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दशहरा पर कविताएं (Poems On Dussehra In Hindi): विजय दशमी पर दस चुनिंदा कविताओं का संकलन पढ़ें

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PP Team

दशहरा झूठ पर सच, बुराई पर अच्छाई और अधर्म पर धर्म की जीत का पर्व है। दशहरा सत्य, धर्म और अच्छाई का पर्व है। दशहरा पर्व हमें अपने भीतर की बुराई को खत्म करके अच्छाई को अपनाने का संदेश देता है। पाप पर पुण्य की विजय का पर्व दशहरा नवरात्रि के नौ दिनों बाद आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आता है। इसलिए इसे विजयदशमी भी कहते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

दशहरा पर कविता

नवरात्रि और दशहरा दोनों सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव हैं, जो हिंदू धर्म के लोगों के लिए काफी महत्त्वपूर्ण और अहम हैं। कविता पढ़ने में रुचि रखने वाले लोग इस पेज पर दी गई दशहरा पर कविता हिंदी में पढ़ सकते हैं।

कविता 1

1

थोड़े से लाल फूल बिखेरे
अनामिका से कुमकुम का तर्पण किया
रक्त चंदन से माथे पर सौंदर्य लिखा
तब सुर्ख लाल आँखों से झाँकता वह दैदीप्य चेहरा
धीमे जलते पीले चिरागों के बीच मुस्कुराता
उस स्त्री के मुख
और
माँ के मुख की मुस्कानें
एक सी ही लग रही थी सखी.

2

आसमान रावण के अट्टहास से भरा था और बादल सीता के आँसुओं से
पूरी पृथ्वी सो रही थी और कुंभकर्ण के खर्राटे गूँज रहे थे
सूर्य की तरह आँखें लाल किये लक्ष्मण तपतपा रहे थे
राम मर्यादाओं में बंधे सिसक रहे थे
बुद्धिमान मानवीय सृष्टि तमाशा देख रही थी
हम अपने हथियार और गदा खोज रहे थे
पर उधर
कम अक्ल जानवरों की एक टीम के सेनानायक हनुमान
सीता मइया को ढूँढ रहे थे
नल-नील रास्ता बनाने में लगे थे

सृष्टि हमेशा कम बुद्धिमान लोगों ने बचायी है
जानवरों को आगे कर हमने लड़ाईयाँ जीती हैं
यह दशहरा उन तमाम अविकसित लोगों के जुनून की विजय है
न कि आर्य और अनार्य, देवता और राक्षसों के बीच की.

– दशहरे पर दो कविताएँ / राकेश पाठक

कविता 2

किस्सा एक पुराना बच्चो
लंका में था रावण,
राजा एक महा अभिमानी
कँपता जिससे कण-कण।

उस अभिमानी रावण ने था
सबको खूब सताया,
रामचंद्र जब आए वन में
सीता को हर लाया।

झलमल-झलमल सोने की
लंका पैरों पर झुकती,
और काल की गति भी भाई
उसके आगे रुकती।

सुंदर थी लंका, लंका में
सोना ही सोना था,
लेकिन पुण्य नहीं, पापों का
भरा हुआ दोना था।

तभी राम आए बंदर-
भालू को लेकर सेना,
साध निशाना सच्चाई का
तीर चलाया पैना।

लोभ-पाप की लंका धू-धू
जलकर हो गई राख,
दीप जले थे तब धरती पर
अनगिन, लाखों-लाख!

इसीलिए तो आज धूम है
रावण आज मरा था,
कटे शीश दस बारी-बारी
उतरा भार धरा का।

लेकिन सोचो, कोई रावण
फिर छल ना कर पाए,
कोई अभिमानी ना फिर से
काला राज चलाए।

तब होगी सच्ची दीवाली
होगा तभी दशहरा,
जगमग-जगमग होगा तब फिर
सच्चाई का चेहरा।

– होगा तभी दशहरा / प्रकाश मनु

कविता 3

फिर हमें संदेश देने
आ गया पावन दशहरा
तम संकटों का हो घनेरा
हो न आकुल मन ये तेरा
संकटों के तम छटेंगें
होगा फिर सुंदर सवेरा
धैर्य का तू ले सहारा
द्वेष हो कितना भी गहरा
हो न कलुषित मन यह तेरा
फिर से टूटे दिल मिलेंगें
होगा जब प्रेमी चितेरा
बन शमी का पात प्यारा
सत्य हो कितना प्रताडित
पर न हो सकता पराजित
रूप उसका और निखरे
जानता है विश्व सारा
बन विजय स्वर्णिम सितारा

– आ गया पावन दशहरा / सत्यनारायण सिंह

कविता 4

रावण शिव का परम भक्त था
बहुत बड़ा था ज्ञानी,
दस सिर बीस भुजाओं वाला
था राजा अभिमानी।
नहीं किसी की वह सुनता था
करता था मनमानी,
औरों को पीड़ा देने की
आदत रही पुरानी।
एक बार धारण कर उसने
तन पर साधु – निशानी,
छल से सीता को हरने की
हरकत की बचकानी।
पर – नारी का हरण न अच्छा
कह कह हारी रानी,
भाई ने भी समझाया तो
लात पड़ी थी खानी।
रामचन्द्र से युद्ध हुआ तो
याद आ गई नानी,
शिव को याद किया विपदा में
अपनी व्यथा बखानी।
जान बूझ कर बुरे काम की
जिसने मन में ठानी,
शिव ने भी सोचा ऐसे पर
अब ना दया दिखानी।
नष्ट हुआ सारा ही कुनबा
लंका पड़ी गँवानी,
मरा राम के हाथों रावण
होती खत्म कहानी।

– रावण / सुरेश चन्द्र “सर्वहारा”

कविता 5

राम तुम्हारे युग का रावन अच्छा था
दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था
दुख दे कर ही चैन कहाँ था ज़ालिम को
टूट पड़ा था चेहरे पर वो पढ़ता था
शाम ढले ये टीस तो भीतर उठती है
मेरा ख़ुद से हर इक वा’दा झूटा था
ये भी था कि दिल को कितना समझा लो
बात ग़लत होती थी तो वो लड़ता था
मेरे दौर को कुछ यूँ लिक्खा जाएगा
राजा का किरदार बहुत ही बौना था

– राम तुम्हारे युग का रावन अच्छा था / प्रताप सोमवंशी

कविता 6

सूरज तो पूरब में उगता है
और पश्चिम में डूब जाता है
कितना मुश्किल है सूरज को
उत्तर से दक्षिण ले जाना
कुछ भी हो सकता है इसमें
अपहृत हो सकती है पत्नी
आहत हो सकता है भाई
कुछ भी हो सकता है इसमें
पर कितना आसान है उत्सव मनाना
रावण का पुतला जलाना!

– रावण का पुतला / मदन कश्यप

विजयदशमी पर कविता

कविता 7

विजयादशमी विजय का, पावन है त्यौहार।
जीत हो गयी सत्य की, झूठ गया है हार।।
रावण के जब बढ़ गये, भू पर अत्याचार।
लंका में जाकर उसे, दिया राम ने मार।।
विजयादशमी ने दिया, हम सबको उपहार।
अच्छाई के सामने, गयी बुराई हार।।
मनसा-वाता-कर्मणा, सत्य रहे भरपूर।
नेक नीति हो साथ में, बाधाएँ हों दूर।।
पुतलों के ही दहन का, बढ़ने लगा रिवाज।
मन का रावण आज तक, जला न सका समाज।।
राम-कृष्ण के नाम धर, करते गन्दे काम।
नवयुग में तो राम का, हुआ नाम बदनाम।।
आज धर्म की ओट में, होता पापाचार।
साधू-सन्यासी करें, बढ़-चढ़ कर व्यापार।।
आज भोग में लिप्त हैं, योगी और महन्त।
भोली जनता को यहाँ, भरमाते हैं सन्त।।
जब पहुँचे मझधार में, टूट गयी पतवार।
कैसे देश-समाज का, होगा बेड़ा पार।।

– विजयादशमी / डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक

कविता 8

जानकी जीवन, विजय दशमी तुम्हारी आज है,
दीख पड़ता देश में कुछ दूसरा ही साज है।
राघवेन्द्र ! हमेँ तुम्हारा आज भी कुछ ज्ञान है,
क्या तुम्हें भी अब कभी आता हमारा ध्यान है ?

वह शुभस्मृति आज भी मन को बनाती है हरा,
देव ! तुम को आज भी भूली नहीं है यह धरा ।
स्वच्छ जल रखती तथा उत्पन्न करती अन्न है,
दीन भी कुछ भेट लेकर दीखती सम्पन्न है ।।

व्योम को भी याद है प्रभुवर तुम्हारी यह प्रभा !
कीर्ति करने बैठती है चन्द्र-तारों की सभा ।
भानु भी नव-दीप्ति से करता प्रताप प्रकाश है,
जगमगा उठता स्वयं जल, थल तथा आकाश है ।।

दुख में ही हा ! तुम्हारा ध्यान आया है हमें,
जान पड़ता किन्तु अब तुमने भुलाया है हमें ।
सदय होकर भी सदा तुमने विभो ! यह क्या किया,
कठिन बनकर निज जनों को इस प्रकार भुला दिया ।।

है हमारी क्या दशा सुध भी न ली तुमने हरे?
और देखा तक नहीं जन जी रहे हैं या मरे।
बन सकी हम से न कुछ भी किन्तु तुम से क्या बनी ?
वचन देकर ही रहे, हो बात के ऐसे धनी !

आप आने को कहा था, किन्तु तुम आये कहां?
प्रश्न है जीवन-मरन का हो चुका प्रकटित यहाँ ।
क्या तुम्हारे आगमन का समय अब भी दूर है?
हाय तब तो देश का दुर्भाग्य ही भरपूर है !

आग लगने पर उचित है क्या प्रतीक्षा वृष्टि की,
यह धरा अधिकारिणी है पूर्ण करुणा दृष्टि की।
नाथ इसकी ओर देखो और तुम रक्खो इसे,
देर करने पर बताओ फिर बचाओगे किसे ?

बस तुम्हारे ही भरोसे आज भी यह जी रही,
पाप पीड़ित ताप से चुपचाप आँसू पी रही ।
ज्ञान, गौरव, मान, धन, गुण, शील सब कुछ खो गया,
अन्त होना शेष है बस और सब कुछ हो गया ।।

यह दशा है इस तुम्हारी कर्मलीला भूमि की,
हाय ! कैसी गति हुई इस धर्म-शीला भूमि की ।
जा घिरी सौभाग्य-सीता दैन्य-सागर-पार है,
राम-रावण-वध बिना सम्भव कहाँ उद्धार है ?

शक्ति दो भगवन् हमें कर्तव्य का पालन करें,
मनुज होकर हम न परवश पशु-समान जियें मरें।
विदित विजय-स्मृति तुम्हारी यह महामंगलमयी,
जटिल जीवन-युद्ध में कर दे हमें सत्वर जयी ।।

– विजयदशमी / मैथिलीशरण गुप्त

सत्य की जीत पर कविता

कविता 9

दशहरा का तात्पर्य, सदा सत्य की जीत।
गढ़ टूटेगा झूठ का, करें सत्य से प्रीत॥
सच्चाई की राह पर, लाख बिछे हों शूल।
बिना रुके चलते रहें, शूल बनेंगे फूल॥
क्रोध, कपट, कटुता, कलह, चुगली अत्याचार
दगा, द्वेष, अन्याय, छल, रावण का परिवार॥
राम चिरंतन चेतना, राम सनातन सत्य।
रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य॥
वर्तमान का दशानन, यानी भ्रष्टाचार।
दशहरा पर करें, हम इसका संहार॥

– सत्य की जीत / अजहर हाशमी

अधर्म पर धर्म की जीत पर कविता

कविता 10

अधर्म पर धर्म की
जीत का प्रमाण है
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है
सतयुग में जन्म लेकर जब
रावण धरा पर आया था
इस धरा के वासियों पर
घोर संकट छाया था,
न जानता था अंत उसका
स्वयं का अभीमान है
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।
लेने को बदला बहन का
सीता को हर के लाया था
बहन की थी नाक कटी
अपना सिर कटवाया था,
बुरे कार्य का बुरा नतीजा
विधि का ये विधान है
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।
हनुमान ने भी जा लंका
आग से जलाई थी
रावण के सभी वीरों को
वाटिका में धूलि चटाई थी,
वर्षों पुरानी घटना के
उपलब्ध आज भी निशान हैं
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।
अंगद को देख कर रावण
फिर भी न समझ पाया था
बुद्धि गयी मारी थी
अंत निकट आया था,
ऐसे समय में सच्चाई
सुनते न किसी के कान हैं
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।
रणक्षेत्र में जब उतरे
रावण को राम ने मारा
बुराई किस तरह हारी
जानता है जग सारा,
यूँ तो ये बात है
कई युगों पुरानी पर
इसमें छिपा जीवन का
बहुत बड़ा ज्ञान है।
अधर्म पर धर्म की
जीत का प्रमाण है
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।

– अज्ञात

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