बौद्ध धर्म से वह इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना नाम ही बदल लिया। हम यहां पर बात कर रहे हैं हिंदी के लेखक और कवि नागार्जुन की। नागार्जुन के जीवन में भी अन्य कवियों की ही तरह सुख से ज्यादा दुख थे। उन्होंने भी अपने जीवन में कई उतार चढ़ाव देखें। इनसे जुड़ा एक रोचक तथ्य यह है कि उन्होंने अपने जीवन में अपने कई नाम रखे। जैसे कि हिंदी सहित्य के लिए वह नागार्जुन नाम इस्तेमाल किया करते थे।
मैथिली रचनाओं के लिए वह अपने लिए यात्री नाम इस्तेमाल किया करते थे। संस्कृत रचनाओं के लिए चाणक्य नाम और लेखकों और मित्रों में वह नागाबाबा नाम से पहचाने जाते थे। इनके पिता का नाम गोकुल मिश्र था। और इनकी माता का नाम श्रीमती उमादेवी था। आज हम इस पोस्ट में कवि नागार्जुन का जीवन परिचय और उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ेंगे।
नागार्जुन के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी | |
नाम | वैद्यनाथ मिश्र |
उपनाम | नागार्जुन |
जन्मस्थान | 30 जून, 1911, सतलखा गाँव, दरभंगा, बिहार |
निधन | 5 नवंबर, 1998 |
पिता और माता | गोकुल मिश्र और उमा देवी |
रचनाएँ | कहानी, काव्य, उपन्यास, कविता |
सामान्य परिचय
नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को हुआ था। उनका परिवार सतलखा गाँव, दरभंगा, बिहार से ताल्लुक रखता था। वह माध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार से थे। उनके पिता बिल्कुल ही निरक्षर थे। वह कुछ भी कमाई नहीं करते थे। धन के नाम पर जो कुछ भी पूजा पाठ करवाने से मिलता वह उससे ही अपने जीवन का गुजारा कर रहे थे।
नागार्जुन की माता धार्मिक स्वभाव की महिला थी। नागार्जुन के पिता कोमल स्वभाव के कम और गुस्सैल स्वभाव के व्यक्ति ज्यादा थे। उनके पिता अपनी पत्नी पर भी खूब अत्याचार करते थे। उनके पिता ने धन के लालच में आकर अपनी पैतृक संपत्ति बेच दी थी। उनका ऐसा स्वभाव देख कर नागार्जुन के बाल मन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। नागार्जुन का बचपन बिल्कुल भी अच्छा नहीं रहा।
उन्होंने अपने बचपन में गरीबी और लाचारी देखी थी। बहुत से लोग इनके बारे में कहते हैं कि नागार्जुन का स्वभाव बड़ा ही घुमंतू तरह का हो गया था। इसका सबसे बड़ा कारण उनके पिता ही थे। वह नागार्जुन को हर जगह अपने साथ घुमाने ले जाते थे। मात्र सात साल की उम्र में ही नागार्जुन ने अपनी माँ को खो दिया था। नागार्जुन बेहद दुखी रहने लगे थे। उन्होंने अपना बचपन बेहद संघर्ष के साथ गुजारा।
शिक्षा एवं विद्यार्थी जीवन
नागार्जुन की शिक्षा सबसे पहले घर से ही चालू हुई। वह घर पर ही रहकर खूब सारी किताबें पढ़ा करते थे। उनको किताबों से बहुत ज्यादा लगाव था। उनकी संस्कृत विषय पर बहुत अच्छी पकड़ थी। उन्होंने तरौनी, गनौली और पचगछिया के संस्कृत पाठशाला में दाखिला लिया था।
उनकी शिक्षा का अंदाज ऐसा था जैसे कि मानो वैदिक काल में हुआ करती हो। क्योंकि नागार्जुन का परिवार इतना धनी नहीं था कि वह नागार्जुन को पढ़ने के लिए किसी धनवान विद्यालय में भेज सके इसलिए नागार्जुन की पढ़ाई मिथिलांचल से ही हुई। उनकी संस्कृत की पढ़ाई बनारस से हुई। उनको अपने विद्यार्थी जीवन में आर्य समाज से लगाव हो गया। यहां तक कि विद्यार्थी काल में ही उनका बौद्ध धर्म की तरफ भी झुकाव हुआ।
उन्होंने इसी के चलते ही कई जगहों की यात्रा की। यहां तक कि वह श्री लंका भी गए। इन्हीं एक यात्राओं में उनका परिचय राहुल सांकृत्यायन से हुआ। वह भी नागार्जुन की ही तरह बौद्ध धर्म से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। सन् 1926 में उनको काव्यतीर्थ की उपाधि प्राप्त हुई थी। उन्होंने केलानाया, कोलंबो में पाली भाषा पर भी अपनी पकड़ मजबूत की।
राजनीति में प्रवेश
नागार्जुन जैसे ही बड़े हुए उनको राजनीति का शौक चढ़ गया। राजनीति जैसे विषय में उनको दिलचस्पी आने लगी। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में खुलकर भाग लिया। चंपारण के किसान आंदोलन में भी उन्होंने किसानों का साथ दिया। वह आम जनता के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते थे। उस दौर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से वह बहुत ज्यादा प्रभावित हो गए थे। वह नेताजी का अनुसरण करने लगे थे।
नागार्जुन का परिवार
नागार्जुन का विवाह कृष्णकांत झा की पुत्री अपराजिता देवी के साथ हुआ था। नागार्जुन की पत्नी अपराजिता देवी हीरपुर बवशी टोेल की रहने वाली थी। उनका वैवाहिक जीवन ज्यादा अच्छा नहीं रहा। नागार्जुन के पिता का स्वभाव अच्छा नहीं था। वह नागार्जुन को नौकरी नहीं करने की वजह से हर समय टोकते रहते थे।
नागार्जुन अपने पिता की हरकतों से इतना ज्यादा तंग आ गए थे कि वह छोटी सी अपराजिता के बारे में ज्यादा सोचे समझे बगैर ही 1934 ई. में उन्हें छोड़कर घर से भाग गए। अपराजिता की उम्र उस समय मात्र बारह वर्ष ही थी। वह इस बात से बहुत दुखी हो गई थी।
हालांकि बाद में 1941 में वह घर दुबारा लौट आए। नागार्जुन के चार बेटे हुए और दो बेटियां। बेटों के नाम शोभाकान्त, सुकान्त, श्रीकान्त और श्यामाकान्त मिश्र। और बेटियों के नाम है उर्मिला और मन्जू। नागार्जुन की पत्नी का 18 फरवरी 1997 में देहांत हो गया था। इसके बाद वह और भी ज्यादा अकेलेपन का अनुभव करने लगे थे।
भाषा शैली
नागार्जुन की भाषा शैली एकदम सरल और सहज थी। वह स्वच्छंद होकर लिखा करते थे। उनकी कविताओं में स्पष्टता झलकती थी। लोग उनकी कविताओं को अच्छे से समझ लेते थे। क्योंकि वह घुमंतू स्वभाव के थे इसलिए उनकी कविताएं ज्यादातर हर राज्य की कहानी को दर्शाती थी।
नागार्जुन के अनुवाद कार्य
नागार्जुन हर चीज को अच्छे से करने में बेहद माहिर थे। क्या आपको पता है कि नागार्जुन ने लिखने के अलावा अनुवाद का कार्य भी अच्छे से संभाला। जी हाँ, नागार्जुन ने संस्कृत, मैथिली और बांग्ला की बहुत सी कृतियों का अनुवाद कार्य भी अच्छे से संभाला। क्योंकि वह कालिदास को अपना आदर्श मानते थे इसलिए उन्होंने कालिदास की कई रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया। उनका अनुवाद वाला काम भी अच्छा चल पड़ा। उन्होंने कालिदास के अलावा जयदेव, शरतचंद्र, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और विद्यापति आदि की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया।
नागार्जुन की महत्वपूर्ण रचनाएं
कविताएं | |
तालाब की मछलियाँ | रत्नगर्भ |
अपने खेत में | आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने |
खिचड़ी विप्लव देखा हमने | सतरंगे पंखों वाली |
इस गुब्बारे की छाया में | प्यासी पथराई आँखें |
ऐसे भी हम क्या ! ऐसे भी तुम क्या ! | भूल जाओ पुराने सपने |
युगधारा | हजार-हजार बाँहों वाली |
पुरानी जूतियों का कोरस | तुमने कहा था |
केंद्रित विशिष्ट साहित्य | |
जनकवि हूँ मैं | तुमि चिर सारथि |
नागार्जुन की कविता | नागार्जुन का कवि-कर्म |
युगों का यात्री | नागार्जुन का रचना-संसार |
नागार्जुन : अंतरंग और सृजन-कर्म | आलोचना |
उपन्यास | |
वरुण के बेटे | उग्रतारा |
बलचनमा | दुखमोचन |
रतिनाथ की चाची | गरीबदास |
कुंभीपाक | जमनिया का बाबा |
बाबा बटेसरनाथ | हीरक जयन्ती |
नयी पौध |
निधन
नागार्जुन का निधन 5 नवम्बर 1998 को हो गया था। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्हें दमा का रोग हो गया था। उनकी पत्नी अपराजिता का निधन उनसे पहले हो गया था। उन्होंने हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान दिया था। वह आधुनिक हिंदी साहित्य के जाने माने व्यक्ति में से एक गिने जाते हैं।
नागार्जुन पर आधारित FAQs
नागार्जुन की माता का नाम उमा देवी था। और उनके पिता का नाम गोकुल मिश्र था।
नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को सतलखा गाँव, दरभंगा, बिहार में हुआ था।
नागार्जुन की कविता संग्रह का नाम है- ओम मन्त्र, भूल जाओ पुराने सपने, तुमने कहा था, अपने खेत में, तालाब की मछलियां, सतरंगे पंखों वाली, युगधारा आदि।
बाबा नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा के कवि थे।