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Class 10 Geography Ch-3 “जल संसाधन” Notes In Hindi

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Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक यानी “समकालीन भारत-2” के अध्याय- 3 “जल संसाधन” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 3 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 10 Geography Chapter-3 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय-3 “जल संसाधन“

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षादसवीं (10वीं)
विषयसामाजिक विज्ञान
पाठ्यपुस्तकसमकालीन भारत-2 (भूगोल)
अध्याय नंबरतीन (3)
अध्याय का नाम“जल संसाधन”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- समकालीन भारत-2 (भूगोल)
अध्याय- 3 “जल संसाधन”

जल की कमी और जल के संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्यकता

  • जल की कमी के कारण कई कम वर्षा वाले क्षेत्र सूखे से ग्रस्त हैं।
  • मौसम परिवर्तन की वजह से विभिन्न क्षेत्रों में स्थान व समय के अनुसार जल संसाधन में विविधता पाई जाती है।
  • विभिन्न समूहों के बीच जल का असमान वितरण भी जल की कमी को बढ़ाता है।
  • बढ़ती आबादी के कारण जल की बढ़ती माँग जल के असमान वितरण को बढ़ाने का कार्य करते हैं।
  • खेती के लिए निजी कुओं व नलकूपों के प्रयोग से जल की कमी के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है।
  • औद्योगिकीकरण तथा शहरीकरण की वजह से जल की गुणवत्ता में कमी आई है।
  • भारत में विद्युत का लगभग 22% हिस्सा जल से उत्पन्न विद्युत से प्राप्त किया जाता है।
  • जल का दोहन सबसे अधिक शहरों में हो रहा है। लोग दैनिक जीवन में जल को व्यर्थ बहाते हैं।
  • कई क्षेत्रों में जल की मात्रा अधिक होने के बाद भी उसकी खराब गुणवत्ता के कारण उसे उपयोग में नहीं लाया जाता है।
  • खराब गुणवत्ता वाले जल या प्रदूषित जल मानव उपयोग के लिए हानिकारक होते हैं।
  • इस समय मनुष्य को खुद जल के संरक्षण व प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि स्वच्छ जल की उपलब्धता मनुष्य को कई बीमारियों से बचा सकती है।
  • जल संकट के कारण पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ सकता है, जिसकी वजह से जैव विविधता भी खतरे में पड़ सकती है।

प्राचीन भारत में जल सरक्षंण एवं प्रबंधन की प्रक्रिया

  • ईसा से एक शताब्दी पहले गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए श्रेष्ठ जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था।
  • चन्द्रगुप्त मौर्य के समय बृहत् स्तर पर बाँध, झील और सिंचाई तंत्रों का निर्माण करवाया गया।
  • कलिंग (ओडिशा), नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश) बेन्नूर (कर्नाटक) तथा कोल्हापुर (महाराष्ट्र) जैसे राज्यों में उन्नत सिंचाई तंत्र मौजूद होने के प्रमाण मिलते हैं।
  • लगभग 11वीं शताब्दी में भोपाल झील (कृत्रिम झील) बनाई गई थी।
  • 14वीं शताब्दी में दिल्ली में स्थित हौज खास जैसे उत्कृष्ट तालाब को फोर्ट क्षेत्र में जल की उचित पहुँच के लिए बनाया गया था।

नदी परियोजनाओं के माध्यम से जल का सरक्षंण एवं प्रबंधन

  • जल के संरक्षण व प्रबंध की व्यवस्था प्राचीन काल से लेकर अभी तक चल रही है।
  • भारत में जल के संरक्षण व प्रबंध के लिए अधिकांश नदियों के बेसिनों में बाँध बनाए गए हैं।
  • वर्तमान में बाँधों का निर्माण बहु उद्देश्यों के लिए किया जाता है इसलिए बाँधों को बहुउद्देशीय परियोजनाएँ कहा जाता है।
  • बाँधों का निर्माण सिंचाई के अलावा विद्युत बनाने, घरेलू उपयोग, औद्योगिक उपयोग, बाढ़ नियंत्रण, मनोरंजन, मछली पालन इत्यादि के लिए भी किया जाता है।
  • हीराकुंड परियोजना जल संरक्षण एवं बाढ़ नियंत्रण जैसे दो उद्देश्यों का समन्वय है।
  • आजादी के बाद बहुउद्देशीय परियोजनाओं को भारत को विकास व समृद्धि के मार्ग पर ले जाने वाले वाहन के रूप में स्वीकार किया गया था।
  • जवाहरलाल नेहरू ने बाँधों को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ कहकर संबोधित किया था।
  • नेहरु जी का मानना था कि परियोजनाएँ कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था और औद्योगिकीकरण एवं नगरी अर्थव्यवस्था दोनों स्तर पर मिलकर विकास करेंगी।

बहुद्देशीय परियोजनाओं का विरोध

बहुद्देशीय परियोजनाओं के विरोध के कारण निम्नलिखित हैं-

  • पिछले कई सालों से बहुद्देशीय परियोजनाओं का विरोध किया जा रहा है क्योंकि इससे मछलियों का स्थानांतरण बंद हो जाता है, बाढ़ वाले मैदानों के आस-पास की वनस्पति और मिट्टी जल में डूब जाती है।
  • नर्मदा बचाओ आंदोलन और टिहरी बाँध आंदोलन बहुद्देशीय परियोजनाओं तथा बड़े बाँधो का ही परिणाम है।
  • परियोजनाओं के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आम जनता को अपनी जमीन, आजीविका तथा संसाधनों से लगाव इत्यादि का त्याग करना पड़ता है।
  • बाँध लोगों के बीच संघर्ष को बढ़ा देता है।
  • गुजरात में साबरमती बेसिन में सूखा पड़ने के कारण अधिकतर किसान उत्पात मचाने की कोशिश करने लगे थे।
  • परियोजनाओं से होने वाले लाभ को लेकर राज्यों के बीच झगड़े होने की संभावना अधिक होती है। वर्तमान में ऐसे झगड़े साधारण होते जा रहे हैं।
  • बाँध के जलाशयों में तलछट जमा होने के कारण बाढ़ आ सकती है।
  • बहुद्देशीय परियोजनाओं की वजह से भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा के आने की संभावना बढ़ती है।
  • जल के अति उपयोग से जल से उत्पन्न होने वाली बीमारियाँ बढ़ती हैं साथ ही प्रदूषण भी बढ़ता है।

वर्षा जल संग्रहण

  • वर्षा जल संग्रहण सामाजिक जल की आपूर्ति का एक बेहतर विकल्प है।
  • वर्षा जल को एकत्रित करके उसका उपयोग पहले खेतों की सिंचाई के लिए किया जाता था।
  • ‘गुल’ एवं ‘कुल’ नलिकाओं के माध्यम से भी नदी के जल से खेतों की सिंचाई की जाती थी।
  • पहले के लोग अपने-अपने छतों पर वर्षा के पानी को एकत्रित करने की व्यवस्था करते थे, जिसे ‘छत वर्षा जल संग्रहण’ कहा जाता है।
  • वर्षा के पानी को खेतों में गड्ढे बनाकर जमा करके इसे खेती करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। राजस्थान में खादीन और जोहड़ इसी व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं।
  • पहले राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में पीने के पानी को एकत्रित करने के लिए भूमि के अंदर टैंक बने होते थे, जिन्हें टाँका कहा जाता था।
  • टाँका छतों से आने वाली पाइपलाइनों से जुड़े थे।
  • टैंकों का आकार इतना बड़ा होता था कि उसमें आने वाली वर्षा ऋतु तक के लिए जल को संरक्षित किया जा सकता था।
  • कुछ घरों में टाँकों को निचले कमरे के नीचे बनाया जाता था। ऐसा गर्मी से राहत प्राप्त करने के लिए किया जाता था।
  • राजस्थान में ‘इंदिरा गाँधी नहर’ से उपलब्ध पीने योग्य जल के कारण वर्षा जल संग्रहण की परंपरा समाप्त होने के कगार पर है।
  • जिन लोगों को नल का पानी अच्छा नहीं लगता उन्होंने अपने घरों में वर्षा जल संग्रहण के लिए टैंक व्यवस्था अभी भी बना रखी है।
  • जल की गुणवत्ता और जल संसाधन की उपलब्धता को बनाए रखने में वर्षा जल संग्रहण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

वर्षा जल संग्रहण की प्रक्रिया

  • सबसे पहले पाइप का इस्तेमाल करके छत का वर्षाजल एकत्रित किया जाता है।
  • रेत एवं ईंट का उपयोग करके जल को छाना जाता है।
  • भूमि के अंदर लगे पाइप की सहायता से जल को हौज तक पहुँचाया जाता है।
  • हौज के अलावा एकत्रित जल कुएँ तक भी ले जाया जा जाता है।
  • हौज के जल को बाद में या तुरंत भी विभिन्न क्रियाओं के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है।
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