Join WhatsApp

Join Now

Join Telegram

Join Now

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 इतिहास अध्याय 4 औद्योगीकरण का युग

Photo of author
Ekta Ranga
Last Updated on

आप इस आर्टिकल से कक्षा 10 इतिहास अध्याय 4 औद्योगीकरण का युग के प्रश्न उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। औद्योगीकरण का युग के प्रश्न उत्तर परीक्षा की तैयारी करने में बहुत ही लाभदायक साबित होंगे। इन सभी प्रश्न उत्तर को सीबीएसई सिलेबस को ध्यान में रखकर बनाया गया है। कक्षा 10 इतिहास पाठ 4 के एनसीईआरटी समाधान से आप नोट्स भी तैयार कर सकते हैं, जिससे आप परीक्षा की तैयारी में सहायता ले सकते हैं। हमें बताने में बहुत ख़ुशी हो रही है कि यह सभी एनसीईआरटी समाधान पूरी तरह से मुफ्त हैं। छात्रों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जायेगा।

Ncert Solutions For Class 10 Chapter 4 In Hindi Medium

हमने आपके लिए औद्योगीकरण का युग के प्रश्न उत्तर को संक्षेप में लिखा है। इन समाधान को बनाने में ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद’ की सहायता ली गई है। औद्योगीकरण का युग पाठ बहुत ही रोचक है। इस अध्याय को आपको पढ़कर और समझकर बहुत ही अच्छा ज्ञान मिलेगा। आइये फिर नीचे कक्षा 10 इतिहास अध्याय 4 औद्योगीकरण का युग के प्रश्न उत्तर (Class 10 History Chapter 4 Question Answer In Hindi Medium) देखते हैं।

संक्षेप में लिखें

प्रश्न 1 – निम्नलिखित की व्याख्या करें-

(क) ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले किए।

(ख) सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।

(ग) सूरत बंदरगाह अठारहवीं सदी के अंत तक हाशिये पर पहुँच गया था।

(घ) ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्तों को नियुक्त किया था।

उत्तर :- (क) ब्रिटेन की महिला कामगारों ने स्पिनिंग जेनी मशीनों पर हमले इसलिए किए क्योंकि जेम्स हरग्रीव्ज़ द्वारा 1764 में बनाई गई इस मशीन ने कताई की प्रक्रिया तेज कर दी थी। इसने मज़दूरों की माँग घटा दी थी। एक ही पहिया घुमाने वाला एक मज़दूर बहुत सारी तकलियों को घुमा देता था और एक साथ कई धागे बनने लगते थे। इस मशीन के आविष्कार से महिलाएं घबरा गई। उन सभी ने सोचा कि इस तरह के नए अविष्कार से उनकी रोजी रोटी छिन जाएगी। वह लाचारी का जीवन व्यतीत करेगी।

(ख) सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों की तरफ़ रुख करने लगे थे। वे किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उनसे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए उत्पादन करवाते थे। उस समय विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण चीज़ों की माँग बढ़ने लगी थी। इस माँग को पूरा करने के लिए केवल शहरों में रहते हुए उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था। वजह यह थी कि शहरों में शहरी दस्तकारी और व्यापारिक गिल्ड्स काफ़ी ताकतवर थे। फलस्वरूप, नए व्यापारी शहरों में कारोबार नहीं कर सकते थे। इसलिए वे गाँवों की तरफ़ जाने लगे। गाँवों में गरीब काश्तकार और दस्तकार सौदागरों के लिए काम करने लगे। सौदागरों ने जब माल पैदा करने के लिए पेशगी रकम दी तो किसान फ़ौरन तैयार हो गए।

(ग) अंग्रेजों के आने से पहले सूरत में कपड़ों और अन्य चीजों का व्यापार खूब अच्छे से चलता था। लेकिन जैसे ही अंग्रेजों ने भारत में कदम रखा तो बहुत सी चीजें बदलने लगी। यूरोपीय कंपनियों की ताकत बढ़ती जा रही थी। पहले उन्होंने स्थानीय दरबारों से कई तरह की रियायतें हासिल कीं और उसके बाद उन्होंने व्यापार पर इजारेदारी अधिकार प्राप्त कर लिए। इससे सूरत व हुगली, दोनों पुराने बंदरगाह कमजोर पड़ गए। इन बंदरगाहों से होने वाले निर्यात में नाटकीय कमी आई। पहले जिस कर्जे से व्यापार चलता था वह खत्म होने लगा। धीरे-धीरे स्थानीय बैंकर दिवालिया हो गए। सत्रहवीं सदी के आखिरी सालों में सूरत बंदरगाह से होने वाले व्यापार का कुल मूल्य 1.6 करोड़ रुपये था। 1740 के दशक तक यह गिर कर केवल 30 लाख रुपये रह गया था।

(घ) ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में बुनकरों पर निगरानी रखने के लिए गुमाश्तों को इस कारण नियुक्त किया था –

(1) कंपनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर ज्यादा प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की। कंपनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।

(2) कंपनी को माल बेचने वाले बुनकरों को अन्य खरीदारों के कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी गई। इसके लिए उन्हें पेशगी रकम दी जाती थी। एक बार काम का ऑर्डर मिलने पर बुनकरों को कच्चा माल खरीदने के लिए कर्जा दे दिया जाता था। जो कर्जा लेते थे उन्हें अपना बनाया हुआ कपड़ा गुमाश्ता को ही देना पड़ता था। उसे वे किसी और व्यापारी को नहीं बेच सकते थे।

प्रश्न 2 – प्रत्येक के आगे ‘सही’ या ‘गलत’ लिखें:

(क) उन्नीसवीं सदी के आखिर में यूरोप की कुल श्रम शक्ति का 80 प्रतिशत तकनीकी रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहा था।

उत्तर :- गलत

(ख) अठारहवीं सदी तक महीन कपड़े के अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर भारत का दबदबा था।

उत्तर:- सही

(ग) अमेरिकी गृहयुद्ध के फलस्वरूप भारत के कपास निर्यात में कमी आई।

उत्तर :- गलत

(घ) फ्लाई शटल के आने से हथकरघा कामगारों की उत्पादकता में सुधार हुआ।

उत्तर :- सही

प्रश्न 3 – पूर्व औद्योगीकरण का मतलब बताएँ।

उत्तर :- ऐसा नहीं है कि फैक्टरियों के अस्तित्व में आने से पहले औद्योगीकरण का काम नहीं होता था। औद्योगिक विकास तो औद्योगीकरण से पहले ही होने लगा था। इंग्लैंड और यूरोप में तो पूर्व औद्योगीकरण कभी से ही चला आ रहा था। यहां पर अनेक चीजों का निर्माण हुआ करता था।

चर्चा करें

प्रश्न 1 – उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता क्यों देते थे?

उत्तर :- उन्नीसवीं सदी के यूरोप में कुछ उद्योगपति मशीनों की बजाय हाथ से काम करने वाले श्रमिकों को प्राथमिकता ही देते थे। विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी। गरीब किसान और बेकार लोग कामकाज की तलाश में बड़ी संख्या में शहरों को जाते थे। जब श्रमिकों की बहुतायत होती है तो वेतन गिर जाते थे। इसीलिए, उद्योगपतियों को श्रमिकों की कमी या वेतन के मद में भारी लागत जैसी कोई परेशानी नहीं थी। उन्हें ऐसी मशीनों में कोई दिलचस्पी नहीं थी जिनके कारण मजदूरों से छुटकारा मिल जाए और जिन पर बहुत ज्यादा खर्चा आने वाला हो। जिन उद्योगों में मौसम के साथ उत्पादन घटता बढ़ता रहता था, वहां उद्योगपति मशीनों की बजाय मजदूरों को काम पर रखने को सही मानते थे। कुलीन वर्ग के लोग हाथ से बने उत्पादों को ही खरीदते थे।

प्रश्न 2 – ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय बुनकरों से सूती और रेशमी कपड़े की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्या किया।

उत्तर :- ईस्ट इंडिया कंपनी की राजनीतिक सत्ता स्थापित हो जाने के बाद कंपनी व्यापार पर अपने एकाधिकार का दावा कर सकती थी। फलस्वरूप उसने प्रतिस्पर्धा खत्म करने, लागतों पर अंकुश रखने और कपास व रेशम से बनी चीजों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रबंधन और नियंत्रण की एक नयी व्यवस्था लागू कर दी। यह काम कई चरणों में किया गया। कंपनी ने कपड़ा व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करने तथा बुनकरों पर ज्यादा प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की। कंपनी ने बुनकरों पर निगरानी रखने, माल इकट्ठा करने और कपड़ों की गुणवत्ता जाँचने के लिए वेतनभोगी कर्मचारी तैनात कर दिए जिन्हें गुमाश्ता कहा जाता था।

प्रश्न 3 – कल्पना कीजिए कि आपको ब्रिटेन तथा कपास के इतिहास के बारे में विश्वकोश (Encyclopedia) के लिए लेख लिखने को कहा गया है। इस अध्याय में दी गई जानकारियों के आधार पर अपना लेख लिखिए।

उत्तर :- ब्रिटेन के व्यवसाय का इतिहास बहुत लंबा है। एक ज़माना हुआ करता था जब इंग्लैंड के सौदागर गाँवों की तरफ़ रुख करने लगे थे। वे किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उनसे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए उत्पादन करवाते थे। उस समय विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण चीजों की माँग बढ़ने लगी थी। इस माँग को पूरा करने के लिए केवल शहरों में रहते हुए उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था। वजह यह थी कि शहरों में शहरी दस्तकारी और व्यापारिक गिल्ड्स काफ़ी ताकतवर थे। ये गिल्ड्स उत्पादकों के संगठन होते थे। गिल्ड्स से जुड़े उत्पादक कारीगरों को प्रशिक्षण देते थे, उत्पादकों पर नियंत्रण रखते थे, प्रतिस्पर्धा और मूल्य तय करते थे तथा व्यवसाय में नए लोगों को आने से रोकते थे।

जब खुले खेत खत्म होते जा रहे थे और कॉमन्स की वाडाबंदी की जा रही थी। अब तक अपनी रोजी-रोटी के लिए साझा ज़मीनों से जलावन की लकड़ी, बेरियाँ, सब्ज़ियाँ, भूसा और चारा आदि बीन कर काम चलाने वाले छोटे किसान (कॉटेजर) और गरीब किसान आमदनी के नए स्रोत ढूँढ़ रहे थे। बहुतों के पास छोटे-मोटे खेत तो थे लेकिन उनसे घर के सारे लोगों का पेट नहीं भर सकता था । इसीलिए, जब सौदागर वहाँ आए और उन्होंने माल पैदा करने के लिए पेशगी रकम दी तो किसान फ़ौरन तैयार हो गए। सौदागरों के लिए काम करते हुए वे गाँव में ही रहते हुए अपने छोटे-छोटे खेतों को भी सँभाल सकते थे।

1760 में ब्रिटेन अपने कपास उद्योग की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 25 लाख पौंड कच्चे कपास का आयात करता था 1787 में यह आयात बढ़कर 220 लाख पौंड तक पहुँच गया। विक्टोरिया कालीन ब्रिटेन में मानव श्रम की कोई कमी नहीं थी। गरीब किसान और बेकार लोग कामकाज की तलाश में बड़ी संख्या में शहरों को जाते थे। जब श्रमिकों की बहुतायत होती है तो वेतन गिर जाते थे। इसीलिए, उद्योगपतियों को श्रमिकों की कमी या वेतन के मद में भारी लागत जैसी कोई परेशानी नहीं थी। उन्हें ऐसी मशीनों में कोई दिलचस्पी नहीं थी जिनके कारण मजदूरों से छुटकारा मिल जाए और जिन पर बहुत ज्यादा खर्चा आने वाला हो। जिन उद्योगों में मौसम के साथ उत्पादन घटता बढ़ता रहता था, वहां उद्योगपति मशीनों की बजाय मजदूरों को काम पर रखने को सही मानते थे। कुलीन वर्ग के लोग हाथ से बने उत्पादों को ही खरीदते थे।

प्रश्न 4 – पहले विश्वयुद्ध के समय भारत का औद्योगिक उत्पादन क्यों बढ़ा?

उत्तर :- पहले विश्व युद्ध तक औद्योगिक विकास धीमा रहा। युद्ध ने एक बिलकुल नयी स्थिति पैदा कर दी थी। ब्रिटिश कारखाने सेना की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए युद्ध संबंधी उत्पादन में व्यस्त थे इसलिए भारत में मैनचेस्टर के माल का आयात कम हो गया। भारतीय बाज़ारों को रातोंरात एक विशाल देशी बाज़ार मिल गया। युद्ध लंबा खिंचा तो भारतीय कारखानों में भी फ़ौज के लिए जूट की बोरियाँ, फ़ौजियों के लिए वर्दी के कपड़े, टेंट और चमड़े के जूते, घोड़े व खच्चर की जीन तथा बहुत सारे अन्य सामान बनने लगे। नए कारखाने लगाए गए।

विद्यार्थियों को कक्षा 10वीं सामाजिक विज्ञान अध्याय 4 औद्योगीकरण का युग के प्रश्न उत्तर प्राप्त करके कैसा लगा? हमें अपना सुझाव कमेंट करके ज़रूर बताएं। कक्षा 10वीं इतिहास अध्याय 4 के लिए एनसीईआरटी समाधान देने का उद्देश्य विद्यार्थियों को बेहतर ज्ञान देना है। इसके अलावा आप हमारे इस पेज की मदद से सभी कक्षाओं के एनसीईआरटी समाधान और एनसीईआरटी पुस्तकें भी प्राप्त कर सकते हैं।

कक्षा 10 हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, विज्ञान, गणित विषयों के समाधानयहाँ से देखें

Leave a Reply