इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 8वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक यानी “सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III” के अध्याय- 3 “संसद तथा कानूनों का निर्माण” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 3 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 8 Political Science Chapter-3 Notes In Hindi
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अध्याय-3 “संसद तथा कानूनों का निर्माण“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | आठवीं (8वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान) |
अध्याय नंबर | तीन (3) |
अध्याय का नाम | “संसद तथा कानूनों का निर्माण” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 8वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान)
अध्याय- 3 “संसद तथा कानूनों का निर्माण”
लोगों को फैसले क्यों लेने चाहिए?
- स्वतंत्रता की लड़ाई के समय से ही लोग स्वंतत्रता, समानता एवं निर्णय लेने की शक्ति से प्रेरित थे।
- लोग ब्रिटिश सरकार के कई फैसलों से नाखुश व डरे हुए रहते थे पर विरोध नहीं करते थे क्योंकि विरोधियों को सरकार के गुस्से का सामना करना पड़ता था लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के जरिए लोग खुलकर सरकार के दमनकारी गतिविधियों का विरोध करने लगे।
- धीरे-धीरे लोगों ने भी ब्रिटिश शासन के समक्ष अपनी माँगे रखनी शुरू कर दीं।
- वर्ष 1885 में राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा विधायिका में सदस्यता और बजट पर चर्चा करने की माँग की गई थी।
- वर्ष 1990 में ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट’ के तहत कुछ हद तक निर्वाचित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था को मंजूरी दे दी गई थी।
- शुरुआत में सभी वयस्कों को वोट डालने और आम जनता को निर्णय प्रक्रिया में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं दिया गया था।
- स्वतंत्र भारत की कल्पना और आकांक्षाओं ने ही भारतीय संविधान को ठोस रूप प्रदान किया।
- उस दौरान संविधान ने भारत के सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार दे दिया।
राष्ट्र के लोग एवं उनके प्रतिनिधि
- लोकतंत्र के अंतर्गत सहमति का अर्थ है जनता की हिस्सेदारी।
- लोगों द्वारा लिया गया निर्णय ही लोकतांत्रिक सरकार बनाता है और उसे संचालित करने के लिए फैसला देता है।
- नागरिक सरकार को मंजूरी देते हैं इसलिए लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
- जनता द्वारा चुने गए सभी प्रतिनिधियों के समूह को संसद कहा जाता है, इसका कार्य सरकार को नियंत्रित करना और उसका मार्गदर्शन करना है।
- अपने चुने हुए निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से जनता ही सरकार बनाती है तथा उस पर निगरानी रखती है।
- प्रतिनिधियों का चुनाव सरकार द्वारा विभिन्न स्तरों पर किया जाता है।
संसद की भूमिका और उसके कार्य
- भारतीय संसद लोकतंत्र के सिद्धांतों में लोगों की आस्था का सूचक है।
- संसद जनता का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए इसके पास बहुत सी महत्वपूर्ण शक्तियाँ हैं।
- लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक जैसे होते हैं।
- देश के सभी निर्वाचन क्षेत्रों से एक व्यक्ति को संसद में भेजा जाता है और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अलग-अलग राजनीतिक दलों से जुड़े होते हैं।
- जो भी उम्मीदवार चुने जाते हैं उन्हें संसद का सदस्य, सांसद या एम.पी. कहते हैं। इन्हीं सदस्यों से मिलकर संसद बनती है।
- चुनाव होने के बाद संसद को दो मुख्य कार्य करने होते हैं, जोकि निम्न प्रकार हैं-
- राष्ट्रीय सरकार का गठन करना।
- सरकार को नियंत्रित करना, सही रास्ता दिखाना व उसे जानकारी प्रदान करना।
नए कानून बनाने की प्रकिया
- कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
- कानून प्रक्रिया अनेक स्तरों से होते हुए आगे बढ़ती है।
- सबसे पहले समाज के लोग सामूहिक रूप से कानून बनाने के लिए आवाज़ उठाते हैं फिर संसद अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए लोगों के प्रति संवेदनशील हो जाती है।
- घरेलू हिंसा को समाप्त करने के लिए भी देश के नागरिकों द्वारा आवाज उठाया गया, जिसके बाद कानून बना।
- उपरोक्त कथन से स्पष्ट होता है कि कानून बनाने की प्रक्रिया में नागरिकों की भूमिका अहम होती है।
- देश की जनता की चिंताओं को कानूनी रूप देने के लिए संसद की मदद ली जाती है।
- लोगों की माँग को जनसंचार के माध्यमों द्वारा प्रसारित किया जाता है और इन्हीं माध्यमों की सहायता से संसद की कार्य प्रक्रिया को पारदर्शी रूप में लोगों के सामने पेश किया जाता है।
अलोकप्रिय एवं विवादास्पद कानून की स्थिति
- बहुत बार संसद ऐसा कानून लागू कर देती है, जो लोगों को पसंद नहीं आता क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके पीछे गलत नियत या उद्देश्य छिपा है।
- लोग अलोकप्रिय कानूनों की आलोचना जनसभाओं, अखबारों, टी.वी. इत्यादि माध्यमों से कर सकते हैं।
- जब नागरिक दमनकारी कानून की आलोचना करते हैं तब संसद उस कानून पर पुनः विचार करने हेतु बाध्य हो जाती है।
- नगरपालिका ने सार्वजनिक स्थलों की साफ-सफाई की दृष्टि से पटरी पर दुकान या फेरी लगाने को गैर-कानूनी बताया है लेकिन इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि इन छोटे-छोटे दुकानों से लाखों की संख्या में आम जनता को कम कीमत पर चीज़ें आसानी से प्राप्त होती हैं।
- अगर कानून एक समूह की रक्षा करता है और दूसरे की उपेक्षा करता है तब उस पर विवाद व टकराव उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है।
- जब कानून के विरुद्ध आवाज अदालत तक पहुँचती है तब अदालत इस मुद्दे पर अपना फैसला सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए सुनाती है।
- अगर कोई कानून संविधान के विरुद्ध है, तो अदालत उसमें संशोधन कर सकती है या फिर रद्द भी कर सकती है।
- लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका सिर्फ प्रतिनिधियों के चुनाव तक ही खत्म नहीं होती बल्कि संसद क्या कर रही है? उस पर भी नागरिक विभिन्न माध्यमों से नज़र रखते हैं।
- अगर नागरिकों को लगता है कि सांसद देश के हित में सही कार्य नहीं कर रहे हैं, तो वे उनकी आलोचना भी सकते हैं। इस तरह से संसद को अपने कार्य को सही दिशा में संचालित करने में मदद मिलती है।
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