आप इस आर्टिकल के माध्यम से कक्षा 10 हिंदी क्षीतिज पाठ 11 नौबतखाने में इबादत के प्रश्न उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। नौबतखाने में इबादत के लेखक यतींद्र मिश्र है। नौबतखाने में इबादत के प्रश्न उत्तर सीबीएसई सिलेबस को ध्यान में रखकर तैयार किये गए है। ताकि छात्र परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकें।
कक्षा | 10 |
विषय | हिंदी (क्षितिज भाग 2) |
पाठ | 11 |
पाठ का नाम | नौबतखाने में इबादत (यतींद्र मिश्र) |
बोर्ड | सीबीएसई |
पुस्तक | एनसीईआरटी |
शैक्षणिक सत्र | 2025-26 |
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1 – शहनाई की दुनिया में डुमरांव को क्यों याद किया जाता है?
उत्तर :- शहनाई की दुनिया में डुमरांव गांव को इसलिए याद किया जाता है क्योंकि इसी गांव से मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां का जन्म हुआ था। यह गांव एक और कारण से मशहूर है और वह है शहनाई की वजह से। जिस शहनाई के लिए रीड की जरूरत होती है वह रीड केवल डुमरांव गांव में ही मिलती है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इतनी ही महत्ता है इस समय डुमराँव की जिसके कारण शहनाई जैसा वाद्य बजता है। इसके अलावा बिस्मिल्लाह खां के परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ भी इसी गांव में जन्मे थे।
प्रश्न 2. बिस्मिल्लाह खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर :- बिस्मिल्लाह खां को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक इसलिए माना गया है क्योंकि बिस्मिल्लाह खां बचपन से ही शहनाई बजाते थे।शहनाई की धुन को मंगल माना जाता रहा है। अक्सर मांगलिक कार्यों में शहनाई बजाने का रिवाज है। हालांकि वैदिक काल के इतिहास में शहनाई जैसे यंत्र का कोई जिक्र नहीं मिलता है। लेकिन अवधी पारंपरिक लोकगीतों और चैती में शहनाई को मान्यता दी जाती है। दक्षिण भारत में नागस्वरम् को मंगल वाद्य माना जाता है। और शहनाई को प्रभाती का मंगलध्वनि माना गया है। बिस्मिल्लाह खां को पूरी दुनिया शहनाई बजाने के लिए ही याद करती है। बिस्मिल्लाह खां भगवान से यही प्रार्थना करते थे कि उनकी शहनाई की धुन हर जगह सुनाई दे। शहनाई को बिस्मिल्लाह खां के लिए बहुत खास यंत्र माना जाता था।
प्रश्न 3. सुषिर – वाघो से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिरवाघो में शाह ’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?
उत्तर :- संगीत शास्त्रांतर्गत में शहनाई को सुषिर-वाघो की श्रेणी में डाला जाता है। जिन वाघो को फूंककर बजाया जाता है उन्हें सुषिर वाघ कहा जाता है। अरब देश के इतिहास में उल्लेख मिलता है कि बहुत से ऐसे वाघ यंत्र होते हैं जिन्हें फूंककर बजाया जाता है। उनमें एक शहनाई भी आती है। शहनाई में नरकट या रीड होती है। इसी वजह से शहनाई को बजाने में आसानी होती है। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में तानसेन के द्वारा रची बंदिश, जो संगीत राग कल्पद्रुम से प्राप्त होती है, में शहनाई, मुरली, वंशी, श्रृंगी एवं मुरचंग आदि का वर्णन आया है। अवधी पारंपरिक लोकगीतों एवं चैती में शहनाई का उल्लेख बार-बार मिलता है। शहनाई एक अलग ही प्रकार का वाघ है और इसे शाह की उपाधि दी जाती है।
प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए–
(क) ‘फटा सुर न बख्शें, लुंगिया का क्या है, आज फटी है तो कल सी जाएगी।’
(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आंखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आए।
उत्तर :- (क) एक दिन बिस्मिल्ला खाँ की शिष्या ने कहा कि, “बाबा आप इतने बड़े कलाकार होते हुए भी फटी हुई धोती क्यों पहनते हो?” तो इस बात पर बिस्मिल्ला खाँ साहब ने कहा कि फटी हुई लुंगिया से कोई फर्क नहीं पड़ता। फटी हुई लुंगिया दोबारा सिली जा सकती है। लुंगिया को खरीदा भी जा सकता है। लेकिन बिस्मिल्लाह खाँ कहते हैं कि उनके खुदा उनको कभी भी फटा हुआ सुर ना बख्शे। अगर सुर ही बेसुरा हुआ तो कौन उनको सुनना पसंद करेगा। फटे हुए सुर को बदला नहीं जा सकता है।
(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आंखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आए।’ इस पंक्ति में बिस्मिल्लाह खां खुदा से सुर को बख्शने की गुहार लगा रहे हैं। वह 80 वर्ष के होने के वाबजूद भी वह पांच वक्त की नमाज पढ़ा करते थे ताकि खुदा उनके सुर को और भी अच्छा बना दे। वह चाहते थे कि खुदा उनके सुर में वह तासीर पैदा कर कि आंखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आए।
प्रश्न 5. काशी में हो रहे कौन से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
उत्तर :- काशी एक अद्भुत शहर है। इस शहर में गंगा जुमना तहजीब है। काशी हजारों साल पुराना शहर है। यहां गजब की संस्कृति देखने को मिलती है। यह सारी चीजें बिस्मिल्लाह खां को अपने जमाने में देखने को मिलती थी। लेकिन उनको आज के जमाने में काशी में बहुत कुछ चीजों की कमी खलती है। जो पहले के जमाने में गर्मा गर्म कचौड़ी और जलेबी खाने को मिलती थी वह अब नहीं मिलती। अब संगतियों के लिए गायकों के मन में कोई आदर नहीं रहा । खाँ साहब अफसोस जताते हैं। अब घंटों रियाज़ को कौन पूछता है? हैरान हैं बिस्मिल्लाह खाँ को कजली, चैती और अदब के जमाने की याद सताती है। खां साहब को यह बात हैरान करती है कि काशी पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ़ गया, संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएँ लुप्त हो गई। एक सच्चे सुर साधक और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ साहब को इन सबकी कमी खलती है।
प्रश्न 6. पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि–
(क) बिस्मिल्लाह खां मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
उत्तर :- बिस्मिल्लाह खां सचमुच मिली जुली संस्कृति के प्रतीक थे। वह थे तो मुस्लिम परिवार के बेटे लेकिन उनकी रगों में हर समुदाय का खून दौड़ता था। वह गंगा मइया को पूजते थे। उन्हें बाबा विश्वनाथ और बालाजी के मंदिर से अत्यंत लगाव था। वह काशी की धरती को अपनी मां मानते थे। वह कहते थे कि काशी जैसा स्वर्ग दुनिया में और कही नहीं है। उनके लिए होली, दीवाली और ईद एक समान थे। वह संकटमोचन मंदिर में होने वाली गायन वादन प्रतियोगिता में सबसे खास मेहमान होते थे। एक बार उन्होंने यह भी कहा ‘- ‘क्या करें मियाँ ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मंदिर यहाँ, यहाँ हमारे खानदान की कई पुश्तों ने शहनाई बजाई है, हमारे नाना तो वहीं बालाजी मंदिर में बड़े प्रतिष्ठित शहनाईवाज रह चुके हैं। अब हम क्या करें, मरते दम तक न यह शहनाई छूटेगी न काशी। जिस जमीन ने हमें तालीम दी, जहाँ से अदब पाई, वो कहाँ और मिलेगी? शहनाई और काशी से बढ़कर कोई जन्नत नहीं इस धरती पर हमारे लिए।’
(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इंसान थे।
उत्तर :- बिस्मिल्लाह खां आडंबर पर विश्वास नहीं किया करते थे। उन्हें अपने सुर से बहुत लगाव था। वह शहनाई से निकलने वाले सुर को भगवान की देन मानते थे। खां साहब को सादगी से बेहद लगाव था। उनके दिल में किसी के लिए भी गलत भावना नहीं थी। खां साहब सुर की तमीज सिखाने वाला नायाब हीरा थे जो हमेशा से दो कौमों को एक होने व आपस में भाईचारे के साथ रहने की सीख देते थे। भारतरत्न से लेकर इस देश के ढेरों विश्वविद्यालयों की मानद उपाधियों से अलंकृत व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार एवं पद्मविभूषण जैसे सम्मानों से नहीं, बल्कि अपनी अजेय संगीतयात्रा के लिए विस्मिल्ला खाँ साहब भविष्य में हमेशा संगीत के नायक बने रहेंगे।
प्रश्न 7 – बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?
उत्तर :-
- मात्र चार साल की उम्र में बिस्मिल्लाह खां अपने नाना को छुपकर शहनाई बजाते हुए हर दिन देखा करता था।
- बिस्मिल्लाह अपने मामा के शहनाई बजाने से भी काफी प्रभावित था। मामू अलीबख्श खाँ (जो उस्ताद भी थे ) शहनाई बजाते हुए जब सम पर आता था तो वह तब धड़ से एक पत्थर ज़मीन पर मारता था।
- बचपन के समय फ़िल्मों के बुखार के बारे में तो पूछना ही क्या? उस समय थर्ड क्लास के लिए छ: पैसे का टिकट मिलता था। बिस्मिल्लाह दो पैसे मामू से दो पैसे मौसी से और दो पैसे नानी से लेता था फिर घंटों लाइन में लगकर टिकट हासिल करता था।
- कुलसुम की देशी घी वाली दुकान बिल्कुल अलग थी। वहाँ की संगीतमय कचौड़ी बनाने वाली कुलसुम जब कलकलाते घी में कचौड़ी डालती थी, उस समय छन्न से उठने वाली आवाज़ में उन्हें सारे आरोह-अवरोह दिख जाते थे।
- बिस्मिल्लाह रसूलनबाई और बतूलनबाई के गायन से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। उन्हें शहनाई सीखने की प्रेरणा इन दोनों से मिली।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8. बिस्मिल्लाह खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
उतर :-
- बिस्मिल्लाह खां का जीवन सादगी में बीता था। वह किसी भी तरह के ढोंग में विश्वास नहीं करते थे।
- वह किसी भी जाति धर्म में भेदभाव नहीं किया करते थे। वह मानते थे कि हिंदु और मुसलमान सब एक है।
- खां साहब को इश्वर में बहुत ज्यादा श्रद्धा थी। इसका पता हम यूं लगा सकत हैं कि खां साहब हर दिन पांच बार नमाज पढ़ते थे। उन्हें हिंदू मंदिरों से भी बहुत लगाव था।
- बिस्मिल्लाह खां ने कभी भी दिखावे में विश्वास नहीं किया। उन्होंने अपने जीवन में अनेकों पुरस्कार हासिल किए थे। लेकिन उनके चेहरे पर कभी भी अभिमान नहीं देखा गया।
- उनके लिए भारत देश दुनिया का सबसे खूबसूरत देश था। वह काशी में जन्मे थे इसलिए यह शहर उनके दिल की गहराई तक बस गया था। उनके लिए काशी जन्नत थी। वह कहते थे कि काशी के लिए मोह वह मरते दम तक नहीं छोड़ सकते।
- उनको अपनी शहनाई से निकलने वाले सुर से बहुत ज्यादा प्रेम था। संगीत ही उनका जीवन था। वह संगीत के लिए ही जीते थे।
- बिस्मिल्लाह खां बहुत मेहनती किस्म के व्यक्ति थे। 80 वर्ष पूरे करने पर भी ना तो उन्होंने संगीत का रियाज करना छोड़ा था और ना ही पांच वक्त का नमाज पढ़ना।
प्रश्न 9 – मुहर्रम से बिस्मिल्लाह खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :- मुहर्रम का महीना बिस्मिल्लाह खाँ के लिए बहुत खास होता था। वह इस त्यौहार को बड़े ही जोश के साथ मनाया करते थे। मुहर्रम का महीना वह होता है जिसमें शिया मुसलमान हजरत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति अजादारी (शोक मनाना) मनाते हैं। पूरे दस दिनों का शोक मनाया जाता है। खाँ साहब कहते हैं कि उनके खानदान का कोई व्यक्ति मुहर्रम के दिनों में न तो शहनाई बजाता है, न ही किसी संगीत के कार्यक्रम में शिरकत ही करता है। आठवीं तारीख उनके लिए खास महत्त्व की है। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते जाते हैं। इस दिन कोई राग नहीं बजता। इस दिन राग-रागिनियों की अदायगी का निषेध रहता है।
प्रश्न 10 – बिस्मिल्लाह खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :- खाँ साहब किसी चीज के अगर अनन्य भक्त थे तो वह थी कला। कला उनके रोम रोम में बसी थी। संगीत से उनके दिन की शुरुआत होती थी। और संगीत पर ही खत्म होती थी। संगीत को लेकर उनकी दीवानगी को हम इस तरह समझ सकते हैं कि सर्वश्रेष्ठ सुर पाने के लिए वह खुदा से दिन रात यही प्रार्थना करते थे कि खुदा उनको अच्छा सुर प्रदान करे जिससे कि वह मरते दम तक शहनाई बजाते ही रहें।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 11. निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए-
(क) यह ज़रूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।
उत्तर :- उपवाक्य : शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी है।भेद : संज्ञा आश्रित उपवाक्य
(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।
उत्तर :- उपवाक्य : जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। भेद : विशेषण आश्रित उपवाक्य
(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव के मुख्यतः सोन नदी के किनारे पाई जाती है।
उत्तर :- उपवाक्य : जो डुमराँव के मुख्यतः सोन नदी के किनारे पाई जाती है। भेद : विशेषण आश्रित उपवाक्य
(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उनपर मेहरबान होगा।
उत्तर :- उपवाक्य : कभी खुदा यूँ ही उनपर मेहरबान होगा। भेद: संज्ञा आश्रित उपवाक्य
(ड़) हिरन अपनी ही महक से परेशान पुरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।
उत्तर :- उपवाक्य : जिसकी गमक उसी में समाई है। भेद: विशेषण आश्रित उपवाक्य
(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होनें संगीत को सम्पूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।
उत्तर :- उपवाक्य : पूरे अस्सी बरस उन्होनें संगीत को सम्पूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा। भेद: संज्ञा आश्रित उपवाक्य
प्रश्न 12. निम्लिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-
(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।
उत्तर :- यह वही बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।
(ख) काशी में संगीत आयोजन कि एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
उत्तर :- काशी में संगीत का आयोजन होता है जो कि एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।
(ग) धत्! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।
उत्तर :- धत्! पगली ई भारतरत्न हमको लुंगिया पे नाहीं, शहनईया पे मिला है।
(घ) काशी का नायब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।
उत्तर :- यह जो काशी का नायब हीरा है वह हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।