जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी में हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीमती मुन्नी देवी था। उनके पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद था। वह अपने भाई बहन में सबसे छोटे थे। वह अपने माता-पिता की आठवीं संतान थे। उनका परिवार पूरे बनारस में प्रतिष्ठित परिवारों में से एक गिना जाता था। उनके पिता का तम्बाकू का अच्छा व्यापार था। उनके दादा का नाम बाबू शिवरतन साहू था।
जयशंकर प्रसाद से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी | |
नाम | जयशंकर प्रसाद |
पूरा नाम | जयशंकर प्रसाद साहू |
उपनाम | प्रसाद |
जन्म तिथि | 30 जनवरी 1889 |
जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश (भारत) |
मृत्यु तिथि | 15 नवम्बर 1937 |
मृत्यु स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश (भारत) |
मृत्यु के समय आयु | 48 वर्ष |
देश | भारत |
पेशा | कवि, कहानीकार, नाटककार, उपन्यासकार |
भाषा | संस्कृत और हिंदी |
शैली | अलंकृत एवं चित्रोपम |
नाटक | चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु |
कहानी संग्रह | इन्द्रजाल, आँधी |
पिता का नाम | बाबू देवी प्रसाद |
माता का नाम | श्रीमती मुन्नी देवी |
शिक्षा | संस्कृत, फारसी तथा अंग्रेजी जैसी भाषाओं की शिक्षा को भी घर पर रहकर ही सीखा। विविध विषयों का अध्ययन भी घर पर रहकर ही किया। |
पत्नी का नाम | कमला देवी |
दादा का नाम | बाबू शिवरतन साहू |
जयशंकर प्रसाद का बचपन
जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी में हुआ था। इनका परिवार बहुत ही समृद्ध परिवारों में से एक था। इनके परदादा के ज़माने से ही सुरती (तम्बाकू का) खूब बड़ा व्यापार चला आ रहा था। इनके दादा बाबू शिवरतन साहू और पिता बाबू देवी प्रसाद साहू बड़े ही परोपकारी स्वभाव के थे। जयशंकर प्रसाद अपने परिवार की आंखों का तारा थे।
अपने दादा और पिता की ही तरह वह भी भगवान के बड़े भक्त थे। उनकी माता श्रीमती मुन्नी देवी उनपर खूब प्यार लुटाती थी। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। उनकी माता उनपर ज्यादा दिन तक प्यार नहीं लूटा सकी। वह सबको छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। उनका बचपन बड़े ही उतार चढ़ाव के साथ बीता।
जयशंकर प्रसाद की मुश्किलें
माना कि जयशंकर प्रसाद का परिवार धन से बहुत संपन्न था। पर एक बात एकदम सत्य है कि परिस्थितियां कभी भी एक जैसी नहीं रहती। जयशंकर प्रसाद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब वह मात्र 16 साल के थे तो उनकी माता और बड़े भाई का निधन हो गया था।
थोड़े समय पश्चात ही पिताजी भी चल बसे। उनपर तो मानो जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। इतने छोटे से किशोर पर घर की जिम्मेदारियां आ जाना बहुत बड़ी बात होती है। जयशंकर प्रसाद पर भी ऐसी ही जिम्मेदारी आ गई थी। लेकिन फिर भी उनके साथ उनके बड़े भाई शम्भूरत्न जी उनका सहारा बनकर खड़े रहे। उनकी पढ़ाई का प्रबंध भी उनके बड़े भाई ने किया। लेकिन दो-तीन साल बाद प्रसाद के सिर से अपने भाई का साया भी उठ गया।
रिश्तेदार लोग उनकी जमीन जायदाद हड़पने को आगे आ गए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने रिश्तेदारों के षड्यंत्र को पूरा होने से रोक लिया। पिता और भाई के गुजरने से उनके ऊपर ऋण का अतिरिक्त भार आ गया था। लेकिन फिर भी वह बिना हारे अपने कर्तव्यों को पूरा करते रहे।
जयशंकर प्रसाद की शिक्षा
जयशंकर प्रसाद की शिक्षा का जिम्मा उनके बड़े भाई शम्भूरत्न जी ने उठाया था। वह चाहते थे कि प्रसाद अच्छा पढ़ लिखकर या तो बड़ा वकील बने। नहीं तो फिर उनके घरेलू व्यापार को संभाले। शम्भूरत्न जी ने जयशंकर को क्वीस कॉलेज नामक विद्यालय में एडमिशन दिलाया था। वहां पर कुछ दिन तो वह जमकर पढ़े। लेकिन कुछ समय गुजरने के बाद उनका मन पढ़ाई से ऊबने लगा। यह बात जब उनके भाई को पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुए।
लेकिन धीरे-धीरे वह यह समझ गए कि उनका मन पढ़ाई की जगह कविताएं लिखने में लग रहा है। उनके भाई ने उनको स्कूल छुड़वा दी। शम्भूरत्न जी ने उनकी पढ़ाई का बंदोबस्त उनके घर पर ही कर दिया। अब घर पर ही उनको शिक्षक पढ़ाने आते थे। वह घर पर ही रहकर संस्कृत, हिंदी, उर्दू और फ़ारसी जैसी भाषाओं पर अपनी पकड़ बना रहे थे। इनके गुरु का नाम दीनबंधु ब्रह्मचारी था। वह उन्हें संस्कृत में निपुण कर रहे थे। वेदों, इतिहास, पुराणों और साहित्य को पढ़ने में भी उन्हें महारत हासिल हो गई थी।
जयशंकर प्रसाद का विवाह
जयशंकर प्रसाद के वैवाहिक जीवन के बारे में कम ही बताया जाता है। उनका विवाह 1906 में विंध्यवाटिनी से हुआ था। इस विवाह के पीछे एक कहानी है। दरअसल उनके बड़े भाई की मृत्यु के चलते घर में बहुत उदासी छा गई थी। घर का माहौल गमगीन रहने लगा था। उनकी भाभी ने सोचा कि अगर प्रसाद का विवाह करवा दिया जाएगा तो घर में खुशियां जरूर आएगी। उनकी भाभी ने उनका विवाह विंध्यवाटिनी से करवा दिया। लेकिन यह विवाह भी ज्यादा दिन तक टिक नहीं सका। क्योंकि विंध्यवाटिनी की बिना कोई कारण ही मौत हो गई।
जयशंकर प्रसाद को गहरा झटका लगा। विंध्यवाटिनी के चले जाने के बाद उन्होंने प्रण किया कि वह पतिव्रत निभाते हुए दूसरी शादी कभी नहीं करेंगे। लेकिन भाग्य के आगे उनकी एक भी ना चली। भाग्य ने उनका विवाह कमला देवी से करवा दिया। अब प्रसाद पिछले गम को भूलकर नए जीवन ली शुरुआत की। जयशंकर और कमला देवी को पुत्र की प्राप्ति भी हुई।
जयशंकर प्रसाद के शौक
जयशंकर प्रसाद को बहुत चीजों का शौक था। उन्हें घूमना-फिरना बहुत पसंद था। कविताएं और कहानियां लिखने का शौक था उन्हें। वह खाली समय में शतरंज खेलते थे, बागवानी करते थे। यहां तक कि अनेक प्रकार के व्यंजन बनाना भी उनका एक बड़ा शौक था। उन्हें नई भाषाएँ सीखने में आनंद की अनुभूति होती थी। वह धार्मिक भी खूब थे।
जयशंकर प्रसाद की धार्मिक यात्राएं
जयशंकर प्रसाद ने अपने बचपन के दिनों में खूब धार्मिक यात्राएं की। यह यात्राएं उन्होंने अपनी माता के साथ की थी। उन्होंने धाराक्षेत्र, ओंकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्थों की यात्रा की। इसके अलावा उन्होंने चार धाम की यात्राएं भी की थी। इनको ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था हो गई थी। क्योंकि इनके दादा और पिता शिव भक्त थे।
इसलिए वह भी शिव के परम भक्त बन गए थे। उनकी जीवन की एक कहानी बहुत प्रचलित है। कहते हैं कि उनके जब वह होने वाले थे तो उनके माता-पिता भगवान शिव की खूब आराधना करते थे। उनकी माता जब गर्भवती थी तो उन्होंने बैजनाथ और महाकाल बाबा की खूब आराधना की। परिणाम स्वरूप प्रसाद भी धार्मिक स्वभाव के हो गए।
जयशंकर प्रसाद की रचनाएं
काव्य – चित्रधार, कानन कुसुम, तरुणालय, महाराणा का महत्व, प्रेमपथिक, झरना, आँसू, लहर, कामायनी और प्रसाद संगीत।
नाटक – सज्जन, प्रयश्चित, कल्याणी-परिणय, राज्यश्री, विशाख, अजातशत्रु, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कन्दगुप्त, चंद्रगुप्त, एक घूँट, ध्रुवस्वामिनी और अग्निमित्र।
उपन्यास – कंकाल, तितली और इरावती।
कहानी – छाया, प्रतिध्वनि, प्रकाशद्वीप, आँधी और इन्द्रजाल।
निबंध – काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
चंपू – उर्वशी और वभुवाहन।
जीवनी – चंद्रगुप्त मौर्य।
काव्य रचनाएं
जयशंकर प्रसाद जी की काव्य रचनाएं हैं – कानन कुसुम, चित्राधार, करुणालय, महाराणा का महत्व, झरना, आंसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक।
जयशंकर प्रसाद की छोटी कहानियां
तानसेन | चंदा |
ग्राम | देवदासी |
गुंडा | पंचायत |
जहांआरा | बिसाती |
नीरा | शरणागत |
पुरस्कार | रमला |
छाया | प्रतिध्वनि |
आकाशदीप | आंधी और इन्द्रजाल |
छोटा जादूगर | बभ्रुवाहन |
विराम चिन्ह | मधुआ |
उर्वशी | इंद्रजाल |
गुलाम | ग्राम |
स्वर्ग के खंडहर में | भीख में |
चित्र मंदिर | ब्रह्मर्षि |
छाया | प्रतिध्वनि |
सालवती | अमिट स्मृति |
सिकंदर की शपथ | रसिया बालम |
जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली
जयशंकर प्रसाद की शुरुआती भाषा शैली ब्रजभाषा थी। उस समय अधिकांश लेखक इसी शैली का इस्तेमाल करते थे। लेकिन यह नहीं है कि वह केवल ब्रजभाषा शैली का ही उपयोग करते थे। उन्होंने खड़ी बोली वाली शैली को भी अपनी कृतियों में अपनाया। इनके द्वारा लिखी गई कृतियों में भावनात्मक, विचारात्मक और चित्रात्मक रूप अच्छे से झलकता था। वह अपनी रचनाओं को बेहद सरल भाषा में लिखने का पूरा प्रयास करते थे।
जयशंकर प्रसाद का निधन
15 नवंबर 1937 को बनारस, उत्तर प्रदेश में जयशंकर प्रसाद ने अंतिम साँस ली थी। जिस समय उनका निधन हुआ था उस समय वह केवल 47 साल के थे। उन्होंने अपने अंतिम दिन अकेले रहकर ही गुजारे। निधन से कई समय पहले ही उनका मोह माया से रिश्ता टूट गया था। उन दिनों में वह इरावती नामक उपन्यास लिख रहे थे।
वह काफी समय से बीमारी से जुझ रहे थे। लेकिन उनकी बीमारी क्या थी यह कोई पता नहीं कर पाया। उनके दोस्त और परिवार यह चाहते थे कि वह अपनी बीमारी का उपचार बनारस की जगह कहीं और करवाएं। लेकिन जयशंकर ने उनकी एक भी ना सुनी। और आखिरकार वह इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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जयशंकर प्रसाद पर आधारित FAQs
जयशंकर प्रसाद का जन्म कब और कहां हुआ था?
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को वाराणसी में हुआ था।
जयशंकर प्रसाद के माता-पिता का नाम क्या था?
जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद साहू था। और माता का नाम श्रीमती मुन्नी देवी था।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं कौन सी है?
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं है- झरना, ऑसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक (काव्य) स्कंदगुप्त चंद्रगुप्त, पुवस्वामिनी जन्मेजय का नागयज्ञ राज्यश्री, अजातशत्रु, विशाख, एक घूँट, कामना, करुणालय, कल्याणी परिणय, अग्निमित्र प्रायश्चित सज्जन (नाटक) छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी।
जयशंकर प्रसाद के शौक क्या थे?
जयशंकर प्रसाद को बहुत चीजों का शौक था। उन्हें घूमना-फिरना बहुत पसंद था। कविताएं और कहानियां लिखने का शौक था उन्हें। वह खाली समय में शतरंज खेलते थे, बागवानी करते थे। यहां तक कि अनेक प्रकार के व्यंजन बनाना भी उनका एक बड़ा शौक था।
जयशंकर प्रसाद के दादा का नाम क्या था?
जयशंकर प्रसाद के दादा का नाम बाबू शिवरतन साहू था।