अध्याय- 6 “प्राकृतिक संकट तथा आपदाएं” | Class 11 Geography Book-2 Chapter-6 Notes In Hindi

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Navya Aggarwal

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 11वीं कक्षा की भूगोल की पुस्तक-2 यानी “भारत भौतिक पर्यावरण” के अध्याय- 6 “प्राकृतिक संकट तथा आपदाएं” के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय 6 भूगोल के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 11 Geography Book-2 Chapter-6 Notes In Hindi

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अध्याय- 6 “प्राकृतिक संकट तथा आपदाएं”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाग्यारहवीं (11वीं)
विषयभूगोल
पाठ्यपुस्तकभारत भौतिक पर्यावरण
अध्याय नंबरछ: (6)
अध्याय का नामप्राकृतिक संकट तथा आपदाएं
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 11वीं
विषय- भूगोल
पुस्तक- भारत भौतिक पर्यावरण
अध्याय-6 “प्राकृतिक संकट तथा आपदाएं”
  • प्रकृति में परिवर्तन के कारण ही हमारा सांस्कृतिक, सामाजिक और प्राकृतिक पर्यावरण प्रभावित होता है।
  • प्रकृति में आने वाले बदलाव तेज या धीरे हो सकते हैं, धीरे जैसे- जीवों में और तीव्र जैसे- सुनामी, बाढ़, ज्वालामुखी विस्फोट के रूप में।
  • इन तीव्र परिवर्तनों का प्रभाव कम या अधिक हो सकता है।
  • परिवर्तन का प्रभाव अच्छा एवं बुरा हो सकता है, जैसे ऋतु में परिवर्तन और फलों का पकना, या बुरे प्रभाव में जैसे- भूकंप, बाढ़, या युद्ध हो जाना।
  • ऐसे ही बुरे परिवर्तन जो मानव को भयभीत करते हैं, उनमें से एक है, प्राकृतिक आपदाएं

प्राकृतिक आपदाएं

  • ये ऐसी घटनाएं हैं जो प्राकृतिक बलों के कारण घटती हैं, इन घटनाओं का मानव असहाय शिकार बन जाता है।
  • ये प्राकृतिक घटनाएं केवल प्राकृतिक बल का परिणाम न होकर मानव क्रियाकलापों का भी परिणाम हैं।
  • इनके उदाहरण हैं- भोपाल गैस त्रासदी, युद्ध, क्लोरोफलोरो कार्बन का वायुमंडल में प्रवाह, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, सभी प्रकार का प्रदूषण आदि इसके अंतर्गत आते हैं।
  • कई वर्षों में ये आपदाएं बढ़ीं हैं, साथ ही इनसे बचने के प्रयत्न भी किए जाने लगे हैं। जिसका कुछ खास परिणाम हाथ नहीं लगा, लेकिन मानवकृत कुछ आपदाओं को पूर्ण रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।
  • इसके विपरीत प्राकृतिक आपदाओं पर अंकुश लगाना असंभव है, इनपर कुछ हद्द तक नियंत्रण किया जा सकता है।
  • इस दिशा में पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर कदम उठाए गए-
    • भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन की स्थापना,
    • 1993 में रियो डि जेनेरों में पृथ्वी सम्मेलन,
    • और, जापान में 1994 में आपदा प्रबंधन पर विश्व संगोष्ठी का आयोजन।

प्राकृतिक संकट और आपदाएं और मानव की प्रतिक्रिया

  • इस तरह के संकट जन-धन और दोनों को ही नुकसान पहुँचा सकते हैं, ये तीव्र हो सकते हैं।
  • इनमें शामिल हैं, हिमालय में तेज ढाल, रेगिस्तानों संरचनाओं की अस्थिर आकृतियाँ और हिमाच्छादित स्थानों पर विषम जलवायु का फैलाव आदि।
  • संकट की तुलना में प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता अधिक और हानिकारक होती है। सामान्य जन का इन घटनाओं पर नियंत्रण नहीं होता।
  • पहले इन दोनों आपदाओं और संकटों को एक ही समझा जाता था, लेकिन उस समय मानव पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र से छेड़छाड़ नहीं करता था।
  • तकनीकी विकास के चलते मानव ने पर्यावरण को प्रभावित करना शुरू कर दिया। मानव के इन क्रियाकलापों के कारण खतरे वाले क्षेत्रों में आपदाओं की सुभेद्यता बढ़ गई।
  • कोई भी राष्ट्र अकेला इस विषय में कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकता था, इसलिए 1989 में संयुक्त राष्ट्र की जेनरल असेंबली में इस बात को उठाया गया।
  • मई 1994 में जापान में आपदा प्रबंधन के लिए वैश्विक स्तर पर बैठक बुलाई गई जिसे- यॉकोहामा रणनीति कहा गया।

प्राकृतिक आपदाओं का विभाजन

  • वैश्विक स्तर पर कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। यह हानिकारक भी है, मानव अब इन आपदाओं के विषय में पूर्ण रूप से परिचित है।
  • इनके प्रभावों को कम करने का प्रयास निरंतर चलता रहता है।
  • इन आपदाओं से निपटने के लिए इनकी पहचान करके वर्गीकरण करना भी आवश्यक है।
वायुमंडलीय आपदाएं भौमिक आपदाएं जलीय आपदाएं जैविक आपदाएं
उष्णकटिबंधीय चक्रवात हिमघाव तूफान महोर्मि वायरल संक्रमण
बर्फानी तूफान भूकंप सुनामी बर्ड फ्लू
तड़ित भू-स्खलन बाढ़ डेंगू , इत्यादि ।
सूखा ज्वालामुखी महासागरीय धाराएं
टॉरनेडों अवतलन ज्वार
तड़ितझंझामृदा अपरदन
पाला लू, शीतलहर
ककरापात

भारत में प्राकृतिक आपदाएं

  • भारत प्राकृतिक सामाजिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं से भरा देश है, भारत का बड़ा आकार और बड़ी जनसंख्या के कारण प्राकृतिक आपदाओं की भिन्नता भी बढ़ गई है।
  • यहाँ लगभग सभी प्रकार की आपदाओं का घटन हुआ है। इनका विवरण-
  • भूकंप और इनके कारण-
    • यह एक विनाशक और बेहद अप्रत्याशित घटना में से एक है।
    • यह विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करती है, और विवर्तनिकी से संबधित आपदा है।
    • इसके अलावा भूकंप के कारण ज्वालामुखी विस्फोट, जमीन का धंसना, बांध या जलाशयों का बैठ जाना आदि हो सकते हैं, लेकिन इनका प्रभाव काफी कम होता है।
    • इंडियन प्लेट का खिसकाव हर साल एक सेंटीमीटर उत्तर-पूर्व की ओर हो रहा है, इसका अवरोध यूरेशिया प्लेट करती है, जिस कारण दोनों प्लेटों के किनारे लॉक हो जाते हैं। जो ऊर्जा को संग्रहित करती रहती है।
    • इसके ज्यादा संग्रहण से लॉक टूटने पर ऊर्जा मोचन होता है, जिससे हिमालय में भूकंप आता है।
    • इसके कारण ही भारत के उत्तर में स्थित राज्यों और मध्य पश्चिम-क्षेत्रों में भूकंप आते हैं।
  • भारत सरकार के साथ मिलकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, राष्ट्रीय भू-भौतिक प्रयोगशाला, भारतीय भू-गर्भीक सर्वेक्षण ने भारत के 1200 भूकंपों का विश्लेषण कर भारत के 5 भूकंपीय क्षेत्रों को निर्धारित किया-
    • सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्र
    • अधिक जोखिम वाले क्षेत्र
    • मध्य जोखिम वाले क्षेत्र
    • निम्न जोखिम वाले क्षेत्र
    • बेहद निम्न जोखिम वाले क्षेत्र

भूकंप का समाज के पर्यावरण पर प्रभाव

  • भूकंप से भूतल पर बड़े स्तर पर विनाश देखने को मिलता है, जो आम जनता को बेघर तक भी कर देता है।
  • विकासशील देशों में भूकंप के कारण अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचता है।

भूकंप के प्रभाव और न्यूनीकरण

  • धरातलीय भूकंप की तरंगें पृथ्वी की पपर्टी पर दरार डाल देती हैं, इसके कारण पानी और अन्य ज्वलनशील पदार्थ बाहर आ जाते हैं, जिससे आस-पास के क्षेत्र डूब जाते हैं।
  • इसके कारण भूस्खलन भी हो जाता है, जिससे नदी वाहिकाएं अवरुद्ध होकर जलाश्यों में परिवर्तित हो जाती हैं।
  • भूकंप के कारण कई प्रकार के विध्वंसकारी परिणाम देखने को मिलते हैं, यह परिवहन और संचार से संबंधित समस्या खड़ी कर देता है।
  • भूकंप को रोकना कठिन है, इससे बचने और नुकसान को कम करने के लिए कुछ तरीके इस प्रकार हैं-
    • भूकंप नियंत्रण केंद्रों की स्थापना।
    • भूकंप संभावित क्षेत्रों के लिए मानचित्र तैयार करना।
    • भूकंप अनुकूल घर एवं भवनों आदि का निर्माण करना।

सुनामी

  • ज्वालामुखी या भूकंप के कारण महासागर के धरातल में उर्ध्वार्धर तरंगों में हलचल होती है, जिससे तरंगें ऊँची उठने लगती हैं, इसे ही सुनामी कहा जाता है।
  • महासागर की तरंगों की गति, उसकी गहराई पर निर्भर करती है। जो गहरे समुद्र में कम होती है।
  • सुनामी का प्रवेश जब उथले समुद्र में होता है, तब इसकी लंबाई कम और ऊंचाई बढ़ती जाती है, यह 15 मीटर ऊँची भी हो सकती है।
  • जो तटीय क्षेत्रों के लिए विध्वंसकारी होता है। 26 दिसंबर 2004 में तमिलनाडु में आई सुनामी इसका उदाहरण है।
  • सुनामी ज्यादातर प्रशांत महासागरीय तटों, हिन्द महासागर और भारत के तटीय भागों में आती है।
  • सुनामी के कारण तटीय क्षेत्रों में समुद्र का पानी तेज गति से घुस जाता है, जिससे वहां की आबादी को नुकसान उठाना पड़ता है।
  • मानव उपस्थिति होने के कारण कभी-कभी यहाँ जनधन की हानि अधिक हो जाती है। सुनामी से होने वाले नुकसान का पैमाना ज्यादा अधिक होता है।
  • भारत में 2004 में आई सुनामी में करीब 3 लाख से भी अभिक लोगों की जान गई थी, इसके बाद भारत अंतर्राष्ट्रीय सुनामी चेतावनी तंत्र में शामिल हो गया था।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात

  • ये ऐसे उग्र मौसम तंत्र हैं जो निम्न वायु दाब के चलते 30 डिग्री उत्तर और दक्षिण अक्षांशों में पाए जाते हैं।
  • इनकी ऊंचाई 14 किलोमीटर तक हो सकती है, ये 500 से 1000 किलोमीटर तक फैले होते हैं।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संरचना- चक्रवातों के केंद्र में गर्म वायु और निम्न वायुदाब होता है।
  • इन्हें तूफान की आँख कहा जाता है। ये समदाब रेखाएं जो उच्च दाब प्रवणता का प्रतीक होती हैं एक दूसरे के नजदीक आ जाती हैं।
  • दाब प्रवणता 14 से 17 मिलीबार होता है जो 60 तक भी पहुँच जाता है।

भारत के चक्रवातों का क्षेत्रीय और समय के आधार पर वितरण

  • भारत बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से घिरा है जिसके कारण इसकी आकृति प्रायद्वीपीय बन जाती है।
  • यहाँ के चक्रवात भी इन दोनों महासागरों में ही बनते हैं। बंगाल की खाड़ी में ये अक्टूबर-नवंबर में बनते हैं।
  • जुलाई के महीने में ये चक्रवात सुंदर वन डेल्टा के पास 18 डिग्री उत्तर और 90 डिग्री पूर्व देशान्तर से पश्चिम की ओर बनते हैं।
  • इन चक्रवातों के परिणाम
    • समुद्र से दूरी बढ़ने पर चक्रवातों का बल कम हो जाता है।
    • भारत के तटीय क्षेत्रों से चक्रवात 180 किलोमीटर प्रतिघण्टे की गति से पहुंचते हैं।
    • ऐसे में समुद्र का तल भी असाधारण रूप से ऊपर उठता है। इसे तूफान महोर्मि कहा जाता है।
    • इस स्थिति में तटीय स्थानों में घरों और खेतों और मानवकृत ढांचों का विनाश हो जाता है।

बाढ़

  • बाढ़ के समय में नदी जल में उफान आ जाता है, जिसका पानी मानव बस्तियों में भर जाता है।
  • अन्य आपदाओं के बजाय बाढ़ आने के कारण स्पष्ट होते हैं। यह किसी विशेष ऋतु में ही आती है, और अचानक नहीं आती।
  • बाढ़ के कारण- लंबे समय तक तेज बारिश, तटीय क्षेत्रों में तूफ़ानी महोर्मि, जमीन की अंतः स्पंदन में कमी के कारण, हिम का पिघलना, मृदा अपरदन के कारण नदी जलोढ़ की मात्रा का बढ़ जाना।

बाढ़ का फैलाव

  • मानव बाढ़ के क्षेत्रीय फैलाव और उत्पत्ति में अन्य प्राकृतिक आपदाओ के मुकाबले अधिक सक्रीय होता है।
  • भारत की लगभग 4 करोड़ हेक्टेयर भूमि को राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने बाढ़ प्रभावित घोषित किया हुआ है।
  • उत्तर भारत की ज्यादातर नदियां उत्तर के राज्यों में बाढ़ का कारण हैं, और दक्षिण में वापस लौटते मौनसून के कारण नवंबर व जनवरी में बाढ़ आती है।
  • परिणाम और नियंत्रण
    • भारत के उत्तर-पूर्वी, दक्षिणी तटीय हिस्सों और पश्चिमी हिस्सों में बार-बार बाढ़ आने के कारण देश की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे महंगाई आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
    • बाढ़ के कारण सड़कें, फसलों, मानव बस्तियों को नुकसान होता है। इससे तरह-तरह की बीमारियाँ जैसे हेजा आदि हो जाता है।
    • बाढ़ के कुछ लाभ भी हैं- जैसे बाढ़ का पानी अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लेकर आता है।
    • भारत सरकार बाढ़ से बचाव के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठती है, जैसे- नदियों पर बांध बनाना, बाढ़ क्षेत्रों में तटबंधी करना, नदी तटों पर बसे लोगों को स्थानंतरित करना, बाढ़ से पूर्व अनुमानित क्षेत्रों में निर्माण कार्यों पर रोक आदि।

सूखा

  • जब संबधित क्षेत्रों में काफी समय तक बारिश न हो, ज्यादा वाष्पीकरण हो, जिसके कारण भूतल पर जल की कमी हो जाती है, उस स्थिति को सूखा कहा जाता है।
  • सूखे के प्रकार
    • मौसम विज्ञान संबंधी सूखा
    • कृषि सूखा
    • जलविज्ञान संबंधी सूखा
    • पारिस्थितिकी सूखा
  • सूखे से प्रभावित भारत के प्रमुख क्षेत्र- भारत में हर साल भौगोलिक क्षेत्र का 19% भाग, और जनसंख्या का 12% हिस्सा सूखे के प्रभाव में आते हैं।
    • अत्यधिक सूखे से प्रभावित क्षेत्र- इन क्षेत्रों में राजस्थान के कई भाग, गुजरात के कुछ क्षेत्र और अरावली का पश्चिमी हिस्सा आता है।
    • अधिक सूखे से प्रभावित क्षेत्र– इसमें महाराष्ट्र, राजस्थान का पूर्वी, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के कुछ भाग, झारखंड का दक्षिणी भाग आदि आते हैं।
    • मध्यम सूखे से प्रभावित क्षेत्र– इसमें भारत के उत्तर में स्थित प्रमुख राज्यों के कुछ हिस्से आते हैं, जैसे हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान आदि।

सूखे के परिणाम

  • भारत की कृषि मानसून पर निर्भर करती है, जिससे सूखे प्रभावित क्षेत्रों में फसलें खराब होने के कारण, अन्न की कमी होने लगती है, इसे अकाल की स्थिति कहा जाता है।
  • इसके कारण मवेशियों की मृत्यु, मानव प्रवास जैसी समस्याएं आने लगती हैं।
  • यह प्रभाव दीर्घकालिक, तात्कालिक हो सकता है।
  • तात्कालिक समस्या का पेयजल, और जरूरी सेवा प्रदान करके निपटान किया जा सकता है, दीर्घकालिक समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा योजनाएं बनाई जाती हैं।
  • सूखे की समस्या से बचने के लिए सरकार द्वारा वर्षा जल के संचयन की सलाह दी जाती है।

भू-स्खलन

  • जब चट्टानें खिसककर ढालों से होकर जमीन की ओर गिरने लगती हैं, इस स्थिति को भू-स्खलन कहा जाता है।
  • यह अन्य प्राकृतिक आपदाओं के मुकाबले एक सामान्य सी घटना है, लेकिन इसका प्रभाव प्रकृति पर नकारात्मक होता है, यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है।
  • भारत मे होने वाले भू-स्खलनों को संबंधी क्षेत्रों की भू-आकृति, वनस्पति, भूमि उपयोग, ढाल और मानव क्रियाकलापों के आधार पर इसका वर्गीकरण-
    • अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र- हिमालय की युवा पर्वत शृंखला, पश्चिमी घाट, अंडमान, निकोबार, नीलगिरी के अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र आदि।
    • अधिक सुभेद्यता क्षेत्र– वे सभी राज्य जहां हिमालय आता है, और असम को छोड़कर उत्तर पूर्व के सभी राज्य।
    • माध्यम और कम सुभेद्यता क्षेत्र– अरावली पहाड़ियों के कम वर्षा वाले क्षेत्र, झारखंड, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक आदि क्षेत्रों में खदानों के कारण भू-स्खलन की घटनाएं हो जाती हैं।
  • भू-स्खलन के परिणाम– इसके कारण सड़क मार्गों में अवरोध, रेल की पटरियों का टूट जाना, नदी के रास्तों में बदलाव के कारण बाढ़ के हालात, आवागमन में रुकावट और विकास कार्य की रफ्तार में कमी हो जाती है।
  • निवारण- इसके लिए अलग क्षेत्रों के आधार पर अलग उपाय होते हैं, ऐसे क्षेत्र जहां अधिक भू-स्खलन हो वहां बांध निर्माण संबंधी कार्य नहीं किए जाते।
  • कृषि के लिए कम ढाल वाली जमीनों को चुना जाना चाहिए।

आपदा प्रबंधन

  • सभी प्राकृतिक आपदाओं में से चक्रवात का अंदाजा लगाया जाना आसान है, और इसकी गहनता का मापन कर इससे बचाव के उपायों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005- किसी भी प्रदेश या क्षेत्र में होने वाली घटना, जिसका कारण प्रकृति या मानव क्रिया हो, इस अधिनियम के तहत, दुर्घटना, महाविपत्ति, संकट आदि के रूप में रखा जाता है।
  • जिस आपदा के परिणाम के रूप में मानव को समस्या का सामना करना पड़ा हो, और पर्यावरणीय स्तर पर भी जिसके कारण विनाश उत्पन्न हुआ हो, आपदा या संकट की श्रेणी में आएगी।
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