इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-2 यानी भारत लोग और अर्थव्यवस्था के अध्याय- 2 “मानव बस्तियाँ” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 2 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 Geography Book-2 Chapter-2 Notes In Hindi
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अध्याय- 2 “मानव बस्तियाँ“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | भारत लोग और अर्थव्यवस्था |
अध्याय नंबर | दो (2) |
अध्याय का नाम | “मानव बस्तियाँ” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भारत लोग और अर्थव्यवस्था
अध्याय- 2 “मानव बस्तियाँ”
बस्तियों के आकार और प्रकार
- जिन स्थानों पर मनुष्य स्थायी आवास बनाकर समूह के साथ रहते हैं, उन्हें मानव बस्ती कहते हैं।
- वर्तमान में बस्ती की सबसे छोटी इकाई को मकान कहा जाता है।
- बस्तरियाँ आकार और प्रकार में अनेक प्रकार की होती हैं।
- बस्तियाँ पल्ली (छोटे-छोटे गाँवों के समूह) से लेकर महानगरों तक फैली होती हैं।
- आकार के आधार पर बस्तियों की आर्थिक और सामाजिक संरचना बदल जाती है, जिसके बाद पारिस्थितिकी और प्रौद्योगिकी में भी बदलाव आ जाता है।
- बस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं-
- ग्रामीण बस्ती: विरल रूप से अवस्थित छोटी बस्तियाँ, जो कृषि और अन्य प्राथमिक क्रियाकलापों में विशिष्टा प्राप्त कर लेती है, ग्रामीण बस्ती या गाँव कहलाती है।
- नगरीय बस्ती: जो बड़े अधिवास द्वितीयक और तृतीयक क्रियाकलापों में संलग्न होते हैं, नगरीय बस्ती कहलाते हैं।
ग्रामीण और नगरीय बस्तियों में बुनियादी अंतर
ग्रामीण और नगरीय वस्तियों के बीच के बुनियादी अंतर को आप तालिका से समझ सकते हैं-
क्रम संख्या | ग्रामीण बस्ती | नगरीय बस्ती |
1. | ग्रामीण बस्ती के लोग अपने जीवन का पोषण और आधारभूत आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति प्राथमिक क्रियाओं से करते हैं। | जबकि नगरीय बस्ती के लोग कच्चे माल, तैयार माल और विभिन्न प्रकार की सेवाओं पर निर्भर रहते हैं। |
2. | ग्रामीणों का गनरियों लोगों से संबंध परिवहन और संचार परिपथ के माध्यम से स्थापित होता है। | नगर आर्थिक वृद्धि के नोड के रूप में कार्य करते हैं। |
3. | ग्रामीण लोग कम गतिशील होते हैं। | नगरियों क्षेत्रों में जीवन जीने का ढंग जटिल और अधिक तीव्र होता है। |
4. | इसके अंतर्गत सामाजिक संबंध घनिष्ठ होते हैं। | इसमें सामाजिक संबंध औपचारिक होते हैं। |
ग्रामीण बस्तियों के प्रकार
- निर्मित क्षेत्र के विस्तार और अंतर्वास दूरी द्वारा बस्तियों के प्रकार का निर्धारण होता है।
- भौतिक, सांस्कृतिक, मानवजातीय और सुरक्षा संबंधी कारक तथा दशाएँ ग्रामीण बस्तियों के प्रकारों के लिए उत्तरदायी हैं। इस आधार पर भारतीय ग्रामीण बस्तियों के चार प्रकार निम्न है-
- गुच्छित/संकुलित/आकेंद्रित बस्तियाँ
- गुच्छित ग्रामीण बस्तियों का एक संहत और संकुलित रूप होता है।
- इस प्रकार के गाँवों का रहन-सहन चारों तरफ फैले खेतों, खलिहानों और चारागाहों वाले क्षेत्रों से अलग होता है।
- गुच्छित बस्ती की मध्यवर्ती गलियाँ कुछ जाने-पहचाने प्रारूप और ज्यामितीय आकृतियाँ प्रस्तुत करते हैं जैसे कि आयताकार, अरीय, रैखिक आदि।
- ये बस्तियाँ ज़्यादातर उपजाऊ जलोढ़ मैदानों और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाई जाती है।
- अर्द्ध-गुच्छित/विखंडित बस्तियाँ
- ऐसी बस्तियों का निर्माण किसी बड़ी बस्तरी के विखंड से होता है।
- ऐसे में ग्रामीण समाज के एक या एक से अधिक वर्ग अपनी इच्छा से या बलपूर्वक मुख्य गाँव के समूह से थोड़ी दूरी पर रहने लगते हैं।
- ऐसी बस्तियों का निर्माण तब होता है जब गाँव का जमींदार और मुख्य समुदाय के लोग गाँव केंद्रीय भाग पर कब्जा कर लेते हैं जिसके कारण निम्न कार्यों में संलग्न लोगों को गाँव के बाहरी हिस्सों में बसना पड़ता है।
- गुजरात एवं महाराष्ट्र जैसे राज्यों के कुछ हिस्सों में अर्द्ध-गुच्छित बस्तियाँ अधिक देखने को मिलती है।
- पल्लीकृत बस्तियाँ
- जो बस्तियाँ भौतिक रूप से एक-दूसरे से अलग होकर छोटे-छोटे गाँवों में बस जाती हैं, वो पल्लीकृत बस्तियाँ कहलाती हैं।
- इन्हें देश के भिन्न भागों में स्थानीय स्तर पर पान्ना, पाड़ा, पाली, नगला, ढाँणी आदि नामों से भी जाना जाता है।
- इन बस्तियों का निर्माण सामाजिक तथा मानवजातीय कारकों से विखंडन के फलस्वरूप होता है।
- ऐसी बस्तियाँ मध्य एवं निम्न गंगा के मैदान, छत्तीसगढ़ तथा हिमालय की निचली घाटियों में अधिक पाई जाती हैं।
- परिक्षिप्त बस्तियाँ
- भारत में परिक्षिप्त बस्ती को एकाकी बस्ती भी कहते हैं।
- ये बस्तियाँ भारत में सुदूर जंगलों में एकाकी झोपड़ियों, कुछ झोपड़ियों की पल्ली और छोटी पहाड़ियों के ढालों पर खेतों अथवा चरागाहों के रूप में पाई जाती हैं।
- इन बस्तियों में घर या मकान एक-दूसरे से अलग होते हैं जिसका मुख्य कारण संसाधनों का विखंड है।
- मेघालय, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश तथा केरल जैसे राज्यों के विभिन्न हिस्सों में परिक्षिप्त बस्तियाँ पाई जाती हैं।
- गुच्छित/संकुलित/आकेंद्रित बस्तियाँ
नगरीय बस्तियाँ
- ग्रामीण बस्तियों की तुलना में नगरीय बस्तियाँ आपस में जुड़ी हुई और विशाल होती हैं।
- ये बस्तियाँ अनेक प्रकार की आर्थिक एवं प्रशासकीय कार्यों में संलग्न होती हैं।
- नगर गाँव से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से जुड़े होते हैं इसके अलावा वे परस्पर भी जुड़े होते हैं।
- नगर का जुड़ाव मुख्य रूप से द्वितीयक और तृतीयक क्रियाओं से होता है।
भारत में नगरों का विकास क्रम
- भारत में नगरों का उद्भव प्रागैतिहासिक काल में ही हो गया था।
- सिंधु घाटी सभ्यता में हड़प्पा और मोहनजोदड़ों जैसे नगर अस्तित्व में थे।
- फिर 18वीं शताब्दी में यूरोपियों के भारत आने से नगरों को विकास हेतु एक नई दिशा मिल गई।
- प्रमुख युगों के विकास के आधार पर भारतीय नगरों को निम्न तीन भागों में बाँटा गया है-
- आरंभिक/प्राचीन नगर
- भारत में 2000 वर्षों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले नगरों को प्राचीन नगर कहा जाता है।
- इनमें से अधिकतर नगरों का विकास धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्रों से रूप में हुआ है।
- वाराणसी (काशी) को सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन नगरों से एक माना जाता है।
- प्रयाग (इलाहाबाद), पटलिपुत्र (पटना) और मदुरई प्राचीन नगर के अंतर्गत आते हैं।
- मध्यकालीन नगर
- आज लगभग 100 नगरों का इतिहास मध्यकाल से जुड़ा है।
- इन नगरों का विकास रजवाड़ों और राज्यों के मुख्यालयों के रूप में हुआ है।
- ये किला नगर थे जिनका निर्माण प्राचीन नगरों के खंडहरों पर हुआ है।
- दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर, लखनऊ, आगरा और नागपुर महत्वपूर्ण मध्यकालीन नगर हैं।
- आधुनिक नगर
- भारत में अनेक आधुनिक नगरों का विकास अंग्रेजों और अन्य यूरोपियों द्वारा किया गया।
- उन्होंने सबसे पहले तटीय स्थानों पर सूरत, दमन, गोवा, पांडिचेरी आदि जैसे व्यापारिक पत्तनों को विकसित किया।
- अंग्रेजों ने मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे तीन प्रमुख केंद्रों का निर्माण अंग्रेजी शैली में करवाया।
- अंग्रेजों ने प्रशासनिक केंद्रों, ग्रीष्मकालीन विश्राम स्थलों के रूप में पर्वतीय नगरों को स्थापित किया और उन्हें सिविल, प्रशासनिक एवं सैन्य क्षेत्रों से जोड़ा।
- आरंभिक/प्राचीन नगर
भारत में नगरीकरण का स्तर
- भारत में नगरीकरण के स्तर का माप कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में किया जाता है।
- वर्ष 2011 में भारत में नगरीकरण का स्तर 31.16% था जोकि विकसित देशों की तुलना में काफी कम है।
- 20वीं शताब्दी के दौरान नगरीय जनसंख्या 11 गुना बढ़ी है।
- नगरीय केंद्रों में विवर्धन और नए नगरों के निर्माण ने नगरीय जनसंख्या की वृद्धि और नगरीकरण में सार्थक भूमिका निभाई है।
- वर्तमान में नगरीकरण की वृद्धि दर पिछले दो दशकों से धीमी हुई है।
नगरों का प्रकार्यात्मक वर्गीकरण
अनेक शहर और नगर को विशेषीकृत क्रियाओं, उत्पादनों और सेवाओं के लिए जाना जाता है। विशेषीकृत प्रकार्यों के आधार पर भारतीय नगरों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत क्रिया गया है-
प्रशासन शहर तथा नगर
- प्रशासनिक मुख्यालयों वाले शहरों को प्रशासन नगर कहते हैं।
- नई दिल्ली, चंडीगढ़, भोपाल, शिलांग, गुवाहाटी, इंफाल, श्रीनगर, गाँधीनगर, जयपुर, चेन्नई आदि प्रशासन शहर के अंतर्गत आते हैं।
औद्योगिक नगर
- ऐसे नगर जो विभिन्न प्रकार के उद्योगों का केंद्र बिंदु होते है, औद्योगिक नगर कहलाते हैं।
- मुंबई, सेलम, कोयंबटूर, मोदीनगर, जमशेदपुर, हुगली, भिलाई इत्यादि के विकास में उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
परिवहन नगर
- परिवहन नगर समुद्री तटों के पास स्थित पत्तन नगर को कहते हैं।
- ये नगर मुख्य रूप से आयात-निर्यात के कार्यों में संलग्न रहते हैं।
- कांडना, कोच्चि, कोझीकोड, विशाखापत्तनम आदि परिवहन नगर के अंतर्गत आते हैं।
वाणिज्यिक नगर
- इस वर्ग में व्यापार और वाणिज्य में विशिष्टता प्राप्त शहरों और नगरों को शामिल किया जाता है।
- कोलकाता, सहारनपुर और सतना आदि इस नगर के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
खनन नगर
- खनन नगर खनिज समृद्ध क्षेत्रों में विकसित हुए हैं।
- रानीगंज, झरिया, डिगबोई, अंकलेश्वर और सिंगरौली को खनन नगर कहा जाता है।
गैरिसन/छावनी नगर
- इन नगरों का निर्माण गैरिसन नगरों अर्थात् ब्रिटिश काल में छावनी नगरों के रूप में हुआ है।
- अंबाला, जलंधर, महू, बबीना, ऊधमपुर आदि इस नगर के प्रमुख उदाहरण हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक नगर
- जिन नगरों का महत्व धार्मिक तथा सांस्कृतिक कार्यों के लिए है, वे धार्मिक या सांस्कृतिक नगर कहलाते हैं।
- वाराणसी, मथुरा, अमृतसर, मदुरई, पुरी, अजमेर, पुष्कर, तिरुपति, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार और उज्जैन मुख्य धार्मिक और सांस्कृतिक नगर हैं।
शैक्षिक नगर
- कुछ नगरों का विकास शिक्षा केंद्र के रूप में हुआ है जिन्हें शैक्षिक नगर कहते हैं।
- रुड़की, वाराणसी, अलीगढ़, पिलानी, इलाहाबाद इत्यादि इस नगर में शामिल हैं।
पर्यटन नगर
- पर्यटन नगर उन्हें कहते हैं जिनका विकास पर्यटन स्थल के रूप में हुआ है।
- नैनीताल, मसूरी, शिमला, पंचमढ़ी, जोधपुर, जैसलमेर, उडगमंडलम, माउंटआबू आदि पर्यटन नगर के अंतर्गत आते हैं।
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