Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now

Class 12 Geography Book-1 Ch-4 “प्राथमिक क्रियाएँ” Notes In Hindi

Photo of author
Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी मानव भूगोल के मूल सिद्धांत के अध्याय- 4 “प्राथमिक क्रियाएँ” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 4 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 12 Geography Book-1 Chapter-4 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 4 “प्राथमिक क्रियाएँ”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाबारहवीं (12वीं)
विषयभूगोल
पाठ्यपुस्तकमानव भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय नंबरचार (4)
अध्याय का नाम“प्राथमिक क्रियाएँ”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 12वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- मानव भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय- 4 “प्राथमिक क्रियाएँ”

प्राथमिक क्रियाओं से अभिप्राय

  • वे सभी क्रियाकलाप जिनसे मनुष्य को आय की प्राप्ति होती है आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। इन क्रियाओं को चार भागों में बाँटा गया है- प्राथमिक क्रियाएँ, द्वितीयक क्रियाएँ, तृतीयक क्रियाएँ और चतुर्थ क्रियाएँ।
  • इन चारों क्रियाओं के माध्यम से ही मनुष्य जीवन निर्वाह को सुगम और सरल बनाता है।
  • प्राथमिक क्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी और पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों पर निर्भर होती हैं। भूमि, जल, हवा, खनिज आदि पृथ्वी के संसाधन हैं जो निर्माण सामग्री के रूप में बदलते रहते हैं।
  • प्राथमिक क्रियाओं के अंतर्गत भोजन एकत्रित करना, आखेट, पशुचारण, मछली पालन करना, कृषि, खनन, वनों से लकड़ियाँ काटना आदि क्रियाएँ शामिल हैं।

आखेट और भोजन संग्रहण

  • आखेट सबसे पुरानी आर्थिक क्रिया है। प्रारंभ में आदिमकालीन मानव (मनुष्य) जीवन निर्वाह दो तरीके से करता था पहला पशुओं का शिकार करके और दूसरा अपने आस-पास के जंगलों से कंद-मूल फल या जंगली पौधों को एकत्रित करके।
  • आरंभिक युग में समाज मुख्य रूप से जंगली पशुओं के शिकार और मछली पकड़े को आर्थिक क्रिया मानता था। इसलिए उस दौरान अत्यधिक आद्र और शुष्क प्रदेशों में रहने वाले लगभग सभी लोग यही कार्य करते थे।
  • आधुनिकीकरण के कारण हुए तकनीकी विकास ने मछलियों को पकड़ने की क्रिया में बदलाव उत्पन्न किया है लेकिन आज भी कुछ तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग मछली पकड़े का कार्य करते हैं।
  • धीरे-धीरे जब अवैध शिकार के कारण जीवों की कई प्रजातियाँ लुप्त होने लगीं तब दुनिया के अनेक देशों में शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया। विशेष रूप से उन पशुओं के शिकार पर जो पूरी तरह से समाप्ति के कगार पर आ चुके हैं।
  • भोजन संग्रहण भी एक प्राचीन आर्थिक क्रिया है जिसे ज़्यादातर आदिमकालीन मानव समाज के लोग अपनाते हैं। ये लोग अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनस्पति उत्पादों और पशुओं का संग्रहण करते हैं।
  • भोजन संग्रह के संदर्भ में विश्व को दो भागों में बाँटा गया है पहला उच्च अक्षांश देश (कनाडा, उत्तरी युरेशिया, दक्षणिनी चिली) और दूसरा निम्न अक्षांश देश (अमेजन बेसिन, उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, दक्षिण पूर्व एशिया)।
  • वर्तमन समय में भोजन संग्रह के कार्य को व्यापार के रूप में बदल दिया गया है। अब मनुष्य प्राप्त किए हुए कीमती पौधे, विशेष औषधियों के पौधे और पशुओं में कुछ बदलाव करके उसे बाजार में बेच देते हैं।
  • वनस्पतियों के विभिन्न भागों का उपयोग लोग पैसा कमाने के लिए करते हैं जैसे- छाल का उपयोग कुनैन व चमड़ा तैयार करने के लिए, पत्तियों का उपयोग औषधियाँ बनाने में, कपास का इस्तेमाल बहुमूल्य वस्तु और कपड़ा बनाने के लिए इसके अलावा गोंद, रबड़, राल इत्यादि बनाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।
  • वैश्विक स्तर पर भोजन संग्रहण का अब ज़्यादा महत्व नहीं है क्योंकि कम दाम वाली कृत्रिम वस्तुओं ने भोजन संग्रहण करने वाले समूहों के उत्पादों का स्थान ले लिया है।

पशुचारण और उसके प्रकार

  • प्राचीन समय में जब पशुओं का शिकार करने वाले लोगों को लगने लगा कि सिर्फ यही कार्य करने से जीवन को नहीं जिया जा सकता, तो उन्होंने पशुओं का पालन करना शुरू कर दिया।
  • लोगों ने विभिन्न जलवायु वाले क्षेत्रों में रहने वाले पशुओं को चुना और उन्हें पालतू बनाया।
  • आधुनिक युग में तकनीकी विकास और भौगोलिक कारकों के आधार पर पशुपालन व्यवसाय निर्वहन एवं व्यापारिक दोनों स्तर पर हो रहा है। इसी आधार पर पशुचारण को दो भागों में बाँटा गया है-
    • चलवासी पशुचारण: यह एक प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय है जिसमें लोग अपने पशुओं के साथ भोजन और पानी की खोज में कई स्थान बदलते थे। उस दौरान पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, आवास, औजार तथा यातायात के साधन के लिए पशुओं पर निर्भर थे। अनेक क्षेत्रों में कई तरह के पशु पाले जाते हैं जैसे कि उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में गाय व बैल का पालन किया जाता है जबकि सहारा रेगिस्तान में भेड़, बकरी और ऊँट का पालन किया जाता है। वर्तमान समय में चलवासी पशुचारकों की संख्या में कमी आई है जिसका कारण राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण और अनेक देशों द्वारा नई बस्तियों की योजना बनाना है।
    • वाणिज्य पशुधन पालन: यह पशुपालन चलवासी पशुचारण की तुलना में अत्यधिक व्यवस्थित व पूँजी प्रधान माना जाता है। इन पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव साफ नजर आता है। वाणिज्य पशुधन पालन के लिए फार्म निर्धारित किए होते हैं जोकि चारागाह क्षेत्र के रूप में छोटे-छोटे इकाइयों में बँटे होते हैं। जब एक छोटे क्षेत्र में पशुओं का चारा समाप्त हो जाता है तब उन्हें दूसरे छोटे क्षेत्र में चराई के लिए भेजा जाता है। यह एक विशेष गतिविधि इसलिए भी है क्योंकि इसमें आर्थिक लाभ के लिए सिर्फ एक ही प्रकार के पशु का पालन किया जाता है जिसमें मुख्य रूप से गाय, भेड़, बकरी एवं घोड़े जैसे पशु शामिल हैं। इन पशुओं से प्राप्त मांस, खाल, ऊन, दूध, घी वैज्ञानिक तरीके से शुद्ध बनाने के बाद डिब्बे में बंद करके वैश्विक बाजारों में निर्यात कर दिया जाता है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अर्जेंटीना, उरुग्वे और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है।

कृषि से अभिप्राय

  • कृषि का संबंध भोजन, वस्त्र आदि से है। इन्हें प्राप्त करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की फसलों को बोने की प्रक्रिया कृषि कहलाती है।
  • संसार में पाइ जाने वाली सभी भौतिक, आर्थिक और सामाजिक दशाएँ कृषि को एक समान प्रभावित करती हैं।
  • इन सभी प्रभावों के कारण ही विश्व में विभिन्न कृषि प्रणालियों द्वारा कृषि की जाती हैं।

कृषि के प्रकार

कृषि के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं-

निर्वाह कृषि

  • निर्वाह कृषि सिर्फ स्थानीय लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखकर की जाती है और प्राप्त उत्पादों का उपयोग भी स्थानीय लोग ही करते हैं।
  • निर्वाह कृषि को दो भागों में बाँटा गया है- (क) आदिकालीन निर्वाह कृषि (ख) गहन निर्वाह कृषि।
  • आदिकालीन निर्वाह कृषि के अंतर्गत जंगल के किसी विशेष भाग को साफ करने के लिए वहाँ की झाड़ियों, पेड़-पौधों को काटकर जला दिया जाता है और जली हुई राख को खाद के रूप में मिट्टी में मिला दिया जाता है। इसी वजह से इस कृषि को स्थानांतरणशील कृषि भी कहते हैं। इस तरह की कृषि के लिए खेत बहुत छोटे होते हैं। इस तरह की खेती पुरानी तकनीकों जैसे कि लकड़ी, कुदाल और फावड़े की सहायता से की जाती है। यह कृषि अलग-अलग देशों में अलग-अलग नाम से जानी जाती है जैसे कि मिल्पा (मैक्सिको, मध्य अमेरिका में), लादांग (मलेशिया, इंडोनेशिया में), झूम खेती (भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में), रे (वियतनाम में), रोका (ब्राजील में)।
  • लेकिन गहन निर्वाह कृषि विशाल जनसंख्या तक उत्पादन की पहुँच बनाने के लिए की जाती है। इस तरह की कृषि एशिया के मानसून वाले क्षेत्रों में की जाती है। यह कृषि दो प्रकार से की जाती है।
  • जिसमें से पहली कृषि में मुख्य रूप से चावल की फसल उगाई जाती है इसलिए इस कृषि को “चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि” कहते हैं। इसमें मिट्टी को उपाऊ बनाने के लिए गोबर व हरी खाद का इस्तेमाल किया जाता है। जनसंख्या ज्यादा होने की वजह से कृषि के लिए भूमि का आकार छोटा होता है और इसमें प्रति इकाई उत्पादन तो अधिक होता है लेकिन प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।
  • वहीं एशिया में कुछ ऐसे स्थान भी हैं जहाँ भौगोलिक कारकों तथा जलवायु में अंतर होने के कारण चावल की कृषि संभव नहीं है। इसलिए उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तर कोरिया और उत्तरी जापान के क्षेत्रों में क्रमशः गेहूँ, सोयाबीन, सोरपम की ही खेती की जाती है। इस तरह की कृषि “चावल रहित गहन कृषि” कहलाती है।

रोपण कृषि

  • इस कृषि में क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है। इसमें चाय, कॉफी, गन्ना, रबड़, केले, कपास एवं अनानास की खेती पौधे लगाकर की जाती है।
  • सस्ते श्रमिक और यातायात के सुलभ साधन मिलने के कारण ऐसी कृषि करने वाले किसानों से बागान और बाजार सुचारु रूप से जुड़े होते हैं।
  • भारत और श्रीलंका द्वारा चाय के बगान विकसित करना और मलेशिया में रबड़ के बगान विकसित करना रोपण कृषि के उदाहरण हैं।
  • आजकल ज्यादातर फसलों के बगानों को देश की सरकार और नगररिक नियंत्रित करते हैं।

विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि

  • विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि अर्ध शुष्क प्रदेशों में की जाती है जिसमें मुख्य रूप से गेहूँ की फसल उगाई जाती है।
  • गेहूँ के अलावा जौ, मक्का, राई और जई की फसलें भी उगाई जाती हैं।
  • इसमें खेतों की जुताई और फसलों की कटाई तक लगभग सभी कार्य आधुनिक तकनीकों के माध्यम से किए जाते हैं।
  • इस कृषि में प्रति एकड़ उत्पादन कम लेकिन प्रतिव्यक्ति उत्पादन अधिक होता है।
  • अफ्रीका के वेल्ड्स, यूरेसिया के स्टेपीज, आस्ट्रेलिया के डाउंस और न्यूजीलैंड के कैंटरबरी के मैदानी क्षेत्रों में इसी तरह की कृषि की जाती है।

मिश्रित कृषि

  • मिश्रित कृषि ऐसी कृषि है जिसमें फसलों की खेती करने के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है।
  • इस तरह की कृषि विश्व के विकसित भागों में ज्यादा की जाती है, जैसे- उत्तरी पश्चिमी भाग, उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग आदि।
  • गेहूँ, जौ, राई, मक्का और पशुओं के लिए चारे की फसल इस कृषि की मुख्य फसलें हैं।
  • इसमें आय की प्राप्ति के लिए भेड़, सुअर, और कुक्कुट जैसे पशुओं का पालन किया जाता है।
  • मिश्रित कृषि में मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए शस्यावर्तन तथा अंतः फसली कृषि प्रमुख एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

डेयरी कृषि

  • डेयरी कृषि में पशुओं का पालन बड़े स्तर पर दूध के व्यवसाय के लिए किया जाता है।
  • इस कृषि में दुधारू पशुओं के पालन-पोषण के लिए अत्यधिक पूँजी की आवश्यकता होती है साथ ही उनके रख-रखाव के लिए भी अधिक श्रम की आवश्यकता होती है।
  • ताजा दूध और डेरी उत्पाद के अच्छे बाजार होने के कारण यह कृषि नगरीय और औद्योगिक केंद्रों के समीप होती हैं।
  • विश्व में वाणिज्य डेयरी कृषि के तीन क्षेत्र हैं जिसमें से सबसे बड़ा उत्तर पश्चिमी यूरोप का क्षेत्र है वहीं दूसरा कनाडा और तीसरा न्यूजीलैंड, दक्षिण-पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया है।

भूमध्यसागरीय कृषि

  • भूमध्यसागरिय कृषि को एक विशिष्ट प्रकार की कृषि माना जाता है क्योंकि यह कृषि भूमध्यसागर के आसपास के क्षेत्रों में की जाती है।
  • इन क्षेत्रों में खट्टे फलों को सबसे ज्यादा उगाया जाता है। भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्रों में मुख्य रूप से अंगूर की कृषि की जाती है।
  • इस क्षेत्र के कई देशों में अच्छी किस्म के अंगूरों से मदिरा और निम्नतर किस्म के अंगूरों को सुखाकर मुनक्का व किशमिश बनाई जाती है।
  • अंगूर के साथ-साथ अंजीर और जैतून की कृषि भी भूमध्यसागर के आस-पास के हिस्सों में की जाती है।

बाजार के लिए सब्जी खेती तथा उद्यान कृषि

  • इस तरह की कृषि में उन फसलों को उगाया जाता है जिन्हें बेचकर अधिक आर्थिक लाभ हो सके।
  • इस कृषि में मुख्य रूप से फल, फूल और सब्जियों की कृषि को शामिल किया गया है।
  • इसमें अधिक पूँजी के साथ बेहतर श्रम की आवश्यकता होती है तभी वास्तविक लाभ की प्राप्ति संभव होती है।
  • सब्जी खेती में खेत का आकार छोटा होता है इसलिए व्यवस्थित रूप से लगाई गई फसलों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए कृत्रिम तापघर की आवश्यकता होती है। यूरोप में इस तरह की कृषि को ‘ट्रक कृषि’ के नाम से जाना जाता है। इन सब्जियों को एक रात में ट्रक की सहायता से बाजारों तक पहुँचाया जाता है।
  • वहीं उद्यान कृषि के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के फूलों और फलों को उगाया जाता है। उदाहरण के लिए नीदरलैंड में की जाने वाली फूलों की खेती।

सहकारी कृषि

  • कृषि समुदाय के लोग जब कृषि कार्य से अच्छा आर्थिक लाभ कमाने के उद्देश्य से अपने कृषि कार्य को सहकारी संस्था बनाकर पूरा करते हैं तो उस कृषि को सहकारी कृषि कहते हैं।
  • इस कृषि के लिए सहकारी संस्था किसानों को उचित मूल्य दिलाने और सहायक संसाधनों की सुविधा उपलब्ध कराने में सहायता करती है।
  • लगभग एक वर्ष पहले सहकारी आंदोलन शुरू हुआ था और पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली में सफलतापूर्वक चला। इस आंदोलन को सबसे अधिक सफलता डेनमार्क में मिली।

सामूहिक कृषि

  • इस कृषि में उत्पादन के साधनों का स्वामित्व समाज और सामूहिक श्रम पर आधारित होता है।
  • सामूहिक कृषि की शुरुआत सोवियत संघ में हुई थी। वहाँ इस कृषि की शुरुआत कृषि की दशा सुधारने, उत्पादकता बढ़ाने और आत्मनिर्भरता की प्राप्ति के उद्देश्य से की गई थी।
  • उस दौरान सोवियत संघ में इस कृषि को ‘कोलखहोज़’ नाम दिया गया।
  • इस कृषि के अंतर्गत सभी किसान अपने संसाधनों (भूमि, पशुधन, श्रम) को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं और अपने दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भूमि का एक छोटा हिस्सा अपने अधिकार में रखते है।

खनन से अभिप्राय

  • जमीन से या भूमि के अंदर से लोहा, काँस्य जैसी धातुओं को खुदाई के माध्यम से प्राप्त करने की प्रक्रिया को खनन कहा जाता है।
  • मानव विकास के इतिहास में खनिजों की खोज के आधार पर अनेक युगों का नामकरण किया गया है जैसे कि काँस्य युग, ताम्र युग, लौह युग इत्यादि।
  • पुराने समय में खनिजों का उपयोग सिर्फ औजार बनाने, बर्तन बनाने और हथियार बनाने के लिए ही किया जाता था लेकिन औद्योगिक क्रांति ने खनिजों के उपयोग के स्वरूप को बदलकर दिया है।
  • वर्तमान समय में लगातार खनिजों के उपयोग का महत्व बढ़ता जा रहा है।
  • लेकिन विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश खनन प्रसंस्करण और शोध कार्यों से पीछे हट रहे हैं क्योंकि इसमें श्रमिक लागत अधिक आने लगी है। आज भी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कुछ देशों के साथ-साथ एशिया के अधिकांश देशों में आय के साधनों का आधा भाग खनन कार्यों से ही प्राप्त होता है।

खनन को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक

खनन को प्रभावित करने वाले दो मुख्य कारक निम्नलिखित हैं-

भौतिक कारक: इसमें खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी और उनकी उपस्थिति की अवस्था को शामिल किया जात है।

आर्थिक कारक: इस कारक में खनिज की माँग, तकनीकी ज्ञान और उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी, यातायात एवं श्रम पर होने वाले व्यय सम्मिलित होते हैं।

खनन की प्रमुख विधियाँ

उपस्थिति की अवस्था और अयस्क की प्रकृति के आधार पर खनन के दो प्रकार निम्नलिखित हैं-

भूमिगत खनन विधि/कूपकी खनन विधि

  • यह विधि उन खनिजों के लिए प्रयोग की जाती है जो धरती में अधिक गहराई में पाए जाते हैं इसलिए इस विधि को कूपकी खनन विधि के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस विधि के अनुसार खनिजों तक पहुँच बनाने के लिए गहराई तक लम्बवत कूपक बनाए जाते हैं जिनके जरिए खनिजों का निष्कर्षण और परिवहन धरातल तक किया जाता है।
  • श्रमिकों के लिए खनन की यह विधि कई तरह के खतरों से भरी हुई होती हैं क्योंकि इसमें आग, जहरीली गैस और कई बार बाढ़ के कारण खदानों में दुर्घटना का भय भी बना रहता है।
  • इसलिए खदानों में खनन कार्यों में लगे श्रमिकों की सुरक्षा को ध्यान रखते हुए संचार प्रणाली से लेकर लिफ्ट बेधक (बरमा) तक की पूरी व्यवस्था की जाती है।

धरातलीय खनन विधि

  • यह खनन का सबसे सस्ता और आसान तरीका है।
  • इस विधि को विवृत खनन भी कहा जाता है।
  • इसमें श्रमिक सुरक्षा और उपकरणों पर व्यय कम होता है।
  • इस विधि के उपयोग से उत्पादन कम समय में अधिक होता है।
PDF Download Link
कक्षा 12 भूगोल के अन्य अध्याय के नोट्सयहाँ से प्राप्त करें

Leave a Reply