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Class 12 History Book-2 Ch-7 “एक साम्राज्य की राजधानी: विजयनगर” Notes In Hindi

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Mamta Kumari
Last Updated on

इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक-2 यानी भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग- 2 के अध्याय- 7 एक साम्राज्य की राजधानी: विजयनगर के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 7 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।

Class 12 History Book-2 Chapter-7 Notes In Hindi

आप ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों ही तरह से ये नोट्स फ्री में पढ़ सकते हैं। ऑनलाइन पढ़ने के लिए इस पेज पर बने रहें और ऑफलाइन पढ़ने के लिए पीडीएफ डाउनलोड करें। एक लिंक पर क्लिक कर आसानी से नोट्स की पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए ये नोट्स बेहद लाभकारी हैं। छात्र अब कम समय में अधिक तैयारी कर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं। जैसे ही आप नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करेंगे, यह अध्याय पीडीएफ के तौर पर भी डाउनलोड हो जाएगा।

अध्याय- 7 “एक साम्राज्य की राजधानी: विजयनगर”

बोर्डसीबीएसई (CBSE)
पुस्तक स्रोतएनसीईआरटी (NCERT)
कक्षाबारहवीं (12वीं)
विषयइतिहास
पाठ्यपुस्तकभारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-2
अध्याय नंबरसात (7)
अध्याय का नाम“एक साम्राज्य की राजधानी: विजयनगर”
केटेगरीनोट्स
भाषाहिंदी
माध्यम व प्रारूपऑनलाइन (लेख)
ऑफलाइन (पीडीएफ)
कक्षा- 12वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-2
अध्याय- 7 “एक साम्राज्य की राजधानी: विजयनगर”

‘विजय का शहर’ विजयनगर और हम्पी से प्राप्त के प्रमुख स्त्रोत

  • विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 14वीं शताब्दी में हुई थी और उस समय ये अपने चरमोत्कर्ष पर उत्तर में कृष्ण नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था लेकिन 1565 ई. में इस पर हुए भयंकर आक्रमण तथा लूट के कारण ये नगर लगभग 17वीं और 18वीं शताब्दी तक पूरी तरह से नष्ट होने के कगार पर पहुँच गया।
  • विजयनगर के संबंध में सबसे ज़्यादा स्त्रोत हम्पी नाम के जगह से प्राप्त किया गया था जिसकी खोज ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी करने वाले पुराविद कर्नल कालिन मैकेन्जी ने 1800 ई. में की थी।
  • मैकेन्जी की शुरुआती जानकारियाँ मुख्य रूप से विरुपाक्ष मंदिर और पंपादेवी मंदिर के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थी।
  • फिर 1836 ई. में यहाँ अन्य अभिलेखकर्ताओं ने अभिलेखों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। उसके बाद 1856 ई. में चित्रकारों और फोटोग्राफरों ने भी भनवों के चित्रों को एकत्रित करना शुरू कर दिया।

विजयनगर में शासक और व्यापारी

  • विजयनगर की युद्ध कला मुख्य रूप से अश्वसेना पर आधारित थी जिसके लिए घोड़ों का आयात अरब और मध्य एशिया से किया जाता था।
  • शुरुआत में घोड़ों का व्यापार सिर्फ अरब व्यापारियों द्वारा किया जाता था लेकिन बाद में इस व्यापर में स्थानीय व्यापारियों ने भी भाग लेना शुरू कर दिया। जिन्हें कुदिरई चेट्टी (घोड़े के व्यापारी) कहा जाता था।
  • फिर 1498 ई. में कुछ अन्य व्यापारी वर्ग आए जोकि पुर्तगाली थे। इन्होंने उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर व्यापारिक तथा सामरिक केंद्र स्थापित करने का प्रयास किया।
  • उस समय यह नगर मसालों, वस्त्रों और रत्नों के व्यापार के लिए काफी प्रसिद्ध था।
  • सबसे पहला शासक संगम राजवंश था जिसका शासन काल 1485 तक रहा।
  • फिर सुलुवों ने 1503 ई. में अपनी सत्ता स्थापित कर ली उसके बाद कृष्णदेव राय तुलुव वंश के सबसे शक्तिशाली शासक बने। अपने शासनकाल में उसने राज्य का विस्तार किया और उसे शक्तिशाली बनाया।
  • 1512 ई. में कृष्णदेव ने तुंगभद्रा तथा कृष्णा नदियों के बीच के क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने के बाद 1514 ई. में उड़ीसा के शासकों का दमन कर दिया, उसके बाद 1520 ई. में बीजापुर के सुल्तान को भी बुरी तरह से हराया।
  • विजयनगर साम्राज्य इस तरह से कृष्णदेव राय के शासनकाल में शांति तथा समृद्धि के साथ फला-फुला।
  • उसने कई मंदिरों और दक्षिण भारतीय गोपुरमों का निर्माण करवाया।
  • उसने अपनी माँ के नाम पर विजयनगर के पास ही एक उपनगर ‘नगलपुरम्’ की स्थापना की थी।
  • 1529 ई. में कृष्णदेव की मृत्यु के बाद स्थिति बहुत खराब हो गई। उनके उत्तराधिकारियों को विद्रोही नायकों और सेनानियों का सामना करना पड़ा जिसके कारण 1542 ई. में अराविदु जोकि एक अन्य वंश का था, शासक बन गया। जिसका शासनकाल 17वीं शताब्दी के अंत तक रहा।
  • उसी समय दक्कन सल्तनत के शासकों ने विजयनगर के राजाओं के खिलाफ मैत्री-समझौता किया और इसी समझौते के कारण ‘राक्षसी-तांगड़ी’ युद्ध हुआ।
  • धार्मिक भिन्नताएँ होने के बाद भी विजयनगर के राजाओं और सुल्तानों में संबंध शत्रुतापूर्ण नहीं थे। कृष्णदेव राय ने भी कई सुल्तानों के विवादों को सुलझाने की कोशिश की थी। शायद यही कारण था कि सुल्तानों ने उन्हें “यवन राज्य की स्थापना करने वाला” की उपाधि दी थी।
  • विजयनगर के शासक रामराय ने एक बार दो सुल्तानों को एक-दूसरे के विरुद्ध अपनी कूटनीति के माध्यम से भड़काने की कोशिश की लेकिन वे इस अकरी में सफल नहीं हुए जिसके बाद वह निर्णायक रूप से हार गया।

शासन प्रणाली और राय तथा नायक

  • विजयनगर सम्राज्य में सेना के प्रमुख को नायक कहा जाता था और ये किलों पर नियंत्रण रखते थे। साम्राज्य में शक्ति सेना के हाथ में ही होती थी।
  • नायक बसने के लिए उपजाऊ भूमि की तलाश करते थे, ऐसे में किसान इनके सहायक बनते थे।
  • नायक साम्राज्य के शासकों की अधीनता तो स्वीकार करते थे लेकिन कई बार विद्रोह भी कर देते थे जिसे सैनिक कार्यवाही द्वारा समय-समय पर समाप्त कर दिया जाता था।
  • इस सम्राज्य के प्रशासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता अमर-नायक प्रणाली थी जिसके कई तत्त्व दिल्ली के ‘इक्ता प्रणाली’ से लिए गए थे।
  • अमर-नायक सेना के कमांडर (प्रधान) होते थे जिनको राय द्वारा प्रशासन चलाने के लिए राज्य-क्षेत्र दिए जाते थे। इनका कार्य किसानों, शिल्पकारों, व्यापारियों से कर और भू-राजस्व वसूल करना था।
  • प्राप्त धन को अमर-नायक व्यक्तिगत उपयोग, घोड़ों और हाथियों के निर्धारण दल के रख-रखाव पर खर्च करते थे। यही दल विजयनगर शासकों को एक शक्तिशाली सेना प्रदान करता था।
  • अमरनायकों द्वारा राजा को वर्ष में एक बार उपहार दिया जाता था। इस तरह वे शासक के प्रति अपनी स्वामी भक्ति को प्रकट करने के लिए उपहार लेकर राजदरबार में जाते थे।
  • राजा कभी-कभी अमरनायकों पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए उन्हें एक से दूसरी जगह पर स्थानांतरित कर देते थे लेकिन 17वीं शताब्दी तक कई नायकों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली। इस वजह से केंद्रीय राजकीय ढाँचे का पतन बड़ी तेजी से होने लगा।

विजयनगर की जल संपदा

  • विजयनगर की भौगोलिक स्थिति को देखा जाए, तो उसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता तुगभद्रा नदी द्वारा निर्मित एक प्राकृतिक कुंड है। इसी वजह से इस नदी के आस-पास का क्षेत्र अत्यंत सुंदर नजर आता है।
  • इस नगर की भौगोलिक स्थिति इसलिए भी लोगों को चौकाती और आकर्षित करती है क्योंकि ये चारों तरफ से ग्रेनाइट की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इन पहाड़ियों में से कई जलधाराएँ नदी में आकर मिलती थीं। उस समय बाँध के माध्यम से बड़े आकार के हौजों में इन जलधाराओं को जमा किया जाता था।
  • उस दौरान शासक कृष्णदेव राय ने लगभग सभी धाराओं के साथ बाँध बनाए थे।
  • विजयनगर में आस-पास के खेतों की सिंचाई के लिए ‘कमलपुरम् जलाशय’ को अधिक महत्व दिया जाता था। इससे सिर्फ खेतों की सिंचाई ही नहीं होती थी बल्कि इसे एक नहर के माध्यम से ‘राजकीय केंद्र’ तक भी ले जाया गया।
  • उस दौरान ‘हरिया नहर’ सबसे प्रमुख जल संबंधी संरचनाओं में से एक थी। वर्तमान समय में इस नहर को खंडहरों के माध्यम से देखा जा सकता है। पहले इस नहर में पानी तुंगभद्रा नदी से पहुँचता था।
  • ‘हरिया नहर’ के जल का उपयोग विजयनगर के धार्मिक केंद्र और शहरी केंद्र को अलग करने वाली घाटी की सिंचाई के लिए किया जाता था।

विजयनगर का शहरी जीवन

  • विजयनगर के शहरी जीवन के बारे में आम लोगों के आवासों की तुलना में कम सबूत मिले हैं।
  • तत्कालीन समय में हम्पी मंदिरों और मस्जिदों से जुड़ी स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध थी जिससे शहरों की स्थापत्य कला प्रभावित थी।
  • 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली यात्री बरबोसा द्वारा बताया गया है कि “लोगों के आवास छप्पर के जरूर बने हैं लेकिन मजबूत हैं”। इन आवासों को व्यवसाय और कार्य के आधार पर खुली तथा लंबी गलियों में बनाया गया है।
  • शहरों में रहने वाले लगभग सभी समुदायों के लिए छोटे-छोटे कई मंदिर थे। उस समय मंदिरों के जलाशय, बरसात के पानी वाले जलाशय और कुएँ साधारण नगर के लोगों के लिए जल का स्त्रोत थे।

विजयनगर के राजकीय केंद्र

  • राजकीय केंद्र में 60 से भी ज्यादा मंदिरों का निर्माण किया गया था।
  • शासक प्रतिष्ठित देवी-देवताओं के माध्यम से अपनी सत्ता को स्थापित करने का प्रयास करते थे। इसलिए यहाँ बहुत से राजकीय केंद्रों कि स्थापना की गई।
  • इस शहर में 30 से भी ज्यादा निर्मित केंद्रों की पहचान महलों के रूप में की गई जिनका वर्णन कुछ इस प्रकार है-

किलेबंदी और सड़कें

  • विजयनगर की किलेबंदी की गई थी अर्थात ये नगर चारों तरफ से दीवारों से घिरा था। अब्दुर-रज्जाक जब यहाँ आया था तब वह इस किले बंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ।
  • इस किलेबंदी की एक खास बात यह थी कि इसमें खेतों और जंगलों को भी घेरा गया था। अब्दुर-रज्जाक ने बताया था कि “पहली, दूसरी और तीसरी दीवारों के बीच जूते हुए खेत, बगीचे और आवास हैं”।
  • किलेबंद-भू-भाग में घेराबंदी करने के निम्नलिखित उद्देश्य थे-
    • शत्रुओं द्वारा आक्रमण के दौरान भी खाद्य प्रदार्थों की कमी न हो और कृषि व्यवस्था बनी रहे।
    • शत्रु जब घेराबंदी करें तब यहाँ कई महीनों और वर्षों तक जीवित रहा जा सके।
    • नगर के भीतरी भागों को कवच के रूप में सुरक्षा प्रदान करना।
    • शासकों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने के लिए।
    • युद्ध की भयंकर स्थितियों से निपटने के लिए कीलेबंद क्षेत्र के भीतर विशाल अन्नागरों का निर्माण।
  • दुर्ग में प्रवेश के लिए सुरक्षित प्रवेश द्वार भी थे जो शहर की मुख्य सड़क से जाकर जुड़ते थे।
  • इन बस्तियों में जाने के लिए प्रवेश द्वार पर बनी मेहराब और द्वार के ऊपर बनी गुंबद तुर्की सुल्तानों द्वारा चलाई गई स्थापत्य शैली के तत्व माने जाते थे जिसे इतिहासकारों द्वारा इंडो-इस्लामिक शैली कहा गया।

राजकीय भवन

  • विजयनगर के राजकीय भवनों या केंद्रों में मंदिर के साथ-साथ महल भी बनाए गए थे लेकिन इन दोनों की संरचना में भिन्नता थी। मंदिर पूरी तरह से सुसज्जित एवं अलंकृत थे, वहीं महलों/भवनों का निर्माण सामान्य तरीके से किया गया था।
  • राजकीय केंद्र मुख्य रूप से शहर के दक्षिण-पश्चिम भाग में उपस्थित थे।

मंडप और महानवमी डिब्बा

आकार और उनके कार्यों के आधार पर विजयनगर के भवनों की संरचनाओं का नामकररण किया गया था जिसमें सभा मंडप और महानवमी डिब्बा दो महत्वपूर्ण तंत्र थे।

सभा मंडप- सभा मंडप एक ऊँचा मंच होता था जिसमें एक समान निश्चित दूरी पर आस-पास लकड़ी के स्तंभों के लिए छेद बने होते थे। इन स्तंभों पर ही दूसरी मंजिल टिकी थी और वहाँ जाने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी थीं। स्तंभों को बहुत ज्यादा पास-पास बनाया गया था इसलिए यह स्पष्ट नहीं किया जा सका कि इस मंडप को किस प्रयोजन के लिए बनाया गया था।

महानवमी डिब्बा- यह एक बहुत विशालकाय मंच था, जिसका आधार लगभग 11,000 वर्ग फिट और ऊँचाई 40 फिट थी। इस मंच से जुड़े कई अनुष्ठान थे जिन्हें मुख्य रूप से सितंबर और अक्टूबर के शरद महीनों में मनाया जाता था। भारत के उत्तरी क्षेत्र (मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश) में दशहरा, बंगाल में दुर्गा पूजा और प्रायद्वीप भारत में नवरात्रि या महालक्ष्मी पूजन मनाया जाता था। यह त्योहार 10 दिन तक मनाए जाते थे लेकिन दशहरे के 9वें दिन विशेष अनुष्ठान किए जाते थे जैसे कि- मूर्तियों की पूजा, घोड़ों की पूजा, जानवरों की बलि देना आदि। साथ ही मेले, तमाशे और कई प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती थीं। त्योहार के अंतिम दिन शासक अपनी और अपने नायकों की सेना का खुले मैदान में सबके सामने भव्य समारोह आयोहित करवाते थे।

राजकीय केंद्र के अन्य भवन लोटस महल तथा हजार राम मंदिर

लोटस महल- यह महल राजकीय केंद्रों के सबसे सुंदर महलों में से एक था। लोटस महल या कमल महल नाम 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा दिया गया। लेकिन इस महल को लेकर इतिहासकारों के बीच विवाद है कि इसका निर्माण कौन से कार्य के लिए किया गया? मैकेन्जी का कहना है कि इस महल का उपयोग राजा अपने सलाहकारों से मिलने के लिए करता था।

हजार राम मंदिर- यह दर्शनीय और सुंदर मंदिर राजकीय केंद्र में था जिसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठान के लिए सिर्फ राजा एवं उसके परिवार के सदस्य ही कर सकते थे। यहाँ मंदिर के आंतरिक दीवारों पर रामायण से जुड़े कुछ दृश्यों को उकेरा गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय राम के आदर्शों और उनके जीवन संघर्षों को महत्व दिया जाता था। जब विजयनगर पर आक्रमण के बाद बहुत सी संरचनाएँ नष्ट हो गईं तब नायकों ने महलनुमा भवनों के निर्माण की परंपरा अपने हाथ में ले ली थी।

विजयनगर के धार्मिक केंद्र और उनकी वर्तमान स्थिति

विजयनगर की तुंगभद्रा नदी के उत्तरी भाग में चट्टानी पहाड़ियों से जुड़ी दो प्रमुख मान्यताएँ प्रचलित हैं-

1. ये चट्टानी पहाड़ियाँ बाली तथा सुग्रीव के वानर-राज्य को सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करती थीं।

2. स्थानीय मातृदेवी पंपादेवी ने विरुपाक्ष से विवाह करने के लिए यहीं तप किया था। आज भी हर साल विरुपाक्ष मंदिर में इस विवाह को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यता अनुसार विरुपाक्ष को देवता (शिव) का रूप कहा जाता था।

  • मंदिर निर्माण का इतिहास पल्लव, चालुक्य, होयसाल और चोल शासकों से भरा हुआ है। ज्यातर राजा खुद को ईश्वर से जोड़ने के लिए मंदिर निर्माण को बढ़ावा देते थे।
  • उस समय मंदिर धर्म, अनुष्ठान के केंद्र होने के साथ-साथ शिक्षा के केंद्र रूप में भी कार्य करते थे।
  • राजा खुद को देवताओं के प्रतिरूप और प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित करने के लिए हिंदू सूरतराणा जैसे संकेतों को अपनाते थे। सूरतराणा एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है ‘सुल्तान’ अर्थात् ‘हिंदू सुल्तान’।
  • शासकों ने पुरानी धार्मिक परंपराओं के साथ अपनी नई परंपराओ को जोड़कर नई धार्मिक परंपरा का विकास किया। विजयनगर में धार्मिक केंद्रों की बनावट ही सत्ता और शासक की शक्ति को उजागर करती थी।

विजयनगर के दो प्रमुख मंदिर

विरूपाक्ष मंदिर- इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर को बनने में कई साल गल गए थे। यहाँ सबसे पुराना मंदिर 9वीं से 10वीं शताब्दी का था। कृष्णदेव राय ने अपने राज्यारोहण के दौरान मंदिर के सामने मंडप का निर्माण करवाया और इसके स्तंभों को बड़ी बारीकी से आकर्षित ढंग से बनवाया था। मंदिर में अनेक सभागारों का निर्माण विवाह संबंधित उत्सवों को मनाने के लिए किया गया था। वहीं कुछ सभागारों का उपयोग देवी-देवताओं से जुड़े कार्यों के लिए होता था।

विट्ठल मंदिर- यह विजयनगर का दूसरा प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ विट्ठल देवता को विष्णु के रूप में पूजा जाता है। विष्णु के रूप में विट्ठल की पूजा कर्नाटक में स्वीकृत की गई थी। इस मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसका निर्माण एक रथ के आकार के समान किया गया। इस मंदिर की मुख्य विशेषता इसके गोपुरम (प्रवेशद्वार) की रथ-गलियाँ थीं जिनके दोनों तरफ स्तंभ वाले मंडपों का निर्माण किया गया था और इनके फर्श पत्थर के टुकड़ों से बने होते थे।

समयावधि अनुसार घटनाक्रम

कालक्रम अनुसार महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन

क्रम संख्याकालघटना
1.लगभग 1200-1300 ईसवीदिल्ली सल्तनत की स्थापना (1206)
2.लगभग 1300-1400 ईसवीविजयनगर साम्राज्य की स्थापना (1336); बहमनी राज्य की स्थापना (1347); जौनपुर, कश्मीर और मदुरई में सल्तनतें
3.लगभग 1400-1500 ईसवीउड़ीसा के गजपति राज्य की स्थापना (1435); गुजरात और मालवा की सल्तनतों की स्थापना; अहमदाबाद; बीजापुर तथा बेरार सल्तनतों का उदय (1490)
4.लगभग 1500-1600 ईसवीपुर्तगालियों द्वारा गोवा पर विजय (1510) ; बहमनी राज्य का विनाश; गोलकुंडा की सल्तनत का उदय (1518); बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की स्थापना (1526)
5.1800कॉलिन मैकेन्जी द्वारा विजयनगर की यात्रा
6.1856अलेक्जैंडर ग्रनिलों ने हम्पी के पुरातात्विक अवशेषों के पहले विस्तृत चित्र लिए
7.1876पुरास्थल की मंदिर की दीवारों के अभिलेखों का जे. एफ. फ्लीट द्वारा प्रलेखन आरंभ
8.1902जॉन मार्शल के अधीन संरक्षण कार्य आरंभ
9.1986हम्पी को यूनेस्को द्वारा विश्व पुरातत्व स्थल घोषित किया जाना
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