माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय (Biography of Makhan lal Chaturvedi in Hindi) – भारत के इतिहास में बहुत से ऐसे लोग रहे हैं जिनके सिर पर केवल देशभक्ति का जुनून सवार था। सच्चे देशभक्त ऐसे हुआ करते थे कि वह अपने घर परिवार का भी त्याग कर देते थे। उन्हें केवल भारत के हित के बारे में ही सोचना अच्छा लगता था। जब भारत स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा था तब उस समय बहुत से देशभक्तों का भी उदय हुआ। उस स्वतंत्रता संग्राम में बड़े से लेकर छोटे तक सबने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। कवि और लेखकों ने भी इस संग्राम में बहुत बड़ा योगदान दिया। क्या आपने कभी किसी लेखक को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखा है? पुराने समय के लेखकों में यह भावना बहुत ज्यादा मात्रा में हुआ करती थी।
माखनलाल चतुर्वेदी की जीवनी (Biography of Makhan lal Chaturvedi in Hindi)
मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि उन लेखकों को लिखने की इतनी अच्छी कला कैसे होती थी। उसी दौर में कई नामी लेखक और कवि हुए जिन्होंने अपनी कृतियों के माध्यम से अपना परचम फहराया। उसी दौर से आते हैं माखनलाल चतुर्वेदी। माखनलाल चतुर्वेदी पंडितजी के नाम से भी जाने जाते थे। उनकी लिखने की शैली भी अत्यंत सुंदर थी। माखनलाल चतुर्वेदी ब्रिटिश राज के जाने पहचाने लेखक माने जाते थे। वह राजनीति में भी सक्रियता से भूमिका निभा रहे थे लेकिन साहित्य ने उन्हें ऊंची पहचान दिलाई। तो आज का हमारा विषय महान लेखक माखनलाल चतुर्वेदी के जीवन पर आधारित है। आज हम माखनलाल चतुर्वेदी की जीवनी जानेंगे (makhanlal chaturvedi ka jivan parichay) हिंदी में। आइए हम इनके जीवन के सफर पर चलते हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय
यह बात 4 अप्रैल 1989 की है। मध्य प्रदेश के बाबई, होशंगाबाद में नंदलाल चतुर्वेदी गाँव के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक के रूप में काम करते थे। उनके घर पर 4 अप्रैल को खूब हलचल बनी हुई थी। उनके घर पर एक बालक ने जन्म लिया था। सभी ने नंदलाल चतुर्वेदी को खूब बधाईयाँ दी। लेकिन नंदलाल चतुर्वेदी को इस बात की बड़ी चिंता हो गई थी कि उसके बेटे को ब्रिटिश राज में सभी मूलभूत सुविधाएं कैसे मिलेगी। लेकिन दूसरे ही पल उन्होने यह सोचा कि वह अपने बच्चे को कोई भी तरह की सुविधाओं से वंचित नहीं रखेंगे।
नाम | माखनलाल चतुर्वेदी |
पेशा | लेखक,साहित्यकार,कवि,पत्रकार |
साहित्य का प्रकार | नव-छायाकार |
जन्मदिन | 4 अप्रैल 1889 को |
जन्मस्थान | मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बवाई गाँव में |
लेख | वेणु लो गूंजे धरा’,हिम कीर्तिनी,हिम तरंगिणी,युग चरण,साहित्य देवता आदि |
कविताएं | अमर राष्ट्र, अंजलि के फूल गिरे जाते हैं, आज नयन के बंगले में, इस तरह ढक्कन लगाया रात ने, उस प्रभात तू बात ना माने, किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप, कुञ्ज-कुटीरे यमुना तीरे, गली में गरिमा घोल-घोल, भाई-छेड़ो नहीं मुझे, मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक, संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं आदि। |
सम्मान | 1955 में साहित्यिक अकादमी अवार्ड, 1963 में पद्म भूषण सम्मान। |
उनके नाम समर्पित सम्मान | मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा देश के श्रेष्ठ कवियों को माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार” दिया जाता है। उनके नाम पर माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय खोला गया है। उनके नाम पर पोस्टेज स्टाम्प ज़ारी किए जाते हैं। |
निधन | 30 जनवरी 1968 |
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माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय |
माखनलाल चतुर्वेदी का बचपन
माखनलाल चतुर्वेदी जब बड़े हो रहे थे तब भारत ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता पाने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहा था। माखनलाल चतुर्वेदी को अंग्रेजों से सख्त चिढ़ हो गई थी। वह हर पल स्वतंत्रता पाने की चाह रखते। उनको अंग्रेजों की गुलामी पसंद नहीं आ रही थी। माखनलाल चतुर्वेदी कुशाग्र बुद्धि वाले बालक थे।
संस्कृत, बांग्ला, गुजराती और अंग्रेजी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ बन गई थी। वह पढ़ाई में इतने तेज थे कि वह मात्र 16 साल की उम्र में ही शिक्षक बन गए थे। 1906 से 1910 तक का वह समय ऐसा था जब माखनलाल ने शिक्षक के रूप में सफलतापूर्वक काम किया। छोटी उम्र में ही उन्होंने असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया।
उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। उनके विद्रोही स्वभाव के चलते ही अंग्रेजों ने उनपर खूब जुल्म ढाए। उन्होंने माखनलाल को जेल में कई बार बंद रखा। माखनलाल को अंग्रेजों ने तोड़ने की पूरी कोशिश की लेकिन माखनलाल ने बिल्कुल भी हार नहीं मानी।
माखनलाल चतुर्वेदी का विवाह
बहुत से लोग यह कहते हैं कि उनको माखनलाल चतुर्वेदी की पत्नी के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो यह कहते हैं कि माखनलाल चतुर्वेदी का विवाह भी हुआ था और इसी विवाह से उनको एक पुत्री भी हुई थी। कहते हैं कि माखनलाल जब 14 वर्ष के थे तब उनका विवाह ग्यारसी बाई से हो गया था। क्योंकि माखनलाल दिन रात देश की सेवा में ही लगे रहते थे इसलिए उनके पिता ने यह सोचा कि अगर वह माखनलाल का विवाह करवा देंगे तो उनका मन देश सेवा की की जगह घर गृहस्थी में लग जाएगा।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं। शादी के बाद में वह नौकरी लग गए। और फिर धीरे-धीरे उनका देश के प्रति लगाव लगातार बढ़ता ही गया। हालांकि ऐसा नहीं है कि शादी के बाद उन्होंने अपनी पत्नी की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। उन्होंने अपने करियर के साथ-साथ पत्नी को भी प्राथमिकता दी। उनको एक सुंदर बेटी भी हुई। लेकिन कुछ समय के पश्चात ही उनकी पत्नी और बेटी का निधन हो गया। बेटी और पत्नी के आकस्मिक निधन से माखनलाल टूट गए थे।
माखनलाल चतुर्वेदी का व्यवसाय
माखनलाल चतुर्वेदी का करियर भी बहुत शानदार रहा। उन्होंने सबसे पहले 16 साल की उम्र में एक शिक्षक के तौर पर काम किया उसके बाद वह भारत की राष्ट्रीय पत्रिकाओं जैसे कि प्रभा और कर्मवीर के संपादन के रूप में काम करने लगे थे। उनके लिखने की शैली बहुत ज्यादा शानदार थी।
आम जनता माखनलाल की कविताओं और लेख से बहुत ज्यादा प्रभावित हो जाते थे। वह महान देशभक्त थे। वह हर पल देश के उत्थान के बारे में सोचा करते थे। माखनलाल कविताओं के अलावा भाषण भी दिया करते थे। उनके भाषण बहुत ही प्रभावशाली हुआ करते थे। 1943 में उन्होंने अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन” की अध्यक्षता की कमान भी संभाली थी।
माखनलाल चतुर्वेदी को मिले अवार्ड्स
माखनलाल चतुर्वेदी को अपने उल्लेखनीय कार्य के लिए बहुत सारे पुरस्कार मिले थे। उन्होंने सबसे पहले 1955 में साहित्य अकैडमी पुरस्कार जीता था। हिंदी साहित्य में उनका स्थान बहुत ऊंचा रहा था। इसी योगदान के चलते उन्हें 1959 में सागर यूनिवर्सिटी से डी. लिट की उपाधि भी प्रदान की गई थी। साल 1963 में उनको पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।
माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएं
इनकी रचनाएं है- हिम तरंगिनी, समर्पण, हिम कीर्तनी, युग चरण, साहित्य देवता दीप से दीप जले, कैसा चाँद बना देती हैं और पुष्प की अभिलाषा, जिनमें से वेणु लो गूंजे धरा’, हिम कीर्तिनी, हिम तरंगिणी,युग चरण,साहित्य देवता।
इनकी कविताएं है- अमर राष्ट्र, अंजलि के फूल गिरे जाते हैं, आज नयन के बंगले में, इस तरह ढक्कन लगाया रात ने, उस प्रभात तू बात ना माने, किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप, कुञ्ज-कुटीरे यमुना तीरे, गाली में गरिमा घोल-घोल, भाई-छेड़ो नहीं मुझे, मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक, संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी की उपलब्धियां
अध्यापन कार्य प्रारंभ (1996), शिक्षण पद का त्यागतिलक का अनुसरण (1910 में), शक्ति पूजा लेकर राजद्रोह का आरोप 1912, प्रभा मासिक का संपादन (1913), कर्मवीर से सम्बद्ध (1920)प्रताप का सम्पादन कार्य प्रारंभ (1923), पत्रकार परिषद के अध्यक्ष(1929), म.प्र.हिंदी साहित्य सम्मेलन (रायपुर अधिवेशन) के सभापति।
माखनलाल चतुर्वेदी का देश प्रेम
माखनलाल चतुर्वेदी को अपने देश से बहुत ज्यादा प्रेम था। वह एक सच्चे देशभक्त के रूप में जाने जाते थे। वह अपने देश के खिलाफ एक भी शब्द नहीं सुन सकते थे। जब वह युवा थे तो उस समय गांधीजी का सत्याग्रह आंदोलन बड़े जोरों पर था। वह गांधीजी से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था।
वह महान देशभक्त थे। उनकी रचनाओं में उनका देशप्रेम झलकता था। लोकमान्य तिलक के प्रसिद्ध वाक्य “स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” को उन्होंने अपने जीवन में उतार लिया था। वह हर समय स्वतंत्रता के ही सपने देखा करते थे। जब वह लिखते थे तो ऐसे शब्द लिखते थे कि पढ़ने वाले के अंदर राष्ट्रप्रेम की ज्वाला जग उठती थी।
उनके इसी देश प्रेम के चलते ही उनको कई बार जेल की हवा खानी पड़ी। उनको भी अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की ही तरह कई प्रकार की यातनाएं सहनी पड़ी थी। कठिन कारावास भी उनको रचनाओं को लिखने से नहीं रोक सकी। जेल में रहते हुए भी खूब कविताएं और कहानियां को लिखा करते थे। उनकी कलम से निकले हुए शब्द बहुत ही ताकतवर हुआ होते थे।
माखनलाल चतुर्वेदी के अनमोल वचन
1) सत्य में देशभक्त का पथ, बलिदान का पथ ही ईश्वर भक्ति का पथ है।
2) हम अपनी जनता के पूर्ण उपासक होंगे, हमारा दृढ विश्वास होगा विशेष मनुष्य या समूह नहीं बल्कि प्रत्येक मनुष्य और समूह मातृ सेवा का अधिकारी है।
3) हमारा पथ वही होगा जिस पर सारा संसार प्राप्त करने के लिए जा सकता है। इसमें छत्र धारण किए हुए, चंवर से शोभित सिर की भी कीमत समान होगी, जो कृषकाय, लकड़ी के भार से दबे हुए एक मजदूर की होगी।
4) मुझे तोड़ लेना वनमाली,उस पथ पर देना तुम फेंक दो,मातृभूमि पर शीश चढ़ा,जिस रास्ते से हटें कई बार।
5) हम मुक्ति के उपासक हैं। जहां राजनीति या समाज में, साहित्य में या धर्म में, भी स्वतंत्रता का रास्ता रोकेंगे, मारनेवाले का प्रहार और घातक के शस्त्र का पहला युद्ध आदर से लेकर मुक्त होने के लिए हम लगातार प्रस्तुति देंगे। दासता से हमारी पराकाष्ठा फिर वह शरीर का हो या मन की, शासकों की हो या अधिकारों की।
6) कितने संकट के दिन हैं। ये व्यक्ति ऐसा मुखौटा पर खड़ा है, जहां भूख का बाजार दर बढ़ गया है और पाथी हुई आजादी का बाजार घट गया है और सिर पर पेट टिका हुआ है। खाद्य पदार्थों की बाजार दर दी गई है और चरित्र की बाजार दर गिर गई है।
7) राजनीति में देश के अभ्युत्थान और संघर्ष के लिए हम स्वयं अपनी संस्थाओं का निर्माण करते हैं। इस दिशा में हम किसी दल विशेष के समर्थक नहीं, एक कभी अस्पष्ट राष्ट्रीयता के समर्थक फिर यों ही सही दीख पड़ जाएंगे या छोड़ देंगे?
8) जगत में बिना किसी जिम्मेदारी के बड़प्पन के शुल्क ही क्या हैं ? और वह बड़प्पन तो मिट्टी का मोल हो जाता है, जो अपनी जिम्मेदारी को सम्हाल नहीं पाता।
माखनलाल चतुर्वेदी की कविता
दीप से दीप जले
सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।। लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में। लक्ष्मी सर्जन हुआ कमल के फूलों मेंलक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।
गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहारसतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल। शकट चले जलयान चले गतिमान गगन के गानतू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।।
उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारेरानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर। भवन-भवन तेरा मंदिर है स्वर है श्रम की वाणीराज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।।
वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानीसजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेलआज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेलतू ही जगत की जय है, तू है बुद्धिमयी वरदात्रीतू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।। युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।।
माखनलाल चतुर्वेदी का निधन
माखनलाल चतुर्वेदी का निधन 30 जनवरी 1968 को हो गया था। जिस समय उनका निधन हुआ तब वह 79 साल के थे।
FAQs
A1. माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बवाई गाँव में हुआ था।
A2. उनके पिता का नाम नंद लाल चतुर्वेदी था और उनकी माता का नाम सुंदरी बाई था।
A3. इनकी कविताओं का नाम है – अमर राष्ट्र, अंजलि के फूल गिरे जाते हैं, आज नयन के बंगले में, इस तरह ढक्कन लगाया रात ने, उस प्रभात तू बात ना माने, किरणों की शाला बंद हो गई छुप-छुप, कुञ्ज-कुटीरे यमुना तीरे, गाली में गरिमा घोल-घोल, भाई-छेड़ो नहीं मुझे, मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक, संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं।
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