एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत पाठ 5 कण्टकेनैव कण्टकम्

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छात्र इस आर्टिकल के माध्यम से एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 संस्कृत पाठ 5 कण्टकेनैव कण्टकम् प्राप्त कर सकते हैं। छात्रों के लिए इस आर्टिकल पर कक्षा 8 संस्कृत पाठ 5 कण्टकेनैव कण्टकम् के प्रश्न उत्तर दिए हुए है। ncert solutions class 8 sanskrit chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम् के लिए छात्र बाजार में मिलने वाली 8 वीं कक्षा संस्कृत गाइड पर काफी पैसा खर्च कर देते हैं। लेकिन यहां से छात्र संस्कृत कक्षा 8 पाठ 5 कण्टकेनैव कण्टकम् के प्रश्न उत्तर पूरी तरह से मुफ्त में प्राप्त कर सकते हैं। रुचिरा भाग 3 class 8 के प्रश्न उत्तर साधारण भाषा में बनाए गए है। ताकि छात्र kaksha 8 sanskrit की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सके।

Ncert Solutions For Class 8 Sanskrit Chapter 5

कक्षा 8 संस्कृत पाठ 5 के लिए एनसीईआरटी समाधान राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की सहायता से बनाए गए है। संस्कृत भाषा की जितनी बात करें उतना ही कम होगा। संस्कृत साहित्य का इतिहास बहुत बड़ा है। संस्कृत भाषा आज भी भारत की राजभाषा है। छात्र ncert solutions for class 8 sanskrit chapter 5 कण्टकेनैव कण्टकम् के माध्यम से परीक्षा की तैयारी अच्छे से कर सकते हैं। कक्षा आठवीं संस्कृत पाठ 5 के प्रश्न उत्तर नीचे देखें।

अभ्यास:

1 . एकपदेन उत्तरं लिखत-

(क) व्याधस्य नाम किम् आसीत् ?

(ख) चञ्चल: व्याघ्रं कुत्र दृष्टवान् ?

(ग) कस्मै किमपि अकार्यं न भवति।

(घ) बदरी-गुल्मानां पृष्ठे का निलीना आसीत् ?

(ङ) सर्वः किं समीहते ?

(च) निःसहायो व्याध: किमयाचत ?

उत्तराणि:- (क) चञ्चलः

(ख) जाले

(ग) क्षुधार्ताय

(घ) लोमशिका

(ङ) स्वार्थम्

(च) प्राणभिक्षाम्

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत–

(क) चञ्चलेन वने किं कृतम्?

(ख) व्याघ्रस्य पिपासा कथं शान्ता अभवत्?

(ग) जलं पीत्वा व्याघ्रः किम् अवदत्?

(घ) चञ्चलः ‘मातृस्वसः!’ इति कां सम्बोधितवान्?

(ङ) जाले पुनः बद्धं व्याघ्रं दृष्ट्वा व्याध: किम् अकरोत्?

उत्तराणि:- (क) चञ्चलेन वने जालं विस्तारितवान्।

(ख) व्याधेन आनीतेन नडीजलेन व्याघ्रस्य पिपासा शान्ता अभवत्‌।

(ग) जलं पीत्वा व्याघ्र: अवदत्‌ – “शान्ता मे पिपासा”। साम्प्रतं बुभुक्षितोऽस्मि। इदानीम् अहं त्वां खादिष्यामि।“

(घ) चञ्चल: ‘मातृस्वस:!’ इति लोमशिकां सम्बोधितवान्‌।

(ड़) जाले पुन: बद्धं व्याघ्रं दृष्ट्वा व्याध: प्रसन्नो भूत्वा गृहं प्रत्यावर्तत।

3. अधोलिखितानि वाक्यानि कः/का कं/कां प्रति कथयति-

                                      कः/का   कं/कां

यथा-इदानीम् अहं त्वां खादिष्यामि। व्याघ्रः  व्याधम्

(क) कल्याणं भवतु ते।   …………  …………

(ख) जनाः मयि स्नानं कुर्वन्ति।  …………  …………

(ग) अहं त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान् त्वया मिथ्या भणितम्।  …………  …………

(घ) यत्र कुत्रापि छेदनं कुर्वन्ति।  ………… …………

(ङ) सम्प्रति पुनः पुनः कूर्दनं कृत्वा दर्शय। …..  ……

उत्तराणि:-     

                                  कः/का  कम्/काम्

(क) कल्याणं भवतु ते।    व्याघ्रः व्याधम्

(ख)  जनाः मयि स्नानं कुर्वन्ति।  नदीजलम् व्याधम्

(ग) अहं त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान् त्वया मिथ्या भणितम्।  व्याधः  व्याघ्रम्

(घ) यत्र कुत्रापि छेदनं कुर्वन्ति।   वृक्षः    व्याधम्

(ङ) सम्प्रति पुनः पुनः कूर्दनं कृत्वा दर्शय।  लोमशिका     व्याघ्रम्

4. रेखांकित पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माण–

(क) व्याध: व्याघ्रं जालात् बहिः निरसारयत्।

(ख) चञ्चलः वृक्षम् उपगम्य अपृच्छत्।

(ग) व्याघ्रः लोमशिकायै निखिलां कथां न्यवेदयत्।

(घ) मानवाः वृक्षाणां छायायां विरमन्ति।

(ङ) व्याघ्रः नद्याः जलेन व्याधस्य पिपासामशमयत्।

उत्तराणि:-

(क) व्याधः व्याघ्रं कस्मात् बहिः निरसारयत्।

(ख) चञ्चलः कम् उपगम्य अपृच्छत्।

(ग) व्याघ्रः कस्मै निखिलां कथां न्यवेदयत्।

(घ) मानवाः केषां छायायां विरमन्ति।

(ङ) व्याघ्रः कस्याः जलेन व्याधस्य पिपासामशमयत्।

5. मञ्जूषातः पदानि चित्वा कथां पूरयत-

वृद्ध:   कृतवान्   अकस्मात्    दृष्ट्वा  मोचयितुम्

साटृहासम   क्षुद्रः    तर्हि      स्वकीयैः  कर्तनम्

एकस्मिन् वने एकः ………………. व्याघ्रः आसीत्। सः एकदा व्याधेन विस्तारिते जाले बद्ध: अभवत्। सः बहुप्रयासं ………………. किन्तु जालात् मुक्तः नाभवत्। ………………. तत्र एकः मूषकः समागच्छत्। बद्धं व्याघ्रं ………………. सः तम् अवदत्-अहो! भवान् जाले बद्ध:। अहं त्वां ………………. इच्छामि। तच्छ्रुत्वा व्याघ्रः …………..अवदत्-अरे! त्वं ……….. जीवः मम साहाय्यं करिष्यसि। यदि त्वं मां मोचयिष्यसि ……………….अहं त्वां न हनिष्यामि। मूषकः ………………. लघुदन्तैः तज्जालस्य ………………. कृत्वा तं व्याघ्रं बहिः कृतवान्।

उत्तराणि:- एकस्मिन्‌ वने एक: वृद्ध: व्याघ्र: आसीत्‌। स: एकदा व्याधेन विस्तारिते जाले बद्ध: अभवत्‌। स: बहुप्रयासं कृतवान्‌ किन्तु जालात्‌ मुक्त: नाभवत्‌। अकस्मात्‌ तत्र एक: मूषक: समागच्छत्‌। बद्धं व्याघ्रं दृष्ट्वा स: तम्‌ अवदत्‌-अहो! भवान्‌ जाले बद्ध:। अहं त्वां मोचयितुम्‌ इच्छामि। तच्छ्रुत्वा व्याघ्र: साट्टहासम्‌ अवदत्‌-अरे! त्वं क्षुद्र: जीव: मम सहाय्यं करिष्यसि। यदि त्वं मां मोचयिष्यसि तर्हि अहं त्वां न हनिष्यामि। मूषक: स्वकीयै: लघुदन्तै: तज्जालस्य कर्तनम्‌ कृत्वा तं व्याघ्रं बहि: कृतवान्‌।

6. यथानिर्देशमुत्तरत–

(क) सः लोमशिकायै सर्वां कथां न्यवेदयत् – अस्मिन् वाक्ये विशेषणपदं किम्।

(ख) अहं त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान् – अत्र अहम् इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्।

(ग) ‘सर्वः स्वार्थं समीहते’, अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्।

(घ) सा सहसा चञ्चलमुपसृत्य कथयति – वाक्यात् एकम् अव्ययपदं चित्वा लिखत।

(ङ) ‘का वार्ता? माम् अपि विज्ञापय’ – अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम्? क्रियापदस्य पदपरिचयमपि लिखतः।

उत्तराणि:-

(क) स लोमशिकायै सर्वां कथां न्यवेदयत् – अस्मिन् वाक्ये ’सर्वाम्’ इति विशेषणपदम्।

(ख) अहं त्वत्कृते धर्मम् आचरितवान् – अत्र अहम् इति सर्वनामपदं चञ्चलाय प्रयुक्त

(ग)’सर्वः स्वार्थं समीहते’, अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं भवति सर्व इति।

(घ) सा सहसा चञ्चलमुपसृत्य कथयति – वाक्यात् एकम् अव्ययपदं हि सहसा इति।

(ङ) ’का वार्ता? माम् अपि विज्ञापय’ – अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं भवति विज्ञापय इति। तथाहि विपूर्वकात् भ्वादिगणीयात् ज्ञाधातोः णिचि लोटि मध्यमपुरुषैकवचने विज्ञापय इति रूपम्।

7. (अ) उदाहरणानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत–

                  एकवचनम्    द्विवचनम्     बहुवचनम्

यथा-   मातृ (प्रथमा)    माता      मातरौ         मातरः

स्वसृ (प्रथमा)     ………..     ………..       ………..

 मातृ (तृतीया)     मात्रा      मातृभ्याम्      मातृभिः

स्वसृ (तृतीया)     ………..     ………..      ………..

स्वसृ (सप्तमी)    स्वसरि     स्वस्रो:        स्वसृषु

मातृ (सप्तमी)   ………..      ………..     ………..

स्वसृ (षष्ठी)    स्वसुः   स्वस्रो:  स्वसणाम्

मातृ (षष्ठी)    ………..  ………..  ………..

उत्तराणि:-  एकवचनम्।    द्विवचनम्   बहुवचनम्

      स्वसृ (प्रथमा)   स्वसा      स्वसारौ     स्वसारः

      स्वसृ (तृतीया)   स्वस्रा   स्वसृभ्याम्     स्वसृभिः

       मातृ (सप्तमी)   मातरि     मात्रोः       मातृषु

       मातृ (षष्ठी)     मातुः      मात्रोः       मातॄणाम्

(आ) धातुं प्रत्ययं च लिखत–

       पदानि  =     धातुः         प्रत्ययः

यथा–   गन्तुम्  =     गम्    +     तुमुन्

       द्रष्टुम्  =     ………..  +     ………..

       करणीय =     ………..  +     ………..

       पातुम्   =     ………..  +     ………..

       खादितुम् =     ………..  +     ………..

       कृत्वा   =     ………..  +     ………..

उत्तराणि:-  द्रष्टुम् = दृश् + तुमुन्

            करणीय = कृ + अनीयर्

            पातुम् = पा + तुमुन्

           खादितुम् = खाद् + तुमुन्

            कृत्वा = कृ + क्त्वाच्

कक्षा 8 संस्कृत के सभी अध्यायों के एनसीईआरटी समाधान नीचे टेबल से देखें
पाठ की संख्यापाठ के नाम
पाठ 1सुभाषितानि
पाठ 2बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता
पाठ 3डिजीभारतम्
पाठ 4सदैव पुरतो निधेहि चरणम्
पाठ 5कण्टकेनैव कण्टकम्
पाठ 6गृहं शून्यं सुतां विना
पाठ 7भारतजनताऽहम्
पाठ 8संसारसागरस्य नायकाः
पाठ 9सप्तभगिन्यः
पाठ 10नीतिनवनीतम्
पाठ 11सावित्री बाई फुले
पाठ 12कः रक्षति कः रक्षितः
पाठ 13क्षितौ राजते भारतस्वर्णभूमिः
पाठ 14आर्यभटः
पाठ 15प्रहेलिकाः

छात्रों को संस्कृत कक्षा 8 के लिए एनसीईआरटी समाधान प्राप्त करके काफी खुशी हुई होगी। कक्षा 8 संस्कृत किताब पाठ 5 कण्टकेनैव कण्टकम् के प्रश्न उत्तर देने का उद्देश्य केवल बेहतर ज्ञान देना है। इसके अलावा आप परीक्षा पॉइंट के एनसीईआरटी के पेज से सभी विषयों के एनसीईआरटी समाधान और हिंदी में एनसीईआरटी की पुस्तकें भी प्राप्त कर सकते हैं। 

कक्षा 8 के सभी विषयों के एनसीईआरटी समाधानयहां से देखें

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