इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-2 यानी भारत लोग और अर्थव्यवस्था के अध्याय- 8 “अंतर्राष्ट्रीय व्यापार” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 8 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 Geography Book-2 Chapter-8 Notes In Hindi
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अध्याय- 8 “अंतर्राष्ट्रीय व्यापार“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भारत लोग और अर्थव्यवस्था |
अध्याय नंबर | आठ (8) |
अध्याय का नाम | “अंतर्राष्ट्रीय व्यापार” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भारत लोग और अर्थव्यवस्था
अध्याय- 8 “अंतर्राष्ट्रीय व्यापार”
भारत में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का बदलता स्वरूप
- भौगोलिक सीमा से बाहर किए जाने वाले व्यापार को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं।
- बाहरी देशों के साथ व्यापार करना लगभग सभी देशों के लिए लाभदायक है क्योंकि कोई भी देश आत्मनिर्भर नहीं है।
- विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी कुल मात्रा का सिर्फ 1% है लेकिन फिर भी विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है।
- वर्ष 1950-51 में वैदेशिक व्यापार का मूल्य 1214 करोड़ रुपए था जोकि वर्ष 2016-17 में बढ़कर 4429762 करोड़ रुपए हो गया।
- बदलते समय के साथ भारत के विदेशी व्यापार की प्रकृति में बदलाव आया है और आयात-निर्यात दोनों की मात्रा में वृद्धि हुई।
भारत के निर्यात-संघटन के बदलते प्रारूप
- भारत में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में वस्तुओं के संघटनों में कृषि एवं संवर्गी उत्पादों का निर्यात कम हुआ है जबकि पेट्रोलियम और अपरिष्कृत उत्पादों का निर्यात बढ़ा है।
- अयस्क खनिजों व निर्मित सामानों का हिस्सा वर्ष 2009-10 से 2010-11 तथा 2015-16 से 2016-17 तक निर्यात स्थिर रहा है।
- कॉफी, काजू, दालों जैसे कृषि उत्पादों के निर्यात में गिरावट का कारण अत्यधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा है।
- वर्ष 2017 के समय विनिर्माण क्षेत्र में भारत ने अकेले कुल निर्यात मूल्य में 73.6% की भागीदारी दर्ज की है।
- भारत के विदेशी व्यापार में मणि-रत्नों तथा आभूषणों की हिस्सेदारी अधिक है।
भारत के आयात-संघटन के बदलते प्रारूप
- भारत ने वर्ष 1950 और 1960 के दशक में खाद्यानों की भयंकर कमी का सामना किया।
- उस दौरान भुगतान संतुलन विपरीत था क्योंकि आयात प्रतिस्थापन के सभी कोशिशों के बाद भी निर्यात से अधिक था।
- वर्ष 1970 में ‘हरित क्रांति’ को सफलता मिलने के बाद खाद्यानों के आयात पर रोक लगा दिया गया।
- वर्ष 1973 में ऊर्जा संकट से पेट्रोलियम के मूल्य में वृद्धि के कारण खाद्यानों के आयात का स्थान उर्वरकों तथा पेट्रोलियम ने ले लिया।
- पेट्रोलियम का आयात तीव्र वृद्धि विकसित औद्योगीकरण और बेहतर जीवन-स्तर की ओर संकेत करता है।
- खाद्य तेलों के साथ-साथ खाद्य एवं समवर्गी उत्पादों के आयात में कमी आई है।
- मोती, उपरत्न, सोना-चाँदी, धातुमय अयस्क, अलौह धातु, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ इत्यादि भारत के आयात के अन्य वस्तुओं में शामिल है।
व्यापार और उसकी दिशा
- भारत का व्यापारिक संबंध विश्व के अधिकतर देशों और व्यापारिक गुटों के साथ है।
- भारत आने वाले पाँच वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी हिस्सेदारी को दो गुना करने की कोशिश में है।
- अपनी हिस्सेदारी को दो गुना करने के लिए भारत ने आयात उदारीकरण, आयात करों में कमी, डी-लाइसेंसिंग और प्रतिक्रिया के उत्पाद के एकस्व में बदलाव जैसे अनुकूल उपाए अपनाने शुरू कर दिए है।
- भारत का अधिकतर विदेशी व्यापार समुद्री और वायु मार्गों द्वारा होता है।
- विदेशी व्यापार का छोटा-सा भाग सड़क मार्ग पर भी निर्भर करता है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रवेश द्वार के रूप में समुद्री पत्तन
- तीन तरफ से समुद्र से घिरे होने के कारण भारत सस्ते परिवहन के लिए एक सपाट तट प्रदान करता है।
- समुद्री यात्राओं की भारत में एक लंबी परंपरा रही है। प्राचीन काल से ही पत्तनों का उपयोग किया जा रहा है।
- स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्रता के बाद पत्तनों के विकास का वर्णन निम्न प्रकार है-
- अंग्रेजों द्वारा पत्तनों का विकास
- अंग्रेजों द्वारा पत्तनों का उपयोग उनके पृष्ठ प्रदेशों के संसाधनों के अवशोषण केन्द्र के रूप में किया गया था।
- रेलवे के विस्तार ने स्थानीय बाजारों को क्षेत्रीय बाजारों, क्षेत्रीय बाजारों को राष्ट्रीय बाजारों और राष्ट्रीय बाजारों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ने का कार्य किया।
- बाजारों के फैलाव की स्थिति वर्ष 1947 तक बनी रही।
- देश विभाजन के बाद पत्तनों का विकास
- विभाजन के कारण भारत के महत्वपूर्ण पत्तन अलग हो गए। कराची पत्तन पाकिस्तान में चला गया और चिटगाँव पत्तन पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में चला गया।
- पत्तनों की कमी को पूरा करने के लिए पश्चिम में कांडला और पूर्व में हुगली नदी पर कोलकाता के पास डायमंड हार्बर का विकास किया गया।
- वर्तमान में ज़्यादातर पत्तन आधुनिक अवसंरचना से निर्मित किए गए हैं।
- पहले पत्तनों को बनाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की थी लेकिन अब पत्तनों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनाने के लिए निजी क्षेत्रों के लिए भी द्वार खोल दिए गए हैं।
- भारतीय पत्तनों की नौभार निपटान की क्षमता वर्ष 1951 में 20 मिलियन टन थी, जोकि वर्ष 2016 में बढ़कर 837 मिलियन टन से अधिक हो गई।
- अंग्रेजों द्वारा पत्तनों का विकास
प्रमुख भारतीय समुद्री पत्तन
पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित पत्तन निम्नलिखित हैं-
- कांडला पत्तन
- कांडला पत्तन कच्छ की खाड़ी के मुहाने पर स्थित है।
- इस पत्तन का विकास मुंबई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए किया गया था।
- इस पत्तन से विशेष रूप से भारी मात्रा में पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों और उर्वरकों को प्राप्त किया जाता है।
- मुंबई पत्तन
- यह भारत का सबसे बड़ा प्राकृतिक पत्तन है।
- मुंबई पत्तन की लंबाई 20 कि. मी. और चौड़ाई 6 से 10 कि. मी. है।
- यह पत्तन देश का विशालतम टर्मिनल है, जिसमें 54 गोदियाँ हैं।
- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान के कुछ भाग मुंबई पत्तन की पृष्ठभूमि की रचना करते हैं।
- जवाहरलाल नेहरू पत्तन
- जवाहरलाल नेहरू पत्तन भारत का विशालतम कंटेनर पत्तन है।
- इसे मुंबई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए न्हावा-शेवा में एक अनुषंगी पत्तन के रूप में विकसित किया गया था।
- मार्मागाओ पत्तन
- यह गोवा का एक प्राकृतिक पत्तन है जोकि जुआरी नदमुख के शीर्ष पर स्थित है।
- जापान को लौह-अयस्क के निर्यात का निपटान करने के लिए वर्ष 1961 में मार्मागाओ पत्तन का विस्तार किया गया।
- कर्नाटक, गोवा और दक्षिणी महाराष्ट्र इस पत्तन की पृष्ठभूमि की रचना करते हैं।
- न्यू मंगलौर पत्तन
- न्यू मंगलौर पत्तन से लौह-अयस्क और लौह-सांद्र का निर्यात किया जाता है।
- यह पत्तन कर्नाटक राज्य में स्थित है और कर्नाटक ही इस पत्तन की पृष्ठभूमि की रचना करता है।
- इस पत्तन द्वारा उर्वरकों, पेट्रोलियम उत्पादों, खाद्य तेलों, कॉफी, चाय, लुग्दी, सूत, ग्रेनाइट पत्थर, शीरा आदि का निपटान किया जाता है।
पूर्वी एवं उत्तर-पूर्वी तट पर स्थित पत्तन निम्नलिखित हैं-
- कोलकाता पत्तन
- कोलकाता पत्तन बंगाल की खाड़ी से 128 कि. मी. स्थल में अंदर हुगली नदी पर स्थित है।
- इस पत्तन का विकास ब्रिटिश शासन द्वारा किया गया था।
- यह पत्तन हुगली नदी को समुद्र से जुड़ने के लिए मार्ग प्रदान करती है।
- उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम और उत्तर-पूर्वी राज्य कोलकाता पत्तन के अंतर्गत आने वाले पृष्ठ प्रदेश राज्य हैं।
- हल्दिया पत्तन
- इसका निर्माण कोलकाता से 105 कि. मी. अंदर अनुप्रवाह पर किया गया।
- हल्दिया पत्तन का निर्माण कोलकाता पत्तन के दबाव को कम करने के लिए किया गया।
- यहाँ से कोयला, लौह-अयस्क, पेट्रोलियम, उर्वरक, जूट, कपास और सूती धागे इत्यादि का निपटान किया जाता है।
- पराद्वीप पत्तन
- पराद्वीप पत्तन कटक से 100 कि. मी. दूर महानदी डेल्टा पर स्थित है।
- इसका विकास मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर लौह-अयस्क निर्यात करने के लिए किया गया था।
- इस पत्तन के पृष्ठ प्रदेश के अंतर्गत ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ आते हैं।
- विशाखापत्तनम पत्तन
- यह पत्तन आंध्र प्रदेश में स्थित है जिसे ठोस चट्टान और बालू को काटकर एक नहर द्वारा समुद्र से जोड़ा गया है।
- इसे लौह-अयस्क, पेट्रोलियम और सामान्य नौभार के निपटान के लिए विकसित किया गया था।
- इस पत्तन के पृष्ठ प्रदेश आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हैं।
- चेन्नई पत्तन
- यह वर्ष 1859 में बनाया गया एक कृत्रिम पत्तन है।
- पूर्वी तट पर स्थित यह सबसे पुराने पत्तनों में से एक है।
- तमिलनाडु और पांडिचेरी इसके पृष्ठ प्रदेश हैं।
- एन्नौर पत्तन
- इस पत्तन को चेन्नई से 25 कि. मी. दूर उत्तर में चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए बनाया गया है।
- तूतीकोरिन पत्तन
- इस पत्तन का विकास भी चेन्नई पत्तन के दबाव को कम करने के लिए किया गया था।
- यह पत्तन कोयला, नमक, खाद्यान, खाद्य तेल, चीनी, रसायन, पेट्रोलियम उत्पाद जैसे विभिन्न प्रकार के नौभार का निपटान करता है।
हवाई अड्डे
- हवाई अड्डा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- वायु परिवहन के द्वारा लंबी दूरी वाले सामानों का कम समय में आयात-निर्यात करना आसान होता है।
- वायु परिवहन भारी व स्थूल वस्तुओं के वहन करने के लिए बहुत महँगा और अनुपयुक्त होता है।
- महँगा और अनुपयुक्त होने के कारण ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में हवाई अड्डे की हिस्सेदारी कम होती है।
- देश में 25 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे कार्य कर रहे हैं, जिनमें से दिल्ली, चेन्नई, गोवा, हैदराबाद, अहमदाबाद, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चंडीगढ़, भुवनेश्वर, पुणे, पटना आदि प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं।
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