इसरो की फुल फॉर्म (ISRO Full Form In Hindi)- इसरो भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है। 23 अगस्त 2023 के बाद आज भारत का हर बच्चा जान चुका है कि इसरो ने कैसे भारत की शान पर चार चाँद लगा दिए हैं। प्रारंभिक दिनों में इसरो को भले ही काफी संघर्ष करना पड़ा लेकिन आज अंतरिक्ष क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रहा है और ऐसा वही कर सकता है जिसने अपना पूरा समय सच्ची निष्ठा के साथ किसी चीज को सीखने में लगाया हो। यहाँ तक पहुँचने में भारत के कई राज्यों से जुड़े वैज्ञानिकों ने अहम भूमिका निभाई है। जिनके कौशल तथा लगन की तारीफ आज भारत ही नहीं बल्कि विदेश के नागरिक भी कर रहे हैं।
इसरो की फुल फॉर्म
सन् 1947 में जब देश स्वतंत्र हुआ था उस दौरान भारत कि हालत हर क्षेत्र में तितर-बितर थी। लेकिन जब स्थितियाँ धीरे-धीरे सुधरने लगीं तब वैज्ञानिकों ने अपने संघर्ष का सफर बैलगाड़ी और साइकिल पर रॉकेट को ढोते हुए शुरू किया था और आज चंद्रयान-3 का सफल प्रक्षेपण पूरा कर लिया। ये बात उन्हें हैरान कर सकती है जिन्होंने भारत का इतिहास पढ़ा होगा। एक विकासशील देश के लिए इतनी बड़ी सफलता हासिल करना यह दर्शाता है कि आने वाले समय में वैज्ञानिक हर क्षेत्र में अपना परचम लहराएंगे। ऐसा नहीं है कि इसरो के सारे परीक्षण सफल रहे है। कुछ परीक्षण असफल भी हुए। लेकिन ये बात मायने रखती है कि इसरो ने कभी हालात के सामने घुटने नहीं टेके। चाँद पर पहुँच बनाने के पीछे सिर्फ वैज्ञानिक कारण या ख्याति प्राप्त करना नहीं है। मान्यता है कि इसके पीछे कुछ धार्मिक कारण भी है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
इसरो क्या है?
इसरो भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय बैंगलुरु (कर्नाटक) में है। ये संस्थान भारत देश के लिए अंतरिक्ष से जुड़ी नई-नई तकनीक उपलब्ध करवाने, ग्रहों-उपग्रहों तक पहुँच बनाने और अभियांत्रिकी व प्रौद्योगिकी आदि के विकास के लिए कार्य करता है। इनसे जुड़े कार्यों को अंजाम देने के लिए इसरो से लगभग सत्रह हजार (17,000) वैज्ञानिक एवं कर्मचारी जुड़े हैं। दिन प्रतिदिन होने वाली अपनी प्रगति के कारण इसरो शिक्षा के क्षेत्र विज्ञान से जुड़े विषयों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अगर बात इसरो के सबसे बड़े संस्थान कि करें तो वो ‘विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र’ का नाम सबसे पहले आता है।
इसरो का इतिहास
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सुव्यवस्थित ढंग से वर्ष 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इन्कोस्पार) की स्थापना की थी। बताया जाता है कि नेहरू जी ने वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के आग्रह पर इन्कोस्पार (INCOSPAR) कि स्थापना की थी। गुजरात राज्य के अहमदाबाद में जन्मे विक्रम साराभाई ने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में विश्व के मानचित्र पर लाने का काम किया। उसके बाद वर्तमान समय की माँग के अनुसार डॉ. विक्रम साराभाई ने टेक्नोलॉजी के उत्कृष्ट विकास के लिये वर्ष 1969 को इन्कोस्पार का नाम बदलकर ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (इसरो) कर दिया। फिर वर्ष 1975 में भारत ने अपने पहले सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ को रूस के लॉन्च सेंटर से सफलतापूर्वक लॉन्च किया। उसके बाद अंतरिक्ष की दुनिया में भारत का नाम दर्ज हो गया। अब इसरो का नाम दुनिया की 6 सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों की श्रेणी में आता है। वर्ष 2014 में इसरो को शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए इंदिरा गाँधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्तमान में इसरो के अध्यक्ष श्री एस. सोमनाथ हैं। वर्ष 2022 में इन्होंने अध्यक्ष पद को प्राप्त किया।
इसरो फुल फार्म
इसरो का पूरा नाम हिंदी और अंग्रेजी में नीचे टेबल में पढ़ें।
इसरो की फुल फार्म हिंदी में (ISRO Full Form In Hindi) | इसरो की फुल फार्म इंग्लिश में (ISRO Full Form In English) |
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (Indian Space Research Organisation) |
ये फुल फॉर्म भी देखें
एमबीए की फुल फॉर्म (MBA Full Form In Hindi) |
इसरो की फुल फॉर्म (ISRO Full Form In Hindi) |
आईटीआई की फुल फॉर्म (ITI Full Form In Hindi) |
एनडीए की फुल फॉर्म (NDA Full Form In Hindi) |
इसरो का मुख्य कार्य क्या है?
इसरो का मुख्य कार्य सभी राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास करना और अपने बनाए गए सिद्धांतों पर कार्य करना है। अपने इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए इसरों ने संचार, दूरदर्शन, मौसम से जुड़ी सेवाएं, संसाधन मॉनिटर, अंतरिक्ष से जुड़ी नौसंचालन सेवाओं के लिए ऐसी कई अंतरिक्ष प्रणालियों की स्थापना की है। इस तरह इसरो अंतरिक्ष से जुड़ा हर वो कार्य सुव्यवस्थित ढंग से करता है जिसका लाभ सबसे ज़्यादा भारत को होता है।
इसरो के सफल और असफल प्रक्षेपण
- वर्ष 1975 में भारत ने अपने पहले सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ मिशन को रूस के लॉन्च सेंटर से सफलतापूर्वक लॉन्च किया था।
- वर्ष 1980 को इसरो ने एसएलवी-3 का सफल परीक्षण किया और इसी के माध्यम से इसरो ने रोहिणी सैटेलाइट (आरएस-1) को भी सफल रूप दिया।
- वर्ष 1989 में एक रोहिणी टेक्नोलॉजी पेलोड उपग्रह लॉन्च किया गया, जिसे इसरो के वैज्ञानिक कक्षा में नहीं रख पाए थे।
- वर्ष 1994 में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल का सफल प्रक्षेपण किया। इसके सहयोग से अब तक लगभग 50 सफल मिशन लॉन्च किए जा चुके हैं।
- इन्सैट-3बी का वर्ष 2000 में सफल प्रक्षेपण।
- वर्ष 2008 में चंद्रयान-1 को अंतरिक्ष में सकारात्मक उम्मीदों के साथ भेजा तो गया लेकिन इससे भारत को कुछ खास प्राप्त नहीं हुआ।
- वर्ष 2013 में मंगलयान का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण।
- आईआरएनएसएस-1बी और आईआरएनएसएस-1 दोनों का एक ही वर्ष 2014 में सफल प्रक्षेपण हुआ।
- फिर वर्ष 2019 को भारत ने चंद्रयान-2 लॉन्च किया जोकि असफल रहा। लेकिन बहुत हद तक इससे आगे के मिशन के लिए सहयोग मिले इसलिए इसे एक बेहतर उपलब्धि के रूप में स्वीकार किया गया।
- 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 मिशन सफल हुआ। जिसे चंद्रयान-2 मिशन का ही एक बड़ा रूप कहा जा सकता है।
इसरो चेयरमैनों की सूची
क्र. संख्या | इसरो के अध्यक्ष | कार्यकाल |
1. | विक्रम साराभाई | वर्ष 1963 से 1972 तक |
2. | एम. जी. के. मेनन | जनवरी 1972 से सितंबर 1972 तक |
3. | सतीश धवन | वर्ष 1972 से 1984 तक |
4. | प्रोफेसर यू. आर. राव | वर्ष 1984 से 1994 तक |
5. | के. कस्तूरीरंगन | वर्ष 1994 से 2003 तक |
6. | जी. माधव नायर | वर्ष 2003 से 2009 तक |
7. | के. राधाकृष्णन | वर्ष 2009 से 2014 तक |
8. | शैलेश नायक | 1 जनवरी 2015 से 12 जनवरी 2015 तक |
9. | ए. एस. किरण कुमार | वर्ष 2015 से 2018 तक |
10. | के. सिवन | वर्ष 2018 से 2022 तक |
11. | डॉ. एस. सोमनाथ | वर्ष 2022 से अब तक |
वर्ष 2023 में चंद्रयान-3 का सफल प्रक्षेपण
चंद्रयान-3 को श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई 2023 को शुक्रवार के दिन भारतीय समय अनुसार लगभग दोपहर 02:35 पर लॉन्च किया गया था। जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास की सतह पर 23 अगस्त 2023 को लगभग शाम 06:04 के आसपास सफलतापूर्वक उतरा। इस तरह चंद्रयान-3 ने चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग करके अपने उद्देश्य को पूरा किया। इस सफलता के कारण भारत ने खूब सराहना प्राप्त की और चाँद पर सफलतापूर्वक सॉफ़्ट लैंडिग करने वाला चौथा देश बन गया है। इस तरह भारत से दो पर्यटक चाँद पर उतरे, एक लैंडर जिसका नाम विक्रम और एक रोवर जिसका नाम प्रज्ञान है।
चंद्रयान-3 को सफल बनाने वाले मुख्य वैज्ञानिक
- एम शंकरन सैटेलाइट सेंटर के प्रमुख हैं। इन्होंने इसरो के सैटेलाइट को डिजाइन किया। विक्रम लैंडर की शक्ति की जाँच-परख करने कि जिम्मेदारी भी इन्हीं कि थी।
- इसरो के प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ के बारे में कहा जाता है कि वे हमेशा मेधावी छात्र रहे और कॉलेज दिनों में पढ़ाई के दौरान टॉपर्स में आते थे। इन्होंने ही चंद्रयान-3 के बाहुबली रॉकेट को डिजाइन किया।
- महिला होकर डॉ. के. कल्पना ने चंद्रयान-3 मिशन में जो भूमिका निभाई है, वो काबिल-ए-तारीफ है। साथ ही उन महिलाओं के लिए प्रेरणा भी है, जो किसी भी क्षेत्र में अपने पैर रखने से पहले झिझकती हैं। डॉ. के. कल्पना इस मिशन कि डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं। ऐसी और भी कई महिला वैज्ञानिक इस मिशन से जुड़ी हैं।
- इनके अलावा पी वीरामुथुवेल (चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर), मोहन कुमार (मिशन डायरेक्टर), ए राजाराजन (लॉन्च ऑथराइजेशन बोर्ड के प्रमुख), एस उन्नीकृष्णनन नायर जैसे कई वैज्ञानिक और कर्मचारियों ने मिलकर इस मिशन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत चांद पर क्यों उतरा?
भारत के झंडे का चाँद पर लहराना अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। इस सफल मिशन के बाद एस सोमनाथ ने भी अपनी खुशी बयां करते हुए कहा- ”हमने चंद्रमा पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता हसिल कर ली है, भारत चांद पर है।” भारत ने चाँद पर आसानी से लैंडिंग करके खुद को साबित कर दिया जोकि उसका मुख्य उद्देश्य था। भारत संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और चीन के बाद चौथे स्थान पर आने वाला वो देश बन चुका है, जिसेन चाँद पर अपनी पहुँच को देर से ही सही लेकिन सफल बना लिया है।
इस सफलता के बाद भारत के वैज्ञानिक वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, खनिज आदि की जाँच-पड़ताल आसानी से कर पाएंगे। साथ ही इससे इसरो के अलावा दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भविष्य में अपने नए मिशन पर रिसर्च और स्टडी करने में आसानी होगी। ये तो वैज्ञानिक कारण है लेकिन अगर धार्मिक दृष्टि से देखा जाए, तो कई धर्मशास्त्रियों का मानना है कि आने वाले समय में धीरे-धीरे मनुष्य चाँद पर रहना शुरू कर देगा और शायद आने वाले समय में भारत चाँद पर जीवन को संभव बना ले। क्योंकि भारत चाँद पर तो पहुँच चुका है और दिवंगत बॉलीवुड भारतीय अभिनेता ‘सुशांत सिंह राजपूत’ चाँद पर जमीन भी खरीद चुके हैं। इस आधार पर हम ये कह सकते हैं कि वो दिन दूर नहीं जब भारत चाँद पर साँस लेते हुए नजर आएगा।
FAQs
उत्तर- ‘विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र’ इसरो का सबसे बड़ा केंद्र है।
उत्तर- 15 अगस्त सन् 1969 में।
उत्तर- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation)।
उत्तर- इसरो विज्ञान से विषय जैसे- मौसम, ग्रह, उपग्रह, रॉकेट, अंतरिक्ष आदि में अनुसंधान व कार्य करता है।
उत्तर- डॉ. एस. सोमनाथ इसरो के वर्तमान अध्यक्ष हैं।
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