इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की अर्थशास्त्र की पुस्तक यानी “आर्थिक विकास की समझ” के अध्याय- 5 “उपभोक्ता अधिकार” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 5 अर्थशास्त्र के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 10 Economics Chapter-5 Notes In Hindi
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अध्याय-5 “उपभोक्ता अधिकार“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | दसवीं (10वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | आर्थिक विकास की समझ (अर्थशास्त्र) |
अध्याय नंबर | पाँच (5) |
अध्याय का नाम | “उपभोक्ता अधिकार” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- आर्थिक विकास की समझ (अर्थशास्त्र)
अध्याय- 5 “उपभोक्ता अधिकार”
बाजार में उत्पादक और उपभोक्ता
- बाजार में मानव की हिस्सेदारी उत्पादक और उपभोक्ता दोनों रूपों में होती है।
- उत्पादक कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में कार्य करते है, तभी वस्तु तथा सेवाएँ बाजार तक पहुँच पाती हैं।
- उपभोक्ताओं की हिस्सेदारी बाजार में अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदने के लिए होती है।
- लोग जिन वस्तुओं का उपभोग करते हैं, वे अंतिम वस्तुएँ कहलाती हैं।
- कोई भी उपभोक्ता स्वयं को बाजार में कमजोर न समझे इसलिए नियम तथा विनियम की जरूरत होती है।
- कभी-कभी किसी वस्तु या सेवा से जुड़ी कोई शिकायत होती है तब विक्रेता दोषारोपण क्रेता पर करते हैं।
- जब बिक्री के बाद वस्तु की पूर्ण जिम्मेदारी उपभोक्ता पर थोपी जाती है तब उपभोक्ता आंदोलन सामने आता है।
- बाजार में उपभोक्ताओं का शोषण अनेक प्रकार से किया जाता है, जैसे कि दुकानदार द्वारा वस्तुओं का वजन कम तौलना और अतिरिक्त मूल्य जोड़कर सामान को बेचना आदि।
उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत
- उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत बाजार में उपभोक्ताओं के साथ होने वाले शोषण के कारण हुई थी।
- पहले उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए कानून व्यवस्था नहीं थी इसलिए लोगों ने जनांदोलन का सहारा लिया था।
- आंदोलन ने वस्तुओं व सेवाओं की गुणवत्ता को निश्चित करने का उत्तरदायित्व विक्रेताओं को दे दिया।
- देश में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत ने उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के विषय को आगे बढ़ाने का कार्य किया।
- वर्ष 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप से उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ था।
- वर्ष 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ बड़े स्तर पर उपभोक्ताओं के अधिकार से जुड़े कार्य करने लगी थीं।
- वर्तमान में उपभोक्ता समूहों की संख्या बढ़ी है।
उपभोक्ता और उनके अधिकार
- उपभोक्ता (क्रेता) के रूप में हर किसी को वस्तुओं के बाजारीकरण एवं सेवाओं के खिलाफ सुरक्षित रहने का अधिकार होता है।
- बाजार में बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जिनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद जरूरा होता है वरना उपभोक्ता कोई बड़ी दुर्घटना का शिकार बन जाता है।
वस्तु और सेवाओं के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें
- कोई भी वस्तु खरीदते समय पैकेट पर दी गई महत्वपूर्ण जानकारी जैसे कि मूल्य, निर्माण व खराब होने की तारीख, वस्तु बनाने वाले का पता आदि को जरूर देखें साथ ही निर्देश को भी देखें।
- उपभोक्ताओं को अपनी खरीदी हुई वस्तुओं एवं सेवाओं के बारे में सूचना पाने का अधिकार प्राप्त है और खरीदी हुई चीजों में कोई भी खराबी होने पर शिकायत भी कर सकते हैं या मुवावजे और वस्तु बदलने की माँग कर सकते हैं।
- अगर वस्तु खराब होने की अंतिम तिथि से पहले ही खराब हो जाती है, तो उसे दुकानदार को बदलना पड़ता है और अगर किसी वस्तु पर खराब होने की अंतिम तारीख नहीं लिखी है, तो उपभोक्ता दुकानदार के खिलाफ शिकायत कर सकता है।
- कोई भी उपभोक्ता अधिकतम खुदरा मूल्य से कम दाम पर वस्तु खरीदने के लिए मोल-भाव कर सकता है।
- वर्ष 2005 में भारत सरकार ने सूचना पाने का अधिकार (आर.टी.आई.) कानून लागू कर दिया।
- सभी उपभोक्ताओं को वस्तुओं व सेवाओं को खरीदने से पहले चुनने का अधिकार प्राप्त है। अपनी पसंद से उपभोक्ता किसी भी वस्तु या सेवा का चुनाव कर सकता है।
- जब किसी वस्तु के साथ दूसरी वस्तु को खरीदने के लिए दबाव डाला जाता है, तो वहाँ चुनने के अधिकार को तोड़ा जाता है। इस तरह भी विक्रेताओं द्वारा उपभोक्ताओं का शोषण किया जाता है।
उपभोक्ताओं को न्याय पाने के लिए कहाँ जाना पड़ता है?
- अगर किसी उपभोक्ता को लगता है कि उसका शोषण हुआ है, तो वह क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार के आधार पर शोषक के खिलाफ शिकायत उपभोक्ता केंद्र में दर्ज कर सकता है।
- अगर कोई सेवा समय से नहीं पहुँचती, जैसे कि मनीऑडर तो उपभोक्ता द्वारा जिला स्तर की अदालत में शिकायत दर्ज किया जा सकता है।
- वर्तमान में पीड़ित उपभोक्ता अपनी शिकायत इंटरनेट के माध्यम से या खुद उपस्थित होकर भी कर दर्ज करवा सकता है।
- आज बहुत से ऐसे स्वयं सेवी संगठन मौजूद हैं, जो उपभोक्ताओं को शोषकों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का सही मार्ग दिखाने का कार्य करते हैं और सरकार से इस तरह की जागरूकता फैलाने के लिए धनराशि प्राप्त करते हैं।
- जिला स्तर पर एक करोड़, राज्य स्तर पर एक करोड़ से दस करोड़ तक और राष्ट्रीय स्तर पर दस करोड़ से अधिक दावे से जुड़े मुकदमें दर्ज किए जाते हैं।
- अगर कोई मामला जिला व राज्य द्वारा नहीं सुलझता है, तो उसे राष्ट्रीय स्तर पर भी सुलझाया जा सकता है।
- कानून ने उपभोक्ता न्यायालय में प्रतिनिधित्व का अधिकार देकर उपभोक्ता को समर्थ बनाने का कार्य किया है।
उपभोक्ताओं के लिए आवश्यक जानकारियाँ
- उपभोक्ताओं को अपने सभी अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए।
- खुद को सुरक्षित और शोषण मुक्त रखने के लिए उपभोक्ताओं को जागरूक होने की जरूरत सबसे अधिक है।
- कोपरा ने उपभोक्ता मामलों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को कोपरा कहा जाता है।
- ‘जागो ग्राहक जागो’ जैसे विज्ञापनों के माध्यम से सरकार विभिन्न कानूनी क्रियाओं की जानकारी उपभोक्ताओं तक पहुँचाती है। ऐसे कई विज्ञापन टेलीविजन पर भी प्रसारित किए जाते हैं।
- आई.एस.आई. और एगमार्क वाली वस्तुएँ ही ग्राहकों को खरीदनी चाहिए।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन को आगे बढ़ाना
- भारत में 24 दिसंबर के दिन राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।
- 24 दिसंबर 1986 के दिन भारतीय संसद में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू किया गया था।
- भारत उन राष्ट्रों में शामिल है जहाँ उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए उपभोक्ता न्यायालय है।
- वर्तमान में लगभग 2000 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं, जिनमें सिर्फ 50 या 60 पूर्ण रूप से विकसित तथा मान्यता प्राप्त हैं।
- उपभोक्ताओं को अधिकारों और अधिक मजबूती प्रदान करने के लिए वर्ष 2019 में इंटरनेट वाली खरीद को भी शामिल किया गया।
- भारत में कोपरा के 35 साल पूरे होने के बाद भी उपभोक्ता ज्ञान धीमी गति से प्रसारित हो रहा है।
- क्रेताओं को अपनी भूमिका तथा अपने महत्व को स्वयं समझना होगा। इस तरह एक जनसंघर्ष के माध्यम से शोषकों की समाप्ति की जा सकती है।
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