इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-1 यानी मानव भूगोल के मूल सिद्धांत के अध्याय- 1 “मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 1 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 Geography Book-1 Chapter-1 Notes In Hindi
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अध्याय- 1 “मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र”
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | भूगोल |
पाठ्यपुस्तक | मानव भूगोल के मूल सिद्धांत |
अध्याय नंबर | एक (1) |
अध्याय का नाम | “मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र” |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- मानव भूगोल के मूल सिद्धांत
अध्याय- 1 “मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र”
मानव भूगोल की भूमिका
- पृथ्वी के मुख्य दो घटक प्रकृति और जीवन हैं जिसमें मनुष्य भी शामिल है।
- मानव भूगोल में भौतिक पर्यावरण के साथ-साथ मनुष्य के जीवन से जुड़ी गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है।
- मनुष्य की गतिविधियाँ प्रकृति से प्रभावित होती हैं इसलिए इसमें विश्व के उन सभी सामाजिक और आर्थिक कारकों का अध्ययन किया जाता है जिन्होंने मानव को पोषित किया है।
- मानव भौतिक (प्रकृति) और मानव भूगोल के बीच अंतर करना संभव नहीं है क्योंकि प्रकृति और मानव अविभाज्य तत्व है इसलिए उन्हें व्यापक स्तर पर देखना चाहिए।
- भू-आकृति, मृदाएँ, जलवायु इत्यादि भौतिक पर्यावरण के तत्व हैं जिसके आधार पर मानव अपने क्रिया-कलापों द्वारा गृह, गाँव, सड़क, नगर, उद्योग, रेल-जाल, पत्तन और प्रतिदिन प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का निर्माण करता है।
- भौतिक पर्यावरण को मनुष्य द्वारा एक बड़े स्तर पर परिवर्तित किया गया। इस परिवर्तन ने मानव जीवन को सबसे अधिक प्रभावित किया है।
मानव भूगोल की विभिन्न परिभाषाएँ
प्रमुख भूगोलवेत्ताओं द्वारा दी गई परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
- रैटजेल- “मानव भूगोल मानव समाजों और धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन है।”
- ऐलन सी. सेंपल- “मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।”
- पॉल विडाल-डी-ला-ब्लाश- “हमारी पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य संबंधों के अधिक संश्लेषित ज्ञान से उत्पन्न संकल्पना को मानव भूगोल कहते है।”
मानव भूगोल और उसकी प्रकृति
- मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण और मानव द्वारा बनाई गई सामाजिक सांस्कृतिक पर्यावरण के आपसी संबंधों का अध्ययन उनकी परस्पर होने वाली क्रिया के द्वारा करता है।
- मनुष्य पर्यावरण से मिले संसाधनों जैसे- भू-आकृति, मृदाएँ, जलवायु इत्यादि का उपयोग करके सुविधानुसार भौतिक वस्तुओं का निर्माण करता है।
- घर, सड़क, गाँव और शहर से लेकर उद्योग जैसे सभी तत्त्वों का निर्माण प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किया गया है।
- मनुष्य और प्रकृति अपनी क्रियाओं से एक-दूसरे को प्रभावित करती है।
मानव का प्राकृतीकरण
- मानव के प्राकृतीकरण का मतलब है मनुष्य द्वारा स्वयं को प्रकृति के अनुरूप कर लेना। जैसे कि पुराने समय में मानव ने खुद को प्रकृति के अनुरूप कर लिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि उस दौरान मानव प्रकृति की जरूरत को अच्छे से समझता था।
- प्राचीन काल में लोग प्रकृति की पूजा करते थे और उसके विकराल रूप से डरते थे लेकिन बदलते समय के अनुसार अब लोग संसाधनों का उपयोग करके विभिन्न उपकरणों और तकनीकों की सहायता से बड़े पैमाने पर उत्पादन करते हैं।
- सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के साथ ही बेहतर प्रौद्योगिकी विकास संभव है क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों के द्वारा ही संभावनाओं के द्वार खुलते हैं। जैसे कि कृषि करने के लिए हल की खोज ने कृषि को आसान बनाया और उपज को बढ़ाया।
- प्रारंभ में प्रौद्योगिकी का विकास स्तर इसलिए निम्न था क्योंकि मानव सबसे अधिक प्रकृति पर निर्भर था। उस दौरान सामाजिक विकास की अवस्था आदिम थी।
प्रकृति का मानवीकरण
- प्रौद्योगिकी विकास को संभव बनाने के लिए मनुष्य द्वारा प्रकृति को अपने अनुरूप ढाल लेना प्रकृति का मानवीकरण कहलाता है।
- अनुवांशिकी तथा डी.एन.ए. के बारे में गहनता से जानने के बाद मनुष्य ने अनेक बीमारियों का पता लगाया और उनके निवारण को तलाशने में सफलता हासिल की।
- व्यापारी कई तरह की प्रौद्योगिकी पर्यावरण संबंधित समस्याएँ दूर कर पाए। इसलिए हर तरह से प्रकृति को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है क्योंकि लगातार पोषण प्राप्त करने और प्रौद्योगिकी विकास के लिए वह प्रत्यक्ष रूप से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है।
- प्रौद्योगिकी के कारण मनुष्य पर्यावरण की बंदिशों से मुक्त रहता है।
- प्रकृति अवसर देती है और मनुष्य उसका उपयोग करना शुरू कर देता है। इस तरह समय बीतने के साथ-साथ प्रकृति का मानवीकरण होता है जिसे पहले के विद्वानों ने ‘संभावनवाद’ नाम दिया था।
बदलते समय के साथ मानव भूगोल
- पर्यावरण और मानव भूगोल की जड़े इतिहास में कितनी गहरी हैं इसकी कल्पना करना आसान नहीं है।
- बदलते समय के साथ पर्यावरण के उपागमों में परिवर्तन आया है जोकि पर्यावरण की परिवर्तनशील प्रकृति को दर्शाती है।
- पहले परिवहन और नौसंचालन के लिए अच्छी कुशलताएँ विकसित नहीं थी और समुद्र तथा नदी मार्ग से यात्रा करना खतरे से भरा होता था। फिर धीरे-धीरे मिथक और रहस्यों से पर्दा उठने लगा और मानव ने प्रमाण व परिणाम की खोज करनी शुरू कर दी।
- औपनिवेशिक काल आते ही बहुत से ऐसे बदलाव हुए जिससे मानव भूगोल प्रभावित हुआ। जिसके बाद सामाजिक भूगोल के साथ-साथ नगरीय भूगोल, राजनीतिक भूगोल, जनसंख्या भूगोल, आवास भूगोल, आर्थिक भूगोल भी मानव भगोल के महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गए।
ग्रिफिथ टेलर द्वारा दी गई मानव भूगोल की मुख्य विचारधाएँ
मानव भूगोल की तीन प्रमुख विचारधाराएँ निम्नलिखित हैं-
- पर्यावरणीय निश्चयवाद- पुराने समय में प्राकृतिक शक्तियों और मानव के बीच होने वाली क्रियाओं को पर्यावरणीय निश्चयवाद कहा गया है। इस विचारधारा के मुताबिक व्यक्ति की सभी क्रियाओं को प्रकृति द्वारा नियंत्रित किया जाता था। प्राकृतिक वनस्पति, जलवायु इत्यादि इसके भौतिक कारक हैं। ऐसे समाज में भौतिक पर्यावरण को ‘माता-प्रकृति’ के नाम से जाना जाता है। इस तरह से प्रकृति की प्रधानता शक्ति के रूप में होती है।
- संभववाद- मानव ने पर्यावरण से प्राप्त संसाधनों को अनेक संभावनाओं में बदला, इसे ही संभववाद के नाम से जाना जाता है। इस विचारधारा में मुख्य रूप से मानव-शक्ति की प्रधानता होती है। इन संभावनाओं को अनेक स्थानों पर देखा जा सकता है जैसे- खेत, फल-उद्यान, समुद्री मार्ग, पहाड़ियों पर बसना, बड़ी-बड़ी जमीनों पर स्वास्थ्य केंद्र, अंतरिक्ष और चाँद जैसे उपग्रह आदि।
- रुको और जाओ निश्चयवाद/नवनिश्चयवाद- संभववाद की विवेचना करते हुए ग्रिफिथ टेलर ने नवनिश्चयवाद की विचारधारा को प्रस्तुत किया। इसके मुताबिक मानव क्रियाओं और पर्यावरण के बीच समन्वय स्थापित किया जाता है। जिसे मध्यमार्गी विचारधारा भी कहा जा सकता है। यह पर्यावरणीय निश्चयवाद और संभववाद दोनों से बिल्कुल अलग है क्योंकि इसमें बताया गया है कि मनुष्य प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए भी उस पर विजय प्राप्त कर सकता है।
मानव भूगोल के क्षेत्र एवं उप-क्षेत्र
- मानव भूगोल की प्रवृति मुख्य रूप से अंतर-विषयक है।
- मानव भूगोल पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न तत्वों को जानने और उनकी व्याख्या करने के लिए सामाजिक विज्ञानों के सहायक विषयों के साथ गहरी समझ को विकसित करता है।
- मानव भूगोल और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र और उप-क्षेत्र नीचे तालिका में दिए गए हैं-
क्रम संख्या | मानव भूगोल के क्षेत्र | उप-क्षेत्र | सामाजिक विज्ञान के सहयोगी विषयों से अंतरापृष्ठ |
1. | सामाजिक भूगोल | – व्यवहारवादी भूगोल सामाजिक कल्याण का भूगोल अवकाश का भूगोल सांस्कृतिक भूगोल लिंग भूगोल ऐतिहासिक भूगोल चिकित्सा भूगोल | सामाजिक विज्ञान समाजस्त मनोविज्ञान कल्याण अर्थशास्त्र समाजशास्त्र मानवविज्ञान समाजशास्त्र, मानवविज्ञान, महिला अध्ययन इतिहास महामारी विज्ञान |
2. | नगरीय भूगोल | – | नगरीय अध्ययन और नियोजन |
3. | राजनीतिक भूगोल | – निर्वाचन भूगोल सैन्य भूगोल | राजनीति विज्ञान – सैन्य विज्ञान |
4. | जनसंख्या भूगोल | – | जनांकिकी |
5. | आवास भूगोल | – | नगर/ग्रामीण नियोजन |
6. | अर्थिक भूगोल | – संसाधन भूगोल कृषि भूगोल उद्योग भूगोल पर्यटन भूगोल विपणन भूगोल अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का भूगोल | अर्थशास्त्र संसाधन अर्थशास्त्र कृषि विज्ञान औद्योगिक अर्थशास्त्र व्यवसायिक अर्थशास्त्र, वाणिज्य पर्यटन और यात्रा प्रबंधन अंतर्राष्ट्रीय व्यापर |
समयावधि अनुसार मानव भूगोल की प्रमुख अवस्थाएँ और प्रणोद
क्रम संख्या | समयावधि | उपागम | प्रमुख लक्षण |
1. | प्रारंभिक औपनिवेशिक युग | अन्वेषण और विवरण | साम्राज्यी और व्यापारिक रुचियों ने नए क्षेत्रों में खोजों व अन्वेषणों को प्रोत्साहित किया। क्षेत्र का विश्वज्ञानकोषिय विवरण भूगोलवेताओं द्वारा वर्णन का महत्त्वपूर्ण पक्ष बना। |
2. | उत्तर औपनिवेशिक युग | प्रादेशिक विश्लेषण | प्रदेश के प्रत्येक पक्षों के विस्तृत वर्णन किए गए। मत यह था कि सभी प्रदेश पूर्ण अर्थात् पृथ्वी के भाग हैं। अतः इन भागों की पूरी समझ पृथ्वी पूर्ण रूप से समझने में सहायता करेगी। |
3. | अंतर-युद्ध अवधि के बीच 1930 का दशक | क्षेत्रीय विभेदन | एक प्रदेश अन्य प्रदेशों से किस प्रकार और क्यों भिन्न है यह समझने के लिए तथा किसी प्रदेश की विलक्षणता की पहचान करने पर बल दिया जाता था। |
4. | 1950 के दशक के अंत से 1960 के दशक के अंत तक | स्थानिक संगठन | कंप्यूटर और परिष्कृत सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग के लिए विशिष्ट। मानचित्र और मानवीय परिघटनाओं के विश्लेषण में प्रायः भौतिकों के नियमों का अनुप्रयोग किया जाता था। इस प्रावस्था को विभिन्न मानवीय क्रियाओं के मानचित्र योग्य प्रतिरूपों की पहचान करना इसका मुख्य उद्देश्य था। |
5. | 1970 का दशक | मानवतावादी, आमूलवादी और व्यवहारवादी विचारधाराओं का उदय | मात्रात्मक क्रांति से उत्पन्न असंतुष्टि और अमानवीय रूप से भूगोल के अध्ययन के चलते मानव भूगोल में 1970 के दशक में तीन नए विचारधाराओं का जन्म हुआ। इन विचारधाराओं के अभ्युदय से मानव भूगोल सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ के प्रति अधिक प्रासंगिक बन गया। |
6. | 1990 का दशक | भूगोल में उत्तर आधुनिकवाद | सभी स्थानीय संदर्भ की समझ के महत्त्व को बढ़ावा दिया गया साथ ही संसाधनों एवं मानव संबंध के बीच समन्वय पर जोर दिया गया। |
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