इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक-2 यानी “भारत का संविधान-सिद्धांत और व्यवहार” के अध्याय-4 “कार्यपालिका” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 4 राजनीति विज्ञान के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 11 Political Science Book-2 Chapter-4 Notes In Hindi
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अध्याय- 4 “कार्यपालिका”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | ग्यारहवीं (11वीं) |
विषय | राजनीति विज्ञान |
पाठ्यपुस्तक | भारत का संविधान- सिद्धांत और व्यवहार |
अध्याय नंबर | चार (4) |
अध्याय का नाम | कार्यपालिका |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 11वीं
विषय- राजनीति विज्ञान
पुस्तक- भारत का संविधान- सिद्धांत और व्यवहार
अध्याय-4 “कार्यपालिका”
कार्यपालिका
- सरकार के तीन मुख्य अंग हैं, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका। इनका कार्य शासन व्यवस्था बनाने और जनकल्याण का है।
- इन तीनों अंगों का साथ में समन्वय होना आवश्यक है, एक दूसरे के तालमेल से कार्य करने की बात संविधान सुनिश्चित करता है।
कार्यपालिका क्या है?
- किसी भी क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है, प्रबंधन अथवा प्रशासन, प्रशासन को चलाने के लिए बड़े निर्णय और दैनिक कार्य करने होते हैं।
- इसी प्रकार सरकार बनने के बाद एक संस्था का निर्माण किया जाता है, जो कायदे कानूनों का निर्माण होने के बाद उन्हें लागू कराती है, यही कार्यपालिका कहलाती है।
- इसका मुख्य कार्य यही है कि जिस नए कानून और नियम को विधायिका ने स्वीकृति प्रदान की है, उसे लागू करवाना।
- इसका औपचारिक नाम भिन्न राष्ट्रों में भी भिन्न ही होता है। इसके रचनात्मक ढांचे में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और अन्य मंत्रियों के अलावा प्रशासन के व्यक्ति भी आ जाते हैं।
कार्यपालिका के प्रकार
- देशों में भिन्न कार्यपालिकाएं होती हैं, जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति और इंग्लैंड में महारानी, और देखा गया है कि भारत के राष्ट्रपति से अमेरिका के राष्ट्रपति की शक्तियां भिन्न होती हैं।
कार्यपालिका के प्रकार
संसदीय (सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत पर आधारित प्रणाली) | अर्द्ध-अध्यक्षात्मक (सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत पर आधारित प्रणाली) | अध्यक्षात्मक (एक व्यक्ति के नेतृत्व के सिद्धांत पर आधारित प्रणाली) |
सरकार के प्रमुख को आम तौर पर प्रधानमंत्री कहते हैं। | राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है। | राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है। |
प्रधानमंत्री विधायिका में बहुमत वाले दल का नेता होता है। | प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। | राष्ट्रपति भी सरकार का प्रमुख होता है। |
प्रधानमंत्री विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है। | प्रधानमंत्री और उसका मंत्री परिषद् विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है। | राष्ट्रपति का चुनाव आमतौर पर प्रत्यक्ष मतदान से होता है। |
देश के प्रमुख इनमें से कोई भी हो सकता है। देश जैसे- भारत, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, पुर्तगाल आदि। | जैसे- फ्रांस, रूस और श्रीलंका | राष्ट्रपति विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता। देश जैसे- अमेरिका, ब्राजील, लेटिन अमेरिका। |
भारत की संसदीय कार्यपालिका
- भारत के संविधान निर्माता एक जिम्मेदार और संवेदनशील संविधान का निर्माण करना चाहते थे।
- अध्यक्षात्मक और संसदीय व्यवस्था में से किसी एक विकल्प का चुनाव करना था।
अध्यक्षात्मक व्यवस्था
- इस व्यवस्था में राष्ट्रपति पर अधिक बल दिया जाता है, और सभी शक्तियों का मुख्य अंग भी मान लिया जाता है।
- संविधान के अनुसार एक शक्तिशाली कार्यपालिका का होना आवश्यक था, लेकिन यह सारी शक्तियों का केंद्र एक व्यक्ति के हाथों में नहीं सौंप सकता था।
संसदीय व्यवस्था
- यह व्यवस्था कार्यपालिका, विधायिका और जन प्रतिनिधियों के लिए उत्तरदायी होगी, इसी कारण इस व्ययस्था को भारत में स्वीकार कर लिया गया।
- इसमें राष्ट्रपति प्रधान होता है, लेकिन प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद के द्वारा ही राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
- राष्ट्रपति का निर्वाचन सीधे जनता के द्वारा नहीं किया जाता, यह चुनाव सांसद और विधायकों द्वारा किया जाता है।
राष्ट्रपति: शक्तियां और विशेषाधिकार
- राष्ट्रपति सरकार का औपचारिक प्रधान है, जिसे कार्यकारी, विधायी और कई आपात शक्तियां प्राप्त होती हैं।
- केवल मंत्रीपरिषद् की सलाह पर ही राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता है।
- विशेषधिकारों में राष्ट्रपति को मंत्रीपरिषद् की कार्रवाई के बारे में सूचना निकालने का अधिकार है।
- पहला– राष्ट्रपति मंत्रीपरिषद् की सलाह को पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है। यह शक्ति सीमित है, मंत्रिमंडल द्वारा दुबारा उसी सलाह को भेजने पर राष्ट्रपति को उसे स्वीकारना पड़ता है।
- दूसरा– राष्ट्रपति के पास वीटो का अधिकार भी है, जिससे वह धन विधेयक को छोड़कर अन्य किसी भी संसद के विधेयक को स्वीकृति देने में विलंब या खारिज कर सकता है। यह शक्ति भी सीमित है, संसद द्वारा यदि वही विधेयक दुबारा पारित कर दिया जाए, तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकार करना होगा।
- राष्ट्रपति के पास किसी भी विधेयक को अपने पास कितने भी समय के लिए रखने के अधिकार हैं, इसे पॉकेट वीटो कहा जाता है।
- तीसरा- राजनीतिक परिस्थितियों के चलते विशेषाधिकार मिलता है, यदि लोकसभा चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत हासिल न हो, उस स्थिति में राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की नियुक्ति करनी होती है।
प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद
- जिस मंत्रीपरिषद् की सलाह से राष्ट्रपति कार्य करता है, प्रधानमंत्री उस मण्डल का प्रधान होता है। साथ ही यह देश में अपनी सरकार का भी प्रधान होता है।
- संसदीय शासन में प्रधानमंत्री बहुमत की मदद से ही सत्ता में आ सकता है। प्रधानमंत्री ही अपने मंत्री परिषद् के सदस्यों का चुनाव करता है।
- यह चुनाव उनके पदों के आधार पर किया जाता है। सभी मंत्रियों और प्रधानमंत्री के लिए संसद का सदस्य होना अनिवार्य है।
- मंत्रीपरिषद् संसद में कार्यकारी समिति की तरह काम करती है, यदि किसी एक मंत्री के भी खिलाफ अविश्वास पत्र जारी किया जाता है, तो पूरे मंत्रीपरिषद् को ही त्यागपत्र देना होगा।
- भारत में प्रधानमंत्री को सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है, प्रधानमंत्री की मृत्यु हो जाने, त्यागपत्र देने और हटा दिए जाने पर मंत्रीपरिषद् भंग हो जाती है।
- प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल और राष्ट्रपति और संसद के बीच केंद्र के रूप में कार्य करता है।
प्रधानमंत्री की शक्तियों के स्त्रोत
- मंत्रीपरिषद् का नियंत्रण, लोकसभा का नेतृत्व, अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं में राष्ट्र नेता की छवि आदि।
- देश की राजनीतिक स्थिति के आधार पर ही प्रधानमंत्री शक्तियों का प्रयोग निर्भर करता है।
- चुनावों में बहुमत सिद्ध होने पर मंत्रिमंडल और प्रधानमंत्री की शक्तियों का बंटवारा निर्विवाद रहता है, परंतु गठबंधन की सरकार बनने के कारण सत्ता में सरकार का आना-जाना बना रहता है।
- इस परिस्थिति में राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों की भूमिका में इजाफा भी होता है, और गठबंधन की राजनीति से सहभागिता भी बढ़ती है।
- इसके चलते ही प्रधानमंत्री के कुछ अधिकारों जैसे- मंत्रिमंडल के चुनाव आदि पर रोक लग जाती है।
नौकरशाही: स्थायी कार्यपालिका
- शासन के अंग एक रूप में प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल और नौकरशाही आदि सम्मिलित होते हैं, सैन्य सेवा से अलग करने के लिए इसे नागरिक सेवा कहा जाता है।
- इसमें काम करने वाले अधिकारी मंत्रिमंडल के सदस्यों का सहयोग नीतियों का निर्माण करने में करते हैं। मंत्रिमंडल के मंत्रियों का नियंत्रण इन प्रशासनिक अधिकारियों पर होता है।
- नीतियों का निर्माण करते समय प्रशासनिक अधिकारियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे राजनीतिक दृष्टिकोण का पक्ष न लें।
- भारतीय नौकरशाही के स्वरूप में विशाल अंतर हुआ है, आज के समय में सिविल सर्विसिज या नौकरशाही के लिए उम्मीदवारों का चुनाव बिना भेदभाव के किया जाता है। इसके चुनाव का भार संघ लोक सेवा आयोग के जिम्मे है।
- दक्षता और योग्यता के आधार पर भर्ती प्रक्रिया की जाती है, जिसमें आरक्षण के आधार पर सभी वर्गों के उम्मीदवारों को बराबर का अधिकार दिया जाता है।
- इसके अंतर्गत आईएएस (प्रशासनिक सेवा) और आईपीएस (पुलिस सेवा) के लिए चयन की जिम्मेदारी संघ लोक सेवा आयोग को दी गई है, ये पद प्रशासनिक सेवा की रीढ़ माने जाते हैं।
- इसमें चयनित अधिकारियों का निलंबन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ही कर सकते हैं।
- आईएएस और आईपीएस अधिकारी राज्य सरकार की निगरानी में कार्य करता है, लेकिन इन पदाधिकारियों के विरुद्ध केवल केंद्र सरकार ही कार्य कर सकती है।
नौकरशाही का महत्त्व
सिविल सेवाओं का वर्गीकरण
अखिल भारतीय सेवाएं | केन्द्रीय सेवाएं | प्रांतीय सेवाएं |
भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा | भारतीय विदेश सेवा और भारतीय राजस्व सेवा | प्रांतीय सिविल सेवा |
- सरकार की नीतियों को आम जनता तक पहुँचने का कार्य नौकरशाही करती है, परंतु आम लोगों का मानना है कि नौकरशाही के कुछ अधिकारी नागरिकों की मांग के प्रति कम संवेदनशील होते हैं।
- लोकतान्त्रिक सरकार नौकरशाही को नियंत्रित कर इन समस्याओं को हल कर सकती है, लेकिन कभी-कभी सरकार भी नौकरशाही को अधिक नियंत्रण में करने का प्रयास करती है।
- संविधान में इन अधिकारियों की भर्ती के लिए स्वतंत्र प्रक्रिया बनाई गई है, लेकिन जनता के प्रति नौकरशाही का उत्तरदायी होने का प्रवधान नहीं किया गया है।
- इसके लिए सूचना के अधिकार को अधिक कारगर माना जाता है।
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