इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक-1 यानी समकालीन विश्व राजनीति के अध्याय- 5 समकालीन विश्व में सुरक्षा के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 5 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 Political Science Book-1 Chapter-5 Notes In Hindi
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अध्याय- 5 “समकालीन विश्व में सुरक्षा”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | राजनीति विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | समकालीन विश्व राजनीति |
अध्याय नंबर | पाँच (5) |
अध्याय का नाम | समकालीन विश्व में सुरक्षा |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- समकालीन विश्व राजनीति
अध्याय- 5 (समकालीन विश्व में सुरक्षा)
सुरक्षा क्या है?
- सरल शब्दों मे सुरक्षा का अर्थ है खतरे से आजादी, हर व्यक्ति समाज तथा राष्ट्र के लिए खतरे भिन्न हो सकते हैं।
- यह वे गंभीर खतरे हैं जिनके यदि उपाय नहीं किए गए तो मानव के केन्द्रीय मूल्यों पर क्षति होगी।
सुरक्षा के प्रकार
पारंपरिक धारणा– बाहरी सुरक्षा
- इस धारणा का संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा से है, जिसमें सैन्य खतरे को देश के लिए बड़ा माना जाता है, जैसे किसी दूसरे देश द्वारा देश की अखंडता, स्वतंत्रता और संप्रभुता जैसे केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा होता है, जिसमें न केवल सैनिकों को अथवा देश की जनता के प्राणों को भी खतरा है।
- ऐसी स्थिति में संबंधित देश की सरकार के पास तीन रास्ते होते हैं- आत्मसमर्पण, दूसरे पक्ष की बात मानकर हार स्वीकार करना, हमलावर देश को पराजित कर देना।
- परंपरागत सुरक्षा नीति में अपने आस-पास के देशों को देख कर ये आंकलन करना की कौन-सा देश छोटा है कौन-सा बड़ा एवं उससे उसे कितना खतरा है? इसे शक्ति संतुलन कहते हैं।
- कई बार हमला करने लिए मजबूत राष्ट्र यह दिखाने का प्रयास करता है कि वह हमला नहीं करेगा, लेकिन उसकी ताकत देखकर दूसरे देश का अपनी बाहरी सुरक्षा को बढ़ा देना ही शक्ति संतुलन है।
- किसी भी देश की बाहरी सुरक्षा के खतरे में होने का कारण है- अंतर्राष्ट्रीय संगठन की कमी, ऐसा संगठन जो देश के व्यवहार को समझकर निष्पक्ष निर्णय ले सके।
- किसी देश में व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सरकार का गठन किया जाता है, लेकिन वैश्विक पटल पर ऐसी सर्वोपरि शक्ति की कमी है। संयुक्त राष्ट्र संघ अपने ही सदस्य देशों का दास है, इसलिए ही विश्व के हर देश को अपनी सुरक्षा स्वयं करनी होती है।
पारंपरिक धारण- आंतरिक सुरक्षा
- परंपरागत धारणा का रिश्ता आंतरिक सुरक्षा से भी है, सन् 1945 में ऐसा लगने लगा की यूएसए और सोवियत संघ अपने देश के भीतर शांति सम्पन्न हैं। इसी कारण इन देशों ने अपने बाहरी खतरों पर ही ध्यान केंद्रित किया।
- 1946 से 1991 में गृहयुद्धों की संख्या में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी देखने को मिली, जो 200 सालों में सबसे अधिक थी, इसके बाद से ही देशों के लिए आंतरिक सुरक्षा भी बाहरी सुरक्षा जितनी ही जरूरी होती चली गई।
सुरक्षा के पारंपरिक तरीके
- अपरोध से तात्पर्य युद्ध की संभावना को जितना हो सके कम करने के प्रयासों से है, इसे अपरोध कहा जाता है।
- गठबंधन इसमें कई देशों का सैन्य गठबंधन बनाया जाता है, यह सुरक्षा के पारंपरिक तरीकों में से एक है, इसमें कई देश मिलकर एक देश को बाहरी खतरों से बचाने का प्रयास करते हैं।
- रक्षा इस तरीके में खुद को हमलावर देश से बचाए रखना और युद्ध को सीमित कर देना जैसे तत्व शामिल हैं।
- शक्ति संतुलन पड़ोसी देशों जिनकी अतीत में लड़ाई हो चुकी है, या संबंध खराब हो गए हैं। शक्ति संतुलन किसी ताकतवर नजदीकी देश की स्थिति मे अनिवार्य हो जाता है।
- इसमें शक्ति संतुलन बनाने के लिए अपने देश की सैन्य शक्ति को बढ़ाना होता है।
- इसके साथ-साथ आर्थिक शक्ति को भी साथ लेना होता है, जो कि सैन्य शक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
सुरक्षा की अपारंपरिक अवधारणा
- इस अवधारणा में सैन्य खतरों के साथ ही मानवता पर खतरे को जोड़ा जा सकता है, इसमें मानवता की सुरक्षा को ही विश्व की रक्षा माना जाता है।
- राज्य की सुरक्षा और जनता की सुरक्षा एक दूसरे के पूरक होने चाहिए, लेकिन सुरक्षित राज्य का मतलब हमेशा सुरक्षित जनता नहीं होता।
- इसमें हम आम जनता की सुरक्षा को ज्यादा तवज्जो देते हैं, इसका प्रथम लक्ष्य ही जनता है।
- विश्वव्यापी खतरे जैसे- ग्लोबल वार्मिंग, आतंकवाद, महामारियाँ, एड्स आदि बीमारियों से विश्व की जनता का बचाव। कोई भी राज्य इन समस्याओं से बचाव अकेले नहीं कर सकता। इसको मद्देनजर रखते हुए ही 1990 के दशक के बाद विश्व सुरक्षा की जरूरत उभरी।
- यूएन के महासचिव कोफी अन्नान ने व्यक्तियों को देश की आंतरिक हिंसा से दूर रखना ही मानवता की सुरक्षा बताया है।
- इसमें मानव की आर्थिक और मानवीय गरिमा की सुरक्षा शामिल है, इसमें अधिकतर जोर- भय और अभाव से मुक्ति पर दिया जाता है।
सहयोगात्मक सुरक्षा
निरस्त्रीकरण
- युद्ध के समय में निरस्त्रीकरण का अर्थ है कुछ घातक किस्म के हथियारों के इस्तेमाल से बचना।
- 1972 की जैविक हथियार संधि, 1992 की रासायनिक हथियार संधि के माध्यम से घातक हथियारों को रखना बंद कर दिया है, जिस पर 1972 की जैविक हथियार संधि पर 155 देशों ने, तो 1992 की रासायनिक हथियार संधि पर 181 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं।
- विश्व की महाशक्तियाँ अमेरिका तथा सोवियत संघ ने इसके बजाय अस्त्र नियंत्रण का सहारा लिया।
अस्त्र नियंत्रण
- 1972 की एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि के द्वारा अमेरिका और सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइल से रक्षा कवच बनाने से रोका।
- इसके तहत हथियारों को विकसित करने और उनका इस्तेमाल करने के लिए कड़े कानूनों का पालन करना होता है।
- अमेरिका ने अस्त्र नियंत्रण की कई संधियों पर हस्ताक्षर किए- परीसीमान संधि- 2 (salt-2), सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि (start), परमाणु अप्रसार संधि (npt) भी इसमें शामिल है।
- जिन देशों ने 1967 से पहले परमाणु हथियार बनाकर उनका परीक्षण किया, केवल उन्हें ही ये हथियार रखने की अनुमति थी।
विश्वास की बहाली
- इस प्रक्रिया से दोनों प्रतिद्वंद्वी देश आपस में विचारों के आदान-प्रदान से हिंसा की संभावना को कम कर देते हैं, दोनों के मध्य अपनी सेना से संबंधित सूचनाएं साझा की जाती हैं, ताकि एक दूसरे पर भविष्य में हमले होने जैसे डर को खत्म किया जा सके।
- वे सैन्य जानकारी जैसे, सैन्य बल एवं हथियारों और सेना की तैनाती जैसी जानकारियाँ भी प्रदान करते हैं, ताकि ये देश आपस मे विश्वास हासिल कर सकें।
- विश्वास बहाली की प्रक्रिया इस बात को सुनिश्चित करती है कि संबंधित देश दूसरे देश के लिए किसी भी युद्ध की तैयारी में नहीं है एवं दूसरे देश किसी भी तरह की गलतफहमी या भ्रम में न रहे।
- 1990 के दशक में ग्लोबल वार्मिंग, बर्डफ्लू, एड्स जैसी वैश्विक बीमारियाँ वैश्विक स्तर पर उभरने लगीं जिसके बाद सहयोगात्मक सुरक्षा प्रणाली को बनाए रखना अनिवार्य हो गया।
- सहयोग की यह प्रक्रिया दोनों देशों की खतरे की प्रकृति और दोनों देशों की इच्छाशक्ति पर भी निर्भर रहती है।
खतरे के नए स्त्रोत
- खतरे के नए स्त्रोत में आतंकवाद, मानवाधिकारों का हनन, गरीबी, स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं जैसे- वैश्विक महामारियाँ, एड्स, बर्डफ्लू, टी.बी, मलेरिया आदि बीमारियां आ जाती हैं।
- आतंकवाद से तात्पर्य ऐसे अपराध से है जो जान बूझकर मानव द्वारा ही मानव की जान लेने को आमादा हो जाता है, इसमें नागरिकों की जान को बड़े स्तर पर खतरा होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद एक से ज्यादा देशों में फैला हुआ है, यदि कोई राजनीतिक स्थिति किसी आतंकवादी दल को नापसंद हो, तो वे आतंकवादी हमले की धमकी या आतंकवाद फैलाकर उसको बदलने की मांग करते हैं।
- 2001 में आतंकवादियों ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कर, पूरे देश को दहला दिया, इसके बाद से ही आतंकवाद की तरफ़ ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान आया।
- मानवाधिकार को तीन कोटि- राजनीतिक मानवाधिकार, जिसमें अभिव्यक्ति तथा सभा करने की आजादी, दूसरी कोटि आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की, तीसरी कोटि में उनिवेशीकृती जनता, मूलवासी और अल्पसंख्यकों के अधिकार आते हैं।
- 1990 से हो रही घटनाओं जैसे- पूर्वी तिमुर में इंडोनेशिया की सेना का रक्तपात, कुवैत पर इराक का हमला जैसी मानवाधिकारों के हनन मामले में यूएन को दखल करना चाहिए या नहीं।
- घोषणापत्र के आधार पर देखा जाए, तो अंतर्राष्ट्रीय समाज को यह अधिकार है की वे मानवाधिकारों के लिए हथियार उठाए।
- कुछ मामलों में ताकतवर देशों की सुनने के कारण यूएन अपने कार्यों को समुचित ढंग से कर पाने मे असमर्थ रह जाता है।
- गरीबी का सबसे बड़ा कारण है, तेजी से हो रही जनसंख्या वृद्धि, इस समय विश्व की कुल जनसंख्या 760 करोड़ है, जो कि 21वी शताब्दी तक 1000 करोड़ पहुंच जाने के अनुमान है।
- इस समय विश्व की कुल जनसंख्या का 50% भारत, चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नाइजीरिया और इंडोनेशिया में ही बढ़ रहा है।
- जिन देशों मे आय की कमी है वहां जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है, जो उन देशों को और भी गरीब कर देती है, वहीं उच्च आय वाले देश निम्न जनसंख्या के कारण धनी होते जाते हैं।
- यही असमानता उत्तरी गोलार्ध के देशों को दक्षिणी गोलार्ध के देशों से अलग करती है। दुनिया के सबसे अधिक संघर्ष अफ्रीका के दक्षिणवर्ती क्षेत्रों में होते हैं, जिसके कारण यहां की आबादी गरीब बनी हुई है।
- इन देशों की आबादी रोजगार की तालाश में दूसरे देशों में शरण लेते हैं, जिसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थियों की समस्या बढ़ती है।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून शरणार्थियों और आप्रवासियों में भेद करते हैं। ऐसी उम्मीद की जाती है कि देश शरणार्थियों को स्वीकार करेगा, लेकिन उन्हीं आप्रवासियों को स्वीकारने के लिए कोई बाध्यता नहीं है।
- स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं– एच.आई.वी एड्स, बर्ड फ्लू जैसी महामारियों के बड़ी तेजी से वैश्विक स्तर पर फैलने का कारण है अप्रावास, व्यवसाय, पर्यटन, सैन्य-अभ्यास आदि। इन बीमारियों को रोकने में हुई सफलता/असफलता का सीधा प्रभाव विश्व के अन्य देशों पर पड़ता है।
भारत की सुरक्षा रणनीति
- सैन्य क्षमता को मजबूत करना- भारत पर आजादी के बाद भी पाकिस्तान और चीन द्वारा हमले किए। भारत दक्षिण एशियाई देशों में परमाणु सम्पन्न राष्ट्र है।
- अपने 1998 में किए गए परमाणु परीक्षण को सही बताते हुए, सरकार ने इसे सुरक्षा के लिए अनिवार्य बताया, 1974 में भारत ने अपना परमाणु परीक्षण किया।
- अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को मजबूती देना- भारत ने प्रारंभ से ही अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की मजबूती के लिए हमेशा पहल की है, जवाहर लाल नेहरू ने भी वि-उपनिवेशवाद, निरस्त्रीकरण के प्रयास भी किए हैं।
- भारत के अनुसार हर देश को सामूहिक संहार के क्षत्रों के लिए बराबर का अधिकार दिया जाना चाहिए, वहीं भारत ने भी नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की मांग उठाई है।
- भारत ने 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए। वैश्विक ताप वृद्धि के लिए ग्रीन हाउस गैसेस के उत्सर्जन में कमी के लिए दिशा निर्देश भी जारी किए हैं।
- देश की आंतरिक सुरक्षा- नागालैंड, कश्मीर, पंजाब जैसे प्रदेशों के उग्रवादियों को भारत से दूर रखने की कोशिश, लोकतान्त्रिक व्यवस्था का पालन, विभिन्न समुदायों को अपनी बात रखने और सत्ता में भागीदारी लेने का मौका देती है।
- अर्थव्यवस्था का विकास- नागरिकों के बीच की आर्थिक असमानता को कम करने के प्रयासों में सरकार ने नियोजित विकास की रणनीति को अपनाया, लोकतान्त्रिक सरकार के ऊपर आर्थिक विकास और सामाजिक विकास को साथ लेकर चलने का उत्तरदायित्व होता है।
- अभी भी इन्हीं क्षेत्रों में प्रयास किए जा रहे हैं, क्योंकि आज भी भारत में गरीबी विद्यमान है, इसके साथ भी लोकतान्त्रिक सरकार ने गरीबों को समुचित अवसर प्रदान किए हैं।
समय-सूची
वर्ष | घटना |
1940 | औपनिवेशिक शासन से आजादी की शुरुआत। |
1945 | अमेरिका और सोवियत संघ मे आंतरिक सुरक्षा का अनुमान। |
1946-1991 | गृहयुद्धों मे 200 साल के बाद तेजी से बढ़ोत्तरी। |
1947-1948, 1965, 1971 और 1999 | भारत-पाकिस्तान युद्ध। |
1962 | भारत-चीन युद्ध। |
1968 | परमाणु अप्रसार संधि। |
1992 | रसायनिक हथियार संधि पर 181 देशों के हस्ताक्षर। |
1997 | भारत द्वारा क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर। |
2001 | अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला। |
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