इस लेख में छात्रों को एनसीईआरटी 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक-2 यानी भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग- 2 के अध्याय- 8 किसान, ज़मींदार और राज्य (कृषि समाज और मुग़ल साम्राज्य) के नोट्स दिए गए हैं। विद्यार्थी इन नोट्स के आधार पर अपनी परीक्षा की तैयारी को सुदृढ़ रूप प्रदान कर सकेंगे। छात्रों के लिए नोट्स बनाना सरल काम नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों का काम थोड़ा सरल करने के लिए हमने इस अध्याय के क्रमानुसार नोट्स तैयार कर दिए हैं। छात्र अध्याय- 8 इतिहास के नोट्स यहां से प्राप्त कर सकते हैं।
Class 12 History Book-2 Chapter-8 Notes In Hindi
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अध्याय- 8 “किसान, ज़मींदार और राज्य” (कृषि समाज और मुग़ल साम्राज्य)
बोर्ड | सीबीएसई (CBSE) |
पुस्तक स्रोत | एनसीईआरटी (NCERT) |
कक्षा | बारहवीं (12वीं) |
विषय | इतिहास |
पाठ्यपुस्तक | भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-2 |
अध्याय नंबर | आठ (8) |
अध्याय का नाम | “किसान, ज़मींदार और राज्य” (कृषि समाज और मुग़ल साम्राज्य) |
केटेगरी | नोट्स |
भाषा | हिंदी |
माध्यम व प्रारूप | ऑनलाइन (लेख) ऑफलाइन (पीडीएफ) |
कक्षा- 12वीं
विषय- इतिहास
पुस्तक- भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-2
अध्याय- 8 “किसान, ज़मींदार और राज्य” (कृषि समाज और मुगल साम्राज्य)
किसानों का जीवन और उनकी विभिन्न गतिविधियाँ
- मुगल काल के गाँवों में मुख्य आधार किसान होते थे जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता था।
- उस दौरान किसानों के लिए प्रातः रैयत, रिआया या मुजरियान शब्द का उपयोग किया जाता था। उस समय दो प्रकार के किसान खेती करते थे-
- खुदकाश्त- इसमें वे किसान शामिल थे जो खुद की जमीन पर खेती करते थे।
- पाहिकाश्त- इसमें वे किसान थे जो दूसरे गाँवों में ठेके पर जमीन लेकर खेती करते थे।
- मुगल काल में किसानों के पास एक जोड़ी बैल और दो हल से ज़्यादा शायद ही कृषि से जुड़ी कोई विशेष सुविधा पाई जाती थी।
- उस काल में गुजरात में 6 एकड़ जमीन वाले किसान, बंगाल में 5 एकड़ जमीन वाले किसान एवं 10 एकड़ जमीन वाले किसानों को समृद्ध और संपन्न माना जाता था जिसमें से 10 एकड़ जमीन वाले किसान को सबसे अमीर माना जाता था।
- किसान उस समय अपने जमीनों की पहचान के लिए मिट्टी, ईंट और काँटों की बाड़ लगाते थे। आज भी कई गाँवों में इस तरह के कई साक्ष्य देखने को मिलते हैं।
कृषि
- कृषि कार्य हमेशा मौसम और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए दो चक्रों में पूरा किया जाता था। पहली खरीफ (पतझड़) और दूसरी रबी (बसंत)। इस प्रकार सुखी तथा बंजर जमीनों को छोड़कर अधिकतर जगहों पर दो तरह की फसलें उगाई जाती थीं।
- जहाँ बारिश और सिंचाई की अच्छी सुविधा थी वहाँ किसान तीन प्रकार की फसलें भी उगाते थे।
- अबुल फज्ल की आइन-ए-अकबरी के अनुसार आगरा में 39 किस्म की फसलें, दिल्ली प्रांत में 43 किस्म की फसलें और बंगाल में सिर्फ चावल की 50 किस्में उगाई जाती थीं।
- मुगल काल में कुछ ऐसी फसलें भी उगाई जाती थीं जिससे सबसे ज़्यादा कर राज्य को मिलता था। उन फसलों को ‘जिन्स-ए-कामिल’ या नकदी फसल कहा जाता था जिसमें मुख्य रूप से कपास और गन्ने की फसल शामिल थीं।
- जिन जगहों पर 40 इंच से ज़्यादा वर्षा होती थी वहाँ चावल का उत्पादन किया जाता था। इसके अलावा कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूँ और ज्वार-बजारे का उत्पादन किया जाता था।
- कुछ फसले 17वीं शताब्दी में बाहरी देशों से भी आई जैसे कि मक्का अफ्रीका और स्पेन से आई। इसी तरह टमाटर, आलू, मिर्च जैसी सब्जियाँ और अनानास, पपीता जैसे फल नई दुनिया से भारत लाए गए।
सिंचाई और कृषि तकनीक व्यवस्था
- मुगल काल में खेती वर्षा पर निर्भर थी लेकिन सिंचाई की व्यवस्था भी की गई थी। इसलिए मौनसून को भारतीय कृषि की रीढ़ की हड्डी कहा जाता था।
- सिंचाई के लिए उत्तर भारत में कई नहर और नाले बनवाए गए। उस दौरान शाहजहाँ ने पंजाब में शाह नहर का निर्माण करवाया था।
- गर्मी के मौसम में मिट्टी की नमी बनी रहे इसके लिए खेतों की जुताई के लिए लकड़ी के हल्के हल का प्रयोग किया जाता था।
- बैलों की सहायता से भी सिंचाई की जाती थी।
- मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लकड़ी के मूठ वाले लोहे के पतले धार उपयोग किए जाते थे।
- बीज बोने के लिए बैलों के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का इस्तेमाल किया जाता था।
ग्रामीण समुदाय का जीवन
जाति आधारित ग्रामीण परिवेश
- उस दौरान कई किसान जाति के आधार पर बंटे हुए थे। इस श्रेणी में जिन किसानों की संख्या अधिक थी वह घृणित कार्यों को करते थे।
- गाँवों में नीचे माने जाने वाले किसानों की संख्या सबसे अधिक थी। कुछ किसानों की जातियों की स्थिति दासों जैसी होती थी जैसे कि हलालखोरान और मल्लाहजादा।
- ग्रामीण समुदाय के प्रमुख तीन कारक थे जिसमें से पहला किसान दूसरा पंचायत और तीसरा गाँव का मुखिया होता था।
पंचायत और मुखिया
- गाँव के मुखिया को बुजुर्ग सदस्यों द्वारा चुना जाता था और गाँव के बड़े-बुजुर्ग ही पंचायत के सदस्य हुआ करते थे।
- पंचायत का प्रमुख मुखिया होता था जिसे मुकद्दम या मण्डल कहा जाता था।
- पंचायत गाँव की जाति-समुदाय से जुड़े, पैसों से जुड़े सभी मुद्दों को हल करने वाली एक प्रशासनिक इकाई थी।
- पंचायत में लगभग सभी जातियों के लोग शामिल होते थे इसलिए इसमें विविधता पाई जाती थी।
- गाँव के पंचायत के अलावा सभी जातियों की अपनी अलग-अलग पंचायत भी होती थी।
- पंचायत को कई अधिकार दिए गए थे जिसमें जुर्माना लगाने से लेकर दंड देने के अधिकार शामिल थे।
- जब किसी मतभेद का समाधान नहीं होता था तब कई किसान गाँव छोड़कर चले जाते थे।
- पंचायत के मुख्य कार्य थे- समुदाय पर नियंत्रण रखना, मुखिया की मौजूदगी में विवाह संपन्न कराना, जाति व्यवस्था को बनाए रखना, अधिक कर की माँगों के विवाद को समाप्त करने की कोशिश करना आदि।
- पंचायत के लिए अलग से एक कोष होता था जिसमें गाँव का हर व्यक्ति अपने सामर्थ्य अनुसार अनुदान करता था।
ग्रामीण दस्तकार
- अंग्रेजी शासन के प्रारंभिक सर्वेक्षण और मराठा दस्तावेजों के अनुसार 25% परिवार दस्तकारों के थे।
- दस्तकारों और किसानों में अंतर करना बहुत कठिन साबित होता था क्योंकि ये लोग दोनों कार्य करते थे।
- मुख्य रूप से कुम्हार, लोहार, बढ़ई, नाई, तेली, दर्जी और सुनार अपनी सेवाएँ ग्रामीणों तक पहुँचाते थे।
- जमींदार दस्तकारों को तथा कामगारों को उनके सेवाओं के बदले में खाने के लिए अनाज और कुछ धन प्रदान करते थे जिसे जजमानी व्यवस्था कहा जाता था।
एक छोटा राज्य/गणराज्य
- उस समय राज्य वर्तमान जैसा तो नहीं था लेकिन केंद्रीय सत्ता की शक्ति के रूप में अवश्य उपस्थित था।
- 19वीं शताब्दी में भारतीय गाँवों को एक छोटा गणराज्य कहा जाता था वहीं सत्ता के मुख्य केंद्र शहर थे।
- उस दौरान एक विशेषता यह थी कि गाँवों और शहरों में आपसी व्यापार काफी विकसित हो चुका था।
- फिर भी जाति तथा लिंग आधारित भेदभाव का लोग सामना करते थे वहीं कुछ ताकतवर लोग अपने अधिकारों का गलत तरीके से इस्तेमाल करके कमजोर और निम्न वर्गों का शोषण करते थे।
कृषि समाज में महिलाएँ
महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति
- उत्पादक के कार्यों में महिला और पुरुष दोनों अपनी-अपनी विशेष भूमिका निभाते थे लेकिन फिर भी महिलाओं की स्थिति दयनीय थी।
- महिलाएँ कुपोषण का शिकार जल्दी बनती थीं। असुरक्षित प्रसव से जुड़ी समस्याओं के कारण महिलाओं की मृत्यु अधिक होती थी इसलिए उस समय विवाहित महिलाओं की संख्या कम थी।
- कई गाँवों में शादी के दौरान दहेज की जगह ‘दुल्हन की कीमत’ अदा करनी होती थी।
- उस दौरान महिलाओं को एक महत्वपूर्ण संसाधन माना जाता था। इस तरह प्रकृति द्वारा निर्धारित की गई उनकी संरचना और प्रजनन शक्ति को महत्व दिया जाता था।
- महिलाओं को कई रूढ़िवादी सोच और पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता था; जैसे कि राजस्वला होने पर उन्हें हल या चाक नहीं छूने दिया जाता था।
- महिलाओं के चरित्र पर थोड़ा भी शक होने पर उन्हें दंडित किया जाता थ लेकिन पुरुषों पर यह नियम लागू नहीं किया जाता था।
- मुग़ल काल में गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र इत्यादि भारत के पश्चिमी क्षेत्रों में महिलाएँ अपने नाम से नहीं बल्कि अपने पति या बेटे के नाम के संबोधित की जाती थी जैसे- मुखिया की माँ/बहन/पत्नी।
महिलाओं के लिए संपत्ति संबंधी अधिकार
- बाजार और घरों में महिलाएँ श्रमिक रूप में कार्य करती थी।
- भूमिहार किसानों में महिलाओं को पुश्तैनी संपत्ति का अधिकार प्राप्त था।
- कई हिंदू मुस्लिम महिलाओं को जमींदारी उत्तराधिकार के रूप में मिलती थी। मिली हुई जमीनों को वे बेचने और गिरवी रखने के लिए स्वतंत्र थी।
- मुख्य रूप से बंगाल में महिलाएँ जमींदार पाई गईं।
जंगल एवं कबीले
- जंगल और झाड़ियों में रहने वाले लोगों को जंगली कहा जाता था। ये लोग जीवन निर्वाह के लिए वनों के उत्पादन, शिकार और स्थानांतरीय खेती (झूम खेती) पर निर्भर थे।
- उस समय भारत में लगभग 40 फीसदी भूमि में जंगलों का फैलाव था।
- राज्य द्वारा जंगलों को चोर, डाकुओं, लुटेरों के रहने का अड्डा माना जाता था।
जंगलों में घुसपैठ
- कई बाहरी ताकतें सैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हाथियों की खोज में जंगलों में घुसपैठ करती थी।
- जंगलवासियों से राज्य भेंट और पेशकश के रूप में हाथी लिया करते थे।
- जंगलों तक पहुँच बनाने के लिए शासक शिकार का सहारा लेते थे और अलग-अलग समूहों तथा इलाकों की समस्याओं एवं शिकायतों को सुनते और उनका निवारण करते थे।
- 17वीं शताब्दी में कारोबारी खेती का प्रभाव जंगल में रहने वाले कबीलों पर पड़ने लगा था।
- जंगल में कबीलों के सरदार होते थे और उनकी अपनी परंपराएँ होती थीं लेकिन बाद में कुछ सरदार इतने शक्तिशाली हो गए कि वे जमींदार बन गए।
- पायक वे लोग थे जिन्हें जीमन के बदले सैनिक सेवा देनी पड़ती थी।
- सूफी संतों और साधु-संतों से प्रभावित होकर किसानों व अन्य ग्रामीण समुदायों से जुड़े लोगों ने धर्म परिवर्तन भी किया।
जमींदार
- जमींदारों को कई तरह की सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ प्राप्त थीं। उनकी अपनी जमीनें ही उनकी निजी संपत्ति हुआ करती थी जिसे मिल्कियत कहा जाता था।
- जमींदारों की समृद्धि के कई कारण थे जैसे कि- उनकी जातिगत श्रेष्ठा, राज्य की तरफ से प्राप्त खास सुविधाएँ, कर वसूली करना, सैनिक टुकड़ियाँ रखना, अपने किलों का होना आदि।
- जमींदारों के मुख्य प्रसारित कार्य नई जमीनों को बसाना, राज्य का आदेश लागू करना, जमींदारी की खरीद-बिक्री, अधिकारों का हस्तांतरण करना था।
जमींदार और किसानों के पारस्परिक संबंध
- उस काल में जमींदार शोषण करने वाले समुदाय के रूप में जाने जाते थे लेकिन उन्होंने खेतिहार किसानों को खेती के लिए संसाधन और धन उधार देकर एक तरह से उन्हें वहाँ बसने में मदद की थी।
- कई ऐसे राज्य विद्रोह हुए जिनमें जमींदारों को किसानों का समर्थन प्राप्त होता था।
- जमींदारों ने जमीन की खरीद फरोख्त से गाँवों में मौद्रीकरण (नकदी) प्रक्रिया का प्रसार किया।
- जमींदार जहाँ बाजार स्थापित करते थे वहाँ किसान भी अपनी फसले बेचा करते थे।
भू-राजस्व प्रणाली
- जमीनों से मिलने वाला कर ही मुगल साम्राज्य की बुनियाद/नींव था जिसकी देख-रेख और नियंत्रण की जिम्मेदारी दीवान की होती थी।
- राजस्व वसूली करने वाले को अमील-गुजार कहा जाता था।
- भू-राजस्व का निर्धारण दो चरणों में किया जाता था-
- कर निर्धारण (जमा)
- वास्तविक वसूली (हासिल)
- औरंगजेब ने 1665 ई. में अपने राजस्व कर्मचारियों को गाँव के खेतिहारों की संख्या का सलाना हिसाब रखने को कहा।
मुगल साम्राज्य और व्यापार (चाँदी का बहाव)
- मुगल साम्राज्य 16वीं एवं 17वीं शताब्दी में एशिया के उन बड़े ससम्राज्यों में से एक था जो सत्ता और संसाधनों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने में सफल रहे।
- इस काल में भारतीय व्यापार में तेजी से वृद्धि हुई।
- भारत से अत्यधिक निर्यात होने वाली वस्तुओं का भुगतान करने के लिए एशिया में भारी मात्रा में चाँदी आने लगी।
- इटली के एक यात्री जोवान्नी कारेरी ने 1690 ई. में बताया कि कैसे चाँदी भारत पहुँचती थी।
- 17वीं सदी में भारत में बड़ी मात्रा में नकद और वस्तुओं का आदान-प्रदान होने लगा था।
कृषि/मुग़ल साम्राज्य का ऐतिहासिक स्त्रोत ‘आइन-ए-अकबरी’
- ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना अकबर के दरबारी अबुल फज्ल द्वारा 1598 ई. में की गई।
- यह अकबरनामा का एक भाग है जिसमें उस काल के शाही नियमों को प्रस्तुत किया गया है। जिसमें मुख्य रूप सर अकबर के साम्राज्य को केंद्र में रखा गया है।
‘आइन-ए-अकबरी’ के पाँच भाग
- पहला खंड (मंजिल-आबादी)- यह खंड शाही घर-परिवार और उसके रख-रखाव से जुड़ा है।
- दूसरा खंड (सिपह-आबादी)- दूसरा खंड सिपाही-आबादी, सैनिक तथा नागरिक प्रशासन और नौकरी व्यवस्था से संबंधित है।
- तीसरा खंड (मुल्क-आबादी)- इस भाग में साम्राज्य के 12 प्रांतों का वर्णन किया गया है साथ ही सांख्यिकी संबंधित सभी सूचनाएँ विस्तृत रूप में दी गई हैं।
- चौथा और पाँचवाँ खंड- इसमें धार्मिक विश्वास, सांस्कृतिक प्रथाओं और साहित्य के बारे में बताया गया है।
सरकारी प्रबंध से संबंधित आठ कलाम (खंड)
ये कलाम निम्नलिखित आठ सूनचाओं से जुड़े हैं-
- परगनात/महल
- किला
- अराजी और जमीन-ए-पाइमूद (मापे गए इलाके)
- नकदी (नकद निर्धारित राजस्व)
- सुयूरगल (दान में दिया गया राजस्व अनुदान)
- जमींदार
- और 8. जमींदारों की जातियों व उनके घुड़सवार, पैदल सिपाही और हाथी सहित फौज से संबधित है।
‘आइन-ए-अकबरी’ की विशेषताएँ
- उस काल की सामाजिक अर्थव्यवस्था को उजागर करती है।
- बाद के इतिहासकारों के लिए इतिहास लेखन का आधार बनी।
- एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्त्रोत जो भारत के ग्रामीण व शहरी लोगों और मुगल साम्राज्य का विवरण प्रस्तुत करती है।
‘आइन-ए-अकबरी’ की त्रुटियाँ अथवा सीमाएँ
- कहीं-कहीं आकड़ों को अधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।
- जोड़ संबंधी भी कई छोटी गलतियाँ हुई हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये गलतियाँ अबुल फज्ल के सहयोगियों से नकल उतारते समय हुई होंगी।
- जमींदारों की जाति से जुड़ी सूचनाएँ संकलित की गई हैं लेकिन बंगाल और उड़ीसा के जमींदारों की जातियों का विवरण नहीं जोड़ा गया है।
समयावधि अनुसार मुख्य धार्मिक शिक्षक
मुग़ल साम्राज्य के इतिहास के मुख्य पड़ाव
क्रम संख्या | काल | मुग़ल साम्राज्य के इतिहास पड़ाव |
1. | 1526 | दिल्ली के सुलतान, इब्राहिम लोदी को पानीपत में हराकर बाबर पहला मुग़ल बादशाह बनता है |
2. | 1530-40 | हुमायूँ के शासन का पहला चरण |
3. | 1540-55 | शेरशाह से हारकर हुमायूँ सफावी दरबार में प्रवासी बन कर रहता है |
4. | 1555-56 | हुमायूँ खोये हुए राज्य को फिर से हासिल करता है |
5. | 1556-1605 | अकबर का शासन काल |
6. | 1605-27 | जहाँगीर का शासन काल |
7. | 1628-58 | शाहजहाँ का शासन काल |
8. | 1658-1707 | औरंगज़ेब का शासन काल |
9. | 1739 | नादिरशाह भारत पर आक्रमण करता है और दिल्ली को लूटता है |
10. | 1761 | अहमदशाह अब्दाली पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को हराता है |
11. | 1765 | बंगाल के दीवानी अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिये जाते हैं |
12. | 1857 | अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र को अंग्रेज गद्दी से हटा देते हैं और देश निकाला देकर रंगून (आज का यांगोन, म्यांमार में) भेज देते हैं |
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