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Class 11 Geography Book-1 Ch-12 “महासागरीय जल” Notes In Hindi

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Navya Aggarwal
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत” के अध्याय-12 ”महासागरीय जल” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 12 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 11 Geography Book-1 Chapter-12 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 12 “महासागरीय जल”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाग्यारहवीं (11वीं)
विषयभूगोल
पाठ्यपुस्तकभौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय नंबरबारह (12)
अध्याय का नाम”महासागरीय जल”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय-12 “महासागरीय जल”

जल को सौर मण्डल के दुर्लभ पदार्थ के रूप में देखा जाता है, इस ग्रह के अलावा कहीं और जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जल की प्रचुर उपलब्धता के कारण ही पृथ्वी को नीला ग्रह कहा जाता है।

धरती का जलचक्र

  • पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी जल का प्रयोग एवं पुनः प्रयोग करते हैं। जल चक्र की प्रक्रिया से ही जल महासागर से स्थल और स्थल से महासागर पर पहुंचता है।
  • इस प्रक्रिया को जल चक्र कहा जाता है, जल का संचालन पृथ्वी के नीचे और इसके वायु मण्डल तक होता है।
  • जल का वितरण पृथ्वी पर सब जगह एक जैसा नहीं है, कहीं जल की मात्रा प्रचुर है, तो कहीं बेहद कम।
  • यह जलमण्डल में गैस, तरल और ठोस रूप में समग्र ओर फैला हुआ है, लगभग 71 प्रतिशत जल का भाग महासागरों में है।
  • इसका बचा हुआ हिस्सा नदियों, हिमानियों, सरिताओं, भूमिगत जल और जीवों आदि में पाया जाता है।
  • स्वच्छ जल की मांग तेजी से बढ़ने और पानी की कमी के कारण विश्व के कई भागों में जल संकट भी उठ खड़ा हुआ है।
घटक प्रक्रियाएं
महासागरों में संग्रहीत जलवाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन, उर्ध्वपातन
वायुमंडल में जलसंघनन और वर्षण
हिम और बर्फ में पानी का संग्रहणहिम पिघलने पर नदी नालों के रूप में बहना
धरातलीय जल बहावजल धारा के रूप में, ताज़ा जल संग्रहण एवं जल रिसाव
भौम जल संग्रहणभौम जल का विसर्जन, झरनें

महासागरीय अधस्तल का उच्चावच

  • महसागरीय भागों को पाँच हिस्सों में विभाजित किया गया है, प्रशांत, अटलांटिक, हिन्द, दक्षिण और आर्कटिक महासागर।
  • समुद्र तल के लगभग 3 से 6 किलोमीटर के मध्य महासागर का अधःस्तल पाया जाता है।
  • महासागरों के अधःस्तल के लक्षण भूमि के लक्षणों से विपरीत होते हैं।
  • इनके तलों में पर्वत, बड़े गर्त और विस्तृत मैदान होते हैं, जिसके कारण ये समतल नहीं होते।

महासागरों के अधःस्तल का विभाजन

  • महाद्वीपीय शेल्फ– यह महाद्वीप का सीमांत होता है, इन शेल्फों की चौड़ाई प्रत्येक महासागर में भिन्न होती है।
  • कुछ सीमांत पर शेल्फ या तो बेहद कम होते हैं या होते ही नहीं, जैसे चिली और सुमात्रा के पश्चिम तट।
  • महाद्वीपीय ढाल– यह महसागरीय बेसिन और शेल्फ को जोड़ने का काम करती है। ढाल वाले क्षेत्र की गहराई 200 से 3000 मीटर तक बढ़ जाती है। इसकी समाप्ति के बाद कैनियन और खाइयाँ दिखाई देने लगती हैं।
  • गभीर सागरीय मैदान– यह भाग सबसे सपाट एवं चिकना भाग होता है, जिसकी गहराई 3000 से 6000 मीटर तक होती है।
  • महसागरीय गर्त– ये गर्त महासागर का सबसे गहरा भाग होता है, इनकी गहराई 3 से 5 किलोमीटर तक होती है।

उच्चावच की लघु आकृतियाँ

  • कुछ लघु आकृतियाँ भी महासागरों के विभिन्न भागों में पाई जाती हैं-
    • मध्य महासागरीय कटक
    • समुद्री टीला
    • सबसे सपाट जलमग्न कैनियन
    • निमग्न द्वीप
    • प्रवाल द्वीप

महासागरीय जल का तापमान

  • महासागर का जल भूमि की ही तरह सूर्य की गर्मी से ही गरम होता है, इनके ताप और शीतलन की प्रक्रिया भूमि के मुकाबले धीमी होती है।

तापमान के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

  • अक्षांश- ध्रुवों की तरफ जब सूर्यताप कम मिल पाने के कारण महासागर का सतही ताप विषुवत् से ध्रुवों की तरफ कम होता चला जाता है।
  • जल-स्थल का असमान वितरण– दक्षिण गोलार्ध के महासागरों का जुड़ाव स्थल से कम होता है, इसलिए ये ठंडे और उत्तरी गोलार्ध का जुड़ाव ज्यादा होता है, इसलिए ये आसानी से गर्म हो जाते हैं।
  • सनातन पवनें– महासागरों के ऊपरी गर्म जल को पवनें दूर कर देतीं हैं और ठंडा जल ऊपर आ जाता है, जो तापमान को कम कर देता है, वहीं अभितटीय पवनें गर्म जल को तट की ओर कर देती हैं, जिससे तापमान बढ़ जाता है।
  • महसागरीय धाराएं– महासागर की गर्म धाराओं के कारण ठंडे क्षेत्रों का तापमान बढ़ जाता है और ठंडी धाराओं के कारण गर्म क्षेत्रों का तापमान कम हो जाता है, जैसे- लेब्रेडोर के ठंडे महासागरों की धारा उत्तर-अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तटों के ताप को कम कर देती है।

तापमान का उर्ध्वाधर और क्षैतिज वितरण

उर्ध्वाधर वितरण

  • महासागर का ताप गहराई के साथ-साथ घटता है, जहां समुद्र की सीमा में पानी के तापमान में तेजी से गिरावट दर्ज होती है, उसी सीमा क्षेत्र को ताप प्रवणता (थर्मोक्लाइन) कहा जाता है।
  • जल के कुल आयतन का 90% इसी सीमा के नीचे पाया जाता है, यहाँ का तापमान 0 से भी नीचे हो सकता है।
  • महासागर की तीन सतहों का विभाजन किया जाता है-
    • पहली परत- 500 मीटर तक मोटी और 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान।
    • दूसरी परत (ताप प्रवणता)- 500 से 1000 मीटर तक की मोटाई और गहराई के साथ तापमान में तीव्र गिरावट।
    • तीसरी परत- गभीर महासागर तक फैली हुई होती है, इसका तापमान 0 या इससे नीचे भी हो सकता है।

क्षैतिज वितरण

  • विषुवत् वृत से ध्रुव की ओर महासागरों का तापमान घटता चला जाता है।
  • प्रति अक्षांश जल के तापमान का 0.5 डिग्री सेल्सियस कम होता चला जाता है।
  • दक्षिण गोलार्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्ध का तापमान ज्यादा होता है।
  • सूर्य की प्रत्यक्ष ऊष्मा प्राप्त करने के कारण समुद्रों की ऊपरी सतह गर्म रहती है।
  • मात्र संवहन की प्रक्रिया से ही यह ऊर्जा समुद्र के निचले हिस्से में पहुँच सकती है।
  • इसके कारण गहराई में तापमान कम ही आँका जाता है, लेकिन यह सभी स्थानों पर समान नहीं होता।

महसागरीय जल की लवणता

  • जल के किसी भी रूप में खनिज लवणों की उपलब्धता अवश्य मिलती है, लवणता से अभिप्राय जल में घुले लवण की मात्रा का पता लगाने से है।
  • इसका अध्ययन 1000 ग्राम समुद्री जल में नमक की मात्रा का पता लगाकर किया जाता है।

महसागरीय लवणता को प्रभावित करने वाले कारक

  • महासागरों के जल की लवणता को वर्षण और वाष्पीकरण की प्रक्रिया प्रभावित करती है।
  • तटीय क्षेत्रों में लवणता नदियों पर और ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के जमाव एवं पिघलने पर निर्भर करती है।
  • पवन: यह जल भी जल की लवणता को प्रभावित करने का एक कारक है।
  • महासागरों की धाराएं भी लवणता को प्रभावित करती हैं। तापमान की भिन्नता और घनत्व आदि मिलकर भी लवणता को प्रभावित करते हैं।

लवणता का क्षैतिज वितरण

  • महासागरों की लवणता में परिस्थिति अनुसार भिन्नता-
    • औसत महासागरीय जल की लवणता- 33‰ से 37‰ के बीच
    • स्थल से घिरे लाल सागर में- 41‰
    • आर्कटिक और ज्वार नदमुख में- 0 से 35‰
    • गरम और शुष्क क्षेत्रों में- 70‰
  • प्रशांत महासागर में इसके विस्तार और आकार के कारण भिन्नता पाई जाती है।
    • उत्तरी गोलार्ध के पश्चिमी भागों में- 35‰ से 31‰
    • 15 से 20 डिग्री दक्षिण के बाद- 33‰
  • अटलांटिक महासागर में यह उत्तर की तरह कम होती जाती है।
    • अटलांटिक महासागर औसत लवणता- 36‰
    • इसकी उच्चतम लवणता- 15 से 20 डिग्री में पाई जाती है।
  • उत्तरी सागर की लवणता अधिक और बाल्टिक सागर की लवणता कम होती है।
  • भूमध्यसागर की लवणता अधिक और काला सागर की लवणता कम होती है।
  • हिंदमहासागर के जल में 35‰ लवणता होती है।
  • बंगाल की खाड़ी में गंगा नदी के मिलने के कारण कम लवणता होती है।

लवणता का उर्ध्वाधर वितरण

  • समुद्र की गहराई पर लवणता का अमूमन प्रभाव नहीं देखा जा सकता, ऊपरी सतह की लवणता कई कारकों से प्रभावित होती रहती है।
  • इससे गहराई के क्षेत्रों और सतही क्षेत्रों में लवणता की मात्रा में अंतर देखा जाता है।
  • कम लवणता वाला जल, उच्च लवणता वाले जल के ऊपर रहता है।
  • स्पष्ट क्षेत्र जिन्हें हैलोक्लाइन कहते हैं में लवणता की मात्रा बढ़ती है।
  • लवणता के कारण समुद्री जल का घनत्व और स्तर प्रभावित होता है।
  • लवणता का स्तरीकरण तब होता है, जब ज्यादा लवणता वाला जल कम लवणता लिए हुए जल के नीचे बैठ जाता है।
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