Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now

होली पर कविताएँ (Poems On Holi In Hindi) – प्रसिद्ध कविता पढ़ें

Photo of author
PP Team

होली के शुभ अवसर पर विभिन्न जगहों पर होली सम्मेलन, होली समारोह, होली उत्सव आदि कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इन कार्यक्रमों में होली के दिन नाच-गाने के साथ-साथ होली पर कविता (Holi Par Kavita) पाठ का आयोजन भी किया जाता है। होली पर कविता पाठ का आयोजन ज़्यादातर होली पर होने वाले कवि सम्मेलनों में किया जाता है, जहाँ मंच पर लोग अपनी लिखी हुई या फिर अपने पसंदीदा कवि की होली पर प्रसिद्ध कविता सुनाते हैं। होली पर कविता हिंदी में (Holi Poem In Hindi) सुनाने का मकसद मनोरंजन के साथ-साथ होली के बारे में बताना भी होता है।

Holi Poems In Hindi

होली का दिन हो और होली पर कविता शायरी की बात न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। एक कवि के लिए होली पर जितना महत्व रंग, गुलाल, गुजिया आदि चीज़ों का है, उतना ही महत्व उसके लिए कविता का भी है।

होली पर कविता

कविता 1

सतरंगी बौछारें लेकर

इंद्रधनुष की धारें लेकर,

मस्ती की हमजोली आई

रंग जमाती होली आई!

पिचकारी हो या गुब्बारा

सबसे छूट रहा फव्वारा,

आसमान में चित्र खींचती

कैसी आज रंगोली आई!

टेसू और गुलाल लगाए

मस्त-मलंगों के दल आए,

नई तरंगों पर लहराती

उनके साथ ठिठोली आई!

महका-महका-सा फागुन है

चहकी-चहकी-सी हर धुन है,

कहीं काफियाँ, कहीं ठुमरियाँ

कहीं प्रीत की डोली आई!

चंग, मृदंग बजे बस्ती में

झूम उठे बच्चे मस्ती में,

ताल-ताल पर ठुमका देती

धूल उड़ाती टोली आई!

रंग जमाती होली आई!

– होली आई / योगेन्द्र दत्त शर्मा

कविता 2

तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।

देखी मैंने बहुत दिनों तक

दुनिया की रंगीनी,

किंतु रही कोरी की कोरी

मेरी चादर झीनी,

तन के तार छूए बहुतों ने

मन का तार न भीगा,

तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।

अंबर ने ओढ़ी है तन पर

चादर नीली-नीली,

हरित धरित्री के आँगन में

सरसों पीली-पीली,

सिंदूरी मंजरियों से है

अंबा शीश सजाए,

रोलीमय संध्या ऊषा की चोली है।

तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।

– तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है / हरिवंशराय बच्चन

कविता 3

जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।

नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में।।

कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में ।

खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में।।

डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।

गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।

जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगी पिचकारी भी।

कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी।।

होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी।

यह भीगी सर से पाँव तलक और भीगे किशन मुरारी भी।।

डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में।

गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।।

– जब खेली होली नंद ललन / नज़ीर अकबराबादी

कविता 4

खेलूँगी कभी न होली

उससे जो नहीं हमजोली ।

यह आँख नहीं कुछ बोली,

यह हुई श्याम की तोली,

ऐसी भी रही ठठोली,

गाढ़े रेशम की चोली-

अपने से अपनी धो लो,

अपना घूँघट तुम खोलो,

अपनी ही बातें बोलो,

मैं बसी पराई टोली ।

जिनसे होगा कुछ नाता,

उनसे रह लेगा माथा,

उनसे हैं जोडूँ-जाता,

मैं मोल दूसरे मोली

– खेलूँगी कभी न होली / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

कविता 5

यह मिट्टी की चतुराई है,

रूप अलग औ’ रंग अलग,

भाव, विचार, तरंग अलग हैं,

ढाल अलग है ढंग अलग,

आजादी है जिसको चाहो आज उसे वर लो।

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर को!

निकट हुए तो बनो निकटतर

और निकटतम भी जाओ,

रूढ़ि-रीति के और नीति के

शासन से मत घबराओ,

आज नहीं बरजेगा कोई, मनचाही कर लो।

होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो!

प्रेम चिरंतन मूल जगत का,

वैर-घृणा भूलें क्षण की,

भूल-चूक लेनी-देनी में

सदा सफलता जीवन की,

जो हो गया बिराना उसको फिर अपना कर लो।

होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

होली है तो आज अपरिचित से परिचय कर लो,

होली है तो आज मित्र को पलकों में धर लो,

भूल शूल से भरे वर्ष के वैर-विरोधों को,

होली है तो आज शत्रु को बाहों में भर लो!

– होली / हरिवंशराय बच्चन

कविता 6

रंग बगरे हे बिरिज धाम मा

कान्हा खेले रे होली

वृन्दावन ले आये हवे

गोली ग्वाल के टोली

कनिहा में खोचे बंसी

मोर मुकुट लगाये

यही यशोदा मैया के

किशन कन्हैया आए

आघू आघू कान्हा रेंगे

पाछु ग्वाल गोपाल

हाथ में धरे पिचकारी

फेके रंग गुलाल

रंग बगरे हे …

दूध दही के मटकी मा

घोरे रहे भांग

बिरिया पान सजाये के

खोचे रहे लवांग

ढोल नंगाडा बाजे रे

फागुन के मस्ती

होगे रंगा-रंग सबो

गाँव गली बस्ती

रंग बगरे हे …

गोपी ग्वाल सब नाचे रे

गावन लगे फाग

जोरा जोरी मच जाहे

कहूँ डगर तैं भाग

ग्वाल बाल के धींगा मस्ती

होली के हुड्दंग

धानी चुनरी राधा के

होगे रे बदरंग

 रंग बगरे हे …

करिया बिलवा कान्हा के

गाल रंगे हे लाल

गली गली माँ धुमय वो

मचाये हवे धमाल

रास्ता छेके कान्हा रे

रंग गुलाल लगाये

एती ओती भागे राधा

कैसन ले बचाए

रंग बगरे हे …

आबे आबे कान्हा तैं

मोर अंगना दुवारी

फागुन के महिना मा

होली खेले के दारी

छत्तीसगढ़िया मनखे हमन

यही हमार चिन्हारी

तोर संग होली खेले के

आज हमार हे बारी

रंग बगरे हे …

– कान्हा के होली / छत्तीसगढ़ी

कविता 7

गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार होली में

बुझे दिल की लगी भी तो ऐ यार होली में

नहीं ये है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे

ये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो

मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में

है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुछ है

बने हो ख़ुद ही होली तुम ऐ दिलदार होली में

रस गर जामे-मय गैरों को देते हो तो मुझको भी

नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में

– गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में / भारतेंदु हरिश्चंद्र

कविता 8

फूलों ने

होली

फूलों से खेली

लाल

गुलाबी

पीत-परागी

रंगों की रँगरेली पेली

काम्य कपोली

कुंज किलोली

अंगों की अठखेली ठेली

मत्त मतंगी

मोद मृदंगी

प्राकृत कंठ कुलेली रेली

– फूलों ने होली / केदारनाथ अग्रवाल

कविता 9

साजन! होली आई है!

सुख से हँसना

जी भर गाना

मस्ती से मन को बहलाना

पर्व हो गया आज-

साजन! होली आई है!

हँसाने हमको आई है!

साजन! होली आई है!

इसी बहाने

क्षण भर गा लें

दुखमय जीवन को बहला लें

ले मस्ती की आग-

साजन! होली आई है!

जलाने जग को आई है!

साजन! होली आई है!

रंग उड़ाती

मधु बरसाती

कण-कण में यौवन बिखराती,

ऋतु वसंत का राज-

लेकर होली आई है!

जिलाने हमको आई है!

साजन! होली आई है!

खूनी और बर्बर

लड़कर-मरकर-

मधकर नर-शोणित का सागर

पा न सका है आज-

सुधा वह हमने पाई है!

साजन! होली आई है!

साजन! होली आई है!

यौवन की जय!

जीवन की लय!

गूँज रहा है मोहक मधुमय

उड़ते रंग-गुलाल

मस्ती जग में छाई है

साजन! होली आई है!

– साजन! होली आई है! / फणीश्वर नाथ रेणु

कविता 10

होरी खेलत हैं गिरधारी मुरली चंग बजत डफ न्यारो संग जुबती ब्रजनारी

होरी खेलत हैं गिरधारी।

मुरली चंग बजत डफ न्यारो।

संग जुबती ब्रजनारी।।

चंदन केसर छिड़कत मोहन

अपने हाथ बिहारी।

भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग

स्यामा प्राण पियारी।

गावत चार धमार राग तहं

दै दै कल करतारी।।

फाग जु खेलत रसिक सांवरो

बाढ्यौ रस ब्रज भारी।

मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया

मोहनलाल बिहारी।।

– होरी खेलत हैं गिरधारी / मीराबाई

साभार- कविताकोश

Leave a Reply