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स्वतंत्रता दिवस पर कविताएं (Poems On Independence Day In Hindi): देश के प्रसिद्ध कवियों की कविता

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PP Team

देश प्रेम की भावना को हर भारतवासी के दिल में जिंदा रखने में देश के कवियों और उनकी कविताओं की भूमिका अहम रही है। देश प्रेमी और हिंदी प्रेमी आज भी स्वतंत्रता दिवस पर कविता (Independence Day Poem In Hindi) पढ़ना, सुनना और सुनाना पसंद करते हैं। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आज भी स्कूल, कॉलेज, इंस्टिट्यूट, ऑफिस आदि जगहों पर 15 अगस्त पर देशभक्ति कविता का पाठ एक नई उमंग और ऊर्जा के साथ किया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस पर वीर रस की कविता

कविता 1

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं,
सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।

भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं है,
एक जीता-जागता राष्ट्र पुरुष है।
ये वंदन की धरती है, अभिनंदन की धरती है।
ये अर्पण की भूमि है, ये तर्पण की भूमि है।
इसकी नदी-नदी हमारे लिए गंगा है,
इसका कंकड़-कंकड़ हमारे लिए शंकर है।
हम जिएंगे तो इस भारत के लिए
और मरेंगे तो इस भारत के लिए।
और मरने के बाद भी,
गंगाजल में बहती हुई हमारी अस्थियों को
कोई कान लगाकर सुनेगा,
तो एक ही आवाज़ आएगी,
भारत माता की जय।

– भारत जमीन का टुकड़ा नहीं / अटल बिहारी वाजपेयी

कविता 2

पंद्रह अगस्त का दिन कहता: आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है॥

जिनकी लाशों पर पग धर कर आज़ादी भारत में आई,
वे अब तक हैं खानाबदोश ग़म की काली बदली छाई॥

कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आँधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥

हिंदू के नाते उनका दु:ख सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥

इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है॥

भूखों को गोली नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं॥

लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन गुलामी का साया॥

बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥

दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे॥

उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें॥

– पंद्रह अगस्त की पुकार / अटल बिहारी वाजपेयी

कविता 3

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा

‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा

– सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा / इक़बाल

स्वतंत्रता दिवस पर बाल कविता

कविता 4

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला,
मातृभूमि का तन-मन सारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,
कांपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जाए भय संकट सारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
इस झंडे के नीचे निर्भय,
लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,
बोलें भारत माता की जय,
स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
आओ! प्यारे वीरो, आओ।
देश-धर्म पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
इसकी शान न जाने पाए,
चाहे जान भले ही जाए,
विश्व-विजय करके दिखलाएं,
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।।
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।

– विजयी विश्व तिरंगा प्यारा (झंडा गीत) / श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’

स्वतंत्रता संग्राम पर कविता

कविता 5

महर्षि मोहन के मुख से निकला,
स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।
सचेत होकर सुना सभी ने,
स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।
रहा हमेशा स्वतन्त्र भारत,
रहेगा फिर भी स्वतन्त्र भारत।
कहेंगे जेलों में बैठकर भी,
स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।
कुमारि, हिमगिरि, अटक, कटक में,
बजेगा डंका स्वतन्त्रता का।
कहेंगे तैतिस करोड़ मिलकर,
स्वतन्त्र भारत, स्वतन्त्र भारत।

– स्वतन्त्र भारत / श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’

आजादी पर हिंदी कविता

कविता 6

आज देश मे नई भोर है
नई भोर का समारोह है
आज सिन्धु-गर्वित प्राणों में
उमड़ रहा उत्साह
मचल रहा है
नए सृजन के लक्ष्य बिन्दु पर
कवि के मुक्त छन्द-चरणों का
एक नया इतिहास ।

आज देश ने ली स्वंत्रतता
आज गगन मुस्काया ।
आज हिमालय हिला
पवन पुलके
सुनहली प्यारी-प्यारी धूप ।
आज देश की मिट्टी में बल
उर्वर साहस
आज देश के कण-कण ने ली
स्वतंत्रता की साँस ।

युग-युग के अवढर योगी की
टूटी आज समाधि
आज देश की आत्मा बदली
न्याय नीति संस्कृति शासन पर
चल न सकेंगे
अब धूमायित-कलुषित पर संकेत
एकत्रित अब कर न सकेंगे ,श्रम का सोना
अर्थ व्यूह रचना के स्वामी
पूंजी के रथ जोत ।

आज यूनियन जैक नहीं
अब है राष्ट्रीय निशान
लहराओ फहराओ इसको
पूजो-पूजो-पूजो इसको
यह बलिदानों की श्रद्धा है
यह अपमानों का प्रतिशोध
कोटि-कोटि सृष्टा बन्धुओं को
यह सुहाग सिन्दूर ।

यह स्वतंत्रता के संगर का पहला अस्त्र अमोध
आज देश जय-घोष कर रहा
महलों से बाँसों की छत पर नई चेतना आई
स्वतंत्रता के प्रथम सूर्य का है अभिनंदन-वन्दन
अब न देश फूटी आँखों भी देखेगा जन-क्रन्दन
अब न भूख का ज्वार-ज्वार में लाशें
लाशों में स्वर्ण के निर्मित होंगे गेह
अब ना देश में चल पाएगा लोहू का व्यापार
आज शहीदों की मज़ार पर
स्वतंत्रता के फूल चढ़ाकर कौल करो
दास-देश के कौतुक –करकट को बुहार कर
कौल करो ।

आज देश में नई भोर है
नई भोर का समारोह है ।

– 15 अगस्त 1947 / शील

कविता 7

धन्य सुभग स्वर्णिम दिन तुमको,
धन्य तुम्हारी शुभ घड़ियाँ।
जिनमें पराधीन भारत माँ,
की खुल पाईं हथकड़ियाँ॥

भौतिक बल के दृढ़-विश्वासी,
झुके आत्मबल के आगे।
सत्य-अहिंसा के सम्बल से,
भाग्य हमारे फिर जागे॥

उस बूढ़े तापस के तप का,
जग में प्रकट प्रभाव हुआ।
फिर स्वतन्त्रता देवी का,
इस भू पर प्रादुर्भाव हुआ॥

नव सुषमा-युत कमला ने,
सब स्वागत का सामान किया।
कवि के मुख से स्वयं शारदा,
ने था मंगल-गान किया॥

जय-जय की ध्वनि से गुंजित,
नभ-मंडल भी था डोल उठा।
नव जीवन पाकर भूतल का,
कण-कण भी था बोल उठा॥

श्रद्धा से शत-शत प्रणाम
उन देश प्रेम-दीवानों को।
अमर शहीद हुए जो कर
न्यौछावर अपने प्राणों को॥

कितने ही नवयुवक स्वत्व
समरांगण में खुलकर खेले।
अत्याचारी उस डायर के
वार छातियों पर झेले॥

कितनों ने कारागृह में ही,
जीवन का अवसान किया।
अपने पावनतम सुध्येय पर,
सुख से सब कुछ वार दिया॥

कितनों ने हँस कर फाँसी को,
चूमा, मुख से आह न की।
सन्मुख अपने निश्चित पथ के,
प्राणों की परवाह न की॥

अगणित माँ के लाल हुए,
बलिदान देश बलिवेदी पर।
तब भारत माँ ने पाया,
ये दिवस आज का अति सुखकर॥

पन्द्रह अगस्त का यह शुभ दिन
कभी न भूला जायेगा।
स्वर्णाक्षर में अंकित होगा,
उच्च अमर पद पायेगा॥

– 15 अगस्त / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

वीरों पर कविता

कविता 8

सरहद पे गोली खाके जब टूट जाए मेरी सांस
मुझे भेज देना यारों मेरी बूढ़ी मां के पास

बड़ा शौक था उसे मैं घोड़ी चढूं
धमाधम ढोल बजे
तो ऐसा ही करना 
मुझे घोड़ी पे लेके जाना
ढोलकें बजाना 
पूरे गांव में घुमाना
और मां से कहना 
बेटा दूल्हा बनकर आया है
बहू नहीं ला पाया तो क्या
बारात तो लाया है

मेरे बाबूजी, पुराने फ़ौजी, बड़े मनमौजी
कहते थे- बच्चे, तिरंगा लहरा के आना
या तिरंगे में लिपट के आना
कह देना उनसे, उनकी बात रख ली
दुश्मन को पीठ नहीं दिखाई
आख़िरी गोली भी सीने पे खाई

मेरा छोटा भाई, उससे कहना 
क्या मेरा वादा निभाएगा
मैं सरहदों से बोल कर आया था
कि एक बेटा जाएगा तो दूसरा आएगा

मेरी छोटी बहना, उससे कहना
मुझे याद था उसका तोहफ़ा
लेकिन अजीब इत्तेफ़ाक़ हो गया
भाई राखी से पहले ही राख हो गया

वो कुएं के सामने वाला घर
दो घड़ी के लिए वहां ज़रूर ठहरना
वहीं तो रहती है वो
जिसके साथ जीने मरने का वादा किया था
उससे कहना 
भारत मां का साथ निभाने में उसका साथ छूट गया
एक वादे के लिए दूसरा वादा टूट गया

बस एक आख़िरी गुज़ारिश 
आख़िरी ख़्वाहिश
मेरी मौत का मातम न करना
मैने ख़ुद ये शहादत चाही है
मैं जीता हूं मरने के लिए
मेरा नाम सिपाही है

– मनोज मुंतशिर

कविता 9

ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का
इस देश का यारों क्या कहना, ये देश है दुनिया का गहना

यहाँ चौड़ी छाती वीरों की, यहाँ भोली शक्लें हीरों की
यहाँ गाते हैं राँझे मस्ती में, मचती में धूमें बस्ती में

पेड़ों में बहारें झूलों की, राहों में कतारें फूलों की
यहाँ हँसता है सावन बालों में, खिलती हैं कलियाँ गालों में

कहीं दंगल शोख जवानों के, कहीं करतब तीर कमानों के
यहाँ नित नित मेले सजते हैं, नित ढोल और ताशे बजते हैं

दिलबर के लिये दिलदार हैं हम, दुश्मन के लिये तलवार हैं हम
मैदां में अगर हम डट जाएं, मुश्किल है कि पीछे हट जाएं

ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का

– यह देश है वीर जवानों का / साहिर लुधियानवी

स्वतंत्रता दिवस पर स्लोगन

1. हम सब ने आज ये ठाना है, आजादी को अमर बनाना है
2. इंकलाब का नारा है, भारत देश हमारा है
3. है भारत से हम सबको प्यार, स्वतंत्रता हमारा है अधिकार
4. स्वतंत्रता दिवस पर हम कसम खाएंगे, स्वतंत्र भारत को स्वच्छ बनाएंगे
5. स्वतंत्रता अधूरी जिनके बिन है, ये उन्हीं शहीदों का दिन है
6. ढूंढ लो आसमां ढूंढ लो ये जमीं, देश भारत के जैसा कहीं भी नहीं
7. चाहे भगवान अल्लाह हो या रब मेरा, जां से भी मुझको प्यारा है भारत मेरा
8. आज़ादी का जश्न मनाएं, आओ तिरंगा हम लहराएं
9. शहीदों ने गवां कर जान, आज़ाद कराया हिंदुस्तान
10.आज़ादी का है ये पर्व, अपने देश पे हम को गर्व

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