सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi) – सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की जीवनी

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय – पश्चिम बंगाल की बात ही कुछ और है। यह हमेशा से एक एतिहासिक स्थान रहा है। यहां पर अनेक देशभक्तों ने जन्म लिया। अगर हम अंग्रेजों की बात करें तो, उनको भी पश्चिम बंगाल बहुत अधिक पसंद था। यहां जगह केवल देशभक्तों के लिए ही नहीं जानी जाती है। बल्कि इसी धरती पर कई महान लेखकों ने भी जन्म लिया। जैसे रबीन्द्रनाथ ठाकुर, बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय, महाश्वेता देवी, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय आदि। इन सभी ने लेखन के क्षेत्र में बहुत अहम भूमिका निभाई थी। बंगाल के एक ऐसे ही महान कवि (Poet) थे जिन्होंने पूरे देश में अपना परचम लहराया।

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सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय (Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi)

पता नहीं यह सिर्फ मुझे ही महसूस होता है कि किसी और को भी होता है। हमेशा अच्छे लोगों के साथ ही क्यों बुरा होता है? यह बात एकदम सच है। यहां पर मैं एक ऐसे ही इंसान के बारे में बात करना चाहूँगी जो अपने समय में एक सर्वश्रेष्ठ लेखक (Writer) माना जाता था और आज भी उसका नाम है। जी हां, मैं बात कर रही हूं सूर्यकान्त त्रिपाठी (Suryakant Triphati) की। हमें पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर के इतिहास में चलना होगा। यह वही जगह है जहाँ पर सूर्यकान्त का जन्म हुआ था। इनकी कहानी भी दिल को छू जाने वाली रही है। इनके जीवन की कहानी पढ़कर कोई भी भावुक हो उठता है। तो आज हम सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की जीवनी (suryakant tripathi nirala ka jivan parichay) हिंदी में पढ़ेंगे।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का नाम आज हर कोई जानता है। हिंदी साहित्य में इनका प्रतिष्ठित नाम है। स्कूल की हिंदी साहित्य की किताब में इनका नाम ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविताएं हम बचपन से पढ़ते आए हैं। पर हम इनके निजी जीवन पर ज्यादा जानकारी जुटा नहीं पाते। तो आज हम इसी चीज से आपको अवगत करवाएंगे। सूर्यकान्त त्रिपाठी का जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में हुआ था। आज भी यह जगह सूर्यकान्त त्रिपाठी की वजह से ही जानी जाती है। इनका जीवन काफी उतार चढ़ाव के साथ बीता। जयशंकर प्रसाद के बाद वह छायावादी युग के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनके लिखने की शैली गज़ब की होती थी।

नाम सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
जन्म21 फरवरी 1896, मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल, भारत
मृत्यु15 अक्टूबर 1961, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश, भारत
जीवनकाल की अवधि 65 वर्ष
पिता का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी
माता का नाम रुक्मिणी देवी
पत्नी का नाम मनोहरी देवी
चर्चित कविताएँअणिमा, अनामिका, अपरा, अर्चना, आराधना, कुकुरमुत्ता, गीतगुंज इत्यादि
चर्चित उपन्यासअप्सरा, अलका, इन्दुलेखा, काले कारनामे, चमेली, चोटी की पकड़, निरुपमा इत्यादि
निबंधचयन, चाबुक, प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, प्रबंध परिचय, बंगभाषा का उच्चारण, रवीन्द्र-कविता-कानन आदि
देश भारत (India)
प्रसिद्ध किस वजह से थे कवि, लेखक

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सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय / जीवनी

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का बचपन

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जीवन सुविधाजनक नहीं था। उन्होंने अपने जीवन में सुख से ज्यादा दुख ज्यादा देखा था। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में हुआ था। उनके पिताजी का नाम था पंडित रामसहाय त्रिपाठी था। उनके पिता महिषादल में सिपाही के पद पर नियुक्त थे। बचपन में वह जब पैदा हुए थे तो घरवालों ने उनका नाम सुर्जकुमार रखा था।

एक पंडित ने कहा था कि अगर इस बच्चे का नाम सुर्जकुमार रखा जाएगा तो यह पूरे परिवार के लिए फायदेमंद रहेगा। लेकिन बाद में इनका नाम सूर्यकान्त रख दिया गया। इनके पिता की जो तनख्वाह थी वह इतनी पर्याप्त नहीं थी कि जिससे यह अपने घर का पूरा खर्च चला सके। और यही एक कारण था कि पंडित रामसहाय त्रिपाठी बड़ी सोच समझ के साथ पैसा खर्च करते थे।

इस मामले में वह बेहद सख्त थे। लोग उनको कंजूस बोलते थे, पर पंडित रामसहाय त्रिपाठी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। सूर्यकान्त त्रिपाठी का स्वभाव भी इसी कारण के चलते ही बड़ा गंभीर बन गया था। वह एक एक पाई का महत्व समझते थे। सूर्यकान्त त्रिपाठी को गहरा झटका तब लगा जब उनकी माता रुक्मिणी देवी का निधन हो गया। सूर्यकान्त त्रिपाठी मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गढ़ाकोला गाँव के रहने वाले थे। वह बचपन से ही कविताएं लिखने लगे थे।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की शिक्षा

अगर शिक्षा के मामले में देखा जाए तो यह पता चलता है कि शिक्षा के लिहाज से सूर्यकान्त त्रिपाठी एक साधारण विद्यार्थी थे। इसकी एक खास वजह भी थी। क्योंकि उनके पिताजी एक सिपाही के तौर पर काम करते थे इसलिए वह घर का हर तरह का खर्चा चलाने में असमर्थ थे। सूर्यकान्त इस बात को अच्छे से समझ गए थे। इसलिए उन्होंने ज्यादा पढ़ाई ना करने का मन बना लिया। हालांकि उनके पिताजी तो उनको ज्यादा पढ़ाना ही चाहते थे। पर फिर वह भी शांत हो गए। सूर्यकान्त त्रिपाठी ने हाईस्कूल उत्तीर्ण करने के बाद घर पर ही अध्ययन को जारी रखा। उनको बचपन से ही कविताओं और कहानियों से बड़ा प्रेम था। हिंदी, अंग्रेजी और बंगला भाषा पर उनकी पकड़ अच्छी बैठ गई थी।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला किससे प्रभावित थे?

सूर्यकान्त त्रिपाठी बचपन से ही कविताएं लिखने लगे थे। वह खाली समय में खूब सारे लेखकों की किताबों को पढ़ा करते थे। सबसे ज्यादा अगर किसी की किताबों से वह प्रभावित हुए तो वह थी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द और श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर की किताबें। सूर्यकान्त इन तीनों को अपना प्रेरणास्रोत मानने लगे थे। इन तीनों के जीवन को पढ़कर वह आध्यात्मिकता की ओर चल पड़े थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है रामचरितमानस से लगाव। उनको रामचरितमानस कंठस्थ याद हो गया थी। वह बांग्ला भाषा के अलावा संस्कृत भाषा के भी मुरीद थे।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के शौक

सूर्यकान्त त्रिपाठी को कई चीजों में रुचि थी। उनको कई प्रकार की भाषाएँ सीखने का शौक था। उनको आध्यात्मिक किताबें पढ़ने में बहुत रुचि थी। स्कूल के दिनों में वह खूब मस्ती किया करते थे। उनको तैराकी, घुड़सवारी, खेलकूद और घूमने फिरने से बहुत लगाव था। और सभी बंगाली संगीत प्रेमियों की ही तरह उनको भी शास्त्रीय संगीत से बहुत प्रेम था।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का विवाह

सूर्यकान्त त्रिपाठी का विवाह पं. रामदयाल की पुत्री मनोहरी देवी से हुआ था। मनोहरी देवी का परिवार रायबरेली ज़िले के डलमऊ गाँव से ताल्लुक़ रखता था। वह बेहद सुंदर और सुशील थी। वह कुशाग्र बुद्धि वाली थी। वह पढ़ी लिखी भी थी। सूर्यकान्त त्रिपाठी के विवाह के पश्चात जीवन बहुत सुखमय तरीके से बीता। उनकी पत्नी एक मजबूत सहारे की तरह थी। उसने अपने पति को कभी भी अकेले नहीं पड़ने दिया। सूर्यकान्त की ही तरह उनकी पत्नी को भी संगीत से बड़ा प्रेम था। उन्होंने ही सूर्यकान्त को हिंदी भाषा का महत्व सिखाया और हिंदी में लिखने की प्रेरणा दी। इसी प्रेरणा के चलते उन्होंने हिंदी में लिखना शुरू कर दिया।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का संघर्ष

सूर्यकान्त त्रिपाठी का जीवन विवाह के बाद बहुत अच्छा चल रहा था। उनके जीवन से सूनापन जैसे खत्म ही हो गया था। वह खुशहाल शादीशुदा जीवन जी रहे थे। उनको और उनकी पत्नी को एक सुंदर पुत्री की भी प्राप्ति हुई। लेकिन जीवन हमेशा ही थोड़े से सुख के बाद ज्यादा दुख ही लाता है। सूर्यकान्त के जीवन में भी कुछ ऐसा ही हुआ। शायद नज़र लग गई थी उनकी खुशियों को। उस समय इनफ्लुएँजा नामक एक भयंकर बीमारी पूरे देश में फैल गई थी।

इस बीमारी ने सूर्यकान्त के परिवार को भी अपनी चपेट में ले लिया। सबसे पहले उनके पिता का देहांत हो गया। इसके बाद में उनकी पत्नी भी इसी बीमारी की चपेट में आ गई और उसने भी दम तोड़ दिया। उस समय पत्नी की आयु तकरीबन 20-22 साल रही होगी। इन दोनों के निधन ने सूर्यकान्त को अंदर से तोड़ कर रख दिया। उनके जीवन का एकमात्र सहारा अब उनकी बेटी ही बची थी। लेकिन कुछ साल बाद में बेटी का भी निधन हो गया। अब वह बिल्कुल अकेले पड़ गए थे।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के काव्य संग्रह

1) अनामिका (1923)

2) परिमल (1930)

3) गीतिका (1936)

4) तुलसीदास (1931)

5) कुकुरमुत्ता (1942)

6) अणिमा (1943)

7) बेला (1946)

8) नए पत्ते (1946)

9) अर्चना (1950)

10) आराधना (1953)

11 गीत कुंज (1954)

12) सांध्य काकली

13) अपरा

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के उपन्यास

1) अप्सरा

2) अलका

3) प्रभावती

4) निरुपमा

5) कुल्ली भाट

6) चोटी की पकड़

7) काले कारनामे

8) चमेली

9) इन्दुलेखा

10) तकनीकी

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कहानी संग्रह

1) लिली (1934)

2) सखी (1935)

3) सुकुल की बीवी (1941)

4) चतुरी चमार (1945)

5) देवी (1948) 

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के निबंध

1) रवीन्द्र कविता कानन

2) प्रबंध पद्म

3) चाबुक

4) चयन

5) संग्रह

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला द्वारा अनुवादित पुस्तकें

1) रामचरितमानस

2) आनंद मठ

3) विष वृक्ष

4) कृष्णकांत का वसीयतनामा

5) कपालकुंडला

6) दुर्गेश नन्दिनी

7) राज सिंह

8) राजरानी

9) देवी चौधरानी

10) युगलांगुलीय

11) चन्द्रशेखर

12) रजनी

13) परिव्राजक

14) भारत में विवेकानंद

15) राजयोग

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की काव्य भाषा

सूर्यकान्त त्रिपाठी की काव्य भाषा बड़ी ही सौम्य और सरल थी। उन्होंने अपनी कविताओं में शुद्ध खड़ी बोली का खूब अच्छे से प्रयोग किया था। लोग उनकी कविताओं को पढ़ते थे तो वह उसी में ही डूब जाते थे। वह अपनी कविताओं के लिए ज्यादा प्रसिद्ध थे। उनकी कविताओं में बनावटीपन की जगह असलियत झलकती थी। जिस समय वह कविताएं लिख रहे थे उस समय अंग्रेजी में कविताएं लिखने का बोलबाला था। लेकिन सूर्यकान्त ने हिंदी भाषा को ज्यादा महत्व दिया। वह हिंदी भाषा को हर घर में फैलाना चाहते थे। वह अपनी कविताओं के जरिए समाज की सच्चाई को उजागर करते थे।

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के अनमोल वचन

1) “अंगों की सुरभि से कम्पित दर्शकों के हृदय को, संगीत की मधुर मीड़ की तरह काँपकर उठती देह की दिव्य द्युति से, प्रसन्न-पुलकित कर रही थी। जिधर-जिधर चपल तरंग की तरह वह डोलती फिरती, लोगों की अचंचल, अपलक दृष्टि उधर-ही-उधर उस छवि-स्वर्ण-किरण से लगी रहती। एक ही प्रत्यंग संचालन से उसने लोगों पर जादू डाल दिया। सभी उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। उसे गौरवपूर्ण आश्चर्य से देखने लगे।”

2) अपने सुख की कल्पना कर दूसरों की निगाहों में अपने को बहुत छोटा देखने लगता था,

3) सभी शून्य छिद्रों को जैसे प्रकाश और वायु भरते रहते हैं, आत्मा का एक ही समुद्र जैसे सभी प्रवाहों का चरम परिणाम है।

4) भविष्य का पंकिल चित्र खींचते हुए मन-ही-मन सोचते-इसकी पढ़ाई ऊसर वर्षा है

5) विस्मय से आकाश की ओर ताककर रह जाती।

6) आनन्द के समय जितना ही चुप रहा जाए, आनन्द उतना ही स्थायी होता है, और तभी उसकी अनुभूति का सच्चा सुख भी प्राप्त होता है।

7) मुख पर शंका, सन्देह, नफरत आदि भाव बादलों-से, पहाड़ी दृश्य की तरह, बदल रहे थे।

8) क्या किसी जात का आदमी तरक्की करके दूसरी जात में नहीं जा सकता?

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविता

वह तोड़ती पत्थर; देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर-वह तोड़ती पत्थर। कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार; श्याम तन, भर बँधा यौवन, नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन, गुरु हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहार :- सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार। चढ़ रही थी धूप; गर्मियों के दिन दिवा का तमतमाता रूप; उठी झुलसाती हुई लू, रुई ज्यों जलती हुई भू, गर्द चिनगीं छा गईं, प्राय: हुई दुपहर :- वह तोड़ती पत्थर। देखते देखा मुझे तो एक बार उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार; देखकर कोई नहीं, देखा मुझे उस दृष्टि से जो मार खा रोई नहीं, सजा सहज सितार, सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर, ढुलक माथे से गिरे सीकर, लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-‘मैं तोड़ती पत्थर।’

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का निधन

15 अक्टूबर 1961 को सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला का निधन हो गया था। आखिरी दिनों में वह प्रयागराज, उत्तरप्रदेश में रहने आ गए थे। वहां पर उन्होंने एक घर में किराए पर एक कमरा ले लिया था। वह अपने अंतिम दिनों में अकेले ही रह रहे थे। 65 साल की उम्र में वह दुनिया को अलविदा कह गए।

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FAQ’S

Q1. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जन्म कब और कहां हुआ था?

A1. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फरवरी 1896, मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल, भारत में हुआ था।

Q2. सूर्यकान्त त्रिपाठी के माता-पिता का नाम क्या था?

A2. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के पिता का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी था। और माता का नाम रुक्मिणी देवी था।

Q3. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की मृत्यु कब हुई थी?

A3. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की मृत्यु 15 अक्टूबर 1961 को हो गई थी।

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