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एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 विज्ञान पाठ 13 जीवों में विविधता
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पाठ 13 – जीवों में विविधता
पाठ के बीच में पूछे जाने वाले सवाल (पेज 91)
प्रश्न 1 – हम जीवधारियों का वर्गीकरण क्यों करते हैं?
उत्तर : जीवों के समूहों के वर्गीकरण का प्रयास प्राचीन समय से किया जाता रहा है। यूनानी विचारक अरस्तू ने जीवों का वर्गीकरण उनके स्थल, जल एवं वायु में रहने के आधार पर किया था। हमारे चारों तरफ़ विभिन्न प्रकार के जीवधारी है, इन जीवधारियों को हम उनकी समानता और असमानता के हिसाब से वर्गीकरण कर सकते हैं।
प्रश्न 2 – अपने चारों और फैले जीव रूपों की विभिन्नता के तीन उदाहरण दें?
उत्तर : अपने चारों और फैले जीव रूपों की विभिन्नता के तीन उदाहरण निम्निलिखित हैं –
1 . हम एक ओर जहां सूक्ष्मदर्शी से देखे जाने वाले बैक्टीरिया, जिनका आकार कुछ माइक्रोमीटर होता है ,
2. वहीं दूसरी ओर 30 मीटर लंबे नीले हेल या कैलिफ़ोर्निया के 100 मीटर लंबे रेडवुड पेड़ भी पाए जाते हैं।
3. कुछ चीड़ के पेड़ हजारों वर्ष तक जीवित रहते हैं जबकि कुछ कीट जैसे मच्छर का जीवनकाल कुछ ही दिनों का होता है। जैसे जैव विविधता रंगहीन जीवधारियों, पारदर्शि कीटो और विभिन्न रंगों वाले पक्षियों और फूलों में भी पाई जाती है।
पाठ के बीच में पूछे जाने वाले सवाल (पेज 92)
प्रश्न 1 – जीवों के वर्गीकरण के लिए सर्वाधिक मूलभूत लक्षण क्या हो सकता है?
(a) उनका निवास स्थान
(b) उनकी कोशिका संरचना
उत्तर : (A) एक यूकैरियोटिक कोशिका में केंद्रक समेत कुछ झिल्ली से घिरे कोशिकांग होते हैं जिसके कारण कोशिकीय क्रिया अलग-अलग कोशिकाओं में दक्षतापूर्वक होती रहती है।यही कारण है कि जिन कोशिकाओं में झिल्लीयुक्त कोशिकांग और केंद्रक नहीं होते हैं, उनकी जैव रासायनिक प्रक्रियाएं में भिन्न होती हैं। इसका असर कोशिकीय संरचना के सभी पहलुओं पर पड़ता है।
(B) इसके अतिरिक्त केन्द्रक युक्त कोशिकाओं में बहुकोशिकीय जीव के निर्माण की क्षमता होती है , क्योंकि वे खास कार्यों के लिए विशिष्टिकृत हो सकते हैं। इसलिए केंद्रक वर्गीकरण का आधारभूत लक्षण हो सकता है।
प्रश्न 2 – जीवों के प्रारंभिक विभाजन के लिए किस मूल लक्षण को आधार बनाया गया?
उत्तर : जीवों के प्रारंभिक विभाजन के लिए प्रोकैरियोटी और यूकैरियोटी के मूल लक्षण को आधार बनाया गया।
प्रश्न 3 – किस आधार पर जंतुओं और वनस्पतियों को एक-दूसरे से भिन्न वर्ग में रखा जाता है?
उत्तर : जंतु और वनस्पतियों के शारीरिक विभन्नताओं के कारण एक-दूसरे से भिन्न वर्ग में रखा जाता है। वनस्पतियों अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण / सूर्य की ऊर्जा के माध्यम अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। लेकिन जंतु अपना भोजन बनाने के लिए दूसरे पर निर्भर होते हैं। ये अपना भोजन पेड़-पौधों से ग्रहण करते हैं।
पाठ के बीच में पूछे जाने वाले सवाल (पेज 93)
प्रश्न 1 – आदिम जीव किन्हें कहते हैं? ये तथाकथित उन्नत जीवों से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर : आदिम जीव वो जीव है जो की शारीरिक संरचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है।लेकिन कुछ जीव समूहों की शारीरिक संरचना में पर्याप्त परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं। पहले प्रकार के जीवो को आदिम अथवा निम्न जी कहते हैं, जबकि दूसरे प्रकार के जीवो को उन्नत अथवा उच्च जीव कहते हैं। लेकिन ये शब्द उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि इससे उनकी भिन्नताओं का ठीक से पता नहीं चलता है।इसके बजाय हम इनके लिए पुराने जीव और नए जीव शब्द का प्रयोग कर सकते हैं। क्योंकि विकास के दौरान जीवो में जटिलता की संभावना बनी रहती है, इसलिए पुराने जीव को साधारण और नए जीव को अपेक्षाकृत भी कहा जा सकता है।
प्रश्न 2 – क्या उन्नत जीव और जटिल जीव एक होते हैं?
उत्तर : हां, उन्नत जीव और जटिल जीव एक होते हैं विकास के दौरान जीवो में जटिलता की संभावना बनी रहती है, इसलिए उन्नत जीवों को जटिल भी कहा जाता है।
पाठ के बीच में पूछे जाने वाले सवाल (पेज 96)
प्रश्न 1 – मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वर्गीकरण के मापदंड क्या है?
उत्तर : मोनेरा – इन जीवों में ना तो संगठित केंद्रक और कोशिकांग होते हैं और ना ही उनके शरीर बहुकोशिक होते हैं। इनमें पाई जाने वाली विविधता अन्य लक्षणों पर निर्भर करती है। इनमें कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है तथा कुछ में नहीं। कोशिका भित्ति के होने या ना होने के कारण मोनेरा वर्ग के जीवों की शारीरिक संरचना में आए परिवर्तन तुलनात्मक रूप से बहुकोशिका जीवों में कोशिका भित्ति के होने या ना होने के कारण आए परिवर्तनों से भिन्न होते हैं। पोषण के स्तर पर ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों हो सकते हैं। उदाहरण के लिए- जीवाणु, नील- हरित शैवाल अथवा माइकोप्लाज्मा।
प्रोटिस्टा – इसमें एककोशिक, यूकैरियोटी जीव आते हैं। इस वर्ग के कुछ जीवो में गमन के लिए सीलिया , फ्लैजेला, नामक संरचनाएं पाई जाती हैं। ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों तरह के होते हैं।उदाहरण के लिए – एककोशिका, शैवाल, डाइएटम, प्रोटोजोआ इत्यादि।
प्रश्न 2 – प्रकाश-संश्लेषण करने वाले एककोशिक यूकैरियोटी जीव को आप किस जगत में रखेंगे?
उत्तर : प्रकाश-संश्लेषण करने वाले एककोशिक यूकैरियोटी जीव को हम प्रोटिस्टा जगत में रखेंगे।
प्रश्न 3 – वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में किस समूह में सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम जीवों को और किस समूह में सबसे अधिक संख्या में जीवों को रखा जाएगा?
उत्तर : वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में जाति स्पीशीज समूह में सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम जीवों को और जगत किंगडम समूह में सबसे अधिक संख्या में जीवों को रखा जाएगा।
पाठ के बीच में पूछे जाने वाले सवाल (पेज 99)
प्रश्न 1 – सरलतम पौधों को किस वर्ग में रखा गया है?
उत्तर : सरलतम पौधों को थैलोफाइटा वर्ग में रखा गया है।
प्रश्न 2 – टेरिडोफाइटा और फैनरोगैम में क्या अंतर है?
उत्तर : टेरिडोफाइटा – तना, जड़, पत्ती और पादप से बना है।
फैनरोगैम – फैनरोगैम एक तरह का बीजदार पेड़ होता है।
प्रश्न 3 – जिम्नोस्पर्म और एंजियोस्पर्म एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर : जिम्नोस्पर्म – जिम्नोस्पर्म बीज फलों के अंदर नहीं होता है । उदाहरण – सेडरस आदि।
एंजियोस्पर्म – एंजियोस्पर्म में बीज फलों के अंदर बंद रहते हैं। उदाहरण – गेहूं आदि।
पाठ के बीच में पूछे जाने वाले सवाल (पेज 105)
प्रश्न 1 – पोरीफेरा और सिलेंटरेटा वर्ग के जंतुओं में क्या अंतर है?
उत्तर :- पोरीफेरा का अर्थ – छिद्र युक्त जीवधारी है। ये अचल जीव है जो किसी आधार से चिपके रहते हैं। इनके पूरे शरीर में अनेक छिद्र पाए जाते हैं। ये छिद्र शरीर में उपस्थित नाल प्राणली से जुड़े होते हैं, जिसके माध्यम से शरीर में जल, ऑक्सीजन और भोज्य पदार्थ का संचरण होता है। इनका शरीर कठोर आवरण अथवा बाह्र कंकाल से ढका होता है। इनकी शारीरिक संरचना अत्यंत सरल होती है, जिनमें ऊतक का विभेदन नहीं होता है। इन्हें सामान्यत: स्पांज के नाम से जाना जाता है, जो बहुधा समुद्री आवास में पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए – साइकॉन आदि।
सिलेंटरेटा – यह जलीय जंतु हैं। इनका शारीरिक संगठन ऊतकीय स्तर का होता है। इनमें एक देहगुहा पाई जाती है। इनका शरीर कोशिकाओं की दो परतों (आंतरिक एवं बाहरी परत) का बना होता है। इनकी कुछ जातियां समूह में रहती हैं, (जैसे – कोरल) और कुछ एकाकी होती है।
प्रश्न 2 – एनीलिडा के जंतु, आर्थोपोडा के जंतुओं से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर : एनीलिडा – एनीलिडा जंतु द्विपाशवसममित एवं त्रिकोरिक होते हैं।इनमें वास्तविक देहगुहा भी पाई जाती है। इससे वास्तविक अंग शारीरिक संरचना में निहित रहते हैं। अत: अंगों में व्यापक भिन्नता होती है। यह भिन्नता इनके शरीर के सिर से पूंछ तक एक के बाद एक खंडित रूप में उपस्थित होती है। जलीय एनीलिडा अलवण एवं लवणीय जल दोनों में पाए जाते हैं। इनमें संवहन, पाचन, उत्सर्जन और तंत्रिका तंत्र पाए जाते हैं। ये जलीय और स्थलीय दोनों होते हैं। जैसे केंचुआ , नेरीस, जोंक ऋषि आदि।
आर्थोपोडा – यह जंतु जगत का सबसे बड़ा संघ है। इनमें द्विपाशवसममित पाई जाती है और शरीर खंडयुक्त होता है। इनमें खुला परिसंचरण तंत्र पाया जाता है। अत: रुधिर वाहिकाओं में नहीं बहता। देहगुहा रक्त से भरी होती है। इनमें जुड़े हुए पैर पाए जाते हैं। कुछ सामान्य उदाहरण हैं – तितली, मक्खी, मकड़ी , बिच्छू , केकड़े आदि।
प्रश्न 3 – जल-स्थलचर और सरीसृप में क्या अंतर है?
उत्तर : ये मत्स्य से भिन्न होते हैं क्योंकि इनमें शल्क नहीं पाए जाते। इनकी त्वचा पर शलेष्म ग्रंथियां पाई जाती है तथा हृदय त्रिकक्षीय होता है। इनमें बाह्र कंकाल नहीं होता है। वृक्क पाए जाते हैं। शवसन क्लोम अथवा फेफड़ों द्वारा होता है।ये अंडे देने वाले जंतु है। ये जल तथा स्थल दोनों पर रह सकते हैं। उदाहरण – मेंढक आदि।
सरीसृप – ये असमतापी जंतु हैं। इनका शरीर शल्को द्वारा ढका होता है। इनमें शवसन फेफड़ों द्वारा होता है। हृदय सामान्यत: त्रिकक्षीय होता है, लेकिन मगरमच्छ का हृदय चार कक्षीय होता है। वृक्क पाया जाता है।ये भी अंडे देने वाले प्राणी हैं। इनके अंडे कठोर कवच से ढके होते होते हैं तथा जल – स्थलचर की तरह इन्हें जल में अंडे देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। उदाहरण – कछुआ, सांप, छिपकली , मगरमच्छ आदि।
प्रश्न 4 – पक्षी वर्ग और स्तनपायी वर्ग के जंतुओं में क्या अंतर है?
उत्तर : पक्षी वर्ग – ये समतापी प्राणी हैं। इनका हृदय चार कक्षीय होता है। इनके दो जोड़ी पैर होते हैं। इनमें आगे वाले दो पैर उड़ने के लिए पंखों में परिवर्तित हो जाते हैं। शरीर परों से ढका होता है। शवसन फेफड़ों द्वारा होता है। इस वर्ग में सभी पक्षियों को रखा गया है।
स्तनपायी वर्ग – ये समतापी प्राणी हैं। इनका हृदय चार कक्षीय होता है। इस वर्ग के सभी जंतुओं में नवजात के पोषण के लिए दुग्ध ग्रंथियां पाई जाती हैं। इनकी त्वचा पर बाल , स्वेद और तेल ग्रंथियां पाई जाती हैं। इस वर्ग के जंतु शिशु को जन्म देने वाले होते हैं। हालांकि कुछ जंतु अपवाद स्वरूप अंडे भी होते हैं जैसे इंकिड़ना , प्लैटिपस, कंगारू जैसे कुछ स्तनपायी में अविकसित बच्चे मासूपियम नामक थैली में तब तक लटके रहते हैं जब तक कि उनका पूर्ण विकास नहीं हो जाता है।
अभ्यास प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1 – जीवों के वर्गीकरण से क्या लाभ है?
उत्तर : जीवों के वर्गीकरण को अध्ययन के लिए बहुत फायदेमंद बनाता है।
जीवों के वर्गीकरण से इनको आसानी से पहचाना जा सकता है।
जीवों के वर्गीकरण से हमें सटीक जानकारी मिल पाती है।
प्रश्न 2 – वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से आप किस लक्षण का चयन करेंगे?
उत्तर : वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से हम वर्ग, कुल, वंश, जाति के लक्षण का चयन करेंगे।
इनको हम छोटे-छोटे समूह में बांट सकते हैं।
सभी जीवधारियों को हम उनके शारीरिक संरचना, भोजन ग्रहण करने के तरीके, आदि के आधार पर इनका वर्गीकरण करेंगे।
शारीरिक संरचना में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। लेकिन कुछ जीव समूहों की शारीरिक संरचना में पर्याप्त परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं।
प्रश्न 3 – जीवों के पाँच जगत में वर्गीकरण के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : प्रोटिस्टा – इसमें एककोशिक, यूकैरियोटी जीव आते हैं। इस वर्ग के कुछ जीवो में गमन के लिए सीलिया , फ्लैजेला, नामक संरचनाएं पाई जाती हैं। ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों तरह के होते हैं। उदाहरण के लिए – एककोशिका, शैवाल, डाइएटम, प्रोटोजोआ इत्यादि।
मोनेरा – इन जीवों में ना तो संगठित केंद्रक और कोशिकांग होते हैं और ना ही उनके शरीर बहुकोशिक होते हैं। इनमें पाई जाने वाली विविधता अन्य लक्षणों पर निर्भर करती है। इनमें कुछ में कोशिका भित्ति पाई जाती है तथा कुछ में नहीं। कोशिका भित्ति के होने या ना होने के कारण मोनेरा वर्ग के जीवों की शारीरिक संरचना में आए परिवर्तन तुलनात्मक रूप से बहुकोशिका जीवों में कोशिका भित्ति के होने या ना होने के कारण आए परिवर्तनों से भिन्न होते हैं। पोषण के स्तर पर ये स्वपोषी और विषमपोषी दोनों हो सकते हैं। उदाहरण के लिए- जीवाणु, नील- हरित शैवाल अथवा माइकोप्लाज्मा।
फंजाई – यह विषमपोषी यूकैरियोटी जीव हैं। इनमें से कुछ पोषण के लिए सड़े गले कार्बनिक पदार्थों पर निर्भर रहते हैं, इसलिए इन्हें मृतजीवी कहा जाता है। कई अन्य आतिथेय के जीवित जीवद्रव्य पर भोजन के लिए आश्रित होते हैं। इन्हें परजीवी कहते हैं। इनमें से कई अपने जीवन की विशेष अवस्था में बहुकोशिश क्षमता प्राप्त कर लेते हैं। फंजाई अथवा कवक में काइटिन नामक जटिल शकरा की बनी हुई कोशिका भित्ति पाई जाती है। उदाहरण के लिए – यीस्ट, मशरूम, मोल्ड आदि।
प्लांटी – इस वर्ग में कोशिका भित्ति वाले बहुकोशिका यूकैरियोटी जीव आते हैं। ये स्वपोषी होते हैं और प्रकाश – संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल का उपयोग करते हैं। इस वर्ग में सभी पौधों को रखा गया है। पौधे और जंतु सर्वाधिक दृष्टिगोचर होते हैं।
एनिमेलिया – इस वर्ग में ऐसे सभी बहुकोशिका यूकैरियोटी जीव आते हैं, जिनमें कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती है। इस वर्ग के जीव विषमपोषी होते हैं।
प्रश्न 4 – पादप जगत के प्रमुख वर्ग कौन हैं? इस वर्गीकरण का क्या आधार है?
उत्तर :- पादप जगत के प्रमुख वर्ग थैलोफाइटा , ब्रायोफाइटा , टेरिडोफाइटा, जिम्नोस्पर्म, एन्जियोस्पर्म हैं। इस वर्गीकरण का आधार है इस प्रकार से हैं ये बीज को अपने अंदर समाहित करने की क्षमता रखते हैं। पादप में हमेशा की बीज फल के अंदर पाया जाता है।
प्रश्न 5 – जंतुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अंतर क्या है?
उत्तर : जंतुओं – ये एक स्थान से दूसरे स्थान तक आ जा सकते हैं। ये अपना भोजन पेड़ – पौधे प्राप्त करते हैं। इनमें कोई कोशिक भित्ति नहीं पाई जाती हैं।
पौधों – ये एक स्थान से दूसरे स्थान पर आ जा नहीं सकते हैं। वनस्पतियों अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण / सूर्य की ऊर्जा के माध्यम अपना भोजन स्वयं बनाते हैं।
प्रश्न 6 – वर्टीब्रेटा (कशेरुक प्राणी) को विभिन्न वर्गों में बाँटने के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : इन जंतुओं में वास्तविक मेरूदंड और कंकाल पाया जाता है। इस कारण जंतुओं में पेशियों का वितरण अलग होता है एवं पेशियां कंकाल से जुड़ी होती हैं, जो इन्हें चलने में सहायता करती हैं। वर्टीब्रेटा त्रिकोरिक, देहगुहा वाले जंतु हैं। इनमें ऊतक एवं अंगो का जटिल विभेदन पाया जाता है। सभी कशेरुक जीवों में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं:
नोटोकॉर्ड
पृष्ठनलीय कशेरुक दंड और मेरुरज्जू
त्रिकोरिक शरीर
यूगिमत क्लोम थैली
देहगुहा ।
वर्टीब्रेटा (कशेरुक प्राणी) को पांच वर्गों में विभाजित किया गया है:
पक्षी , सरीसृप, मत्स्य, जल – -स्थलचर , सायक्लोस्टोमेटा।
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