इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 8वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक यानी “सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III” के अध्याय- 8 “कानून और सामाजिक न्याय” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 8 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 8 Political Science Chapter-8 Notes In Hindi
आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दो ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।
अध्याय-8 “कानून और सामाजिक न्याय“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | आठवीं (8वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान) |
अध्याय नंबर | आठ (8) |
अध्याय का नाम | “कानून और सामाजिक न्याय” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 8वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन-III (राजनीति विज्ञान)
अध्याय- 8 “कानून और सामाजिक न्याय”
बाजार की स्थिति
- बाजार की बेहतर स्थिति मजदूरों की मेहनत का परिणाम है।
- मुनाफे की चाह में बहुत से उद्योग मजदूरों को उनका हक और मेहनताना देने से पीछे हटते हैं। ऐसा करना गैर-कानूनी माना जाता है।
- मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते हुए ही न्यूनतम वेतन का कानून बनाया गया है। इस कानून के मुताबिक किसी भी मजदूर को न्यूनतम कीमत से कम मजदूरी नहीं दी जा सकती है और वेतन में बढ़ोत्तरी करनी होती है।
- मजदूरों की तरह ही बाजार में उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं की रक्षा के लिए भी कानून बनाए गए हैं।
- इन कानूनों के जरिए मजदूरों, उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं को शोषण से बचाया जाता है।
- कानूनों को बनाने, लागू करने एवं उसे बरकरार रखने के लिए सरकार निजी कंपनियों की गतिविधियों को नियंत्रित कर सकती है।
- संविधान में बने कानून के मुताबिक 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को उद्योगों, कारखानों या जानलेवा व्यवसायों में काम पर नहीं रखा जा सकता है।
एक मजदूर की अहमियत का आकलन
- विदेशी कंपनियों के भारत में स्थापित होने का एक कारण यह भी था कि यहाँ श्रमिक सस्ते दामों पर आसानी से मिल जाते थे लेकिन अमेरिका जैसे विकसित देशों में ऐसा नहीं था।
- सस्ते श्रम की उपलब्धता के कारण कंपनियाँ कम भुगतान करके बड़ी आसानी से अधिक लाभ कमाती थीं।
- यूनियन कार्बाइड के कारखानों में कोई भी सुरक्षा उपकरण या तो सही से कार्य नहीं करता था या फिर उन उपकरणों की संख्या कम होती थी।
- वर्ष 1980 से 1984 के बीच मिक संयंत्र के कारखानों की संख्या 12 से 6 कर दी गई थी और सुरक्षा प्रशिक्षण की अवधि को 6 महीने से घटाकर 15 दिन कर दी गई थी।
- विभिन्न देशों के बीच सुरक्षा मानकों में बहुत अंतर होता है। भारत में आज भी मजदूरों को दुर्घटना ग्रस्त होने पर बहुत कम मुआवजा दिया जाता है। इसका एक मुख्य कारण है कि आज भी देश में मजदूरों का मूल्य बहुत कम है।
- भारत में मजदूर आसानी से मिल जाते हैं क्योंकि देश में बेरोजगारी सबसे अधिक है। यही कारण है कि बहुत से मजदूर कम वेतन में उद्योगों या कारखानों में जान जोख़िम में डालकर कार्य करने को राजी हो जाते हैं।
- आज बहुत से मालिक उपरोक्त स्थिति का लाभ उठाकर मजदूरों की सुरक्षा की जिम्मेदारियों से बड़ी आसानी से बच जाते हैं।
- वर्तमान में भी मालिकों के हिंसक रवैये के कारण निर्माण स्थलों, कारखानों इत्यादि से संबंधित दुर्घटनाओं की खबरें हर दिन सुनने को मिलती हैं।
सुरक्षा कानून को कार्य रूप में लाना
- कानून बनाने और उसे लागू करने के अलावा सरकार की ये भी जिम्मेदारी होती है कि वह सुरक्षा कानूनों को सही तरीके से लागू करे।
- जीवन के अधिकार का उल्लंघन न हो इसका भी सरकार को विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- पहले भारत में सुरक्षा कानूनों को सख्ती से लागू नहीं किया जाता था और बहुत से सरकारी अधिकारी कारखानों को खतरनाक श्रेणी में शामिल करने को राजी नहीं थे।
- उपरोक्त कारण की वजह से ही सरकारी निरीक्षक कारखाने में अपनाई जा रही दोषपूर्ण क्रियाओं को भी स्वीकृति दे देते थे। जिसके कारण कई मजदूर जानलेवा दुर्घटनाओं के शिकार बन जाते थे और इस दौरान बहुत मजदूरों की मौत भी हो जाती थी।
- पहले रासायनिक गैसों के रिसाव और सरकारी निरीक्षकों की लापरवाही के कारण कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की मौत सबसे अधिक होती थी।
- आज देश में नए-नए स्थानीय व विदेशी कारखानों की स्थापना की वजह से मजदूरों की रक्षा के लिए सख्त कानूनों को बनाने और उसे लागू करने की आवश्यकता बढ़ रही है।
पर्यावरण की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण नए कानून
- वर्ष 1984 में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत कम ही कानून उपलब्ध थे और इन्हें लागू करने की व्यवस्था बहुत धीमी थी।
- शुरुआत में उद्योगों को प्रदूषण फैलाने की पूरी छूट थी। इसी का परिणाम है कि पर्यावरण प्रदूषित हो चुका है और दिन प्रतिदिन लोगों की सेहत बिगड़ रही है जिसमें सबसे अधिक बच्चे और बूढ़े शामिल हैं।
- कारखानों की जहरीली गैसों से सिर्फ वहाँ काम करने वाले मजदूर ही प्रभावित नहीं होते बल्कि आम लोगों के लिए भी ये गैस खतरनाक साबित होती हैं।
- भोपाल गैस त्रासदी के बाद भारत सरकार ने नए कानून बनाए। इस कानून के आधार पर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने के लिए प्रदूषण फैलाने वाले को ही दोषी माना जाने लगा।
- संविधान के अनुसार अनुच्छेद-21 में प्रदूषण मुक्त हवा तथा पानी का अधिकार भी शामिल किया गया है।
- सरकार को वर्तमान स्थितियों को ध्यान में रखते हुए और प्रदूषण को कम करने के लिए नए कानूनों को सख्ती से लागू करने पर विचार करना चाहिए।
- सरकार को प्रदूषण फैलाने वाले सभी दोषियों पर जुर्माना लगाना चाहिए और इससे जुड़े नए व सख्त कानून बनाने चाहिए।
PDF Download Link |
कक्षा 8 राजनीति विज्ञान के अन्य अध्याय के नोट्स | यहाँ से प्राप्त करें |