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सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय (Sumitranandan Pant Biography In Hindi)

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Ekta Ranga

सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय- उत्तराखंड की घाटियों में कुछ तो ऐसा जादू है जो यह हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। हम अगर कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहते हैं तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तराखंड भी किसी स्वर्ग से कम नहीं। उत्तराखंड को ही भारत की देवभूमि माना जाता है। यहां पर घने हरे देवदार के जंगल, सेब के बाग और बर्फ से ढकी ऊंची हिमालय पर्वत श्रृंखला हर किसी का मन मोह लेती है। इसी स्वर्ग से निकली एक प्रसिद्ध शख्सियत है जिसे हर कोई जानता है। थोड़ा सोचिए वह कौन हो सकता है?

सुमित्रानंदन पंत की जीवनी (Biography Of Sumitranandan Pant In Hindi)

आप थोड़ा सोच में पड़ गए होगे कि आखिर मैं किसकी बात कर रही हूं। मैंने तो आपको उस शख्सियत के बारे में थोड़ा सा भी संकेत नहीं दिया। तो मैं यहाँ पर बात कर रही हूं भारत के महान कवि सुमित्रानंदन पंत की। वह ही एक ऐसे शख्स थे जिनका जन्म भारत के उत्तराखंड में हुआ था। वह इतने भाग्यशाली थे कि उनका जन्म भारत की देवभूमि कहलाए जाने वाले उत्तराखंड में हुआ। क्योंकि उनका बचपन अल्मोड़ा के कैसोनी गाँव में हुआ इसलिए उनका हरियाली के प्रति प्रेम होना स्वाभाविक है। सुमित्रानंदन पंत को हम सभी जानते हैं। जब भी स्कूल के पाठयक्रम में कोई कविता पढ़ाई जाती है तो हम सुमित्रानंदन पंत की कविताओं से जरूर अवगत होते हैं। तो आज का हमारा विषय सुमित्रानंदन पंत के जीवन पर आधारित है। आज हम sumitranandan pant ka jivan parichay पढ़ेंगे।

Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay

प्रचलित नामसुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant)
वास्तविक नामगोंसाई दत्त
जन्म20 मई 1900, कौसानी, उत्तराखंड (भारत)
मृत्यु28 दिसम्बर 1977, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश (भारत)
जीवनकाल77 वर्ष
मातासरस्वती देवी
पितागंगा दत्त पंत
पुरस्कारपद्म भूषण (1961), ज्ञानपीठ अवार्ड (1969), साहित्य अकैडमी अवॉर्ड (1960)
कविताएँसन्ध्या, तितली, ताज, मानव, बापू के प्रति, अँधियाली घाटी में, मिट्टी का गहरा अंधकार, ग्राम श्री आदि।
प्रसिद्धि का कारणलेखक और कवि
राष्ट्रीयताभारतीय

सुमित्रानंदन पंत को कौन नहीं जानता है। हम सब उन्हें जानते हैं। सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900, कौसानी, उत्तराखंड (भारत) में हुआ था। वह प्रकृति के बीच पले बढ़े। प्राकृतिक सौंदर्य से उनको अति प्रेम था। उनके दिमाग में केवल प्रकृति का सौंदर्य ही घूमता था। यही एक कारण है कि वह प्रकृति के प्रति अपने प्रेम को कविताओं के माध्यम से दर्शाते थे।

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सुमित्रानंदन पंत का बचपन

सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी, उत्तराखंड (भारत) में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगा दत्त पंत था। वह गाँव में एक अच्छे जमींदार थे। इनके पिता का बाग बगीचों के फल फूल का व्यापार बहुत अच्छा चल रहा था। और इनकी माता का नाम सरस्वती देवी था। उनका असली नाम गोंसाई दत्त था।

वह जब मात्र पांच साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया था। वह माँ के बिना एकदम अधूरे से हो गए थे। लेकिन उनकी दादी ने उन सभी भाई बहन को माँ की कमी खलने नहीं दी। वह अपने सभी भाई बहनों में आठवें नंबर पर थे। उनके पिता पर उन सभी भाई बहन के लालन पालन का दायित्व था। बचपन से ही उनका मन कविताओं को लिखने में लगता था। वह उत्तराखंड की पहाड़ियों में घूमा करते थे और प्रकृति में बैठकर लिखा भी करते थे।

सुमित्रानंदन पंत की शिक्षा

सुमित्रानंदन पंत की पढ़ाई का सफर भी ठीक रहा। उनके स्कूल की शिक्षा जयनारायण हाईस्कूल से पूरी हुई। जब 18 साल की उम्र हुई तब उन्होंने सोचा कि वह अब कॉलेज में दाखिला लेने के लिए तैयार थे। काफी सलाह मशविरा करने के बाद उन्होंने बनारस के क्वींस कॉलेज (Queen’s College, Banaras) में दाखिला लिया। बनारस में पढ़ने का एक बड़ा कारण यह भी था कि यहां पर उनके बड़े भाई भी रहते थे।

कॉलेज के दिनों में वह खूब सारी किताबों को पढ़ने में अपना समय बिताते थे। उनको कॉलेज के दिनों में सरोजनी नायडू, रबीन्द्र नाथ टैगोर आदि की रचनाओं को पढ़ने का शौक लग गया था। उनके शिक्षक उन्हें केवल पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित करने को बोला करते थे। लेकिन इनका मन पढ़ाई के अलावा भी अन्य राष्ट्र भक्ति जैसी चीजों में ही लगता था। कॉलेज के दिनों में ही इन्होंने अपना नाम गोंसाई दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रखा था।

उनको अपना यह नाम खुद पर बहुत अच्छा लगा। सुमित्रानंदन ने 1919 में इलाहाबाद के मुइर कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दाखिला लिया। इस कॉलेज में उन्होंने करीब 2 साल तक अध्ययन किया। उसके बाद में वह गांधीजी के विचारों से इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी पढ़ाई ही बीच में छोड़ दी। कॉलेज छोड़ने के बाद वह भी असहयोग आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगे। उनको राष्ट्र प्रेम के चलते अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी।

सुमित्रानंदन पंत के जीवन पर महान लोगों का प्रभाव

सुमित्रानंदन पंत का जीवन कई महान हस्तियों के विचारों से प्रभावित हुआ। जब एक इंसान वयस्क हो जाता है तो अपना जीवन अपने घर परिवार के बारे में सोचकर जीने लगता है। लेकिन सुमित्रानंदन पंत का जीवन अन्य लोगों से अलग था। वह एक वयस्क के रूप में अपना अलग प्रकार का संसार बनाकर रहने लगे।

उस समय वह कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी, फ्रायड और अरविंदो घोष के विचारों से अत्यंत प्रभावित हो गए थे। उनकी सोच बड़ी ही प्रगतिवादी बनती जा रही थी। वह कार्ल मार्क्स के विचारों को रोज पढ़ा करते थे और उनका अनुसरण भी किया करते थे। एक दिन उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। वह पोंडिचेरी स्थित अरविंदो आश्रम में अरविंदो घोष से मिलने गए थे।

लेकिन वह अरविंदो घोष के विचारों से इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि वह वहां के ही हो गए। उनके दिमाग पर अब आध्यात्म छाने लग गया था। उन्होंने यह तय किया कि वह सारी उम्र कुंवारे ही रहेंगे। उन्होंने अपने जीवन में ब्रह्माचार्य का पालन किया। उस समय वह अपनी कविताओं में भी आध्यात्म का जिक्र करने लग गए थे। इन सभी महान लोगों ने उनका जीवन सकारात्मक तरीके से बदल दिया था।

सुमित्रानंदन पंत का व्यक्तित्व

सुमित्रानंदन पंत का व्यक्तित्व बहुत ही सरल था। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी कोई तरह की उच्च लालसा की कामना नहीं की। उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगीपूर्ण तरीके से बिताया। उन्होंने बेहद कम उम्र में अपनी माँ को खो दिया था। इनकी दादी ने इनका लालन-पालन किया। माँ के चले जाने के बाद वह संकोची स्वभाव के व्यक्ति हो चले थे। वह अपना अधिकतर समय प्रकृति के बीच में बिताते थे।

उन्होंने अपना जीवन प्रकृति को समर्पित कर दिया था। प्रकृति ने भी कभी भी सुमित्रानंदन पंत को अकेले नहीं पड़ने दिया। वह अपने पूरे जीवन में तीन तरह की काव्य धारा को अपनाया- छायावादी, प्रगतिवादी और आध्यात्मवादी। अगर उनके रूप रंग की बात करे तो हमें यह ज्ञात होता है कि उनका रंग बहुत गोरा था। वह दिखने में सुंदर लगते थे। उनके चेहरे से सौम्यता झलकती थी। उनके बाल घुंघराले थे। उनका शरीर भी हष्ट पुष्ट था। वह लंबे-चौड़े थे।

सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति प्रेम

फैली खेतों में दूर तलक
मख़मल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली !
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक।

इस कविता की पंक्तियों से साफ साफ प्राकृतिक प्रेम झलक रहा है। सुमित्रानंदन पंत प्रकृति को ध्यान में रखते हुए लिखते थे। उनको प्रकृति से बहुत ज्यादा लगाव था। वह देवभूमि उत्तराखंड में जन्मे थे।उनके आस-पास के वातावरण में प्रकृति की भरमार थी। उन्होंने अपने जीवन में उत्तराखंड की पहाड़ियों में घूमने का खूब आनंद लिया।

कल-कल करती नदियां, बड़े-बड़े पेड़, घुमावदार घाटियां, यमुना और गंगा का संगम और तो और बद्री-केदार जैसे आध्यात्मिक स्थल। यह सभी किसी का भी मन मोह लेते हैं। सुमित्रानंदन पंत जी के साथ भी यही हुआ। वह अपनी हर कृतियों में प्रकृति का सुंदर रूप दर्शाते। पंत बचपन से ही अल्मोड़ा की पहाड़ियों में आकर बैठ जाते थे। वहां पर उनको सुकून भी मिलता और लिखने के लिए नए नए विचार भी।

सुमित्रानंदन पंत का हिंदी प्रेम

सुमित्रानंदन पंत हिंदी के बहुत ही शानदार लेखक और कवि थे। वह हिंदी भाषा को लोगों के बीच लोकप्रिय करना चाहते थे। वह कहते थे कि हिंदी भाषा हम सभी भारतीयों की राजभाषा है। हमें इस भाषा पर गर्व होना चाहिए। हिंदी काव्य जगत में उनकी एक अलग ही पहचान थी। वह हिंदी भाषा को पूरे विश्व में फैलाना चाहते थे। प्रकृति, नारी और कलात्मक सौंदर्य इनके महत्वपूर्ण विषय थे। हालांकि यह समाज की हर प्रकार की सच्चाई पर लिखते थे।

सुमित्रानंदन पंत का करियर

सुमित्रानंदन पंत ने अपने जीवनकाल में कई पदों पर काम किया। पर अगर कोई बड़ा कार्यभार उन्होंने संभाला था तो वह था हिन्दी चीफ़ प्रोड्यूसर का। उन्होंने रेडियो विभाग में बतौर हिन्दी चीफ़ प्रोड्यूसर का पद संभाला था। 1950 का वह दौर उनके लिए बड़ा ही सुनहरा था। उस समय उनको बड़ी उपलब्धियां हासिल हुई। इसी दौर में उन्होंने साहित्य सलाहकार के रूप में भी काम किया।

सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख कृतियां

उच्छवास, पल्लव, वीणा, ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, युगांतर, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन, सत्यकाम, मुक्ति यज्ञ, तारा पथ, मानसी, युगवाणी, उत्तरा, रजतशिखर, शिल्पी, सौंदण, अंतिमा, पतझड़, अवगुंठित, मेघनाथ वध, ज्योत्सना आदि सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएं हैं।

सुमित्रानंदन पंत की प्रसिद्ध कविताएं

अगर हो सकते हमको ज्ञात 

अगर हो सकते हमको ज्ञात
नियति के, प्रिये, रहस्य अपार,
जान सकते हम विधि का भेद,
विश्व में क्यों चिर हाहाकार!
चूर्ण कर जग का यह मृद् पात्र
उड़ा देते अनंत में धूल,
और फिर हम दोनों मिल, प्राण,
उसे गढ़ते उर के अनुकूल!

अपना आना किसने जाना

अपना आना किसने जाना?
जग में आ फिर क्या पछताना?
जो आते वे निश्वय जाते,
तुझको मुझको भी है जाना!
बाँध कमर, ओ साक़ी सुंदर,
उठ, कंपित कर में प्याली धर,
प्रीति सुधा भर, भीति द्विधा हर,
चिर विस्मृति में डूबे अंतर!

हाय, कहीं होता यदि कोई

हाय, कहीं होता यदि कोई
बाधा हीन निभृत संस्थान
मर्म व्यथा की कथा भुलाकर
जहाँ जुड़ा सकता मैं प्राण!
वहीं कहीं छिप उमर अकिंचन
करता क्षण भर को विश्राम,
जीवन पथ की श्रांति क्लांति हर
करता इच्छित मदिरा पान!

सुमित्रानंदन पंत को मिले हुए पुरस्कार

सुमित्रानंदन पंत बहुत ही अच्छे लेखक थे। वह छोटी उम्र से ही लिखने लगे थे। उनका लिखने का हुनर धीरे-धीरे निखरने लगा। पंत को काला और बुढा चाँद” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। यह पुरस्कार इनको 1958 में मिला था। इनको पद्म भूषण सम्मान भी मिला था। यह पुरस्कार उन्हें 1961 में मिला था। कविता संग्रह “चिदम्बरा” के लिए उन्होंने ज्ञानपीठ पुरस्कार भी हासिल किया था।

सुमित्रानंदन पंत के नाम संग्रहालय

क्या आपको पता है कि सुमित्रानंदन पंत के नाम एक संग्रहालय भी है जो लोगों के बीच प्रसिद्ध है। जी हां, एक ऐसा संग्रहालय उत्तराखंड की कुमाऊँ की पहाड़ियों पर स्थित है। वहां पर लोग सुमित्रानंदन पंत के इतिहास के बारे में जानने के लिए आते हैं। इस संग्रहालय का नाम सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक विधिका है। इस संग्रहालय में उनकी यादों से जुड़ी कई चीजें रखी हुई है।

सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु

28 दिसंबर 1977 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में सुमित्रानंदन पंत ने उस दिन आखिरी साँस ली थी। उस समय उनकी आयु 77 के आसपास थी। उन्होंने शादी नहीं की थी। उनके कोई खास मित्र भी नहीं थे। इसलिए आखिरी दिनों में वह अकेले ही थे।

FAQs
Q1. सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब और कहां हुआ था?

A1. सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900, कौसानी, उत्तराखंड (भारत) में हुआ था।

Q2. सुमित्रानंदन पंत के माता-पिता का नाम क्या था?

A2. सुमित्रानंदन पंत के माता का नाम सरस्वती देवी था और पिता का नाम गंगा दत्त पंत था।

Q3. सुमित्रानंदन पंत की कुछ प्रसिद्ध कविताओं का नाम बताइए?

A3. सन्ध्या, तितली, ताज, मानव, बापू के प्रति, अँधियाली घाटी में, मिट्टी का गहरा अंधकार, ग्राम श्री आदि सुमित्रानंदन पंत की प्रसिद्ध कविताएं हैं।

Q4. सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम क्या था?

A4. सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम गोंसाई दत्त था। उनको अपना पसंद नहीं आया इसलिए कॉलेज के दिनों में उन्होंने अपना नाम बदल लिया।

Q5. सुमित्रानंदन पंत को किन पुरस्कारों से नवाजा गया था?

A5. सुमित्रानंदन पंत को पद्म भूषण (1961), ज्ञानपीठ अवार्ड (1969), साहित्य अकैडमी अवॉर्ड (1960) जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

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