Class 11 History Ch-7 “आधुनिकीकरण के रास्ते” Notes In Hindi
Mamta Kumari
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Class 11 History Chapter-7 Notes In Hindi
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कक्षा- 11वीं विषय- इतिहास पुस्तक- विश्व इतिहास के कुछ विषय अध्याय- 7 “आधुनिकीकरण के रास्ते”
चीन एवं जापान में इतिहास लेखन
चीन और जापान का इतिहास लेखन शासकों के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शक का काम करता है।
इन देशों का इतिहास ऐसा मानक पेश करता है, जिनके आधार पर शासकों का आकलन किया जा सकता है।
शासकों द्वारा अभिलेखों की देख-रेख तथा राजवंशों का इतिहास लिखने के लिए सरकारी विभागों की स्थापना की गई थी।
सिमा छियन प्राचीन चीन के एक महान इतिहासकार थे।
चीन और जापान में इतिहास लेखन और साहित्यिक कौशल को बहुत महत्व दिया जाता था।
मुद्रण और प्रकाशन पूर्व आधुनिककाल में महत्वपूर्ण उद्योग थे। इसी वजह से किसी भी पुस्तक के वितरण की जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती थी।
आधुनिक विद्वानों ने पूर्व के यूरोपीय यात्रियों द्वारा शुरू किए गए लेखन कार्यों को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
19वीं शताब्दी के ईसाई मिशनरियों के लेखन से भी चीन तथा जापान के इतिहास को जान सकते हैं।
चीन और जापान के इतिहास को समझने के लिए अंग्रेजी भाषा में भी कई पुस्तके उपलब्ध हैं।
हाल ही में चीन और जापान की कई पुस्तकों का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया गया है।
साल 1980 से बहुत से चीनी विद्वानों ने जापान में रहते हुए जापानी भाषा में लिखकर पुस्तकों को तैयार किया।
जापान का परिचय
चीन तथा जापान के भौतिक भूगोल में काफी अंतर है।
चीन एक ऐसा विशाल महाद्वीपीय देश है, जिसमें विभिन्न प्रकार के जलवायु वाले क्षेत्र शामिल हैं।
इस देश का आधे से अधिक हिस्सा पहाड़ी है।
जापान की भौगोलिक परिस्थितियों का प्रभाव जापान की वास्तुकला पर भी पूर्ण रूप से दिखाई देता है।
जापान में पशुपालन नहीं किया जाता, वहाँ मुख्य रूप से चावल की फसल उगाई जाती है।
जापान की राजनीतिक व्यवस्था
पहले जापान पर क्योतो में रहने वाले सम्राट का शासन हुआ करता था लेकिन 12वीं सदी के आते ही शासन व्यवस्था शोगुनो के हाथ में आ गई।
1603 से 1867 ई. तक तोकुगावा परिवार का अधिकार शोगुन पद पर रहा।
16वीं शताब्दी के अंत में तीन परिवर्तन हुए, पहला किसानों से हथियार ले लिए गए, दूसरा दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में स्वायतत्ता प्रदान की गई और तीसरा उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण, जिसका उद्देश्य मालिकों या करदाताओं का निर्धारण करना था।
इन तीनों परिवर्तनों ने आने वाले विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
जापान अमीर देश था क्योंकि चीन से रेशम और भारत से कपड़ा जैसी विलासी वस्तुएँ आयात करता था।
जापान में छः गढ़ वाले कम से कम 50000 से भी अधिक शहरों का विकास हुआ।
आर्थिक विकास के कारण शहरों में जीवंत संस्कृति विकसित होने लगी।
प्राचीन जापानी साहित्य के अध्ययन से लोग यह सोचने लगे कि जापान पर चीन का प्रभाव किस हद तक पड़ा।
मिथकीय कहानियों द्वारा पता चलता है कि इन द्वीपों का निर्माण भगवान द्वारा किया गया था।
मेजी पुनर्स्थापना
मेजियों के पुनर्स्थापना के पीछे व्यापार तथा राजनीति संबंधित कई कारण थे।
अमेरिका ने 1853 ई. में कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को जापानी सरकार से समझौते के लिए भेजा था।
उस समय सिर्फ एक ही पश्चिमी देश हॉलैंड जापान के साथ व्यापार करता था।
पेरी के आगमन से जापान के शिक्षा, प्रशानिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव हुए।
1870 के दशक में नई विद्यालय व्यवस्था का निर्माण हुआ।
आरंभ में फीस बहुत कम थी और पाठ्यक्रम पश्चिमी नमूनों पर आधारित था।
अब आधुनिक विचारों के साथ-साथ राज्य के प्रति निष्ठा और जापानी इतिहास के अध्ययन पर बल दिया जाने लगा।
शिक्षा मंत्रालय ने पाठ्यक्रम, किताबों के चयन और शिक्षकों के प्रशिक्षण पर नियंत्रण रखना शुरू कर दिया।
किताबों के माध्यम से विद्यार्थियों को नैतिक बातें भी सिखाई जाती थीं।
मेजी सरकार ने राष्ट्र के एकीकरण के उद्देश्य से नई प्रशासनिक संरचनाओं का निर्माण किया।
20 साल से अधिक उम्र के नौजवानों के लिए कुछ समय के लिए सेना में कार्य करना अनिवार्य कर दिया गया।
जापान में लोकतंत्र को समाप्त किया जाने लगा।
आर्थिक विकास के दम पर जापान ने अपना एक औपनिवेशिक साम्राज्य कायम किया।
मेजी सुधारों के अंतर्गत अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण
मेजी सुधारों में अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण एक महत्वपूर्ण सुधार का हिस्सा था।
जापान की पहली रेल लाइन 1870-72 ई. में टोक्यो और योकोहामा बंदरगाह के बीच बिछाई गई थी।
जापान में वस्त्र उद्योग के विकास के लिए मशीनें यूरोप से आयात की गईं।
यहाँ के विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए बाहरी देशों में भेजा जाने लगा।
वर्ष 1872 में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं की स्थापना शुरू कर दी गई।
व्यापार के लिए जापानी जहाजों का प्रयोग किया जाने लगा।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जायबात्सु नाम की व्यापारिक संस्था का प्रभुत्व जापानी अर्थव्यवस्था पर बना रहा।
1872 ई. मे जापान की जनसंख्या 3.5 करोड़ थी जोकि 1920 ई. में बढ़कर 5.5 करोड़ हो गई।
पहले 1925 तक 21% जनसंख्या शहरों में रहती थी जोकि 1935 तक बढ़कर 32% हो गई।
औद्योगिक मजदूरों की स्थिति
पहले औद्योगिक मजदूरों की संख्या 7 लाख थी जोकि वर्ष 1913 में बढ़कर 40 लाख हो गई।
आधुनिक कारखानों में काम करने वाले मजदूरों में आधे से भी अधिक सिर्फ महिलाएँ थीं।
वर्ष 1886 में पहली आधुनिक हड़ताल महिलाओं द्वारा की गई।
1930 के दशक के आते ही कारखानों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक हो गई।
उद्योग के तीव्र विकास में लकड़ी जैसे संसाधनों की अधिक माँग के कारण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा।
तनाका शोजो द्वारा औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध पहला आंदोलन 1897 में शुरू किया गया था। इस जनविरोध में 800 ग्रामवासियों ने हिस्सा लिया था।
आक्रामक राष्ट्रवाद के बाद पश्चिमीकरण एवं परंपरा
मेजी संविधान सीमित मताधिकार पर आधारित था।
मंत्रिपरिषदों का गठन 1918 से 1931 के समय जनता के मत से चुने गए प्रधानमंत्रियों द्वारा किया गया।
थल सेना और स्थल सेना का नियंत्रण स्वतंत्र माना जाने लगा।
वर्ष 1899 में मंत्री पद के लिए प्रधानमंत्री के आदेश पर सेवारतन जनरल और एडमिरल होना अनिवार्य कर दिया गया।
सैन्य में होने वाले विकास के कारण धन से संबंधित आवश्यकताओं में वृद्धि हुई।
जापान के बुद्धिजीवी लोग अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों की सभ्यता की ऊँचाइयों को छूने की इच्छा रखते थे।
बुद्धिजीवी फुकुजावा यूकिची का कहना था कि जापान को अपने एशियाई लक्षणों का परित्याग कर पश्चिमी संस्कृति का हिस्सा बन जाना चाहिए।
उएकी एमोरी जनवादी अधिकारों के आंदोलन के प्रमुख नेता थे।
जनवादी अधिकारों के आंदोलन से जुड़े लोग उदारवादी शिक्षा के पक्ष में थे क्योंकि उनका मानना था कि व्यवस्था से ज्यादा कीमती चीज स्वतंत्रता है।
उसी दौरान कुछ दूसरे लोगों ने महिलाओं के लिए मताधिकार की भी माँग की।
जापान में रोजमर्रा की जिंदगी
जापान का आधुनिक समाज में रूपांतरण उसके दिन-प्रतिदिन की जिंदगी में आए बदलाओं में भी देखा जा सकता है।
जापान में जैसे ही लोग समृद्ध हुए परिवार के बारे में नए विचारों का प्रसार होने लगा।
नए परिवार में पति-पत्नी एक साथ मिलकर कमाते थे और घर चलाते थे।
1920 के दशक में आई निर्माण कंपनियाँ 10 वर्ष के लिए प्रतिमाह किस्तों पर सस्ते दामों पर मकान उपलब्ध कराने लगीं।
आधुनिकता पर विजय
1930-40 के बीच जापान में सत्ता केंद्रित राष्ट्रवाद का निर्माण हुआ।
जब पर्ल हार्बर पर हमला हुआ तब ये लड़ाई दूसरे विश्व युद्ध में जाकर मिल गई।
साल 1943 में ‘आधुनिकता की विजय’ पर एक संगोष्ठी हुई थी।
दर्शनशास्त्री निशितानी केजी का कहना था कि जापान की नैतिक ऊर्जा ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया, जिसके बाद जापान एक विशाल पूर्वी एशिया का निर्माण कर सका।
वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में जापान की वापसी
संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर नाभिकीय बम गिराए थे।
लगातार होने वाले युद्धों को देखते हुए नए संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद-9 में राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में युद्ध प्रयोग को वर्जित बताया गया।
जापान में जायबात्सु जैसी एकाधिकार वाली कंपनियों को समाप्त करने का प्रयास किया गया।
युद्ध के बाद पहला चुनाव 1946 में हुआ, जिसमें पहली बार महिलाओं को मतदान में भाग लेने का मौका मिला।
जापानी अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण को युद्धोत्तर चमत्कार का नाम दिया गया।
जापान में स्वास्थ्य संबंधित बहुत सी समस्याओं के फैलने का कारण प्रदूषण था।
आज जापान विश्व का एक विकसित देश है।
चीन की संस्कृति और वहाँ गणतंत्र की स्थापना
चीन की यांग्त्सी नदी को विश्व की तीसरी सबसे लंबी नदी होने का दर्जा दिया जाता है।
आधुनिक चीन की शुरूआत 16वीं और 17वीं सदी से मानी जाती है।
ब्रिटेन ने अफीम के फायदेमंद व्यापार को बढ़ाने के लिए सैन्य बलों का इस्तेमाल किया था।
पहला अफीम युद्ध 1839 से 1942 के बीच हुआ।
उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों से चीनी विचारक अत्यधिक प्रभावित हुए थे।
संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए स्थानीय विधायिकाओं के गठन को महत्व दिया गया।
वर्ष 1890 में पोलैंड शब्द का प्रयोग क्रिया के रूप में किया जाने लगा।
लियांग किचाउ का मानना था कि लोगों में एक राष्ट्र की जागरूकता लाकर ही चीन पश्चिम का विरोध कर सकता है।
1890 के दशक में बड़ी संख्या में चीनी विद्यार्थी पढ़ने के लिए जापान गए।
चीन और जापान में एक ही चित्रलिपि का प्रयोग किया जाता है।
वर्ष 1905 में रूसी-जापानी युद्ध के बाद चीनी परीक्षा-प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।
सन यात-सेन के नेतृत्व में साल 1911 में मांचू साम्राज्य को समाप्त कर चीनी गणतंत्र की स्थापना की गई।
सन यात-सेन चीन के भविष्य को लेकर काफी चिंतित थे, उनका कार्यक्रम तीन सिद्धांत (सन मिन चुई) के नाम से प्रसिद्ध था।
4 मई 1919 को बीजिंग में युद्धोत्तर शांति सम्मेलन के निर्णय के विरोध में प्रदर्शन हुआ।
गणतांत्रिक क्रांति के बाद देश में उथल-पुथल का दौर शुरू हो गया।
कुओमीनतांग और चीनी कम्युनिष्ट पार्टी देश में एकता और स्थिरता लाने के लिए दो महत्वपूर्ण ताकतों के रूप में उभरीं।
कुओमीनतांग ने महिलाओं में चार गुणों के होने को महत्त्व दिया। वे चार सद्गुण सतीत्व, रूप-रंग, वाणी और काम थे।
कुओमीनतांग का सामाजिक आधार सिर्फ शहरी इलाकों तक सीमित था।
सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव से विद्यालयों और विश्वविद्यालयों के विकास में मदद मिली।
चीन में समस्यावादी दल का उदय
1937 में जापानियों ने चीन पर आक्रमण किया था।
चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण संबंधित संकट तथा सामाजिक आर्थिक संकट विद्यमान थे।
चीन में साम्यवादी पार्टी की स्थापना रूसी क्रांति के कुछ समय बाद 1921 में की गई थी।
साम्यवादी नेताओं की समझ मार्क्सवाद पर आधारित थी।
माओ त्सेतुंग ने जियांग्सी के पहाड़ों में कुओमीनतांग के आक्रमणों से सुरक्षित शिविरों को लगाया।
माओ त्सेतुंग ने एक मजबूत किसान परिषद का गठन किया।
माओ महिलाओं की समस्याओं से परिचित थे और उन्होंने विवाह संबंधित नए कानून भी बनाए।
चीन में नए लोकतंत्र की स्थापना
जब 1949 में चीन में साम्यवादी क्रांति हुई तब देश की संपूर्ण सत्ता साम्यवादी दल के हाथों में आ गई।
आधुनिक चीन के विकास में साम्यवादी सरकार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
समाजवादी परिवर्तन से जुड़े कार्यक्रम को शुरू करने की घोषणा 1953 में की गई।
चीन द्वारा शुरू किए गए समाजवादी परिवर्तन से जुड़े कार्यक्रम को ‘लंबी छलांग’ के नाम से जाना गया।
वर्ष 1958 में मिल-जुलकर उत्पादन करने वाले समुदायों की संख्या 26 हजार थी।
लीऊ शाओछी और तंग शीयाओफीन्ग ऐसे नेता थे, जो कम्यून प्रथा को बदलना चाहते थे।
उस दौरान साम्यवादी विचारधारा पेशेवर ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती थी।
सांस्कृतिक क्रांति के कारण चीन में अर्थव्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था को काफी रुकावटों का सामना करना पड़ा।
1975 में चीन ने देश को पहले से अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए सामाजिक अनुशासन तथा औद्योगिक अर्थव्यवस्था पर जोर दिया था।
चीन में 1978 से शुरू होने वाले सुधार
चीन में सामाजिक क्रांति के बाद राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हुई।
1978 में राजनीतिक पार्टी ने आधुनिकीकरण के चार सूत्री लक्ष्य विज्ञान, उद्योग, कृषि तथा रक्षा के विकास की घोषणा की थी।
1978 में चीन में एक पोस्टर के माध्यम से यह दावा किया गया था कि इस देश में लोकतंत्र बिना आधुनिकता के नहीं आ पाएगा।
साम्यवादी पार्टी की आलोचना इस आधार पर की गई थी कि इसने न तो गरीबी हटाई और न ही लैंगिक शोषण को समाप्त किया।
चीन के विकास के लिए निजीकरण, उदारीकरण और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा दिया गया।
सरकार ने बाजार और व्यापार को महत्व देना शुरू कर दिया।
कंफ्यूशियसवाद ने यह तर्क दिया कि चीन पश्चिम की नकल करने के स्थान पर अपनी परंपरा का अनुकरण करके एक आधुनिक समाज बना सकता है।
ताइवान और उसका किस्सा
1894-95 ई. में जापान और चीन के बीच हुए युद्ध में चीन को ताइवान जापान को सौंपना पड़ा।
वर्ष 1947 में हुए प्रदर्शन के बाद कुओमीनतांग ने नेताओं की एक पूरी पीढ़ी की निर्ममतापूर्वक हत्या करवा दी।
इस समय सरकार द्वार भूमि सुधार से संबंधित कार्य किए गए, जिससे उत्पादकता में वृद्धि हुई।
1973 में ताइवान कुल राष्ट्र उत्पादन के मामले में पूरे एशिया में जापान के बाद दूसरे स्थान पर रहा।
अर्थव्यवस्था के विकास की वजह से अमीर और गरीब के मध्य का अंतर कम होने लगा।
कोरिया के साथ आधुनिकीकरण की शुरुआत
19वीं सदी के अंत में कोरिया के जोसोन वंश को सामाजिक और आंतरिक संघर्ष का सामना करना पड़ा।
वर्ष 1910 में जापान ने कोरिया पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया।
कोरिया पर कब्जा होने के बाद 500 वर्षों से अधिक समय से चले आ रहे जोसोन राजवंश का अंत कर दिया गया।
वर्ष 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद कोरिया को जापानी औपनिवेशिक शासन से 35 साल बाद आजादी प्राप्त हुई।
आजादी मिलने के बाद कोरिया को 38वीं समानांतर रेखा द्वारा उत्तरी तथा दक्षणी दो क्षेत्रों में बाँट दिया गया।
जून 1950 में कोरियाई युद्ध की शुरुआत हुई थी।
कोरियाई युद्ध के समय बहुत बड़े स्तर पर जीवन तथा संपत्ति का नुकसान हुआ।
वर्ष 1948 में दक्षिण कोरिया के पहले राष्ट्रपति ‘सिंगमैन री’ लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा चुने गए।
कोरिया में अप्रैल 1960 में चुनाव में हुई धाँधली के खिलाफ नागरिकों द्वारा किए गए विद्रोह को ‘अप्रैल क्रांति’ के नाम से जाना जाता है।
वर्ष 1961 में लोकतांत्रिक पार्टी की सरकार को हटाकर सैन्य शासन लागू कर दिया गया, जिसका नेतृत्व जनरल ‘पार्क चुंग-ही’ ने किया।
तीव्र औद्योगीकरण तथा मजबूत नेतृत्व
1963 में हुए चुनाव के आधार पर पार्क चुंग-ही राष्ट्रपति बने।
1960 के दशक में कोरिया का आर्थिक विकास आरंभ हुआ।
1960 तथा 1970 के दशक में कोरिया में लघु उद्योगों के स्थान पर उच्च मूल्यवर्द्धित भारी एवं रासायनिक उद्योगों पर जोर दिया जाने लगा।
कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए कोरिया में 1970 में नया गाँव आंदोलन की शुरूआत की गई थी।
आज कोरिया विकासशील देशों के साथ-साथ अपने विकास के लिए अनेक प्रयास कर रहा है।
वर्ष 1979 में पार्क चुंग-ही की हत्या कर दी गई, जिसके बाद उसका प्रशासन भी समाप्त हो गया।
लोकतंत्रीकरण की माँग एवं निरंतर आर्थिक विकास
पार्क चुंग-ही की हत्या के बाद लोकतंत्र की माँग तेजी से बढ़ने लगी।
राष्ट्रपति चुनाव ने अपनी सरकार के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक आवाजों को निर्ममता से दबाने की कोशिश की।
चुन यूसुई अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से राष्ट्रपति बने और उन्होंने विशेष रूप से कोरिया के विकास पर ध्यान दिया।
कोरिया के आर्थिक विकास को 1980 के 1.7% से बढ़ाकर 1983 तक 13.2% कर दिया।
उस समय मुद्रास्फीति दर को भी कम कर दिया गया।
कोरिया में लोकतंत्र
कोरिया में नए संविधान के अनुसार 1971 के बाद पहला प्रत्यक्ष चुनाव दिसंबर 1987 में हुआ था।
इस चुनाव में ‘रोह ताए-वू’ सैन्य दल के नेता चुने गए।
विपक्षी नेता ‘किम यंग-सैम’ ने एक बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी बनाने के लिए रोह ताए-वू के साथ समझौता किया था।
1996 में किम प्रशासन ने आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन में शामिल होने का निर्णय लिया था।
कोरिया को कई कारणों से वर्ष 1997 में विदेशी मुद्रा संकट का सामना करना पड़ा।
कोरिया में सत्ता का पहला शांतिपूर्ण हस्तांतरण वर्ष 1997 में हुआ और सत्ता का दूसरा शांतिपूर्ण हस्तांतरण वर्ष 2008 में हुआ था।
वर्ष 2012 में, रूढ़िवादी पार्टी की पहली महिला राष्ट्रपति ‘पार्क खन हे’ चुनी गई थी।
मई 2017 में तीसरी बार शांतिपूर्ण हस्तांतरण किया गया और ‘मून जे-इन’ को राष्ट्रपति चुना गया।
समयावधि अनुसार मुख्य घटनाक्रम
क्रम संख्या
काल
घटनाक्रम
1.
1603
तोकुगावा लियासु द्वारा ईडो शोगुनेट की स्थापना
2.
1630
डचों के साथ अपने सीमित व्यापार को छोड़कर अन्य पश्चिमी शक्तियों के लिए जापान के दरवाज़े बंद
3.
1854
जापान और संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा शांति-समझौत को अंतिम रूप देना, जापान के अलगाव का अंत
4.
1868
मेज़ी पुनर्स्थापना
5.
1872
अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था तोक्यो और योकोहामा के बीच पहली रेलवे लाइन