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Class 12 Political Science Book-1 Ch-7 “वैश्वीकरण” Notes In Hindi

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Navya Aggarwal
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक-1 यानी समकालीन विश्व राजनीति के अध्याय- 7 वैश्वीकरण के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 7 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 12 Political Science Book-1 Chapter-7 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 7 “वैश्वीकरण”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाबारहवीं (12वीं)
विषयराजनीति विज्ञान
पाठ्यपुस्तकसमकालीन विश्व राजनीति
अध्याय नंबरसात (7)
अध्याय का नामवैश्वीकरण
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 12वीं
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- समकालीन विश्व राजनीति
अध्याय- 7 (वैश्वीकरण)

वैश्वीकरण की अवधारणा

  • विश्व के सभी राष्ट्रों में विचारों, वस्तु, पूंजी का सरल प्रवाह ही वैश्वीकरण कहलाता है। इसके अंदर व्यापक अवधारणा काम करती है, जिसमें आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक तरीके शामिल हैं।
  • वैश्वीकरण ने वैश्विक जुड़ाव को पैदा कर दिया है, यह मान्यता गलत होगी कि वैश्वीकरण केवल एक आर्थिक परिघटना है। इसकी गति और प्रसार का धरातल ही इसे अलग बनाता है।
  • वैश्वीकरण केवल कुछ दिन चली प्रक्रिया का परिणाम नहीं है, न ही इसके लिए कोई एक कारक जिम्मेदार है, इसके पीछे औद्योगिक विकास और संचार साधनों की लंबी प्रक्रिया शामिल है।

वैश्वीकरण के कारण

  • वैश्वीकरण का सबसे प्रमुख कारण प्रोद्योगिकी रही, विश्व के सभी भागों में, टेलीफोन, टेलीग्राफ और माइक्रोचिप ने क्रांति कर दिखाई है, शुरुआत में आई छपाई की तकनीक ने ही प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति की आधारशिला रख दी थी।
  • ये संचार के साधन ही हैं, जिन्होंने विश्व के एक हिस्से में हुई घटना को दूसरे हिस्से तक आसानी से पहुंचाने का काम किया है। वैश्वीकरण के इस युग में लोगों के सोचने-समझने के नजरिए पर खासा प्रभाव देखने को मिल सकता है।
  • वस्तु, पूंजी और लोगों का विश्व के अन्य भागों में आवागमन इसी प्रोद्योगिकी की उन्नति को स्पष्ट करता है। वैश्वीकरण की मौजूदगी के परिणामस्वरूप विश्व के किसी दूसरे भाग में घटी घटना अन्य देशों के लोगों को भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।
  • जैसे- बर्डफ़्लू एवं सुनामी का प्रभाव भी किसी देश की सीमा तक नहीं रह सकता। वहीं बड़ी आर्थिक घटनाओं का भी सीधा प्रभाव पूरे विश्व की जनता पर दिखाई देता है।

वैश्वीकरण के राजनीतिक प्रभाव

  • वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण राज्यों की परंपरागत प्रभुसत्ता में कमी आई है, इससे राज्य की लोककल्याणकारी अवधारणा के स्थान पर अब राज्य की न्यूनतम हस्तक्षेपकारी अवधारणा को मान्यता दे दी गई है।
  • अब राज्यों की भूमिका को कुछ क्षत्रों तक ही सीमित कर दिया गया है, जैसे- कानूनी व्यवस्था का पालन और देश के नागरिकों की सुरक्षा आदि।
  • इससे दुनिया के सभी देशों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विस्तार देखने को मिला है। साथ ही इसके बाद से राज्यों की खुद निर्णय लेने की शक्ति पर भी प्रभाव साफ तौर पर देखने को मिला है।
  • इससे न केवल राज्यों की कुछ शक्ति में जहां कमी हुई है, वहीं कुछ क्षेत्रों मे वृद्धि भी हुई। आज के समय में प्रोद्योगिकी के माध्यम से सरकार अपने नागरिकों के संबंध में सूचना एकत्रित कर, नागरिक कल्याण में ही उनका प्रयोग कर पा रहे हैं। इसलिए प्रद्योगिकी के परिणामस्वरूप राज्यों की ताकत अब पहले से दुगनी हो चुकी है।

वैश्वीकरण के आर्थिक प्रभाव

  • वैश्वीकरण के विषय को आर्थिक संदर्भों से अवश्य जोड़ कर देखा जाता है, हालांकि इसका एक बड़ा भाग आर्थिक विकास से ही जुड़ा हुआ भी है। जब हम आर्थिक वैश्वीकरण की बात करते हैं, तो आमतौर पर हमारा ध्यान अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या विश्व व्यापार जैसी संस्थाओं की ओर अवश्य जाता है।
  • यह इतनी संकीर्ण अवधारणा नहीं है क्योंकि इन संस्थाओं के साथ और संस्थाओं की भागीदारी भी इसमें सम्मिलित है। इसमें आर्थिक लाभों का मूल्यांकन करके ही इसे अच्छे से समझा जा सकता है, जिसमें यह देखा जाता है कि सबसे ज्यादा लाभ किस राज्य को हुआ और हानि किसे? किसे ज्यादा हानि हुई यह देखना भी बेहद जरूरी हो जाता है।
  • वैश्वीकरण के कारण देशों ने अपनी सीमा में आयतों पर लगाए हुए प्रतिबंधों को हटाना शुरू कर दिया है, इससे पूरे विश्व में पूंजी की आवाजाही शुरू हो चुकी है, जिससे आर्थिक प्रवाह में तेजी आई है।
  • हालांकि इनमें से कुछ प्रवाह राज्यों की इच्छा से हुए और कुछ पर इन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं पर प्रभाव रखने वाले देशों की इच्छाओं के कारण, जिसने गरीब देशों को बेहद प्रभावित किया है।
  • वैश्वीकरण ने व्यापार प्रणाली को सुगम बना दिया है, धनी देशों में मौजूद निवेशकर्ता अब विभिन्न देशों में आसानी से निवेश कर पा रहे हैं, विशेषकर विकासशील देशों में, जिससे उन्हें लाभ मिल रहा है।
  • इंटरनेट और कंप्यूटर के क्षेत्र में हुई प्रगतिशीलता के कारण देशों की सीमाओं के मध्य अब विचारों का संचार आसान हो गया है, जिस तरह से सीमा के आर-पार विचारों के आगमन में वृद्धि हुई उस तरह से लोगों का आगमन नहीं बढ़ सका है।
  • विकसित देशों में सीमा की सुरक्षा के कारण वीजा नियम बेहद कड़े हैं, जिसके कारण वहां के देशों में जाकर काम करना सरल नहीं है। वैश्वीकरण ने सम्पूर्ण विश्व के लोगों के बीच की अमीरी-गरीबी की खाई को और भी गहरा कर दिया है।

इन आर्थिक प्रभावों पर विभिन्न मत

  • पक्ष में मत– आर्थिक वैश्वीकरण का पक्ष ले रहे लोगों का मानना है कि वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने समृद्धि को बढ़ाया है, जिससे जनसंख्या के बड़े हिस्से को खुशहाली मिली है। इसने विश्व पर अपना सकारात्मक प्रभाव छोड़ा है।
  • आर्थिक वैश्वीकरण की जरूरत आज पूरे विश्व में है, क्योंकि इससे होने वाली व्यापारिक वृद्धि से लगभग हर देश को अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने का सुअवसर मिला है।
  • विपक्ष में मत– वैश्वीकरण ने सरकारों को उनके उत्तरदायित्वों से दूर कर दिया है, जो सामाजिक न्याय में विश्वास कर रहे लोगों के लिए चिंता का विषय है, इनके अनुसार आर्थिक वैश्वीकरण का लाभ जनसंख्या के बेहद सीमित हिस्से को ही मिल सकेगा एवं अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए सरकार पर आश्रित जनता गरीब ही रह जाएगी।
  • इन लोगों का मानना है कि सरकार को इस गरीब तबके के लिए कुछ संस्थानिक उपायों को खोजने की आवश्यकता है। विश्व में हुए कई आंदोलनों से यह बात निकलकर आई है कि मानव सुरक्षा का कवच एक अव्यवहारिक और अपर्याप्त पहल है।
  • कुछ अर्थशास्त्रियों के मुताबिक तो आर्थिक वैश्वीकरण विश्व के समक्ष पुन: उपनिवेशवाद को लेकर खड़ा हो चुका है।
  • वहीं ऐसे बिन्दु भी हैं जो दोनों ही पक्षों को समान रूप से मानकर इसके पक्ष और विपक्ष दोनों की ओर ध्यान दे रहे हैं। उनके अनुसार वैश्वीकरण एक ओर निर्भरता को बढ़ा रहा है, वहीं इसके कारण कुछ चुनौतियाँ देखने को मिल रही हैं।

वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव

  • वैश्वीकरण ने विश्व की संस्कृतियों को विस्तृत रूप प्रदान किया है। युवा पीढ़ी का खान पान, पसंद, विचार आदि वैश्वीकरण के बाद से नया रूप गढ़ चुके हैं। इससे पता चलता है कि वैश्वीकरण से विश्व की संस्कृतियों को खतरा है जिसने तेजी से सांस्कृतिक समरूपता की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
  • सांस्कृतिक समरूपता का अर्थ विश्व में संस्कृति के उदय की ओर इशारा नहीं करता, यह पश्चिमी संस्कृति के बोल-बाले को दर्शाता है।
  • विद्वानों का तर्क है कि तकरीबन सभी देशों में लोगों की संस्कृतियाँ अमेरिकी प्रभाव में आकर स्वयं को उसके अनुरूप ढालने के प्रयासों में लगी हुई हैं। अमेरिकी जीवन शैली लोगों के मध्य, बर्गर, पिज्जा अथवा जींस जैसे प्रभावों को तेज कर रहा है।
  • ऐसा माना जाता है कि संस्कृतियों का प्रभाव अक्सर कमजोर समाज पर ही पड़ता है। इस तरह की संस्कृति का वैश्वीकरण सिर्फ गरीब देशों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए भी घातक है।
  • सांस्कृतिक वैश्वीकरण के कारण प्रत्येक संस्कृति अपने में अलग और विशिष्ट प्रतीत हो रही है, इसे सांस्कृतिक वैभिन्नीकरण कहा जा सकता है, इसने संस्कृतियों के मेल को पूर्ण रूप से समाप्त भी नहीं किया है, लेकिन इसके प्रभाव को एक तरफा भी कर दिया है।

भारत और वैश्वीकरण

  • भारत औपनिवेशिक काल के दौरान और ब्रिटेन की साम्राज्य नीति के कारण पहले बुनियादी वस्तुओं और कच्चे माल का निर्यातक रहा। लेकिन भारत ने इन्ही ताकतों से सीख लेकर संरक्षणवादी व्यवस्था की ओर अपना कदम बढ़ाया, जिससे भारत के कुछ क्षेत्रों में समस्याएं बढ़ने लगीं।
  • 1991 में देश में विभन्न समस्याएं उभरने लगीं, जिसमें आर्थिक संकट, आर्थिक वृद्धि की निम्न दर शामिल रही। इसके बाद से इन क्षेत्रों में लगाए गए विदेशी निवेश के प्रतिबंधों को हटा दिया गया।
  • भारत में वैश्वीकरण कितना सफल हुआ इसका अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि वैश्वीकरण अपनाने का भारत का लक्ष्य इसकी ऊंची आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ इसकी आर्थिक संवृद्धि में भी सबको समाहित करने का है, जो भारत के नागरिकों की समृद्धि के लिए भी लाभकारी है।

वैश्वीकरण पर प्रतिरोध

  • वैश्वीकरण के लिए राजनीति में वामपंथी समर्थकों का कहना है कि प्रचलित वैश्वीकरण की प्रक्रिया एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसमें निजी कंपनियों द्वारा उत्पादन और वितरण का लाभ उठाने के उद्देश्य से संचालन होता है, यह एक प्रकार से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को दर्शाता है।
  • देखा जाए तो इसका एक मात्र लक्ष्य केवल अपना लाभ ही है। इसने गरीबों को और गरीब तथा अमीर को और भी अमीर बनाया है। वैश्वीकरण ने राज्य के निर्धनों की सुरक्षा के लिए राज्य को ही कमजोर बना दिया है।
  • वैश्वीकरण लोगों को उनकी आधारभूत संस्कृति से दूर ले जा रहा है, उनके पुराने मूल्य और क्रियाकलाप उनसे छूटते जा रहे हैं।
  • ऐसे कई आंदोलन हुए हैं जिसमें वैश्वीकरण का विरोध तो हुआ है लेकिन इसके मूलभूत आधार का नहीं, इन आलोचकों ने कुछ विशिष्ट वैश्वीकरण के क्रियाकलापों को साम्राज्यवाद का ही रूप कहा है।
  • वर्ष 1999 में सिएटल की विश्व व्यापार संगठन की बैठक में व्यापार के कुछ अनुचित नियमों का विरोध भी हुआ, इनका कहना था कि इस उदित होते वैश्वीकरण में विकासशील देशों के हितों को अनदेखा किया जा रहा है।
  • वर्ल्ड सोशल फोरम जो कि एक नव उदारवादी वैश्वीकरण के विरोध में एक विश्व स्तरीय मंच है, इसमें महिला कार्यकर्ता संगठन, युवा, पर्यावरणविद, मानवाधिकार कार्यकर्ता आदि सभी शामिल हैं, ये सभी मिलकर नव उदारवादी वैश्वीकरण का विरोध करते हैं।

भारत और वैश्वीकरण का प्रतिरोध

  • भारत में कई विचारधाराओं ने राजनीतिक संगठनों और इंडियन सोशल फोरम के साथ मिलकर आर्थिक वैश्वीकरण का विरोध किया है।
  • बहुराष्ट्रीय निगमों के औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में प्रवेश को लेकर भी कई किसानों एवं श्रमिक संगठनों ने इसके विरोध में प्रदर्शन किए हैं।
  • अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों के विरोध में ‘नीम’ और ऐसे ही अन्य वनस्पतियों को पेटेंट कराने के संदर्भ में कई भारतीय संगठनों ने तीव्र प्रदर्शन किए।
  • वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों के चलते दक्षिण राजनीतिक वामपंथी विचारधार के लोगों ने विरोध करना शुरू किया है। इसमें कहा जाता आ रहा है कि पश्चिमी राष्ट्रों की संस्कृति का नकारात्मक प्रभाव पूरे विश्व की संस्कृति को उठाना पड़ रहा है।

समय-सूची

वर्ष घटना
1991भारत में वैश्वीकरण को नई आर्थिक नीति के रूप में अपनाया गया।
2001वर्ल्ड सोशल फोरम की पहली बैठक।
2004वर्ल्ड सोशल फोरम की बैठक मुंबई में हुई।
2018ब्राजील में वर्ल्ड सोशल फोरम की बैठक।
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