मैं हमेशा यही सोचती हूं कि इस देश में जितने भी लेखक हुए वह ज्यादातर उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य से ही क्यों होते थे। पता नहीं ऐसा क्या है इन दोनों राज्यों में। क्या आपको पता है कि इस देश में हिंदी साहित्य का जनक किसको बोला जाता है? दरअसल भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक कहा जाता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र से ही आधुनिक हिंदी साहित्य का हर कोने में विस्तार हुआ। इनके बाद ही कितने ही कवि और लेखकों का उदय हुआ। हर कोई लेखक अलग अलग रस में कविताएं लिखते थे।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Biography of Ramdhari Singh Dinkar in Hindi)
तो ऊपर हम बात कर रहे थे अलग अलग प्रकार के रस की। हिंदी साहित्य में रस भी दस प्रकार के होते हैं जैसे कि वीभत्स रस, हास्य रस, करुण रस, रौद्र रस, वीर रस, भयानक रस, शृंगार रस, अद्भुत रस, शांत रस और भक्ति रस। आज हम एक ऐसे कवि के बारे में जानेंगे जो अपनी कविताओं में वीर रस का प्रयोग करते थे। उन्हीं प्रसिद्ध कवियों में से एक थे रामधारी सिंह दिनकर। रामधारी सिंह दिनकर भारत के श्रेष्ठ कवि में से एक गिने जाते हैं। वह भारत के इतिहास में एक एक ऐसे कवि रहे जिन्होंने लोगों के दिल में राष्ट्र प्रेम की ज्वाला जगा दी थी। वह वीर रस के कवि थे। तो आज हम रामधारी सिंह दिनकर का जीवन पढ़ेंगे (ramdhari singh dinkar ka jivan parichay) हिंदी में।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
हम जब कभी भी महान कवियों की बात करते हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि हम रामधारी सिंह दिनकर की बात ही ना करे। रामधारी सिंह दिनकर को भारत आज भी एक महान कवि के रूप में याद करता है। वह आजादी के समय के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक गिने जाते हैं। उनकी कविताएं आजादी को पाने के जोश को दर्शाती थी। वह अपनी क्रांतिकारी कविताओं के लिए प्रसिद्ध थे। उनमें देशभक्ति की भावना बहुत ज्यादा मात्रा में थी। वह अपने देश के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। वह एक अच्छे कवि होने के ही साथ साथ निबंधकार, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी भी थे।
पूरा नाम | रामधारी सिंह दिनकर |
जन्म | 23 सितंबर 1908 |
पिता का नाम | बाबू रवि सिंह |
माता का नाम | मनरूप देवी |
पत्नी का नाम | ज्ञात नहीं |
भाई- बहन | केदारनाथ सिंह और रामसेवक सिंह |
रामधारी दिनकर का जन्म स्थान | सिमरिया, मुंगेर, बिहार |
मृत्यु | 24 अप्रैल 1974{65 वर्ष की आयु में} |
मृत्यु स्थान | बेगूसराय, बिहार, भारत |
रामधारी सिंह दिनकर के देश का नाम | भारत (India) |
पेशा | कवि, लेखक, निबंधकार, साहित्यिक आलोचक, पत्रकार, व्यंग्यकार,स्वतंत्रता सेनानी और संसद सदस्य |
भाषा | हिंदी |
प्रसिद्धि का कारण | वह भारत के महान कवि थे |
मुख्य रचनाएँ | रश्मिरथी, उर्वशी, कुरुक्षेत्र, संस्कृति के चार अध्याय, परशुराम की प्रतीक्षा, हुंकार, हाहाकार, चक्रव्यूह, आत्मजयी, वाजश्रवा के बहाने आदि। |
उल्लेखनीय पुरस्कार | 1959: साहित्य अकादमी पुरस्कार 1959: पद्म भूषण 1972: भारतीय ज्ञानपीठ |
उनकी स्कूल का नाम | मोकामाघाट हाई स्कूल |
कॉलेज का नाम | पटना विश्वविद्यालय |
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रामधारी सिंह दिनकर का बचपन
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को हुआ था। उनका जन्म स्थान बेगूसराय जिले का सिमरिया गांव है। रामधारी सिंह दिनकर के पिता का नाम रवि सिंह था और वह एक साधारण किसान थे। उनकी माता का नाम मनरूप देवी था। उनके जीवन में सब सही चल रहा था। पर एक दिन जब उन्होंने अपने जीवन के दो वर्ष पूरे किए तो रामधारी सिंह दिनकर के पिता का निधन हो गया।
उनकी माता पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उनका हंसता खेलता परिवार बिखर गया। पर विधवा मनरूप देवी ने सोचा कि अगर वह ही इस कदर बिखर गई तो फिर तो फिर उसके बच्चों को कौन संभालेगा। उनके पिता के गुजर जाने के बाद अब उनकी माता भी खेतीबाड़ी का काम संभालने लगी। रामधारी सिंह दिनकर का समय अब अपनी माता के साथ बीतने लगा। खेतों और हरियाली के बीच ही इनका समय बीतता था। यही एक कारण रहा कि इन्होंने प्रकृति पर खूब कविताएं लिखी।
रामधारी सिंह दिनकर की शिक्षा
रामधारी सिंह दिनकर का विद्यार्थी जीवन उनके गाँव के एक प्राथमिक विद्यालय से शुरू हुआ था। उसके बाद जब वह बड़े हुए तो उन्होंने मोकामाघाट हाई स्कूल में दाखिला लिया। हिंदी, संस्कृत, मैथिली, बंगाली, उर्दू और अंग्रेजी साहित्य पर उन्होंने अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी।
इतिहास, राजनीति और दर्शनशास्त्र जैसे विषयों को वह मन लगाकर पढ़ते थे। रामधारी सिंह दिनकर ने 1928 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। साल 1932 में इनको इतिहास में बी. ए. ऑनर्स डिग्री प्राप्त हुई। कहते हैं कि वह हाई स्कूल में पढ़ने के दौरान ही शादी के बंधन में बंध गए थे। और इसी शादी से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति भी हो गई थी। ऐसे में पढ़ाई जारी रखना बहुत मुश्किल हो गई थी। परंतु फिर भी वह हारे नहीं और मन लगाकर पढ़ते रहे।
रामधारी सिंह की उपलब्धियां
रामधारी सिंह दिनकर ने शिक्षा प्राप्त करके सबसे पहले अध्यापक के रूप में स्कूल में नियुक्त हुए। उन्होंने 1963 से 1965 तक भागलपुर विश्वविद्यालय में उपकुलपति के रूप में भी काम किया। मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कालेज ने उन्हें हिन्दी के विभागाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया था। उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। भारत सरकार ने उन्हें अपना हिंदी सलाहकार भी बनाया।
रामधारी सिंह दिनकर की भाषा शैली
रामधारी सिंह दिनकर की लिखने की कला जबरदस्त थी। वह अपनी लगभग सभी कविताओं में साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया करते थे। वह अपनी कविताओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों का भी इस्तेमाल किया करते थे। क्योंकि उनका बचपन प्रकृति के आस-पास ही गुज़रा इसलिए उनकी कविताओं में प्राकृतिक सौंदर्य भी झलकता है। इसके साथ उनकी कविताओं में देश प्रेम को भी बहुत अच्छे से दर्शाया गया है।
रामधारी सिंह दिनकर की कविता
कलम, आज उनकी जय बोल
जलाएं अस्थियां बारी-बारी से, चिटकाई ऐसी चिंगारी,जो चढ़ गईं पुण्यवेदी पर, बिना गर्दन के मोल,कलम, आज उनका जय बोल।। जो अगणित लघु दीप हमारे,तूफानों में एक किनारा,जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन, माँगा नहीं स्नेह मुँह खोली,कलम, आज उनकी जय बोल।। पीकर जिनकी लाल शिखाएँ उगल रही सौ लपट दिशाएं, जिनके सिंहनाद से सहमी धरती रही अभी तक डोल कलम, आज उनकी जय बोल। अंधा चकाचौंध का मारा क्या जाने इतिहास बेचारा, साखी हैं उनकी महिमा के सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल कलम, आज उनकी जय बोल।
रामधारी सिंह की काव्य कृतियां
विजय संदेश (1928), प्रणभंग (1929), रेणुका (1935), हुंकार (1938), रसवन्ती (1939), द्वंद्वगीत (1940), कुरूक्षेत्र (1946), धूप-छाँह (1947), सामधेनी (1947), बापू (1947), इतिहास के आँसू (1951), धूप और धुआँ (1951), मिर्च का मजा (1951), रश्मिरथी (1952), दिल्ली (1954), नीम के पत्ते (1954), नील कुसुम (1955), सूरज का ब्याह (1955), चक्रवाल (1956), कवि-श्री (1957),
सीपी और शंख (1957), नये सुभाषित (1957), लोकप्रिय कवि दिनकर (1960), उर्वशी (1961), परशुराम की प्रतीक्षा (1963), आत्मा की आँखें (1964), कोयला और कवित्व (1964), मृत्ति-तिलक (1964), दिनकर की सूक्तियाँ (1964), हारे को हरिनाम (1970), संचियता (1973), दिनकर के गीत (1973), रश्मिलोक (1974), उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ (1974) ।
रामधारी सिंह दिनकर की गद्य कृतियां
मिट्टी की ओर 1946, चित्तौड़ का साका 1948, अर्धनारीश्वर 1952, रेती के फूल 1954, हमारी सांस्कृतिक एकता 1955, भारत की सांस्कृतिक कहानी 1955, संस्कृति के चार अध्याय 1956, उजली आग 1956, देश-विदेश 1957, राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता 1955, काव्य की भूमिका 1958, पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण 1958,
वेणुवन 1958, धर्म, नैतिकता और विज्ञान 1969, वट-पीपल 1961, लोकदेव नेहरू 1965, शुद्ध कविता की खोज 1966, साहित्य-मुखी 1968, राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी 1968, हे राम! 1968, संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ 1970, भारतीय एकता 1971, मेरी यात्राएँ 1971, दिनकर की डायरी 1973, चेतना की शिला 1973, विवाह की मुसीबतें 1973, आधुनिक बोध 1973 ।
रामधारी सिंह के अनमोल विचार
1) साहसी मनुष्य की पहली पहचानयह है कि वह इस बात कि चिन्तानहीं करता कि तमाशा देखने वालेलोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं।
2) रोटी के बाद मनुष्य कीसबसे बड़ी कीमती चीजउसकी संस्कृति होती है।
3) दूसरों की निंदा करने से आप अपनी उन्नति को प्राप्त नही कर सकते। आपकी उन्नति तो तभ ही होगी जब आप अपने आप को सहनशील और अपने अवगुणों को दूर करेंगे।
4) ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आगसबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।
5) जैसे सभी नदियां समुद्र में मिलती हैंउसी प्रकार सभी गुण अंतत!स्वार्थ में विलीन हो जाता है।
6) सच है, विपत्ति जब आती है ;कायर को ही दहलाती है,सूरमा नहीं विचलित होते; क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं ; काँटों में राह बनाते हैं…
7) पुरुष चूमते तबजब वे सुख में होते हैं, नारी चूमती उन्हें जब वे दुख में होते हैं।
प्रेम पर रामधारी सिंह दिनकर के प्रसिद्ध पद्य
1) प्रेम की आकुलता का भेद
छिपा रहता भीतर मन में
काम तब भी अपना मधु वेद
सदा अंकित करता तन में
2) प्रेम नारी के हृदय में जन्म जब लेता, एक कोने में न रुक सारे हृदय को घेर लेता है। पुरुष में जितनी प्रबल होती विजय की लालसा, नारियों में प्रीति उससे भी अधिक उद्दाम होती है। प्रेम नारी के हृदय की ज्योति है, प्रेम उसकी जिन्दगी की साँस है;प्रेम में निष्फल त्रिया जीना नहीं फिर चाहती।
3) फूलों के दिन में पौधों को प्यार सभी जन करते हैं, मैं तो तब जानूँगी जब पतझर में भी तुम प्यार करो। जब ये केश श्वेत हो जायें और गाल मुरझाये हों, बड़ी बात हो रसमय चुम्बन से तब भी सत्कार करो।
4) प्रातः काल कमल भेजा था शुचि, हिमधौत, समुज्जवल,और साँझ को भेज रहा हूँ लाल-लाल ये पाटल दिन भर प्रेम जलज सा रहता शीतल, शुभ्र, असंग,पर, धरने लगता होते ही साँझ गुलाबी रंग।
5) सुन रहे हो प्रिय? तुम्हें मैं प्यार करती हूँ। और जब नारी किसी नर से कहे, प्रिय! तुम्हें मैं प्यार करती हूँ, तो उचित है, नर इसे सुन ले ठहर कर, प्रेम करने को भले ही वह न ठहरे।
रामधारी सिंह दिनकर को प्राप्त पुरस्कार
रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान दिया था। उनको अपनी रचनाओं के लिए पुरस्कार भी हासिल हुए जैसे कि पद्म भूषण (1959), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1959), भारतीय ज्ञानपीठ (1972) साहित्य चूड़ामण (1968) आदि।
रामधारी सिंह दिनकर का निधन
रामधारी सिंह दिनकर अपने समय के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक रहे थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नया मुकाम दिया। उनका मन देशप्रेम के रस में डूबा हुआ था। उनके द्वारा लिखी गई कविताएं शानदार हुआ करती थी। उनकी कविताओं में प्रकृति का सौंदर्य भी झलकता था। वह एक महान लेखक और कवि थे। अपने अंतिम दिनों में वह बेगूसराय, बिहार में रह रहे थे। उनका निधन 24 अप्रैल 1974 को हुआ था। जिस समय उनका निधन हुआ तो उनकी आयु 65 वर्ष थी।
FAQs
A1. रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितम्बर 1908 सिमरिया, मुंगेर, बिहार में हुआ था।
A2. रामधारी सिंह दिनकर की माता का नाम मनरूप देवी था और पिता का नाम बाबूराव सिंह था।
A3. जी हां, रामधारी सिंह दिनकर कवि होने के साथ एक सच्चे देशभक्त भी थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस से बहुत ज्यादा प्रभावित थे।
A4 रामधारी सिंह दिनकर ने शिक्षा प्राप्त करके सबसे पहले अध्यापक के रूप में स्कूल में नियुक्त हुए। उन्होंने 1963 से 1965 तक भागलपुर विश्वविद्यालय में उपकुलपति के रूप में भी काम किया। मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कालेज ने उन्हें हिन्दी के विभागाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया था।
A5. रामधारी सिंह दिनकर को पद्म भूषण (1959), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1959), भारतीय ज्ञानपीठ (1972)साहित्य चूड़ामण (1968) आदि पुरस्कारों से नवाजा गया था।
A6. रामधारी सिंह दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार 1972 में मिला था।
A7. रामधारी सिंह दिनकर के बाल निबंध मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह, चित्तौड़ का सांका थे।
A8. संस्कृति के चार अध्याय रामधारी सिंह दिनकर की सबसे प्रसिद्ध रचना रही है।
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