मन्नू भंडारी द्वारा लिखी ‘एक कहानी यह भी’ बहुत ही सुंदर है। आज हम इस आर्टिकल से कक्षा 10 एक कहानी यह भी के प्रश्न उत्तर पढ़ेंगे। यह प्रश्न उत्तर छात्रों को आने वाली परीक्षाओं की तैयारी करने बहुत सहायता देंगे। सभी प्रश्न के उत्तर को सरल और सटीक भाषा में लिखा गया है।
कक्षा | 10 |
विषय | हिंदी (क्षितिज भाग 2) |
पाठ | 10 |
पाठ का नाम | एक कहानी यह भी (मन्नू भंडारी) |
बोर्ड | सीबीएसई |
पुस्तक | एनसीईआरटी |
शैक्षणिक सत्र | 2025-26 |
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?
उत्तर :- (क) पिता का प्रभाव – लेखिका के व्यक्तित्व पर अगर सबसे ज्यादा किसी का प्रभाव पड़ा तो वह थे लेखिका के पिताजी। मन्नू भंडारी के पिता का इस कहानी में सकारात्मक पहलू देखने को मिलता है। तो दूसरी ओर पिताजी को हम नकारात्मक रूप में भी देख सकते हैं। पहले हम लेखिका के पिताजी का सकारात्मक पहलू बताते हैं। लेखिका के पिता ने लेखिका को समाज में निडरता के साथ रहना सिखाया। लेखिका के पिता चाहते थे कि लेखिका सामाजिक गतिविधियों में सक्रियता से हिस्सा ले। वह लेखिका को देश का महान नागरिक बनाना चाहते थे। तो वहीं दूसरी ओर लेखिका के पिता का हमको नकारात्मक रूप भी देखने को मिलता है। लेखिका के पिता अपनी बड़ी से लेखिका की तुलना किया करते थे। लेखिका की बहन सुंदर और गोरी चिट्टी थी। इसी बात के चलते लेखिका अपने आप को कम आंकने लगी थी।
(ख) प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का प्रभाव – लेखिका के जीवन पर प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का प्रभाव भी बहुत अच्छा पड़ा था। लेखिका ने कई कारणों से अपना आत्मविश्वास खो दिया था। लेकिन लेखिका की प्राध्यापिका ने उस आत्मविश्वास को दुबारा जागृत किया। शीला अग्रवाल ने ही लेखिका को देशप्रेम का असली अर्थ समझाया। लेखिका अपनी प्राध्यापिका की संगत में रहकर साहित्य प्रेमी और सच्ची देशभक्त बन गई।
प्रश्न 2 – इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?
उत्तर :- इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को भटियारखाना कहा है। भटियारखाना वह जगह है जहाँ हमेशा भट्ठी जलती रहती है, और उसपर खाना पकता रहता है। या भटियारखाना उस जगह को कहते हैं जहाँ हर पल शोर रहता है। लेखिका के पिता नहीं चाहते थे कि लेखिका का दायरा केवल रसोई तक ही सीमित रह जाए। क्योंकि पिताजी ने अक्सर यही देखा था कि एक बार रसोई में घुसने के बाद एक लड़की का जीवन रसोई में रोटियां बनाने में ही बीत जाता है। वह अपनी लड़की को दबंग बनाना चाहते थे। वह चाहते थे कि लेखिका दूसरी आम लड़कियों से बिल्कुल अलग हो।
प्रश्न 3 – वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को ना अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?
उत्तर :- लेखिका बहुत ही आजाद ख्याल वाली महिला थी। लेखिका को अपने पिता और अपनी अध्यापिका की बदौलत ही देश के लिए प्रेम का रंग चढ़ा था। काॅलेज के दिनों की बात है जब लेखिका राजनैतिक कार्यक्रमों में बड़े ही उत्साह और सक्रियता के साथ भाग लेने लगी थी। लेखिका का यूं कार्यक्रमों में भाग लेना काॅलेज की कई अध्यापक और प्रिसिंपल को गवारा नहीं। वह सब लेखिका की हड़तालों से और लड़कों के साथ शहर की सड़कें नापने तक की हरकतों से तंग आ गए थे। उन सभी को लगता था कि लेखिका अन्य सीधी और सरल लड़कियों को बिगाड़ देगी। इसलिए एक दिन प्रिसिंपल ने लेखिका के पिता को बुलाकर उसकी शिकायत कर दी। जब लेखिका को इस बारे में खबर मिली तो एक बार के लिए तो वह डर गई। लेकिन जब लेखिका के पिता ने लेखिका को राजनैतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए शाबासी दी तो उसे ना अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर।
प्रश्न 4 – लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :- इस पूरी आत्मकथा को पढ़कर यही मालूम चलता है कि लेखिका बहुत आजाद ख़यालों वाली महिला थी। अपने काॅलेज के दिनों में वह स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगी थी। लेखिका के पिता कुछ अलग ही ख़्याल रखते थे। वह क्रांग्रेस पार्टी से ताल्लुक रखते थे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई उँचे पद हासिल किए। वह अपनी जिंदगी शान शौकत से जीना पसंद करते थे। वह चाहते थे कि लेखिका घर की चारदीवारी के बीच रहकर ही पूरी दुनिया के बारे में खबर रखे। लेकिन 46-47 के दशक में चारदीवारी के भीतर रहकर कोई भी बड़ा कार्य नहीं किया जा सकता था। जब लेखिका के पिता को पता चला कि वह लड़कों के साथ उठ बैठ रही है। और सड़कों पर बेखौफ होकर हड़तालें कर रही है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया। लेकिन लेखिका अपने पिता के विचारों से बिल्कुल विपरीत थी। लेखिका को अपनी आजादी बहुत प्यारी थी। इसी वजह से उसकी अपने पिता से वैचारिक टकराहट रहती थी।
प्रश्न 5 – इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।
उत्तर :- 46-47 तक का वह दौर बिल्कुल ही अलग था। उस समय सभी देशवासियों के मन में स्वतंत्रता की ज्वाला बह रही थी। कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी थी। इसी स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा मन्नू भंडारी भी बनी। उन दिनों वह काॅलेज में थी। मन्नू भंडारी अनेक प्रकार के राजनैतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती थी। वह सड़कों पर लड़कों के साथ बड़ी ही गर्मजोशी के साथ भाषण दिया करती थी। वह हाथ उठाकर नारे लगाया करती थी। हुड़दंग भी मचाया करती थी। बहुत बार ऐसा भी होता जब वह हड़तालों में भी शामिल हुआ करती थी। मन्नू भंडारी के दिल में देश को आजाद करवाने की ज्वाला भड़क रही थी। काॅलेज की सारी लड़कियां मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गई थी। वह सब मन्नू के एक ही इशारे पर सब कुछ करने को तैयार थी।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 6 – लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए।
उत्तर :- मन्नू भंडारी जिस दौर में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल खेलती थी उस दौर में एक औरत के लिए यह सब करना उचित नहीं माना जाता था। पहले के समय में महिलाओं को केवल घर के दायरे में रहकर ही काम करना पड़ता था।महिलाएं केवल एक अच्छी बेटी, पत्नी और मां की भूमिका निभाती थी। लेकिन समय ने करवट भी बदली। आज जिस दौर में हम सब रह रहे हैं वह लेखिका के जमाने से बहुत अलग है। आज 21वीं शताब्दी की नारी हर उन उपलब्धियों को हासिल कर रही है जो कुछ समय पहले केवल पुरूषों तक ही सीमित थे। आज की महिला सभी पुरानी बंदिशों को तोड़ चुकी है।
प्रश्न 7 – मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है, परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :- पड़ोस कल्चर एक अलग प्रकार का आनंद देता है। कुछ जादू है इस प्रकार के कल्चर में। पड़ोसी हमें आत्मीयता सीखाते हैं। हमें साथ रहने की कला सीखाते हैं। अच्छे पड़ोसी बुरे समय में हमारी बहुत मदद करते हैं। लेकिन महानगरों में लोगों का रहन सहन बहुत अलग है। महानगर में लोग अकेला रहना पसंद करते हैं। वह समाज से कटे कटे से रहते हैं। महानगरों में रहने वाले लोगों को पड़ोस कल्चर के बारे में कुछ नहीं पता।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 8 – इस आत्मकथा में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएं।
(क) इस बीच पिताजी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर पिताजी के अच्छी तरह से लू उतारी।
(ख) वे तो आग लगा कर चले गए और पिताजी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) अब बस यही रह गया है कि लोग घर आकर धू-धू करके चले जाएं।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिताजी आग बबूला हो गए।
उत्तर-
(क) लू उतारी – जब मोहन ने शैतानी की उसकी मां ने उसकी लू उतारी।
(ख) आग लगाना – महिमा ने राम की जिंदगी में आग लगाने का काम किया।
(ग) धू-धू करना- धू-धू करके पूरी इमारत जल गई।
(घ) आग बबूला- आज पिताजी सुबह से आग बबूला हैं।