छात्र इस आर्टिकल के माध्यम से एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक प्राप्त कर सकते हैं। छात्र इस आर्टिकल से कक्षा 8 इतिहास अध्याय 6 सवाल और जवाब देख सकते हैं। हमारे अतीत के प्रश्न उत्तर Class 8 chapter 6 साधारण भाषा में बनाए गए हैं। ताकि छात्र सामाजिक विज्ञान कक्षा 8 पेपर की तैयारी अच्छे तरीके से कर सके। छात्रों के लिए सामाजिक विज्ञान कक्षा 8 पाठ 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक पूरी तरह से मुफ्त हैं। छात्रों से कक्षा 8 इतिहास अध्याय 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जायेगा।
Ncert Solutions Class 8 Social Science History Chapter 6 in Hindi Medium
कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान पाठ 6 के प्रश्न उत्तर को छात्रों की सहायता के लिए बनाया गया हैं। सीबीएसई सिलेबस को ध्यान में रखकर samajik vigyan class 8 के प्रश्न उत्तर बनाए गए हैं। बता दें कि class 8 samajik vigyan chapter 6 question answer को राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के सहायता से बनाया गया हैं। एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास हमारे अतीत -3 का उदेश्य केवल अच्छी शिक्षा देना हैं।
पाठ – 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक
फिर से याद करें:-
प्रश्न 1 – यूरोप में किस तरह के कपड़ों की भारी माँग थी ?
उत्तर :- यूरोप में भारत के बारीक तथा छापेदार सूती कपड़ों की भारी माँग थी।
प्रश्न 2 – जामदानी क्या है ?
उत्तर :- जामदानी एक तरह का बारीक मलमल होता है जिस पर करघे में सजावटी चिह्न बुने जाते हैं। इनका रंग प्रायः स्लेटी और सफेद होता है। आमतौर पर सूती और सोने के धागों का इस्तेमाल किया जाता था।
प्रश्न 3 – बंडाना क्या है ?
उत्तर :- बंडाना छापेदार सूती कपड़ा होता है। बंडाना शब्द का प्रयोग गले या सिर पर बांधने वाले चटक रंग के छापेदार गुलूबंद के लिए किया जाता है। यह शब्द हिंदी के ‘ बांधना ‘ शब्द से निकला है। इस श्रेणी में चटक रंगों वाले ऐसे बहुत से कपड़े आते थे जिसे बांधने और रंगसाजी की विधियों से ही बनाया जाता था। बंडाना शैली के कपड़े मुख्यतः राजस्थान और गुजरात में बनाये जाते थे।
प्रश्न 4 – अगरिया कौन होते हैं ?
उत्तर :- अगरिया छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक समुदाय के लोग थे। वे लौह – अयस्क इकट्ठा करते थे। उन्होंने दोराबजी टाटा को उत्तम लौह-अयस्क के भंडारों की जानकारी दी थी।
प्रश्न 5 – रिक्त स्थान भरें :-
(क) अंग्रेजी का शिंट्ज़ शब्द हिंदी के ____ शब्द से निकला है।
(ख) टीपू की तलवार ___ स्टील से बनी थी।
(ग) भारत का कपड़ा निर्यात ___ सदी में गिरने लगा।
उत्तर:-
(क) अंग्रेजी का शिंट्ज़ शब्द हिंदी के छींट शब्द से निकला है।
(ख) टीपू की तलवार वुट्ज स्टील से बनी थी।
(ग) भारत का कपड़ा निर्यात 19वीं सदी में गिरने लगा।
आइए विचार करें:-
प्रश्न 6 – विभिन्न कपड़ों के नामों से उनके इतिहासों के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर :- (1) यूरोप के व्यापारियों ने भारत से आने वाला बारीक सूती कपड़ा सबसे पहले वर्तमान ईराक के मोसूल शहर में अरब व्यापारियों के पास देखा था। मोसूल के नाम पर वे बारीक बुनाई वाले सभी कपड़ों को “ मस्लिन “ कहने लगे। शीघ्र ही यह शब्द खूब प्रचलित हो गया।
(2) मसालों की तलाश में भारत में आने वाले पुर्तगालियों ने दक्षिण–पश्चिमी भारत में केरल के तट पर कालीकट में डेरा डाला। यहां से वे मसालों के साथ–साथ सूती कपड़ा भी ले जाते थे। कालीकट से निकले शब्द के आधार पर वे इस कपड़े को “ कैलिको “ कहने लगे। बाद में हर तरह के सूती कपड़े को कैलिको ही कहा जाने लगा।
(3) छींट शब्द का भी अपना इतिहास है। 1730 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता स्थित अपने नुमाइंदों के पास कपड़ों का एक आर्डर भेजा था। उनमें छापेदार सूती कपड़े भी शामिल थे। उन्हें ये व्यापारी शिंट्ज़ , कोसा और बंडाना कहते थे। अंग्रेज़ी का शिंट्ज़ शब्द यहां हिंदी के ‘ छींट ‘ शब्द से निकला है। 1680 के दशक तक इंग्लैंड और यूरोप में छापेदार भारतीय सूती कपड़े की जबरदस्त मांग थी। आकर्षक फूल – पत्तियों, बारीक रेशे और कम मूल्य के कारण भारतीय कपड़ा ही लोकप्रिय था। इंग्लैंड के धनी लोग ही नहीं बल्कि स्वयं महारानी भी भारतीय कपड़ों से बने परिधान पहनती थी।
(4) बंडाना शब्द का प्रयोग गले या सिर पर पहनने वाले तीखे रंग के छापेदार गुलूबंद के लिए किया जाता है। इस श्रेणी में ऐसे बहुत से कपड़े आते थे जिन्हें बांधने और रंगसाजी की विधियों से ही बनाया जाता था। आर्डर में कुछ अन्य कपड़ों का भी उल्लेख है जिनका नाम उनके जन्म स्थान के अनुसार लिखा गया था। कासिमबाज़ार, पटना, कलकत्ता, उड़ीसा, चारपूर आदि। इन शब्दों के व्यापक प्रयोग से पता चलता है कि संसार विभिन्न भागों में भारतीय कपड़े कितने लोकप्रिय थे।
प्रश्न 7 – इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध क्यों किया था ?
उत्तर :- विरोध होने के निम्नलिखित कारण है :-
- अठारहवीं सदी में भारतीय कपड़ों की काफी लोकप्रियता बढ़ गई थी। जो अंग्रेजों को पसंद नहीं आया।
- भारतीय कपड़े की इंग्लैंड में होड़ मची हुई थी। यहां तक कि इंग्लैंड की महारानी भी भारतीय कपड़ा पहनना ही पसंद करती थी।
- उस समय इंग्लैंड में नए कपड़ा कारखाने खुल रहे थे। भारत में ऊन तथा रेशम उत्पादक देखते हुए। अंग्रेज इंग्लैंड भी ऊन तथा रेशम उत्पादक बढ़ाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने भारतीय कपड़ों का विरोध करना शुरू कर दिया।
- अंग्रेज चाहते थे कि उनके देश में खाली हमारा पकड़ा ही लोग खरीदें।
- अंग्रेजों ने भारतीय कपड़ों का विरोध शुरू कर दिया और आयात पर रोक लगाने की मांग भी कर डाली।
प्रश्न 8 – ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर किस तरह के प्रभाव पड़े ?
उत्तर :- भारतीय कपड़े को यूरोप तथा अमरीका के बाजारों में ब्रिटिश कारखानों में बने कपड़े से मुकाबला करना पड़ता था। भारत से इंग्लैंड को कपड़े का निर्यात कठिन होता जा रहा था क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने भारत से आने वाले कपड़े पर भारी सीमा शुल्क लगा दिए थे। इंग्लैंड में बने सूती कपड़े ने उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक भारतीय बिक्री से पहले चीज़ों को जमा कपड़े को अफ्रीका, अमरीका और यूरोप के परंपरागत बाज़ारों से बाहर कर करके रखा जाता है। वर्कशॉप दिया था। इसकी वजह से हमारे यहाँ के हज़ारों बुनकर बेरोज़गार हो गए। के लिए भी यह शब्द इस्तेमाल सबसे बुरी मार बंगाल के बुनकरों पर पड़ी।
प्रश्न 9 – उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ ?
उत्तर :- पतन होने के निम्नलिखित कारण थे :-
- ब्रिटिश सरकार नया कानून लेकर आई थी जिसके कारण आरक्षित वनों लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी।
- पाबंदी लगने से कारीगरों को लड़की मिलनी काफी कठिन हो गया था।
- पाबंदी के कारण लौह – अयस्क (कॉपर) के स्रोत भी बंद हो गए
- आजीविका के लिए धीरे धीरे लोग अपना काम बदलने लगे।
- इसी कारण धीरे धीरे भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन हो गया।
प्रश्न 10 – भारतीय वस्त्रोद्योग को अपने शुरुआती सालों में किन समस्याओं से जूझना पड़ा ?
उत्तर :- भारतीय वस्त्र उद्योग को शुरुआती सालों में कई प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ा। सबसे बड़ी समस्या तो यह थी कि इस उद्योग को ब्रिटेन से आए सस्ते कपड़ों का मुकाबला करना पड़ता था। अधिकतर देशों में सरकारें आयात होने हाली वस्तुओं पर सीमा शुल्क लगा कर अपने देश में औद्योगीकरण को बढ़ावा देती थीं। इससे प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जाती थी और संबंधित देश के नए उद्योगों को संरक्षण मिलता था। परंतु भारत की अंग्रेज़ी सरकार ने भारत में नवस्थापित वस्त्र उद्योग को इस तरह की सुरक्षा प्रदान नहीं की। परिणामस्वरूप भारत में वस्त्र उद्योग के विकास की गति मंद रही।
प्रश्न 11 – पहले महायुद्ध के दौरान अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में टिस्को को किस बात से मदद मिली ?
उत्तर :- (1) टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (टिस्को) की स्थापना हुई जिसमें 1912 में स्टील का उत्पादन होने लगा। टिस्को की स्थापना बहुत सही समय पर हुई थी, क्योंकि उन्नीसवीं सदी में भारत आमतौर पर ब्रिटेन में बने स्टील का आयात कर रहा था।
(2) भारत में रेलवे के विस्तार की वजह से ब्रिटेन में बनी पटरियों की यहाँ भारी माँग थी। काफी समय तक भारतीय रेलवे से जुड़े अंग्रेज विशेषज्ञ यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि भारत में भी श्रेष्ठ इस्पात का निर्माण संभव है। जब तक टिस्को की स्थापना हुई, हालात बदलने लगे थे।
(3) 1914 में पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ। ब्रिटेन में बनने वाले इस्पात को यूरोप में युद्ध संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए झोंक दिया गया। इस तरह भारत आने वाले ब्रिटिश स्टील की मात्रा में भारी गिरावट आई और रेल की पटरियों के लिए भारतीय रेलवे टिस्को पर आश्रित हो गया।
(4) जब युद्ध लंबा खिंच गया तो टिस्को को युद्ध के लिए गोलों के खोल और रेलगाड़ियों के पहिये बनाने का काम भी सौंप दिया गया। 1919 तक स्थिति यह हो गई थी कि टिस्को में बनने वाले 90 प्रतिशत इस्पात को औपनिवेशिक सरकार ही खरीद लेती थी। जैसे – जैसे समय बीता टिस्को समस्त ब्रिटिश साम्राज्य में इस्पात का सबसे बड़ा कारखाना बन चुका था।
आइए करके देखे:-
प्रश्न 12 – जहाँ आप रहते हैं उसके आस – पास प्रचलित किसी हस्तकला का इतिहास पता लगाएँ। इसके लिए आप दस्तकारों के समुदाय, उनकी तकनीक में आए बदलावों और उनके बाजारों के बारे में जानकारियाँ इकट्ठा कर सकते हैं। देखें कि पिछले 50 साल के दौरान इन चीजों में किस तरह बदलाव आए हैं ?
उत्तर :- छात्र इस प्रश्न का उत्तर खुद लिखें।
प्रश्न 13 – भारत के नक्शे पर विभिन्न हस्तकलाओं के अलग – अलग केंद्रों को चिह्नित करें। पता लगाएँ कि ये केंद्र कब पैदा हुए ?
छात्र नक्शे पर खुद चिह्नित करें .
उत्तर :- लकड़ी की नक्काशी:- भारत में पारंपरिक लकड़ी की नक्काशी प्राचीन काल से मौजूद है। जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में लकड़ी की नक्काशी के प्रमुख केंद्र हैं।
कालीन :- भारत में कालीन उद्योग मुगल वंश की स्थापना के साथ विकसित हुआ था। फारस और तुर्की से कालीनों का आयात किया जाता था। आज राजस्थान और उत्तर प्रदेश कालीन उद्योग के लिए प्रसिद्ध हैं।
रेशम:- भारत में कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु प्रमुख रेशम उत्पादक हैं।
कढ़ाई :- भारत में कढ़ाई में विभिन्न शैलियाँ शामिल हैं जो क्षेत्र और कपड़ों की शैली के अनुसार भिन्न होती हैं। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश विभिन्न प्रकार के कढ़ाई कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं।
ऊनी: प्रमुख ऊन उत्पादक राज्य राजस्थान, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और गुजरात हैं। अमृतसर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
कक्षा 8 इतिहास के सभी अध्यायों के एनसीईआरटी समाधान नीचे टेबल से देखें
अध्याय की संख्या | अध्याय के नाम |
अध्याय 1 | कैसे, कब और कहाँ |
अध्याय 2 | व्यापार से साम्राज्य तक कंपनी की सत्ता स्थापित होती है |
अध्याय 3 | ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना |
अध्याय 4 | आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पना |
अध्याय 5 | जब जनता बग़ावत करती है 1857 और उसके बाद |
अध्याय 6 | बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक |
अध्याय 7 | “देशी जनता” को सभ्य बनाना राष्ट्र को शिक्षित करना |
अध्याय 8 | महिलाएँ, जाति एवं सुधार |
अध्याय 9 | राष्ट्रीय आंदोलन का संघटन : 1870 के दशक से 1947 तक |
अध्याय 10 | स्वतंत्रता के बाद |
छात्रों को ncert solutions for class 8 social science in hindi medium में प्राप्त करके काफी खुशी हुई होगी। कक्षा 8 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक के लिए एनसीईआरटी समाधान देने का उद्देश्य केवल छात्रों को बेहतर ज्ञान देना है। इसके अलावा आप परीक्षा पॉइंट के एनसीईआरटी के पेज से सभी विषयों के एनसीईआरटी समाधान (NCERT Solutions in hindi) और हिंदी में एनसीईआरटी की पुस्तकें (NCERT Books In Hindi) भी प्राप्त कर सकते हैं। हम आशा करते है कि आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा।
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