुंदर युवा में बदल गए थे। उनके लिए रिश्तों की कतार सी लग गई। फिर एक दिन मृणालिनी देवी का रिश्ता उनके लिए आया। मृणालिनी देवी और रवींद्रनाथ में उम्र का अंतर था। मृणालिनी देवी मात्र 10 साल की रही होंगी जब उनका रवींद्रनाथ के साथ विवाह हुआ था। वह काफी समझदार महिला थीं। रवींद्रनाथ को पत्नी के रूप में एक अच्छी दोस्त मिल गई थी। रवींद्रनाथ और मृणालिनी देवी के तीन बच्चे भी हुए। लेकिन शादी के कुछ समय पश्चात ही मृणालिनी देवी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर और स्वतंत्रता संग्राम
जिस समय भारत में स्वतंत्रता पाने के लिए जद्दोजहद लगी हुई थी, उस समय भारत के अनेक लेखकों ने भी इसमें बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इन्हीं कवियों और लेखकों में रवींद्रनाथ टैगोर भी शामिल थे। रवींद्रनाथ को अपने देश से अत्यंत प्रेम था। वह भी अन्य देशभक्तों की तरह देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए नहीं देखना चाहते थे। वह इतने ज्यादा स्वाभिमानी थे कि उन्होंने नाइटहुड की उपाधि भी ब्रिटिश सरकार को लौटा दी थी। इसके पीछे का कारण यही था कि इंग्लैंड ने जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया था। वह बिल्कुल भी नहीं चाहते थे कि वह अपने दुश्मन द्वारा भेंट किया गया कोई भी उपहार रखें।
रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाएं
काव्य संग्रह
(1) गीतांजलि
(2) मानसी
(3) सोनार तरी
(4) वलाका
(5) गीतिमाल्य, आदि
उपन्यास
(1) दो बहिने
(2) घरे बाइरें
(3) योगयोग
(4) नष्टनिड
(5) गोरा
(6) चोखार बाली
नाटक
(1) विसर्जन
(2) राजा
(3) रक्तकरवी
(4) मुक्तधार
(5) डाकघर
संस्मरण
(1) जीवनस्मृति
(2) रूस के पत्र
(3) छेलेबेलार
रवींद्रनाथ टैगोर को मिलने वाले पुरस्कार
(1) रवींद्रनाथ टैगोर को सबसे पहला पुरस्कार उनकी रचना गीतांजलि के लिए मिला था। उनको सन् 1913 में ये नोबेल पुरस्कार मिला था।
(2) 20 दिसंबर, सन् 1915 को कलकत्ता विश्वविद्यालय से डाॅक्टर की उपाधि प्राप्त हुई।
(3) 3 जून, सन् 1915 को किंग जॉर्ज पंचम ने रवींद्रनाथ टैगोर को नाइटहुड पुरस्कार दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर की मृत्यु
रवींद्रनाथ टैगोर अर्थात रवींद्रनाथ ठाकुर भारत के एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में अनेकों कविताएं और कहानियां लिखीं। वह देश के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गए थे। 7 अगस्त, सन् 1941 को उन्होंने अंतिम सांस ली। और आखिरकार एक प्रतिभावान कलाकार इस दुनिया को अलविदा कह गया। आज वह इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वह सदा के लिए हमारे दिल में रहेंगे।
उपसंहार
रवींद्रनाथ टैगोर को हम महान कवि, लेखक और देशभक्त कह सकते हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में अनेकों रचनाओं का निर्माण किया। वह सभी रचानाओं को देश से जोड़कर लिखा करते थे। उन्होंने सदैव कुरीतियों की घोर निंदा की। हमें भी रवींद्रनाथ टैगोर की तरह अपने अंदर के सच्चे देशभक्त को जगाना जरूरी है।
रवींद्रनाथ टैगोर पर 100 शब्दों में निबंध
हम सभी के भीतर एक कलाकार छुपा होता है। हम सभी को पूरे दिन में अनेकों विचार आते हैं। किसी में कवि वाले गुण होते हैं तो किसी दूसरे में लेखक के। ऐसा ही एक लेखक हुआ करता था जिसने अपने साहित्य से पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लिया। हम बात कर रहे हैं रवींद्रनाथ ठाकुर की। उनका जन्म 7 मई सन् 1861, को कोलकाता में हुआ था। वह अमीर परिवार में जन्में थे। उन्होंने घर पर पढ़ाई को ज्यादा महत्व दिया। वह बहुत ही ज्यादा प्रतिभाशाली कवि थे। उनको अपने देश से बहुत अधिक प्रेम था। यह प्रेम इतना अधिक था कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार से मिले सारे पुरस्कार वापिस लौटा दिए थे। गीतांजलि जैसे काव्य संग्रह को रचने का श्रेय रवींद्रनाथ को ही जाता है। उन्हें आज भी भारत का महान कवि माना जाता है।
रवींद्रनाथ टैगोर पर 10 लाइनें
(1) रवींद्रनाथ टैगोर का असली नाम रवींद्रनाथ ठाकुर था।
(2) रवींद्रनाथ टैगोर एक महान कवि, लेखक और देशभक्त थे।
(3) उनकी कविताओं में देश प्रेम साफ झलकता था।
(4) रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई सन् 1861 को कोलकाता में हुआ था।
(5) उनके पिता का नाम देवेंद्रनाथ ठाकुर था और माता का नाम शारदा देवी था।
(6) रवींद्रनाथ टैगोर की पत्नी का नाम मृणालिनी देवी था।
(7) रवींद्रनाथ टैगोर को गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
(8) बचपन में रवींद्रनाथ को रबी नाम से पुकारा जाता था।
(9) हमारे देश का राष्ट्रगान जन गण मन को लिखने का श्रेय रवींद्रनाथ टैगोर को जाता है।
(10) 7 अगस्त सन् 1941 को इस महान कलाकार ने दुनिया को अलविदा कह दिया था।
FAQs
उत्तर- रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई सन् 1861 को कोलकाता में हुआ था।
उत्तर- रवींद्रनाथ टैगोर के पिता का नाम देवेंद्रनाथ टैगोर था। और उनकी माता का नाम शारदा देवी था।
उत्तर- (1) गीतांजलि (2) मानसी (3) सोनार तरी (4) वलाका (5) गीतिमाल्य आदि।
उत्तर- रवींद्रनाथ टैगोर जलियांवाला बाग हत्याकांड से इतने ज्यादा आहत हो गए थे कि उन्होंने नाइटहुड की उपाधि अंग्रेजी सरकार को दुबारा लौटा दी।
उत्तर- रवींद्रनाथ टैगोर को बंगाल का बार्ड नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर- जन मन गण के रचियता रवींद्रनाथ टैगोर थे। यह भारत का राष्ट्रीय गान है।
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