इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 9वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक यानी ”भारत और समकालीन विश्व-1” के अध्याय- 1 “फ्रांसीसी क्रांति” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 1 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 9 History Chapter-1 Notes In Hindi
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अध्याय-1 “फ्रांसीसी क्रांति“
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | नौवीं (9वीं) |
विषय | सामाजिक विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | भारत और समकालीन विश्व-1 (इतिहास) |
अध्याय नंबर | एक (1) |
अध्याय का नाम | “फ्रांसीसी क्रांति” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 9वीं
विषय- सामाजिक विज्ञान
पुस्तक- भारत और समकालीन विश्व-1 (इतिहास)
अध्याय- 1 “फ्रांसीसी क्रांति”
सन् 1789 में पेरिस का माहौल बेहद आक्रामक हो गया, करीब 7000 नागरिकों ने सरकारी भवनों में घुसने का प्रयास किया। पेरिस के पूर्व में स्थित बाल्तीस किला, जो कि वहां के सम्राट की निरंकुशता के कारण सभी को नापसंद था, को ढहा कर इसके टुकड़ों को बाजारों में बेच दिया। इस विध्वंस के क्या कारण रहे?
फ्रांसीसी क्रांति के कारण
- फ्रांस की राजगद्दी लुई XVI ने 1774 में संभाली, इस समय राज्य का कोष खाली था, लंबे समय से हो रहे युद्धों के कारण ऐसा हुआ।
- इस समय में फ्रांस ने अमेरिका को भी ब्रिटेन के उपनिवेशवाद से बचाया जिसके कारण इसपर कर्जा बढ़ता ही चला गया। इसके चलते सरकार ने अपने रोजमर्रा के खर्चे चलाने के लिए करों में वृद्धि कर दी।
- फ्रांस इस समय में 3 वर्गों में विभाजित किया गया था, और सबसे नीचे के आम वर्ग को ही इन कारों की अदायगी करनी थी।
- इससे अन्य वर्ग यानी पादरी और कुलीन वर्ग को जन्म से ही कई विशेषाधिकार दिए गए थे, जिनमें से सबसे आवश्यक था करों से मुक्ति।
- किसानों से धार्मिक कर (टाइड) वसूला जाता था, इसके अलावा तीसरे वर्ग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों की वसूली की जा रही थी।
- 1717 में जहां फ्रांस की आबादी 2.3 करोड़ थी, यह बढ़कर 1789 में 2.8 करोड़ हो गई थी, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन के विपरीत मांगों में वृद्धि हो गई। गरीब और अमीर में फर्क बढ़त चला गया। इस तरह के संकट फ्रांस में काफी साधारण रहे हैं।
विशेषाधिकारों का अंत और उभरता मध्य वर्ग
- फ्रांस में वर्गीकृत किए हुए समूहों में तीसरे हिस्से में ज्यादातर लोग किसान और कामगार ही थे, इसमें उन लोगों ने, जो शिक्षित और समर्थ थे समाजिक, आर्थिक व्यवस्था को सुधारने की जिम्मेदारी ली।
- अठारहवीं सदी में मध्य वर्ग का उदय हुआ, जिसने कई संसाधनों की मदद से संपत्ति हासिल की। इन नए विचारों के चलते मध्य वर्ग ने विशेषाधिकारों का विरोध किया।
- उस समय के दार्शनिक जॉन लॉक और ज्यां ज़ाक ने समान और स्वतंत्र समाज का विचार रखा। अपनी पुस्तक ‘टू ट्रीटाइजेज ऑफ गवर्नमेंट‘ में जॉन लॉक ने निरंकुश शक्तियों का खंडन किया।
- इसके अलावा ‘द स्पिरिट ऑफ द लॉज’ में मोन्तेस्क्यू ने सरकार की शक्तियों के विभाजन को महत्वपूर्ण बताया। स्वयं को 13 उपनिवेशों से स्वतंत्र घोषित कर देने के बाद अमेरिका में भी इसी मॉडल को अपनाकर सरकार बनाई गई।
- इन विचारों का प्रचार आम बोलचाल की भाषा में किया गया, ताकि लोग अपने अधिकारों के लिए सचेत रहें, तभी जब एक बार फिर लुई XVI द्वारा दुबारा कारों को बढ़ाया गया तब लोगों ने विशेषाधिकारों की प्रणाली का साफ विरोध किया।
क्रांति का आरंभ
- लुई XVI ने करों को बढ़ाने के लिए एस्टेट्स जेनराल यानी प्रतिनिधि सभा का आयोजन किया, इसमें सभी तीनों एस्टेटों के प्रतिनिधियों को बुलाया जाता था, जो नए करों के लिए निर्णय ले सकें। लुई XVI ने यह बैठक 1789 में बुलाई।
- लुई XVI ने बैठक में सभी वर्गों के एक मत की बात रखी, लेकिन तीसरे वर्ग ने प्रत्येक सदस्य के एक मत की बात रखी। इस लोकतान्त्रिक निर्णय को रुसों ने अपनी पुस्तक ‘द सोशल कॉनट्रेकट’ में भी लिखा।
- लुई XVI ने इस निर्णय को मानने से मना किया, जिसका विरोध तीसरे वर्ग ने एक नेशनल असेंबली बना कर किया, इसका नेतृत्व मिराब्यो (कुलीन वर्ग से) और आबे सिए (पादरी वर्ग से) ने किया। इनकी मांग थी की सम्राट की शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए एक संविधान का निर्माण किया जाना चाहिए।
- नेशनल असेंबली संविधान का प्रारूप तैयार कर रही थी, तब देश में हालत बिगड़ने लगे, महंगाई बढ़ने लगी, लोग जमाखोरी करने लगे, इस समय सम्राट ने सेना को पेरिस में भेज दिया, जनता ने भी विरोध करते हुए बाल्तीस किला तोड़ दिया।
- इन सभी परिस्थितियों के चलते लुई XVI ने नागरिकों की सारी बाते मानीं और संविधान के तहत अपनी शक्तियों पर अंकुश लगाया।
फ्रांस में संवैधानिक राजतन्त्र का उदय
- 1791 में संविधान का प्रारूप तैयार कर लिया गया, जिसने सम्राट की शक्तियों को सीमित किया। इसे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच बाँट दिया गया। संविधान के कानून बनाने के अधिकार को नेशनल असेंबली पर छोड़ दिया गया।
- मतदान का अधिकार सक्रिय नागरिकों को ही दिया गया, मतदाता बनने के लिए नागरिकों का करों में योगदान होना आवश्यक था।
- इसमें नागरिकों को कई अधिकार दिए गए, जिनकी रक्षा की जिम्मेदारी राज्यों की थी।
गणतंत्र फ्रांस की स्थापना
- इन सब के बाद भी फ्रांस का माहौल चिंताजनक ही था, कई पड़ोसी राज्यों को भी ऐसी घटनाओं का भय बना हुआ था, इनको नियंत्रित करने से पहले ही 1792 में नेशनल असेंबली ने प्रशा और ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया।
- इस युद्ध से जनता को क्षति हुई। इस युद्ध को आगे इसलिए भी बढ़ाया गया क्योंकि जनता को लगता था कि संविधान में केवल अमीर वर्गों को ही शासन का अधिकार दिया गया है।
- इसमें कई अमीर संगठनों ने अपने गुट बना लिए जिसमें जैकोबिन क्लब सफल रहा। इस गुट के सदस्य छोटे वर्ग से संबंधित थे।
- इस वर्ग ने नया पहनावा इजात किया, जिससे इन्होंने कुलीन वर्ग के वर्चस्व की समाप्ति की घोषणा की, इसलिए इस गुट को सौं कुलॉत के नाम से जाना जाता था।
- खाद्य पदार्थों की महंगाई के चलते इस वर्ग ने विद्रोह कर दिया, और इस विद्रोह के परिणाम से नेशनल असेंबली ने सभी 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया।
- 21 सितंबर, 1792 में राजतन्त्र की समाप्ति कर दी गई। देशद्रोह के आरोप में लुई XVI को न्यायालय ने फांसी की सजा दी।
- 1793 से 94 के काल को फ्रांस में आतंकी काल के नाम से जाना जाता है। इस काल में रोबेस्प्येर ने उन सभी के विरुद्ध दंड का ऐलान किया जो उसकी नीतियों के खिलाफ थे। दोषी पाए जाने वाले हर व्यक्ति को गलोटिन पर चढ़ाकर सजा दी जाती थी।
- धार्मिक और भाषाई स्तर पर भी कई बड़े बदलाव किए गए। इन सभी अत्याचारों के बाद न्यायालय ने उसे दोषी करार दिया और गलोटिन पर चढ़ाकर मार दिया गया।
फ्रांस में डिरेक्ट्री का शासन
- जैसे ही जैकोबिन की सत्ता हटी मध्य वर्ग का इस पर कब्जा हो गया, इसने आते ही संविधान में गरीब नागरिकों से मताधिकार छीन लिया।
- संविधान में विधान परिषद बनाई गई, जिसमें 5 सदस्यों वाली एक कार्यपालिका बनाई, इसे डिरेक्ट्री कहा जाता था। विधान परिषद और डिरेक्ट्री के मध्य झगड़ा बना रहता जिसके कारण विधान परिषद इसे बर्खास्त करने की कोशिश में थी, इन सभी परिस्थितियों में नेपोलियन बोनापार्ट के रूप में सैन्य तानाशाही का उदय हुआ।
फ्रांसीसी क्रांति में महिलाएं
- फ्रांस में मौजूद तीसरे एस्टेट की महिलाएं मजदूरी कर अपनी गुजर-बसर करती थीं, इनके पास शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी थी। केवल कुलीन वर्ग और तीसरे वर्ग की धनी महिलाएं ही पढ़ पाती थीं।
- महिलाओं ने अपने अधिकारों और हितों के लिए क्लबों आदि का निर्माण किया, नगरों में 60 के करीब महिलाओं के क्लब मौजूद थे। ‘द सोसाइटी ऑफ रेवोल्यूशनरी एण्ड रिपब्लिकन विमन’ क्लब बेहद बड़ा क्लब था, जिसकी मांग थी राजनीतिक क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार।
- शुरुआती वर्षों में क्रांतिकारी सरकारों द्वारा महिलाओं के लिए बड़े निर्णय लिए गए, जिसमें उनके सामाजिक और शैक्षिक अधिकार तो शामिल थे, लेकिन उन्हें राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ा।
- अगली सदियों में भी मताधिकारों और समान वेतन के लिए उन्हें आंदोलन करने पड़े। फ्रांस में महिलाओं को 1946 में मताधिकार दिया गया।
फ्रांस में दास प्रथा
- जैकोबिन शासन के दौरान दास प्रथा का उन्मूलन सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णय रहा, दास व्यवस्था का प्रारंभ यूरोपीय देशों के बाहर श्रमिकों की कमी के कारण हुआ, इस कमी को यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका के बीच त्रिकोणीय दास व्यापार की मदद के कम किया गया।
- 18वीं शताब्दी में भी नेशनल असेंबली ने व्यापारियों के डर से ही दास प्रथा पर कोई कानून नहीं बनाया। दासों की मुक्ति का कानून 1794 के कन्वेन्शन में बनाया गया, यहाँ फ्रांसीसी उपनिवेशों में दासों को मुक्त कर दिया गया।
- लेकिन नेपोलियन ने दास प्रथा को फिर शुरू कर दिया। अफ्रीका के नीग्रो लोगों को बाग मालिकों ने अपने आर्थिक हित के लिए गुलाम बना लिया। दास पर्था का उन्मूलन फ्रांसीसी उपनिवेशों से 1848 में हुआ।
आम जीवन में क्रांति से बदलाव
- 1789 के बाद लोगों के आम जीवन में कई बदलाव आए, इस विध्वंस के बाद सेंसरशिप को समाप्त कर दिया गया, जिससे अखबारों और पर्चों आदि पर छपने वाली जानकारियाँ जल्द ही सारे फ्रांस में फैल जाती थीं।
- अब घटनाओं पर अपने विचार रखने की अनुमति थी। अब नागरिक जुलूसों और नाटकों के माध्यम से जानकारियाँ एकत्रित कर सकते थे, क्योंकि अखबार या पुस्तक पढ़ना केवल कुछ वर्गों तक ही सीमित था।
निष्कर्ष
नेपोलियन बोनापार्ट ने 1804 में खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित किया, यूरोपीय देशों में पुराने साम्राज्यों को हटा कर अपने परिवार को राजसत्ता दी। नेपोलियन ने ही निजी संपत्ति की सुरक्षा का कानून बनाया, लोगों ने उसे मुक्तिदूत की तरह देखा, लेकिन उसके सैनिकों ने हमला करना प्रारंभ कर दिया। नेपोलियन की मृत्यु 1815 में वॉटरलू युद्ध में हारने से हुई।
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