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भगवान श्री कृष्ण (कहानी-2) भगवान श्री कृष्ण के सिर दर्द की कहानी

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Ekta Ranga

कृष्ण जी को समस्त दुनिया पूजती है। इस दुनिया में श्री कृष्ण के करोड़ों भक्त हैं। मैं यहां पर बात कर रही हूं कलयुग की। लेकिन श्री कृष्ण के भक्त तो द्वापर युग से ही रहे हैं। द्वापर युग के ऐसे ही भक्त थे नारदजी और राधा रानी। पर राधा रानी के आगे नारदजी की भक्ति भी फीकी पड़ती थी।

इसी बात से नारदजी को बहुत बुरा लगता था। वह श्री कृष्ण को यह बताना चाहते थे कि उनसे बड़ा श्री कृष्ण का भक्त कोई और हो ही नहीं सकता है। बहुत से लोग नारदजी को यह समझाते कि आप राधा रानी से अपनी तुलना मत कीजिए। लेकिन वह कहां मानने वाले थे। नारदजी को तो यह सिद्ध करना था कि वह ही भगवान श्री कृष्ण के सबसे बड़े भक्त है।

भगवान श्री कृष्ण को अच्छे से पता था कि उनका परम भक्त कौन था। कृष्ण जी ने सोचा कि क्यों ना वह नारदजी को एक पाठ जरूर पढ़ाएं। कुछ कारण ही ऐसा बना कि एक दिन नारदजी बिना सूचना दिए बगैर ही द्वारिकापुरी पहुंच गए। कृष्ण जी को पहले ही आभास हो गया था कि नारदजी उनसे मिलने जरूर आएंगे।

इससे पहले कि नारदजी कृष्ण जी के कक्ष में प्रवेश करते कृष्ण जी अपने सिर को पकड़कर अपने बिस्तर पर लेट गए। कृष्ण जी को ऐसे लेटा हुआ देख नारदजी को थोड़ी चिंता हुई। नारदजी ने पूछा, “प्रभु, आप बिस्तर पर सुबह के समय ऐसे क्यों लेटे हो। आप सुस्त भी दिख रहे हो। क्या बात है सब ठीक तो है ना?” कृष्ण जी बोले, “मुनिवर, आज हमें अपनी तबीयत सुस्त नजर आ रही है।

दरअसल हमारे सिर में बहुत तेज दर्द है।” नारदजी ने पूछा, “हे प्रभु, आपका यह दर्द कैसे ठीक हो सकता है? जरा मुझे भी बताइए।” श्री कृष्ण बोले, “मेरा दर्द तभी ठीक होगा जब मैं अपने सच्चे भक्त के चरणामृत को अपने सिर पर लगाऊंगा। तुम्हें मेरे एक सच्चे भक्त के चरण धूलवाकर उस पानी को मेरे पास लाना होगा। बोलो, क्या तुम यह कर सकोगे?” नारदजी ने ज्यादा ना सोचते हुए श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए कार्य के लिए सहमति जता दी।

वह सोचने लगे कि सच में भगवान का सबसे परम भक्त कौन है? फिर कुछ देर सोचने के बाद उन्हें लगा कि शायद हो सकता है कि वही श्री कृष्ण के सबसे बड़े भक्त है। लेकिन कुछ ही पल बाद में उन्होंने अपने दिमाग से यह विचार त्याग दिया। उनको यह डर था कि अगर उन्होंने अपने चरण धोकर वह चरणामृत प्रभु को अपने सिर पर लगाने को दिया तो उन्हें घोर पाप का सामना करना पड़ेगा।

अब उनके पास कोई दूसरा चारा नहीं था। वह बिना देरी किए राधा रानी के निवास स्थान पहुंचे। राधा रानी तो कृष्ण भक्ति में लीन थी। क्योंकि नारदजी को राधा रानी से चरणामृत प्राप्त करना था इसलिए वह राधाजी के पास जाकर बोले, “माते, कृपया आप कुछ समय के लिए अपनी साधना रोक दीजिए।

मुझे आपसे बहुत जरूरी काम है। “राधारानी बोली, ” हे मुनिवर, कहिए मैं आपकी कैसे मदद कर सकती हूं?” नारदजी बोले, “माते, दरअसल श्री कृष्ण के सिर में भारी दर्द है। और वह दर्द तब ही खत्म हो सकता है जब वह अपने कोई महान भक्त के चरणामृत को लेकर अपने सिर पर लगाए।

मुझे लगता है कि आपसे बड़ा भक्त कोई और हो ही नहीं सकता। मैं चाहता हूं कि आप अपने चरण धोकर उससे प्राप्त होने वाला चरणामृत मुझे दे। उस चरणामृत को अपने सिर पर लगाते ही श्री कृष्ण एकदम से ठीक हो जाएंगे।” नारदजी की बात सुनकर राधारानी बोली, “नारदजी मैं यह आश्वासन के साथ नहीं कह सकती कि मैं ही श्री कृष्ण की परम भक्त हूं।

शायद इस धरती पर बड़े से बड़े श्री कृष्ण के भक्त बैठे हैं। पर मैं अपनी तरफ से कोशिश कर सकती हूं और प्रार्थना कर सकती हूं कि मेरे छोटे से प्रयास से श्री कृष्ण का सिर दर्द बिल्कुल ठीक हो जाए।” फिर राधारानी ने अपने पैरों को धोया और चरणामृत नारदजी को दे दिया। राधारानी के ऐसे विनम्र व्यवहार के चलते नारदजी को खुद पर ही शर्म आ रही थी। अब नारदजी समझ गए थे कि यह सारी माया कृष्ण जी द्वारा ही रचाई गई थी ताकि नारदजी का घमंड टूट सके।

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