एक इंसान था आपके और मेरी तरह ही। गृहस्थी भी अच्छी चल रही थी उसकी। अपने घर परिवार से बहुत प्रेम करता था वो। और अमूमन हर किसी को अपना परिवार प्यारा होता है। उसकी पत्नी भी बड़ी सुशील और संस्कारी थी। यह प्यारा सा परिवार फल फूल रहा था। उन दंपति को एक बेटा भी हुआ लेकिन थोड़े ही वह बच्चा स्वर्ग सिधार गया। इसी पुत्र वियोग में उस इंसान की पत्नी मायके चली गई। पीछे से वह इंसान भी अपनी पत्नी को ढूंढते हुए वहां चला आया। फिर जो हुआ वह इतिहास में दर्ज हो गया।
अब तक तो आप सभी समझ गए होंगे कि हम यहां पर किसकी बात कर रहे हैं। यहां पर बात हो रही है तुलसीदास जी की। तुलसीदास को भला कौन नहीं जानता है। हम सब उनके नाम से भली भांति परिचित हैं। तुलसीदास जी की जीवन की कहानियां हम बचपन से ही पढ़ते आए हैं। स्कूल के दिनों में ही तुलसीदास की कविताओं और कहानियों से हमारा परिचय हो जाता है। भारत का कवियों से रिश्ता कुछ अलग और खास ही रहा है।
यूं तो हमारे देश में कई महान हस्तियों ने जन्म लिया है। लेकिन तुलसीदास जी की बात ही निराली है। उनका जीवन कई उतार चढ़ाव के साथ रहा है। कलियुग में होकर भी वह एक महान इंसान की तरह ही थे। भगवान को लेकर उनका प्रेम असीम था। रामचरितमानस जैसे महाकाव्य से भला कौन परिचित नहीं होगा। आज तुलसीदास जी की मेहनत और दृढ़शक्ति की वजह से ही हम रामायण को पढ़ सकते हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में खूब सारी रचनाएं की। उनका जीवन हम सभी युवा पीढ़ी के लिए आदर्श के समान है।
तुलसीदास जी का जन्म
महान कवि तुलसीदास का जन्म 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) उत्तर प्रदेश के जिले कासगंज में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम शुक्ल दुबे था और उनकी माता का नाम हुलसी दुबे था। बहुत ऐसे लोग भी हैं जिनका मत यह है कि तुलसीदास का गृहनगर राजापुर जिले का चित्रकूट है। तुलसीदास को गोस्वामी, अभिनववाल्मीकि, इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
तुलसीदास जी का बचपन
कासगंज, उत्तर प्रदेश में आत्माराम शुक्ल दुबे और हुलसी दुबे के घर एक बालक ने जन्म लिया। उसका नाम रखा गया रामबोला। उनके इस अनोखे नाम के पीछे एक कहानी प्रसिद्ध है। दरअसल जब उन्होंने जन्म लिया तो उनके मुख से सबसे पहला शब्द राम ही निकला था।
एक और कहानी बहुत ही प्रचलित है। यह सभी को अच्छी तरह से पता है कि एक बच्चा अपनी माँ की कोख में 9 महीने तक रहता है। लेकिन क्या आपको पता है कि तुलसीदास तकरीबन 12 महीने तक अपनी माँ के गर्भ में रहे थे। एक और कहानी यह है कि तुलसीदास जी को जन्म के साथ ही 32 दाँतों की प्राप्ति हो गई थी।
एक नवजात शिशु के कभी भी दांत नहीं होते हैं। उनके बचपन के जीवन के बारे में सुनकर और पढ़कर कोई भी भावुक हो सकता है। दरअसल उनके पिता उनकी तरफ ध्यान नहीं धरते थे। उनकी माता उनसे बहुत प्रेम करती थी। लेकिन जैसे ही उनकी माता का देहांत हुआ, उनके पिता ने उनका पूर्ण रूप से परित्याग कर दिया। उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
तुलसीदास जी की शिक्षा
तुलसीदास जी के पिता ने तो उनका त्याग कर दिया था। लेकिन धन्य हो उनके गुरु श्रीनरहर्यानन्द जी का जिन्होंने उनका अच्छे से लालन-पालन किया। वह तुलसीदास जी को अपने आश्रम ले आए थे। उन्होंने कभी भी तुलसीदास जी को अकेला महसूस नहीं होने दिया। तुलसीदास जी को प्रारंभिक शिक्षा देने का श्रेय नर सिंह दास जी को जाता है।
श्रीनरहर्यानन्द जी ने तुलसीदास जी को सनातन धर्म, संस्कृत, व्याकरण, हिन्दू साहित्य, वेद दर्शन, छः वेदांग, ज्योतिष शास्त्र आदि में पूरी तरह से निपुण कर दिया था। वह अपने छात्र रूपी जीवन में काशी ही रहे थे। उन्होंने रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ पर भी अपनी अच्छी पकड़ बना ली थी। इन्हीं महाकाव्यों को वह लोगों को सुनाने भी लगे थे।
तुलसीदास जी के गुरु
तुलसीदास जी के गुरु श्रीनरहर्यानन्द जी थे। उन्होंने ही उनका लालन पालन किया। श्रीनरहर्यानन्द जी ने उनका नाम रामबोला से तुलसीदास रखा। उन्होंने तुलसीदास जी को जीवन में उचित मार्गदर्शन दिया। वह तुलसीदास जी के सच्चे मार्गदर्शक थे।
तुलसीदास जी का विवाह
अकेलेपन का दुख सबसे बड़ा दुख माना जाता है। तुलसीदास जी के साथ भी ऐसा ही हुआ। क्योंकि तुलसीदास जी के पिता ने उन्हें त्यागकर संन्यास ले लिया था इसीलिए तुलसीदास जी अकेले पड़ गए थे। हालांकि उनके गुरु ने उनका साथ कभी भी नहीं छोड़ा। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद तुलसीदास जी लोगों को राम कथा सुनाया करते थे। एक बार ऐसे ही वह हर दिन की ही तरह लोगों को राम कथा सुना रहे थे।
लोगों की उसी भीड़ में एक शख्स बैठा था जो तुलसीदास जी का भावी ससुर था। उनका नाम पंडित दीन बंधु पाठक था। उन्होंने तुलसीदास जी का विवाह अपनी बेटी रत्नावली का विवाह तुलसीदास जी के साथ कर दिया था। रत्नावली बेहद सुंदर थी। शादी के बाद तुलसीदास अपनी गृह गृहस्थी में पूरे रम गए थे। उनको शादी के बाद एक सुंदर बालक की प्राप्ति हुई। परंतु दुर्भाग्यवश उनके बेटे की मृत्यु कुछ समय पश्चात ही हो गई।
तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली अपने बेटे की मौत से इतना दुखी हो गई कि वह सदमे में चली गई। इस सदमे के चलते वह अपने पीहर रहने चली गई। जैसे ही तुलसीदास जी को यह ज्ञात हुआ कि उनकी पत्नी अपने मायके चली गई है तो वह दौड़े भागे रत्नावली को लेने चले गए। उनकी अपनी पत्नी के प्रति इतनी दीवानगी थी कि वह उफनती नदी को पार करते हुए अपने ससुराल पहुंच गए। क्योंकि रात बहुत अधिक हो गई थी इसलिए सब सो गए थे।
घर के दरवाजे भी बंद हो गए थे। तो ऐसी स्थिति में वह सांप को ही रस्सी समझकर रत्नावली के कमरे में पहुंच गए। रत्नावली तुलसीदास जी को देखकर चकित रह गई। उसने झट से तुलसीदास जी को कहा कि जितना मोह वह उससे रखते है उससे ज्यादा मोह अगर वह भगवान से रखने लगे तो वह हर प्रकार के सांसारिक बंधनों से छूट जाए।
यह सुनते ही तुलसीदास जी को अपनी गलती का एहसास हो गया। उस दिन उन्होंने प्रण लिया कि वह हर प्रकार की सांसारिक चीजों को त्याग देंगे। उस दिन के बाद उन्होंने जीवन भर के लिए एक संन्यासी के तौर पर अपनी जिंदगी बिताई। और अपना जीवन भगवान राम के नाम समर्पित कर दिया।
तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएं
- जानकी मंगल
- वैराग्य संदीपनी
- रामलला नहछू
- बरवै रामायण
- पार्वती मंगल
- कवितावली
- रामचरितमानस
- गीतावली
- कृष्ण गीतावली
- विनायक पत्रिका
- रामाज्ञ प्रश्न
- दोहावली
तुलसीदास जी की भाषा शैली
तुलसीदास जी की भाषा शैली अत्यंत ही सरल थी। वह अपनी कविताओं, कहानियों और दोहों में ब्रज और अवधी भाषा का प्रयोग किया करते थे। उन्होंने खूब सारी रचनाएं लिखी। उन्होंने भाषा को कभी भी तोड़ मरोड़ के नहीं लिखा। ऐसा ही नहीं है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में केवल ब्रज और अवधी भाषा का ही इस्तेमाल किया। उन्होंने बहुत सी जगहों पर बुन्देलखण्डी और भोजपुरी का भी इस्तेमाल किया। यहां तक की फारसी और अरबी जैसे विदेशी शब्दों को अपनी रचनाओं में उतारा।
तुलसीदास जी का हनुमान जी से मिलन
लोग कहते हैं कि इस कलियुग में भगवान कभी भी धरती पर नहीं आते हैं। पर तुलसीदास जी के विषय में ऐसा नहीं हुआ। तुलसीदास जी को भगवान राम और हनुमान पर बहुत गहरा विश्वास था। अपने अंतिम दिनों में वह चाहते थे कि उनका हनुमान जी से मिलन हो। वह वाराणसी में अस्सी घाट पर तपस्या में ही लीन रहते थे। लोग उनको बोलते थे कि वह व्यर्थ ही मेहनत कर रहे हैं।
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। फिर एक दिन एक बुढ़ा व्यक्ति प्रत्येक दिन उसी घाट पर आकर बैठ जाता था। कई दिनों तक तुलसीदास जी को उस व्यक्ति का स्वभाव बहुत अजीब लगा। लेकिन जब उन्हें यह एहसास हुआ कि वह कोई और नहीं बल्कि साक्षात हनुमान जी हैं, तो तुलसीदास जी उनके पैरों में गिर पड़े। बस उसी दिन ही तुलसीदास जी और हनुमान जी का मिलन हुआ था।
तुलसीदास जी का निधन
तुलसीदास जो अपने अंतिम दिनों में वाराणसी आ गए थे। उनको वाराणसी से अत्यंत लगाव था। उन्होंने अपने अंतिम दिन अस्सी घाट पर तपस्या में ही गुजारे। वह भगवान श्री राम को प्रत्येक दिन और हर क्षण याद किया करते थे। कहते हैं कि वह दीवारों पर भी राम का नाम लिखा करते थे। धीरे-धीरे उनकी समाधि गहरी होती गई और 1623 ईसवीं में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
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तुलसीदास से सम्बंधित FAQs
तुलसीदास जी का बचपन का नाम क्या था?
तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला था।
लसीदास जी की रचनाओं का नाम बताइए?
रामललानहछू, वैराग्य संदीपनी, रामाज्ञाप्रश्न, जानकी-मंगल, रामचरितमानस, सतसई, पार्वती-मंगल, गीतावली, विनय-पत्रिका, कृष्ण-गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली और कवितावली (बाहुक सहित) तुलसीदास जी की रचनाएं हैं।
तुलसीदास जी का जन्म कहां हुआ था?
हान कवि तुलसीदास का जन्म 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) के समय उत्तर प्रदेश के कासगंज में हुआ था।
तुलसीदास जी के गुरु का नाम क्या था?
तुलसीदास जी के गुरु का नाम श्रीनरहर्यानन्द जी था। वह उनके सच्चे मार्गदर्शक थे।
तुलसीदास जयंती कब मनाई जाती है?
तुलसीदास जयंती हर साल श्रवण’ के महीने के दौरान कृष्ण पक्ष (चंद्रमा के अंधेरे पखवाड़े) की ‘सप्तमी’ को मनाई जाती है। इस जयंती को हिंदू कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है।