इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 10वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक यानी “समकालीन भारत-2” के अध्याय- 6 “विनिर्माण उद्योग” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 6 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 10 Geography Chapter-6 Notes In Hindi
आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।
अध्याय-6 “विनिर्माण उद्योग“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | दसवीं (10वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | समकालीन भारत-2 (भूगोल) |
अध्याय नंबर | छः (6) |
अध्याय का नाम | “विनिर्माण उद्योग” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 10वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- समकालीन भारत-2 (भूगोल)
अध्याय- 6 “विनिर्माण उद्योग”
विनिर्माण की पृष्ठभूमि
- कच्चे सामान से अधिक मात्रा में मूल्यवान वस्तुओं का उत्पादन करना विनिर्माण कहलाता है।
- लकड़ी से कागज बनाना, गन्ने से चीनी बनाना, लौह-अयस्क तथा एल्युमिनियम बॉक्साइड से लौह-इस्पात बनाना आदि विनिर्माण के उदाहरण हैं।
- द्वितीय कार्यों में लगे कर्मचारी कच्चे समान को मूल्यवान वस्तुओं में बदलने का कार्य करते हैं।
- इस्पात, कपड़ा, कार, बेकरी तथा पेय पादार्थों आदि से संबंधित उद्योगों में कार्य करने वाले कर्मचारी द्वितीय वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
- राष्ट्र की उन्नति उसके विनिर्माण उद्योगों के विकास पर निर्भर करती है।
विकास में विनिर्माण उद्योगों का महत्त्व
- विनिर्माण उद्योग आर्थिक विकास का मुख्य आधार होते हैं।
- विनिर्माण उद्योग ने कृषि को आधुनिक तकनीकों से जोड़ने का कार्य किया है।
- उद्योग ने द्वितीय और तृतीय क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराकर कृषि पर लोगों की निर्भरता को कम किया है।
- उद्योगों की स्थापना विकास, बेरोजगारी व क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के उद्देश्य से की गई है।
- निर्मित वस्तुओं के निर्यात से वैश्विक स्तर पर व्यापार को बढ़ावा मिलता है, जिससे देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
- वर्तमान में वे देश अधिक विकसित हैं जो कच्चे सामान को अत्यधिक कीमती वस्तुओं में विनिर्मित करते हैं।
- भारत में कृषि आधारित उद्योगों ने कृषि उत्पाद को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- वर्तमान में उद्योगों के लिए केवल आत्मनिर्भर होना काफी नहीं है बल्कि साथ में अधिक प्रतिस्पर्धी एवं सक्षम होना भी अधिक जरूरी है।
- उपयोक्त उद्देश्य को पूरा करने के लिए उद्योगों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की वस्तुओं के निर्माण पर बल दिया जा रहा है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान
- पिछले दो दशकों में सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण उद्योगों का योगदान 17% है लेकिन अन्य पूर्वी एशियाई देशों में ये योगदान 25 से 35% है।
- भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में एक वर्ष में 7% की दर से बढ़ोत्तरी हुई है।
- नई सरकारी नीतियों तथा उद्योगों के प्रयास के आधार पर विनिर्माण उद्योग अगले एक दशक में अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं।
- विनिर्माण उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ‘राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद’ की स्थापना की गई है।
उद्योगों की स्थापना और उनकी अवस्थिति
- उद्योगों की स्थापना उन्हीं क्षेत्रों में की जाती है जहाँ पर्याप्त कच्चा सामान, सस्ते श्रमिक, पूँजी, आवागमन के सुलभ साधन और बाजार आसानी से उपलब्ध होते हैं।
- जहाँ-जहाँ उद्योगों की स्थापना होती है वहाँ आस-पास के स्थानों में नगरों का विकास होता है। इस तरह नगर व उद्योग दोनों एक साथ विकास की तरफ बढ़ते हैं।
- नगर उद्योगों को बाजार के अलावा बैंकिंग, बीमा, परिवहन, श्रमिक, वित्तीय सलाह जैसी सेवाएँ भी उलब्ध कराते हैं।
- जिन नगरों में उद्योगों को अधिक सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, वहाँ बड़ा औद्योगिक समूह स्थापित होने लगता है।
- आजादी से पहले ज़्यादातर विनिर्माण उद्योगों की स्थापना, दूसरे देशों के साथ होने वाले व्यापार को ध्यान में रखकर की जाती थी।
- उद्योगों की अवस्थिति उसकी न्यूनतम उत्पादन लागत के आधार पर तय की जाती है।
- सरकार द्वारा बनाई गई विभिन्न नीतियाँ और कर्मचारियों की उपलब्धता भी किसी भी उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित कर सकती है।
उद्योगों के वर्गीकरण के मुख्य आधार
उद्योगों को निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है-
- कच्चे सामान के आधार पर।
- भूमि के आधार पर।
- पूँजी निवेश के आधार पर।
- स्वामित्व व शक्ति के आधार पर।
- कच्चे व निर्मित समान और भार के आधार पर।
कृषि आधारित मुख्य उद्योग
कृषि आधारित उद्योगों के नाम निम्नलिखित हैं-
- वस्त्र उद्योग
- सूती वस्त्र उद्योग
- पटसन उद्योग
खनिज आधारित प्रमुख उद्योग
खनिज आधारित मुख्य उद्योगों के नाम निम्नलिखित हैं-
- लोह एवं इस्पात उद्योग
- एल्युमिनियम प्रगल (धातु शोधन उद्योग)
- रसायन उद्योग
- उर्वरक उद्योग
- सीमेंट उद्योग
- मोटरगाड़ी उद्योग
- सूचना प्रौद्योगिकी एवं इलैक्ट्रोनिक उद्योग
उद्योगों के कारण बढ़ता प्रदूषण एवं पर्यावरण का निम्नीकरण
जिन उद्योगों को देश के विकास के लिए स्थापित किया गया है आज वही उद्योग वायु, जल, भूमि, ध्वनि जैसे चार मुख्य प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है-
वायु प्रदूषण
- उद्योगों द्वारा अधिक मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड एवं कार्बन मोनोऑक्साइड का इस्तेमाल वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है।
- विषैली गैसें वायु में मिलकर उसे दूषित करने का कार्य करती हैं।
- वर्तमान में दूषित वायु के संपर्क में आकर सैकड़ों लोग बीमार पड़ रहे हैं।
- रसायन, कागज, तेल के उद्योग व ईंट के भट्टे आदि से निकलने वाले धुएँ पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं।
- वायु प्रदूषण मनुष्यों के अलावा सभी जीव-जंतुओं और इमारतों पर बुरा प्रभाव डालता है।
जल प्रदूषण
- उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ जब जल के अंदर छोड़े जाते हैं तब जल प्रदूषण बढ़ता है।
- अम्ल, लवण, सीसा, कीटनाशक, उर्वरक, कार्बन, प्लास्टिक आदि जैसे कृत्रिम रसायन जल प्रदूषण का कारण बनते हैं। इन रसायनों को उद्योगों द्वारा सबसे अधिक जल में प्रवाहित किया जाता है।
- वर्तमान में बहुत से ऐसे उद्योगों की स्थापना की गई जो उद्योगों से निकले गंदे पानी को आस-पास की नदी या किसी बड़े तालाबों में छोड़ते हैं। इस तरह जल प्रदूषण प्रतिदिन बढ़ रहा है।
भूमि प्रदूषण
- मृदा और जल प्रदूषण का आपसी संबंध गहरा है क्योंकि गंदे पदार्थ जल के साथ-साथ मृदा पर भी दुष्प्रभाव डालते हैं।
- वर्षा के पानी के साथ प्रदूषण भूमि जल तक पहुँच कर उसे भी प्रदूषित कर देता है।
- कभी-कभी कारखानों से गर्म गंदा पानी नदियों में छोड़ दिया जाता है, जिसकी वजह से बहुत से जीव व मछलियाँ मर जाती हैं। इस प्रदूषण को तापीय प्रदूषण भी कहा जाता है।
- भूमि प्रदूषण के कारण भूमि अपनी उर्वरता खोने लगती है। यही कारण है कि वर्तमान में कृषि योग्य भूमि का क्षेत्र कम हो गया है।
ध्वनि प्रदूषण
- वर्तमान में तेज संगीत को अधिक महत्त्व दिया जा रहा लेकिन यह भी ध्वनि प्रदूषण का ही हिस्सा है।
- कारखानों व उद्योगों के मशीनों (ड्रिल मशीन, विद्युत जेनरेटर आदि) से निकने वाली अप्रिय ध्वनियाँ, ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण मानी जाती हैं।
- शोर ध्वनि प्रदूषण का आधार होता है, जिसकी वजह से कानों की सुनने की शक्ति कम होने लगती है।
औद्योगिक प्रदूषण पर रोकथाम
औद्योगिक प्रदूषण को निम्न प्रकार से कम किया जा सकता है-
- जल का कम उपयोग और इसके पुनःचक्रण पर बल देना अधिक आवश्यक है।
- वर्षा जल को एकत्रित करना और जल संकट के समय उसका इस्तेमाल करना।
- गीला कूड़ा व सूखा कूड़ा अलग-अलग डब्बे में रखना तथा उनका इस्तेमाल खाद बनाने के लिए करना।
- मनुष्य जैविक चीजों को अधिक महत्त्व देकर भी प्रदूषण को कम करने में सहायता कर सकता है।
- रासायनिक चीजों पर निर्भता को कम करना।
- घटते जल स्तर को देखते हुए जो उद्योग अधिक जल का उपयोग करते हैं उनपर सरकार द्वारा रोकथाम करनी चाहिए।
- सतत् पोषणीय विकास को अपनाकर उद्योगों को आर्थिक विकास की तरफ बढ़ना होगा।
- औद्योगिक प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार उद्योगों के लिए कुछ नई नीतियाँ बना सकती है।
PDF Download Link |
कक्षा 10 भूगोल के अन्य अध्याय के नोट्स | यहाँ से प्राप्त करें |